छोटा परिवार और विराट परिवार

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कोई बच्चा एक परिवार में और कोई दूसरे परिवार में जन्म लेता है तो उसका आधार क्या होता है अथवा उसके पीछे कारण क्या है? कोई तो एक व्यक्ति के यहाँ जन्म लेता है जो धनी भी है, सरल स्वभाव का भी है, प्रभु-प्रेमी भी है और आचार-विचार में भी कई मर्यादाओं का पालन करता है और दूसरा बच्चा एक ऐसे व्यक्ति के यहाँ जन्म लेता है जो निर्धन है और बच्चे को जन्म लेते ही ऐसे अड़ोसी-पड़ोसी और संगी-साथी मिलते हैं जिनके स्वभाव-संस्कार दूषित हैं। क्या यह सब कारण के बिना ही होता है?

क्या पूर्व कर्म के आधार के बिना ही किसी परिवार में जन्म होता है?

संसार का यह अटल नियम माना गया है कि हर एक परिणाम का कोई कारण अवश्य होता है (Every effect has a cause) ये भी कहा गया है कि जो जैसा बीज बोता है वैसा ही उसका फल पाता है (As we sow so shall we reap) तब अलग-अलग परिवारों में, जिनकी अलग-अलग नैतिक, आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक स्थिति है, उसका भी तो अवश्य कोई कारण होता होगा।

बच्चे ने तो अभी कर्म करना प्ररम्भ ही नहीं किया। अत जन्म के समय और शिशु काल में जो उसे सुख-दुःख रूपी फल प्रप्त होता है उसका कर्म रूपी बीज तो उसने जन्म से पहले ही कभी बोया होगा।

क्या पूर्व कर्मों का होना यह सिद्ध नहीं करता कि शरीर में कोई ऐसी अव्यक्त सत्ता है जो जन्म से पहले भी थी?

सोचने की बात है कि बच्चा तो अभी ही हमारे सामने आया है; तब अवश्य ही इसमें ऐसी कोई अव्यक्त, गुप्त, अदृश्य, सूक्ष्मातिसूक्ष्म सत्ता होगी जिसने पहले अलग-अलग नाम, रूप, देश, काल, परिवार और परिस्थिति में कुछ कर्म किये होंगे और अब वह जैसी करनी वैसी भरनी रूपी उक्ति अथवा नियम के अनुसार दुःख-सुख ले रहा होता है।

अत वह क्या है, कौन है? वह सत्ता कैसी है? शरीर में कहाँ रहती है? उसके निजी गुण-धर्म क्या हैं? इन तथ्यों को जानना आवश्यक है क्योंकि वही तो अपने लिए मैं शब्द का पयोग करती है।

वह अव्यक्त सत्ता क्या है जो अपने लिए मैं शब्द प्रयोग करती है?

यदि किसी के शरीर की आयु साठ वर्ष भी हो जाती है तो भी वह सत्ता कहती है कि पाँच वर्ष की आयु में उसका फलाँ नाम से एक दोस्त था जिससे मिल कर खेलना-कूदना और लिखना-पढ़ना पारम्भ हुआ था।

डाक्टर और शरीर विज्ञान वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि मनुष्य के हर 7 वर्ष में शरीर के सारे जीव-कोष (Body cells) बदल जाते हैं; तो जिसके शरीर के समस्त जीव-कोष 60 वर्षों में कई बार बदल चुके हों और अब सब नये जीवन-कोष हों जो कि पहले नहीं थे, तब यह कहने वाला कौन है कि जब मैं 5-6 वर्ष का था...?

तब ये जीव-कोष तो थे ही नहीं। अवश्य ही जीव-कोषों के इस शरीर में कोई ऐसी सत्ता है जो 60 या 55 वर्ष पहले भी थी और अब भी है और वह उसी खुशी या अनुभूति की स्मृति से कहती है कि मेरा फलाँ नाम का दोस्त था अर्थात् वह सत्ता तो इन सब वर्षों से चली रही है।

इस शरीर में जन्म लेने से पहले उसने किसी अन्य शरीर को ले कर कर्म किये थे और अब भी वह 60 वर्षों से कर्म करती चली रही है।

मैं शब्द का प्रयोग हर आयु, हर लिंग वाला करता है तो अवश्य ही प्रयोक्ता शरीर से भिन्न होगा

शरीर की आयु 66 वर्ष हो या कुछ भी हो, वह अपने लिए मैं शब्द का पयोग करती चली रही है। पहले यदि उसका नाम मिस (Miss) कौशल्या मित्तल था तो अब विवाह के बाद उसका नाम मिसिज़ (Mrs) कौशल्या अग्रवाल हो गया है परन्तु मैं शब्द ऐसा है कि वो नर-नारी, बच्चा-बूढ़ा, मामा-चाचा, माता-पिता सभी करते हैं।

ये सभी का सांझा नाम है। केवल हिन्दी में ही नहीं अंग्रेजी में भी ‘I’ शब्द का पयोग हर आयु में, जन-जाति, वर्ण, नस्ल, धर्म, संस्कृति और देश वाले करते हैं। अवश्य ही ये एक ऐसी सत्ता है कि जो इस देह से भिन्न है और जिसका पयोग देह के आधार पर हुए सब वर्गों या विभाजनों के लोग एक-सा कर सकते हैं।

अव्यक्त सत्ता देह नहीं, देही है, शरीर नहीं, आत्मा है

ये देह नहीं, देही (dweller in body) है। शरीर नहीं है, शरीर इसका निवास है अथवा कर्म करने और सुख-दुःख भोगने के लिए इसे मिला हुआ कर्मेन्द्रियों का ढाँचा है। मैं शब्द का प्रयोग करने के बाद ही व्यक्ति ये कहता है कि मैं फलाँ का मामा हूँ अथवा मैं फलाँ की माता हूँ, तो मामा और माता के सम्बन्ध में भी मैं शब्द का पयोग करने वाली अव्यक्त सत्ता अलग है जो कि दोनों या सभी सम्बन्धों में है। केवल सार-संक्षेप के कारण से यह कह कर कि मैं देह के आधार पर इसकी माता हूँ अथवा देह के नाते से इसकी जननी हूँ, केवल यही कहा जाता है कि मैं इसकी माता अथवा जननी हूँ। देह के आधार पर अथवा देह के नाते से इन शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि ये समझ लिया जाता है कि यह तो है ही।

इसे अंग्रेजी मुहावरे में कहा जाता है कि यह तो understood (परोक्ष रूप से ज्ञात) है। लिखते समय कई बार ऐसे शब्दों को कोष्ठक (bracket) में दे दिया जाता है जैसे कि (मैं देह के आधार पर) इसकी माता हूँ परन्तु पहले कभी जिसे यह मान कर वर्णन नहीं किया जाता है कि यह तो ज्ञान है ही, समयान्तर में इस सर्वमान्य बात को लोग भूल ही गये और स्वयं को ही देह मानने लगे।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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