तनाव से मुक्ति की ओर (Part : 2)

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(भाग 2 का बाकी)

एक चरित्रवान व्यक्तित्व के निर्माण के लिए आवश्यक है ––

1. विश्वसत्तीयता।

2. भावना और विवेक, हिम्मत और महसूसता इत्यादि के बीच संतुलन।

3. संतुष्टता और धन्यवाद का दृष्टिकोण।

इन्हीं मूल्यों के आधार पर महान् चरित्र का निर्माण होता है और लोग दिल से उनको अपना आदर्श दिशा-निर्देशक स्वीकार करते हैं। सुंवादिता का सूत्र उसके लिए आवश्यक है कि हमें अपनी बात दूसरों पर थोपने या मनवाने की दूराग्रह पूर्ण मानसिकता को त्याग कर उसके आन्तरिक भावों को समझने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आप दूसरों के दिल का सम्राट बन सकें। इसी ढंग से आपकी शुभभावना तथा बेहतर सम्बन्धों का खज़ाना बढ़ता चला जाएगा।

एक सफल चिकित्सक का पहला लक्षण है वह रोगी की बात सहानुभूतिशील बन कर सुनता है। उसकी बीमारी का निदान हो इसके लिए उसका आवश्यक परिक्षण करता है और तब कहीं जाकर उसे आवश्यक परहेज के लिए सलाह और दवाई देता है। समाज में सेवा और सहयोग से पहले इसी प्रकार के सृजनात्मकता और महसूसता भरा दृष्टिकोण सभी के लिए आवश्यक है।

सफल जीवन के लिए यह अत्यधिक ज़रूरी हो जाता है कि अपने प्रतिदिन के कार्यक्रम में थोड़ा समय निकाल निम्नलिखित पहलूओं के विकास पर भी ध्यान दें।

1. शारीरिक स्वास्थ : उचित विश्राम और उत्तम गुणवत्ता पर आधारित शाकाहारी भोजन तथा क्रियायाम के लिए प्रतिदिन थोड़ा समय अवश्य दें। इसका दीर्घकालिक प्रभाव आपको स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा और वह है  –– आपकी कार्य क्षमता में वृद्धि।

2. मानसिक स्वास्थ्य : इसके अन्तरगत उत्तम साहित्य का अध्याय, मनन तथा प्रतिदिन उसका लेखन जाता है। यह मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाने का आधार भी है और क्रियायाम भी। इससे विचारों में स्पष्टता तथा मानसिक शक्ति का विकास होता है।

3. सामाजिक स्वास्थ्य : इसके अन्तरगत भावनात्मक और संवेदनशील व्यवहार के साथ-साथ श्रृजनात्मक सोच और व्यवहार जाता है। यदि कोई भी व्यक्ति अपना बौद्धिक विकास नहीं करता है फिर सफल जीवन उसके लिये सम्भव ही नहीं है।

4. आध्यात्मिक विकास से हमारा अभिप्राय योग तथा ज्ञान के अभ्यास से हैं। यदि कोई तनाव मुक्त होना चाहता है तो, उसे उपरोक्त ढंग से जीना आवश्यक है। तब ही जीवन के सभी अनुनरित सवालों का जवाब उसे सहज मिलने लगता है और जीवन के उद्देश्य को पाने में वे सहज ही सफल होते चले जाते हैं।

यह सर्व विदित है कि तनाव आज की सर्वाधिक गंभीर समस्या है। जिसका प्रभाव चहुँ ओर दृष्टिगोचर होता है। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बूढ़े, क्या महिला, क्या पुरुष, कौन नहीं, जो आज इस शब्द से परिचित होगा। सर्व की आन्तरिक इच्छा भी यही है कि किस भाँति इस अति कष्टदाई स्थिति से निजात मिले। कुछ लोग तो तनाव की जानबूझकर अवहेलना करते रहते हैं, परन्तु है यह अति खतरनाक जो आपके मन के कोने में ऊग्संदस्ं की तरह टिक-टिक करता रहता है। जाने कब विस्फोट कर जाये।

अनेक खोज करने पर यह निष्कर्ष निकला है कि तनाव का मनुष्य के तन-मन पर अत्यधिक हानिकारक प्रभाव पड़ता है जिसे साइकोसोमैटिक प्रभाव कहते हैं। इसके प्रभाव शरीर पर निम्नलिखित है ––

जोड़ों का दर्द, सिर का दर्द, ऐसीडिटी, हाई ब्लड प्रेशर इत्यादि। इसका मन पर प्रभाव - ईर्ष्या, क्रोध, डर, नफरत इत्यादि। 1000 में से 20 लोगों में यह बीमारी की सम्भावना बढ़ जाती है। शरीर पर उत्पन्न उन दुष्प्रभावों को तो बहुत हद तक हटाया भी जा सकता है, परन्तु तनाव से उत्पन्न प्रभाव मस्तिष्क को अत्यधिक क्षतिग्रस्त कर जाता है और उस क्षति की पूर्ति कभी-कभी बिलकुल असम्भव हो जाती है। मस्तिष्कीय कोशिकाएं जब एक बार नष्ट हो जाती है तो उसे दुबारा नहीं बनाया जा सकता है।

तनाव से रक्तवाहिनी सिकुड़ जाती है, जिसके फलस्वरूप रक्त दिमाग तक पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँच पाता है। कई ऐसे भावनात्मक दबाव उत्पन्न होने के कारण भी रक्तवाहिनियाँ फट जाती है। तनाव के कारण थोड़ा-थोड़ा नुकसान बढ़ता रहता है और अन्तत यह जान लेवा साबित होता है। इसका दूसरा प्रभाव कोशिकाओं के चयापचय क्रियाओं पर पड़ता है। सैल के चारों ओर चरबी की एक परत जमी होती है जो तनाव की अवस्था में, प्रक्रिया में लिपिड को बनने में रुकावट पैदा करती है। जिससे भी दिमाग क्षतिग्रस्त हो जाता है।

साधारणत मानव जीवन अपने प्रमुख पाँच केद्रों पर घूमता रहता है। व्यक्तिगत जीवन, पारिवारिक जीवन, सामजिक जीवन, कर्म-क्षेत्र का जीवन तथा चारों तरफ के वातावरण का जीवन। इन सभी केद्र पर उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों का नकारात्मक दबाव मनुष्य को सदा झेलना पड़ता है। तनाव को व्यवस्थित या सामायोजित करने के लिए मनुष्य के सामने यही दो घुमाव हैं।

एक परिस्थिति का दबाव दूसरा उस दबाव को झेलने की क्षमता अर्थात् सामाना करने की क्षमता। यदि दबाव अधिक है, परन्तु आपकी क्षमता उससे ज़्यादा है, तो आपको तनाव नहीं होगा। यह अलग-अलग केद्रों पर अलग-अलग हो सकता है। मान लीजिए आपका पारिवारिक परिस्थितिजन्य दबाव आपकी क्षमता से ज़्यादा है तो वहाँ तनाव हो सकता है, परन्तु आपके ऑफिस में यह हो सकता है कि आपकी क्षमता ज़्यादा है तो वहाँ आप तनाव मुक्त रह सकते हैं। खोज से यह भी पता चला है कि 5 एक जैसे लोगों पर समान बाह्य परिवेशजन्य उत्पन्न दबाव या उत्पन्न प्रभाव में अलग-अलग व्यक्ति पर उसके तनाव का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। हो सकता है उस एक समान उत्पन्न परिस्थिति में तीन लोगों को तनाव का अनुभव हो रहा हो और दो लोग उससे मुक्त हों। (शेष भाग –– 2)

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें
आपका और आपके परिवार का तहे दिल से स्वागत है

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