(भाग 2 का बाकी)
यह तनाव झेलने की क्षमता कैसे बढ़ सकती है?
यदि उस परिस्थितिजन्य तनाव को कोई चुनौती (Challenge) के रूप में स्वीकार करता है तो उसकी सामना करने की क्षमता बढ़ जाती है और तनाव कम हो जाता है। देखा गया है कि संघर्ष को चुनौती के रूप में लेने से अनेक प्रकार की सुषुप्त आन्तरिक शक्तियाँ स्वत पैदा हो जाती है,
जो मनुष्य को अन्त में अपने लक्ष्य को पाने में सफलता प्राप्त करा देती है। चुनौती भरा इस संकल्प का आधार आपकी आन्तरिक प्रेरणा बनती है या यह भी हो सकता है कि कोई बाहर से आपको प्रेरित कर रहा है। यह बात इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण है कि किस भाँति हिम्मत, उमंग, उत्साह, धैर्य और आत्म-विश्वास का बल आपके अन्दर आ जाये बस। एक बार जैसे ही आप तनाव मुक्त होते हैं आपका आत्म-विश्वास अत्यधिक बढ़ जायेगा।
विपरीत परिस्थिति से उत्पन्न समस्या में प्राय इंसान दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराता है। उसकी शिकायत यही रहती है कि इस समस्या का कारण कोई-न-कोई व्यक्ति या परिस्थिति है और अगर आप ऐसा सोचेंगे तो आपका तनाव बढ़ता चला जायेगा। मनोवैज्ञानिकों ने खोज की तो पता चला कि
80 प्रतिशत लोगों की शिकायत दूसरों से थी। उनका कहना था कि उनकी बीमारी का कारण दूसरा व्यक्ति है।
यदि कम्पनी डायरेक्टर, यूनियन लीडर या किसी अन्य को दोष देता है तो यूनियन लीडर कहता है मालिक को हमारी असुविधा का कोई भी अहसास नहीं और इनका इकट्ठा परिणाम है तनाव। हम अपने इस व्यक्तिगत समस्या का समाधान खुद ढूँढ़ने के लिए तत्पर नहीं होते। वास्तव में देखा गया है तनाव के बड़े गोले का एक छोटा-सा हिस्सा हमारे कंट्रोल के अन्दर है।
यदि सारे दिन की परिस्थिति को एक गोले के रूप में देखें तो आपको पता चलेगा कि, जो आपके नियंत्रण का हिस्सा है वह बहुत छोटा है और जो आपके शिकायत का हिस्सा है वह बहुत बड़ा है। यदि परिस्थितियों का तटस्थ निरीक्षण करेंगे तो आपको यह अहसास होने लगेगा कि जो आपके नियत्रंण में है उसे तो आपको करना ही चाहिए। थोड़े दिनों में आप पायेंगे कि धीरे-धीरे आपके शिकायत का घेरा कम होने लगेगा और परिस्थितियों पर नियंत्रण की क्षमता वाला घेरा बढ़ने लगेगा। इसका एक उत्तम उदाहरण है –– Jewish Dr. Vikctor franklin द्वितीय विश्व युद्ध में जिन्हें हिटलर ने युद्ध बन्दी बना लिया था। उनकी बहन को तो उनके सामने ही गैस चेम्बर में जिन्दा जला दिया गया था। 99 प्रतिशत युद्ध बन्दी कितने तनाव में होंगे आप अनुभव लगा सकत हैं। डा. फ्रंकलिन ने पाया कि जिनके पास जीवन जीने का कोई उद्देश्य था वे तो उस वैर, यातना को झेल गये, परन्तु जिनका उद्देश्य समाप्त हो गया था वे जिन्दा नहीं रह सके।
मनुष्य में परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेने की अद्भुत क्षमता है। इसलिए शिकायत को छोड़कर हमें परिस्थिति को नियंत्रित करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। देखा गया है हमारे प्रतिदिन के थोड़-थोड़े प्रयत्न से हमारी परिस्थिति पर स्वयं के नियंत्रण का घेरा बढ़ने लगेगा। कुछ दिनों के बाद आप देखेंगे कि परिस्थिति पर आपके नियंत्रण का घेरा बढ़ा है और आपके शिकायत का घेरा बहुत ही मामूली रह गया है, जो आपके तनाव मुक्त सफल जीवन के लिए आवश्यक है। हमें अपने विचारों को भी पूर्ण समायोजित या व्यवस्थित करने की ज़रूरत है।
आम रूप से एक आदमी के विचारों की संख्या सारे दिन में करीब 30 से 50 हज़ार के बीच होती है। ऋषियों के अनुभव और वैज्ञानिकों की खोज का निष्कर्ष कहता है कि हमारे विचार जितने कम होंगे, उतना ही हमारा जीवन तनाव मुक्त, प्रसन्न और आनन्दित होगा। इसके लिए विचार को समझना तथा उसे प्रबन्धित करने की कला भी सीखनी चाहिए।
सही विचारधारा और गलत विचारधारा की परख तथा उनका परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि बिना दृष्टिकोण के बदले,
परिवर्तन सम्भव नहीं। व्यक्ति और परिस्थिति को तो बदलना काफी कठिन कार्य है, परन्तु मानसिक दृष्टिकोण के द्वारा अपनी मनोदशा को सुधार कर कोई भी व्यक्ति तनाव मुक्त तो हो ही सकते हैं। इसके लिए तनाव को समझना, चुनौती को स्वीकार करना अपने नियंत्रण के दायरे को बढ़ाना, दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन लाना, विश्राम तथा योग का अभ्यास करने से जीवन तनाव मुक्त हो सकता है। इस तरीक से जीवन में सहज ही सबके लिए सुख और सफलता भी प्राप्त हो सकती है। (शेष भाग 4 पर)
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