दास्तान-ए-दिल

0


    दिलों की दुनिया बड़ी ही विचित्र है। कोई व्यक्ति दिलदार है तो कोई बुजदिल, एक आदमी जहाँ बहुत दरिया दिल होता है तो वहीं कोई-कोई बिल्कुल ही पत्थर दिल इंसान होता है। आज मेरा दिल भर आया, उस पड़ौसी का दिल तो बहुत ही नाजुक है, बाजू वाले शर्मा जी बड़े ही गर्म दिल हैं आदि-आदि जाने कितने ही जुमले दिल के विषय में कहे जाते हैं।

    हमने एक बार जोड़ने वाला पदार्थ गोंद (जिसे क्विक फिक्स कहते हैं) एक दुकान से खरीदा तथा दुकानदार से पूछा कि भाई जी यह ठीक से जोड़ता तो है ना तो सेठ जी तपाक से बोले कि यदि विश्वास नहीं है तो खुद ही बोतल पर क्या लिख है पढ़ लीजिए।

वास्तव में उस शीशी पर लिखा था कि टूटे हुए दिल के अलावा यह सभी को जोड़ सकता है। कहने का भाव यही हुआ कि और चीज़ों को जोड़ना तो फिर भी आसान है लेकिन टूटे हुए दिल को जोड़ने का गोंद आज तक भी शायद किसी बाज़ार में नहीं मिलता है।

    अब हम सबसे पहले इस बात पर चर्चा करेंगे कि आखिर यह दिल, है क्या चीज़। वास्तव में देखा जाय तो दिल या हृदय तो इस स्थूल शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका कार्य शरीर में निरन्तर रक्त प्रवाह को बनाये रखना होता है।

लेकिन नोट किया गया है कि कई बार जब कोई व्यक्ति कहता है कि आज मेरा मूड ठीक नहीं है अथवा आज मेरा मन उदास है, मेरा दिल तो टूट गया है आदि-आदि तो उस व्यक्ति का हृदय तो उस समय ठीक से काम कर रहा होता है। अब प्रश्न उठता है कि फिर यह मूड, मन अथवा प्रतीकात्मक रूप से जिसका दिल कहा जाता है आखिर क्या हे, इसकी गतिविधियाँ क्या हैं, क्या उस पर हमारा कोई नियत्रण हो सकता है।

    वास्तव में दिल तो केवल प्रतीकात्मक रूप है उसका भाव तो उसी सूक्ष्म मन से ही होता है। उदाहरण के रूप में - जब कोई कहता है कि मेरा दिल आज उदास है तो उस समय वह कोई हृदय की बात नहीं कह रहा होता है लेकिन उसका इशारा सूक्ष्म मन अथवा संकल्प शक्ति की ही ओर होता है। तो अभी यह तो स्पष्ट हो गया कि मन और हृदय दो अलग-अलग चीज़ें हैं।

जहाँ मन चैतन्य शक्ति आत्मा का सूक्ष्म अंग है जिसका कार्य है सोचना वहीं हृदय शरीर का हिस्सा है जो खून को सारे शरीर में भेजता है। लेकिन कई बार जब हम कहते हैं कि मेरा दिल भर आया तो भी भाव उस सूक्ष्म मन से ही होता है। 

अभी हम देखेंगे कि दिल कितने प्रकार के होते हैं एवं कैसे हम अपने मन अथवा दिल को ठीक से संचालित कर सकते हैं -
 
    फ़्रराख दिल - फ़्रराख दिली तो बहुत बड़ा गुण है। वास्तव में जब हम कहते हैं कि फलाँ-फलाँ व्यक्ति का दिल बड़ा फ़्रराख है तो भाव यही होता है कि अमुक पुरुष खुले दिल का है, वह सबके विचारों को अहमियत देता है, किसी के भी प्रति उसका कोई द्वेष, वैर, घृणा, ईर्ष्या अथवप बदला लेने की भावना नहीं है। वास्तव में फ़राख दिल बनना तो जीवन की सार्थकता का प्रतीक है।

    रहम दिल - रहम दिल इंसानों को दुनिया में फ़रिश्तों की संज्ञा दी जाती है। अगर किसी व्यक्ति के कष्टों को देखकर हमारे मन में सहानुभूति जाग्रत हो, यदि किसी विवश असहाय को देखकर हमारा मन करुणा से भर आये तो यही कहेंगे कि हमारे अन्दर मानवीयता नहीं है। रहमदिली व्यक्ति की बहुत बड़ी विशेषता है क्योंकि आज यदि आवश्यकता पड़ने पर हम किसी पर रहम भाव नहीं रखेंगे तो हमारे दुःख दर्द के समय भी कोई आगे नहीं आयेगा।

    खुश दिल - खुश दिल होना भी बड़े ही सौभाग्य का परिचायक है। लेकिन जब तक अन्दर खुशी हो तो बाहर भी खुशी आती नहीं है। वैसे देखा जाये तो खुश दिल बनने के लिए कोई पैसा आदि खर्च करने की ज़रूरत नहीं है हाँ थोड़ा-सा अटेन्शन रखने से हम सहज ही खुश दिल इंसान बन सकते हैं। वैसे भी कहते हैं कि खुशी जैसी खुराक नहीं तो क्यों हम इस सबसे सस्ती सबसे अच्छी खुराक को हर दिल हर समय खायें।

    गर्म दिल (गर्म जोशी) - आजकल इस बात पर बहुत ज़ोर दिया जाता है कि हमारा दिमाग ठण्डा दिल गर्म जोश रहे लेकिन व्यवहार में होता है ठीक इसका उल्टा अर्थात् दिमाग को तो हम गर्म रखते हैं एवं दिल ठण्डा। लेकिन यदि थोड़ा-सा ध्यान स्वयं पर रखें तो अपनी आदत को सहज ही बदला जा सकता है। कोई भी व्यक्ति हमसे मिलने आये तो गर्म जोशी से उसका स्वागत करें तथा ठण्डे दिमाग से उसकी बात सुनें, तो इसके एकाधिक लाभ हमें होंगे जैसे अमुक व्यक्ति को हम ठीक समाधान दे पायेंगे, हमारे सम्बन्ध उसके साथ अच्छे रहेंगे तथा हमारा अपना स्वभाव शान्त शीतल बनता जायेगा।

    अरमान भरा दिल - हम सबके दिल में अरमान तो होते ही हैं। एक बार भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ0 0पी0जे0 अब्दुल कलाम से जब यह पूछा गया कि व्यक्ति को लक्ष्य किस तरह निर्धारित करना चाहिए, तो कलाम जी ने कहा कि लक्ष्य रखना तभी फलदायक हो सकता है जब लक्षण भी उसके अनुरूप हों। ठीक इसी भाँति अरमान तो हरेक दिल में होते हैं लेकिन उनहें मूर्त रूप देने की कला विकसित करनी पड़ती है, उसके लिए अथक पुरुषार्थ करना पड़ता है तथा स्वयं में विश्वास रख कर चलना पड़ता है अत अरमानों को वास्तविकाता के धरातल तक लाने की क्षमता भी हमें स्वयं के अन्दर विकसित करनी होगी तथा ऐसा करने वाले व्यक्ति अवश्य ही जीवन में अनुकरणीय एवं नमनीय बन जाते हैं।

शीशा--दिल - कहते हैं कि दिल बिल्कुल शीशे की तरह नाजुक होता है जिसका स्पष्ट भाव यही है कि हमारी संकल्प शक्ति बेशकीमती खज़ाना है जिसका सदुपयोग हमें सफलता के सर्वोच्च शिखर तक ले जा सकता है तो वहीं संकल्पों का दुरुपयोग हमें गहरे गर्त में भी डुबो सकता है। शीशा--दिल का दूसरा अर्थ है कि हमारे विचार काँच के समान पारदर्शी, पवित्र, निर्मल एवं शुद्ध हों जिसे दूसरे शब्दों में कहा जाता है अन्दर बाहर एक। हम जो बात कहें उसे पूर्ण करने का सच्चे मन से पुरुषार्थ करें तथा फल ईश्वराधीन छोड़ दें। वास्तव में व्यक्ति को योग्य एवं महान बनाने का यही एक मात्र रास्ता भी है।

    प्यार भरा दिल - प्रेम को संसार में सबसे बड़ी शक्ति कहते हैं तथा यह अनुभव सम्मत है कि स्नेह की डोरी से भगवान भी बंधन में बंध जाता हे। यदि हमारा दिल रूहानी प्यार से भरा रहता है, मौलाई मस्ती में खोया रहा है, एक प्रियतम (ईश्वर) की बाँट निहारता रहता है तथा उसी के गुणगान करता रहता है तो कोई भी मृग मरीचिका रूपी दैहिक आकर्षक हमें आकर्षित नहीं कर सकता तथा हम अपनी मंजिल--महफूज को पाकर ही रहेंगे।

    बेकरार दिल - आप चौंक गये ना कि बेकरार दिल तो अच्छा नहीं माना जाता है, लेकिन जनाब हम जिस बेकरारी की बात कर रहे हैं अवश्य ही आप उसका वरण करना चाहेंगे और वह बेकरारी है भगवान के नाम की। जिसे गुरु नानक देव जी ने कहा कि ``नानका खुमारी नाम की चढ़ी रहे दिल रात'' अब बताईये आपको यह बेकरारी प्रसंद आयी ना। हाँ इंसानों के लिए बेकरार दिल में तो दुःख, दर्द, निराशा, हताशा लालषा ही होगी। लेकिन प्रभु की याद में सराबोर दिल तो प्रेम, आनन्द, शान्ति एवं शक्ति का ही अनुभव करेगा।

    विशाल दिल - कहते हैं दुनिया में किसी भी चीज़ की चाह पाई जा सकती है लेकिन मनुष्य के मन की गहराइयों को जानना बहुत दुरुह कार्य है। जिससे सिद्ध होता है कि इंसान का दिल बहुत विशाल भी हो सकता है और यदि नकारात्मक चिन्तन हो तो वही दिल अत्यन्त छोटाभी बन सकता है।

अब यह तो हमारे विचारों की धारा पर निर्भर है कि हम कैसे संकल्प उत्पन्न करते हैं। परमात्म-चिंतन, स्व-चिन्तन एवं सकारात्मक चिन्तन करने वालों का दिल तो स्वत ही विशाल बन जाता है वे तो जैसे हरेक को अपना मीत समझते हैं तथा उनकी हरेक से प्रीत होती है।

    बेहद का दिल - जब हमारा दृष्टिकोण असीमित हो जाये, जब हम अपने संकल्पों से घर, परिवार, समाज, देश, दुनिया की दीवारों को लाँध जायें तो उस स्थिति को बेहद की संज्ञा दी जाती है। वैसे भी कहते हैं कि जो अपने लिए जीए वह कोई जीना नहीं होता, जीना तो वह है जब कोई दूसरों के लिए जीए अर्थात् अपना सर्वस्व् मानवता के लिए न्योछावर कर दे। बेहद के दिल में अपने-पराये, स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े, धनी-निर्धन एवं काले-गोरे का भेद मिट जाता है तथा सभी के लिए अपनत्व, आत्मीयता, मानवीयता एवं समानता का भाव जाग्रत हो जाता है।

आजकल दुनिया में दिल के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हे, छोटी आयु में भी लोगों को हृदय रोग घेर लेते हैं तो इन सबसे बचपने का सहज तरीका है कि हम अपना दिल भगवान को अर्पित कर दें तथा इसी मनोस्थिति को दूसरे शब्दों में राजयोग कहा जाता है।

प्रातकाल उठकर सच्चे मनसे प्रभु को याद करने से मनोबल बढ़ता है, आन्तरिक सुषुप्त शक्तियों में वृद्धि होती है तथा आत्म-विश्वास जाग्रत होता है। राजयोगी व्यक्ति हर एक परिस्थिति में, हर एक समस्या के समय एवं हर एक मुसीबत में अपना संयम बनाये रखता है। योगी को पता होता है कि समस्याएं तो बादलों के समान आती -जाती रहती हैं लेकिन मन की उच्च एवं संतुलित स्थिति ही कठिनाई का कोई हल खोज सकती है।

    दिल का हाल सुने दिल वाला - तो आईये हम अपना दिल खुशी से परमात्मा पिता को अर्पित कर दें ऐसा करने से दिल को तो कभी दौरा पड़ेगा और ही कभी बैचेनी होगी अपितु दिल को बहुत ही आराम मिलेगा, क्योंकि परमात्मा की महिमा में उनका एक नाम दिलाराम भी है। जो अपनी दिल को किसी अन्य देहधारी में लगाकर परमात्मा पिता में लगाता है तो नेचुरल है कि उसके दिल को, चित्त को बेहद सुख-चैन, आराम मिलना ही है।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।
Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top