(भाग 5 का बाकि) :_______लोभी मनुष्य लोभ को, क्रोधी क्रोध को, कामी काम को और दुराचारी दुराचार को
बुरा नहीं समझता है। उसे अपने प्रत्येक कर्म ठीक लगते हैं और दूसरे के प्रत्येक कर्म
अनुचित और दोषपूर्ण। चाहे दूसरे उसके कर्म और व्यवहार को उचित ना भी समझें। परन्तु
वह चौराहे पर किसी की कमी को उछालते हुए उस कुकृत्य को सत्य और उचित ठहराता है। वह
प्राय यह कहता है कि मैं तो सच्ची बात लोगों के बीच या सामने कह देता हूँ। बुराई करने
वाले अपने इस कर्म को सच्चाई से जोड़ लेता है। धन पाने के लिए सभी जीवन-मूल्यों को ताक पर रख कर अनुचित ढंग से उसे हासिल करने वाले ऐसे लोग कदापि
संकोच तक नहीं करते हैं। देवी के नाम पर नर की बलि, जेहाद के
नाम पर कुर्बानी और न जाने ऐसे जघन्य कृत्य को भी लोग श्रेष्ठ कर्मों के औचित्य से
जोड़कर देखते हैं। इस कृत्य को यदि कोई दूसरा करे तो उसे दोषी करार देने, उसकी बदखोई करने में वे ज़रा भी कोई कसर नहीं छोड़ते। वास्तव में अच्छे और
बुरे के प्रति अलग-अलग लोगों की भिन्न-भिन्न
अन्तर्दृष्टि है। उनकी समझ या अनुभव की सीमा अलग-अलग है। निसंदेह
वह अपनी उसी सीमा के अन्दर उन सभी क्रिया-कलापों को करता होगा।
ज्ञान की उस व्यक्तिगत परिधि से परे तो किसी का जीना सम्भव ही नहीं है। मान लीजिए,
किसी कारण से आपको क्रोध उठा और उसका फैलना प्रारम्भ हुआ, वह कहाँ तक यात्रा करेगा यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि आपने उन आन्तरिक
शक्तियों और दिव्यगुणों को कितने बड़े स्तर पर विकसित किया है। सहनशीलता, धैर्य, आत्मिक ज्ञान, क्षमा,
प्रेम, करुणा इत्यादि गुण आपके व्यक्तित्व में
कितने गहरे और विस्तार से समाहित हैं। कई बार तो बड़ी से बड़ी बुराई को भी अच्छा जामा
पहना कर लोग उसे करने की मान्यता प्रदान कर देते हैं तो कई बार अच्छी से अच्छी बातों
को भी बुरा समझ उसे नहीं करने के लिए अपना मन्तव्य प्रगट कर देते हैं।
उदाहरण : चाहे वह युद्ध तालेबान और अमेरिका के बीच हुआ
हो या फिलिस्तीनी और इज़राइलियों के बीच। इस तरह की हज़ारों घटनायें अर्न्तराष्ट्रीय
स्तर पर घटती रहती है। अब आप ही बताईये ये किसका दोष है किसका नहीं, कैसे आप निर्णय ले पाऐंगे? इसलिए बुद्धिमान पुरुष इस
तथ्य को समझ दोष दर्शन से दूर-शान्तिमय जीवन जीते हैं।
इसलिए पुण्यात्मा सदा भातृत्वभाव से, स्नेह की डोर में बंधे परस्पर विश्व परिवार
के उदात्त भाव से जीवन जीते हैं और किसी का अवगुण चित्त पर नहीं धरते हैं। ऐसे निर्मलचित
वाले पुरुष सभी को एक ही परमपिता परमात्मा शिव की संतान आपस में भाई-भाई है इसी मधुर सम्बन्ध से व्यवहार करते हुए सौहार्दपूर्ण माहौल में सानन्द
जीवन व्यतीत करते हैं। वे व्यर्थ की छींटाकशी, आरोप-प्रत्यारोप के अपने विचारों को दूसरे पर थोपने और मनवाने के दूराग्रह को मानवता
का घोर शत्रु मानते हुए दोषान्वेषण की इस प्रवृत्ति को निन्दनीय घृणित और सर्वथा त्याज्य
मानते हैं।
क्षमा समर्थ
का आभूषण है
क्षमा करने से मानव क्षमा का पात्र बनता है।
–– संत नंसिस
किसी के दुर्वचन पर क्रोध नहीं करना, क्षमा कहलाता है।
–– स्वामी विवेकानन्द
क्षमा मानवी भावों में सर्वोपरी है, दया का स्थान इतना ऊँचा नहीं है। दया वह दान
है, जो पीली धरती पर उगता है। इसके प्रतिकूल क्षमा वह दान है,
जो काँटों में उगता है। दया वह धारा है, जो समतल
भूमि पर बहती है; क्षमा कंकरो और चट्टानों में बहने वाली धारा
है। दया का मार्ग सीधा और सरल है क्षमा का मार्ग टेढा और कठिन है।
–– प्रेमचंद
मनुष्य की चरित्रगत विशेषताओं में क्षमा का भाव एक आन्तरिक गुण है। यदि कोई मनुष्य आपके साथ भूल करता है, चाहे वह किसी मज़बूरीवश हो या फिर अज्ञानता वश उस समय परम कर्त्तव्य हो जाता है कि उसकी त्रुटियों को बिना चित्त पर धारण कर पूर्ववत प्रेम और सम्मान पूर्ण व्यवहार करते हुए, उसे हीनता या अपराधबोध की महसूसता नहीं होने देना क्षमा कहलाती है। प्राय लोग क्षमा का भाव अपने प्रति धारण करते हैं। वास्तव में यह दूसरों के प्रति धारण करने योग्य भाव है। कई लोग इसका गलत अर्थ लेते हैं। मान लीजिए कोई मनुष्य आपके गाढ़े पसीने की कमाई (10,000 रुपया) उड़ा ले तो क्या आप उसका नाम थाने में दर्ज नहीं करायेगें? क्या आप उसे क्षमा कर अपनी मेहनत की कमाई पर पानी फिरता हुआ मूक-दर्शक बन तमाशा देखेंगे। नहीं... न। क्योंकि इसे विवेकवान और व्यवहार कुशलता नहीं कहा जायेगा। आप इसको पाने के लिए अवश्य पुरुषार्थ करेंगे। हाँ, उसकी इस बुराईयों को कोसते हुए, न तो अपना समय बर्बाद करेंगे और ना ही अपना दिल जलायेंगे। यदि न्यायालय द्वारा वह दंड का भागी बनता है तो इस में भी उसका ही कल्याण है। प्रथम तो उसके गलत कर्मों का निपटारा हो गया। दूसरा, भविष्य में गलत आदत के निर्माण से वह व्यक्ति बच जाता है। इससे आप उसका कल्याण मित्र ही बन जायेंगे।
जिसे पश्चाताप नहीं उसे क्षमा कर देना, पानी पर लकीर खींचने के समान व्यर्थ है। –– जापानी लोकोक्ति