क्रोध पर विजय

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    क्रोध वह आवेश है जो छोटे-छोटे तनावों से इकट्ठी हुई नकारात्मक भावनाओं की अधिकता को दर्शाता है। प्रारंभ में तनाव या कुण्ठा बहुत छोटे रूप में होते हैं परंतु बूंद-बूंद मिलकर आखिरकार बड़े क्रोध में बदल जाते हैं। क्रोध की अग्नि में मानव स्वयं तो जलता ही है वह औरों को भी जलाता है।

जब यह क्रोध अग्नि ठंडी होती है तब वह शर्मिन्दा भी होता है लेकिन क्रोध की आग में उठाये गए कदम तब तक भारी नुकसान कर चुके होते हैं। परिणाम बहुत भयंकर रूप धारण कर चुका होता है। किसी की जान ले लेने के बाद, किसी को घर से निकाल देने के बाद, बड़ों का तिरस्कार कर देने के बाद पछतावे के अलावा रह क्या जाता है

    क्रोधी का एक-एक कर्म दहकते अंगारे के समान होता है जिससे वह दूसरों पर प्रहार तो करता है परंतु उसे ठीक-गलत की समझ नहीं रहती। गुस्सा मानव मन को हिंसक पशु वाली भावना जैसा बना देता है। जैसे पशु गुस्से को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है, इसी प्रकार आज मानव, विकास की सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ता जा रहा है परंतु सभ्य बनने के बजाय, हिंसक पशु से भी चार कदम आगे बढ़ कर वह क्रोध द्वारा अपने से कम पद वालों को दबा कर गर्व महसूस करता है।
 
    क्रोध एक दमकती तलवार है जो प्राण लेकर भी पीछा नहीं छोड़ती। क्रोध मानव का ऐसा दुश्मन है जो किसी से प्यार नहीं रहने देता। क्रोधी व्यक्ति, पत्नी, बच्चे, माँ-बाप, परिवार-रिश्तेदार, दोस्त किसी को भी नहीं छोड़ता। वह किसी का भी भला नहीं कर सकता क्योंकि वह अहंकारवश किसी की भी नहीं सुनता और उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच जाता है जो कुछ ना कुछ अनिष्ट करके ही दम लेता है।

क्रोधी का मन ईर्ष्या, द्वेष, दुर्भावना, बदले की भावना, अहंकार आदि से ग्रसित होकर समुद्र के पानी की तरह उथल-पुथल होना शुरू हो जाता है। फिर उसे यह भी भान नहीं रहता कि मेरे सामने कोई पराया है या अपना। नासमझी में वह भीषण से भीषण संहार कर बैठता है।

    क्रोध मानव को हर बार हारने पर मजबूर कर देता है। अपमान उपहास का कारण भी बना देता है जब भरी भीड़ में क्रोध किया जाता है। कई बार तो क्रोध की बलि कई परिवारों को देनी पड़ती है। इसलिए कहावत है, क्रोध रूपी तीव्र आंधी दुख का ही कारण बनती है, भलाई नहीं कर सकती।

    बहुत से लोग ज़रा-ज़रा-सी बात पर चिढ़ जाते हैं या गुस्सा करते हैं। इस तरह अपनी शक्ति को नष्ट करके जीवन को कठिन बना लेते हैं। अगर हमें खुश रहना है तो अपनी चिढ़ने गुस्सा करने की आदत को बदलना होगा। कहावत है, क्रोध कुत्ते के समान और अहंकार सूअर के समान होता है। जो क्रोध को पचा लेता है वह योगी है।

    क्रोध सर्वव्यापी है - क्रोध की जड़ वर्तमान समय समूचे विश्व में फैली है। यह  क्रोध अमीर से लेकर गरीब तक को लपेटे हुए है तथा पुरुष नारी सबमें व्याप्त है। आज तो क्रोध ने दोधारी तलवार बनकर हर धर्म, हर जाति, हर देश के लोगों को तरह-तरह की बीमारियां देकर गंभीर चोट पहुँचाई है।

इन बीमारियों में शामिल हैं हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, चर्मरोग, भयंकर सिरदर्द, टेंशन, डिप्रेशन, पाचन क्रिया का बिगड़ना, मिरगी, आँखें लाल होना और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी जाना।

    गुस्सा करने से आँखों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, दिल तेज़ी से धड़कने लगता है, रक्त संचार का दबाव बढ़ जाता है। शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह शारीरिक स्थिति, पहली चेतावनी के रूप में क्रोधी के लिए उपयोगी हो सकती है लेकिन यदि वह चेते तो क्रोध के लक्षण उपरोक्त बीमारियों में तबदील होने लगते हैं। डॉक्टर कुछ समय के लिए तो दवाएँ देकर राहत दे सकते हैं लेकिन संपूर्ण इलाज उनके पास भी नहीं होता।

    प्रश्न उठता है कि क्या गुस्सा आत्मा का स्वभाव है? नहीं। आत्मा का स्वभाव तो  शांति है। इसलिए क्रोध को अन्दर की शक्ति से जीतें। शांति के सागर शिव पिता से मन का नाता ज़ेडें। क्रोध नाम है कमज़ोरी का, कायरता का, घबराहट का, शारीरिक शक्ति को नष्ट करने का। इसलिए क्रोध का परित्याग करने में ही अपनी तथा दूसरों की भलाई है।

क्रोध से बचने के लिए संयम रखें, व्यवहार सरल बनायें, शुभ भावना रखें तथा क्षमाशील बनें। तामसिक भोजन भी क्रोध को बढ़ावा देता है इसलिए मद्यपान, माँस-अण्डे, अधिक मसालायुक्त सब्ज़ियाँ, लहसुन-प्याज आदि का भी परित्याग करें। शांतचित्त, सरलचित्त होकर शांतिपूर्वक व्यवहार करने की आदत डालें। किसी को भी दुख नहीं दें।

सबको सुख देने की आदत डालें। बुद्धिमान बन किसी भी हलचल में नहीं आना है। मीठा बोलना है, कम बोलना है, धीरे बोलना है। क्रोध के परिणामों पर विचार करें। जब भी क्रोध आये, खुद से कहें, क्या यह समस्या इतनी बड़ी है कि इस पर गुस्सा किया जाये? मन में विश्वास जगायें कि एक रुपये की बात पर सौ रुपये का नुकसान कराने वाला क्रोध कोई फायदे का सौदा नहीं है।

विचार करें, क्रोध से कार्य संपन्न नहीं होगा, हाँ, वही काम प्रेम के बल से सौ गुणा ज़्यादा अच्छी तरह से होगा। गुस्से की जगह मित्रता का, भाईचारे का भाव रखें। डर से किया गया काम, सफल काम नहीं होता है।
 
    क्रोध से मुक्ति पाने का एक सरल तरीका है कि आप नज़दीकी ब्रह्माकुमारी आश्रम पर सहज राजयोग सीखें। समयानुसार विश्व में तनाव बढ़ता जा रहा है लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भाई-बहनें शिव परमपिता परमात्मा के महावाक्यों द्वारा ज्ञान-जल के शीतल छींटे देकर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकारों पर विजय प्राप्त करने की सरल विधि बताते हैं।

इन विकारों को जीतकर ही हम जीवन को सफल कर सकते हैं। विकारों के वशीभूत हुआ जीवन तो निष्फल ही है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।


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