सदा प्रसन्न कैसे रहें?

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एक मस्त फकीर अपनी मौज-मस्ती में खुशी-मौज में एक वृक्ष के नीचे अक्सर बैठ जाता था। एक बार एक पथिक ने उसके पास कर कहा तुम्हें एक आम की टोकरी यहां रख लेनी चाहिये और आम बिकी करना चाहिये। तो मस्त फकीर ने पूछा उससे क्या होगा? उससे तुम्हें लाभ होगा फिर धीरे-धीरे सप्ताह दो बाद तुम चार-पाँच टोकरी रख पाओगे।

फकीर ने पुन कहा उससे क्या होगा? पथिक ने कहा फिर मास-दो-मास में तुम्हें और लाभ होगा और तुम एक दुकान बना सकोगे जिस पर कई पेटियाँ रखी होंगी। फकीर ने फिर पूछा - उससे क्या होगा? पथिक ने कहा धीरे-धीरे लाभ अधिक होता जायेगा और वर्ष दो भर में तुम उस लाभ से अपने रहने के लिये एक मकान खरीद पाओगे।

मस्त फकीर ने फिर वही बात दोहराई कि उससे क्या होगा? पथिक ने अब की बार खीज कर कहा - उससे क्या होगा, उससे क्या होगा! अरे भई उससे तुम खुशी-मौज से रह सकोगे। मस्त फकीर ने कहा - खुशी-मौज में तो मैं हूँ ही और इतना सब करने के बाद भी यदि खुशी ही हासिल होती है तो वो तो मुझे पहले से ही है।

कहने का भावार्थ यह है कि मनुष्य भिन्न-भिन्न पकार के कार्य जो करते हैं उन सबका अन्तिम परिणाम प्रसन्नता ही है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मनुष्य सुख के साधन, शिक्षा, पद, डिग्री आदि सब कुछ पाप्त करने के पश्चात् भी प्रसन्न नहीं रह पाता। उसके चेहरे की खुशी लुप्त हो गई है। प्रसन्नता तो स्वाभाविक होती है एवं आन्तरिक मन से पाप्त होती है।

मनुष्य को जब वह नहीं पाप्त होती तो उसकी पाप्ति के लिये भिन्न-भिन्न साधन बाह्य रूप से अपनाता है। इसी प्रकार की बनावटी पसन्नता पाप्त करने के लिये आज के समाज में ‘हास्य क्लब’ बनाये गये हैं। जहां कुछ देर जोर-जोर से हंस कर मनुष्य खुशी पाप्त करना चाहता है परन्तु यह सतत नहीं रह पाती।

 सदा प्रसन्न रहने के लिये निम्नलिखित कुछ युक्तियाँ हैं

w सदा संतुष्ट रहें - यह मनुष्य का स्वभाव-सा बन गया है कि उसे जो पाप्त नहीं है, उसे पुन-पुनस्मरण करके वह असन्तुष्ट-सा रहता है और दुःखी होता है। जो उसे पाप्त है उसके लिये वह बारम्बार यदि प्रभु का शुकिया करे तो वह संतुष्ट रहेगा। फलस्वरूप उसे पसन्नता पाप्त होगी। सदैव यह दृढ़ संकल्प कर लें कि मुझे स्वयं से भी संतुष्ट रहना है एवं अन्य सर्व से भी संतुष्ट रहना है।

w श्रेष्ठ कर्म करें - श्रेष्ठ कर्म ही प्रसन्नता का बीज है। मनुष्य के कर्म ही उसे नरक की ओर धकेल देते हैं एवं ये कर्म ही हैं जो उसका जीवन स्वर्ग-सा बना देते हैं। हम रोजाना श्रेष्ठ कर्मों को करने की योजना बना लें, फिर अपनी पूरी शक्ति लगा कर पैक्टिकल करें, परिणामस्वरूप बेहद पसन्नता होगी। इसके साथ-ही-साथ यह ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार का विकर्म हो क्योंकि विकर्म विकारों के अधीन किये हुए कर्म हमारी खुशी को पूर्णत नष्ट कर देते हैं।

w सर्व की विशेषतायें देखें - जो मनुष्य देखता है, उसी का चिंतन चलता है, उसी का मुख से वर्णन करता है। किसी की कमी, कमजोरी, बुराई या अवगुण देखने, चिंतन करने वर्णन करने से मन की सारी खुशी नष्ट हो जाती है। इसके विपरीत यदि यह अभ्यास डाल लें कि सदा सभी की विशेषतायें गुण देखने हैं, विशेषतायें गुण ही चिंतन करने हैं एवं एक-दूसरे के बीच में गुणों का ही वर्णन करना है तो यह अभ्यास निरन्तर खुशी की पाप्ति करायेगा।

w ज्ञान-चिंतन में मग्न रहें - मनुष्य का चिंतन ही उसकी प्रसन्नता का आधार है इसलिये चिंतन को ज्ञान-युक्त एवं समर्थ बनायें। व्यर्थ चिंतन मनुष्य को खाली कर देता है। परचिंतन विकारों का चिंतन मनुष्य को मच्छरों सदृश्य काट-काट कर दुःखी कर देता है। इसलिये बुद्धि को ज्ञान-रत्नों से भरपूर रखें। ज्ञान की भिन्न-भिन्न प्वाइंटस की गहराई में जायें। जितनी महीनता में जायेंगे, उतनी खुशी से भरपूर हो जायेंगे।

w समर्पण-बुद्धि बनें - अपनी सर्व चिन्तायें पभु पर समर्पण कर दें। जिम्मेवारियाँ सम्भालते हुए भी बुद्धि से यह निश्चय करके चलें कि मेरी सारी जिम्मेवारी सर्वशक्तिवान परमात्मा ने उठाई हुई है। इस प्रकार बुद्धि से अपना सर्वस्व प्रभु पर समर्पण करने से मन हल्का रहेगा और फलस्वरूप बहुत खुशी रहेगी जिससे हम सदैव प्रसन्न रहेंगे।

w खुशी बाँटने का महादान करें - जितना दान करते हैं उतनी खुशी कायम रहती है। दान करने से बढ़ता है, इसलिये खुले मन से खुशियाँ बाँटें। ऐसा हरेक से व्यवहार करें जो वो प्रसन्न हो जाये। जितना सभी को प्रसन्न रखेंगे, उतना स्वयं भी प्रसन्न रहेंगे।

w भाग्य एवं भाग्यविधाता को याद करें - भाग्य विधाता ने मुझे बेहद का भाग्य दिया है। भगवान द्वारा पाप्त हुए भाग्य का पुन-पुन स्मरण करें। भूतकाल में भी भगवान द्वारा जो-जो उपलब्धियाँ पाप्तियाँ हुई हैं, उनका स्मरण करें तो मन पसन्नता से भरपूर हो जायेगा।

w निरन्तर राजयोग का अभ्यास - अपनी बुद्धि का योग निरन्तर खुशियों के भण्डारी भगवान से रखने से सदैव प्रसन्न रह पायेंगे। इसलिये निरन्तर राजयोग का अभ्यास करें। राजयोग के अभ्यास से निरन्तर प्रभु के गुणों का स्मरण करेंगे एवं विभिन्न सम्बन्धों के माध्यम से प्रभु मिलन का अनुभव करेंगे, उससे मन-बुद्धि प्रसन्नता से भरपूर हो जायेगा।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

 

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