वे युवा हैं महान – जो करते शान्ति की संस्कृति का सम्मान

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शान्ति जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना है तथा किसी भी व्यक्ति की दिनचर्या को यदि जाँच किया जाए तो हम पायेंगे कि हरेक आदमी चाहे वो बूढ़ा हो, जवान हो, बच्चा हो, बच्ची हो अथवा पुरुष हो, सभी के मन में शान्ति को पाप्त करने की कामना होती है। हाँ, यह बात अलग है कि आज लोगों को यह पता नहीं है कि शान्ति को कैसे जीवन में धारण किया जाए?

आज वैसे तो सभी के मन में अशान्ति-ही-अशान्ति है लेकिन सर्वाधिक अशान्ति का शिकार युवा वर्ग हो रहा है, पढ़ने के समय अच्छे अंक पाप्त करने हैं, पढ़ाई-लिखाई कर ली तो बढ़िया रोजगार चाहिए, मकान-दुकान चाहिए आदि। इच्छाओं का सागर अपार है, इच्छाएँ व्यक्ति को महान नही बनने देती। 

जिसका भाव यह है कि यदि कोई भी आदमी अति महत्त्वाकांक्षी हो जाए, जितनी उसकी योग्यताएं है यदि वह उससे अधिक कामना करे तो फिर तो शान्ति भंग होगी ही। अत आज युवाओं का दृष्टिकोण ऐसा हो कि जो वर्तमान में उपलब्ध है उसका भरपूर आनंद लें साथ ही श्रेष्ठ कर्म भी करते रहें ताकि भविष्य उज्जवल बन जाए।

लेकिन यह बात कहने में तो सरल है परन्तु धारण करने में थोड़े से पुरुषार्थ की ज़रूरत है। इसके लिए युवकों को अपने जीवन में कुछेक मूल्यों को अवश्य धारण करना चाहिए ताकि वे स्वंय तो प्रगति करें ही दूसरों के समक्ष उदाहरण भी प्रस्तुत कर सकें।

1. सभी प्रणियों का सम्मान सम्मान ऐसा शब्द है जिसकी पत्येक पाणी को भूख है, स्नेह के दो शब्द सुनकर किसका मन पसन्न नहीं होगा। देखने में तो यहाँ तक भी आता है कि मनुष्य के अलावा यदि हम जीव-जन्तुओं को भी सम्मान देते हैं, उनसे प्यार करते हैं तो वे भी हमारी मदद के लिए तैयार रहते हैं।

तो यदि आज का युवा वर्ग यह धारणा पक्की कर ले कि मुझे सभी को सम्मान देना ही है, सभी का मीठे बोलों से स्वागत करना ही है तो कितनी सारी समस्याँए तो अपने आप ही हल हो जाएँगी। जब भी हम दूसरों का सम्मान करते है तो स्वत ही उनकी आशीर्वाद हमें पाप्त होती है जो कि हमारे जीवन को उन्नत बनाने में सहायक होती है।

तो हे युवाओ जागो तथा आज से ही सभी को बिना किसी पक्षपात के मन से सम्मान करने का पण लो।

2. हिंसा का बहिष्कार करें हिंसक प्रवृत्तियों को मन से उखाड़ फेंकने का व्रत लें। मन, वचन, कर्म में पूर्णरुपेण अहिसंक बनने से युवा जीवन में दिव्यता का पकाश फैलता है। कहते हैं व्यक्ति जितने पाप हाथ से करता है उससे कई गुणा अधिक हिंसा वह संकल्पों से करता है।

अत कर्म में तो हिंसक वृत्ति का कोई स्थान हो ही न, साथ ही मन वचन पर भी पूर्ण नियत्रण रखें। ऐसा करने से युवा जीवन के सर्वोच्च सोपान को सहज ही पाप्त कर सकते हैं तथा सभी की दुआओं के पात्र भी बन जाते हैं।

3. दूसरों की बात को समझना बहुत बार ऐसा होता है कि बात को सुने बिना ही अपना निर्णय सुना देते हैं स्वाभाविक है। ऐसा निर्णय, अपूर्ण, अपरिपक्व होगा। विशेषकर आधुनिक वर्ग के युवाओं में धैर्यता की कमी पाई जाती है।

अत अपने अन्दर धैर्य को जाग्रत करें, जो भी हमें कोई बात सुनाये उसे पूर्ण तन्मयता से सुनें उस पर विचार करें तभी कोई निर्णय दें।

4. दूसरों के साथ हिस्सा बटायें – यदि किसी मित्र सम्बन्धी के उपर कोई आपदा आई है, वे किसी मानसिक व्यथा से गुजर रहे हैं तो हम युवाओं को यह अपना कर्त्तव्य समझ कर उनके पास जाना चाहिए, उनकी मुसीबत को सुने तथा यथासम्भव सहायता भी करें।

देखा यह गया है कि जब हम किसी व्यक्ति को संकट की घड़ी में दो शब्द स्नेह के बोल देते है तो उसका आधा दुःख तो स्वत ही दूर हो जाता है, वास्तव में सामने वाले को लगता है कि मैं दुनिया में अकेला नहीं, मेरे मित्रजन मेरे साथ हैं। युवाओं का ऐसा सद्व्यवहार शान्ति की संस्कृति को जन्म देता है जो कि एक से दूसरे एवं तीसरे...तक  पहुँचकर समस्त विश्व में फैलती है।

5. पृथ्वी की सुरक्षा भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माता तुल्य माना जाता है, पृथ्वी ही हमें सब कुछ प्रदान करती है, वास्तव में हमारे भौतिक शरीर का निर्माण भी पाँच तत्वों से हुआ है लेकिन आज के व्यवसायिक दृष्टिकोण ने मानव को प्रकृति के अति-दोहन की ओर उत्पेरित कर दिया जिसका परिणाम अतिदृष्टि, अनावृष्टि, आँधी-तूफान आदि-आदि रूपों में हमारे सामने रहा है।

प्रकृति के असंतुलन के कारण ही आज मानव अनेक पकार की बीमारियों से ग्रसित हो गया है। अत यदि हम चाहते है कि हमारा भविष्य उज्जवल हो, हमारी आने वाली पीढियाँ चैन की सांस ले सके जो आज से ही हमें पृथ्वी माता की पर्यावरण की सुरक्षा करने का व्रत लेना चाहिए।

6. बंधुत्व भाव का पुनसंचार - हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस मे सब भाई-भाई – यह कोई नारा लगाने भर की बात नहीं है अपितु आज सर्वाधिक आवश्यकता इस बात की है कि हम विश्व बंधुत्व अथवा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को अपने अंदर जगायें, सभी के पति हमारे मन में सद्भावना हो।

सभी हमारे हैं कोई भी तो पराया नहीं, यदि यह भावना हमारे हृदय में बैठ जाये तो फिर धरा को स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी। तो आज युवाओं को यह बीड़ा उठाना चाहिए कि हम जाति-पाति, रंग-भेद, अपने-पराये की भावना से उपर उठकर सभी को अपना भाई समझेंगे।

हम समझते हैं उपरोक्त बातों को अपने जीवन में उतारने का पुरुषार्थ करें तो अपने मन में तो शान्ति उत्पन्न्न होगी ही, हमारे सम्बन्ध-सम्पर्प में जो लोग आयेगें वे भी आनन्द, पेम की अनुभूति करेगें एवं अन्तत शान्ति की संस्कृति का विकास होगा। तो युवा मन में चूंकि कुछ करने की भावना होती है अत आज से ही शान्ति को स्व जीवन में उतारने का संकल्प लेकर विश्व शान्ति स्थापना के कार्य में सहभागी बनें।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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