वर्तमान 21वीं सदी को विकास की सदी कह सकते हैं, जहाँ महिलाएँ हर क्षेत्र में उपस्थित हैं। हालाँकि उन्हें हर क्षेत्र में सम्पूर्ण अधिकार आज भी नहीं है। इसलिए अपने विकास और वृद्धि के लिए उन्हें हरपल मज़बूत, जागरुक और चौकन्ना रहने की ज़रूरत है।
विकास का एक मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समर्थ बनाना है क्योंकि एक सशक्त महिला अपने बच्चों के भविष्य को बनाने के साथ ही देश का बेहतर भविष्य भी सुनिश्चित करती है। पूरे देश की जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी आधे की है और महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए हर क्षेत्र में इन्हें स्वतंत्रता, सुरक्षा और उपयुक्त वातावरण की ज़रूरत है।
देश को पूरी तरह से विकसित बनाने तथा विकास के लक्ष्य को पाने के लिए महिलाओं का सर्वांगीण विकास होना मुख्य है। यह सर्वांगीण विकास महिलाओं के सशक्तिकरण के द्वारा ही हो सकता है।
महिला सशक्तिकरण के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम सशक्तिकरण से क्या समझते हैं? सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके।
महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज की सभी कुरीतियों, रुढ़ियों के बंधनों से मुक्त होकर अपने जीवन की निर्माता खुद हो।
भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी पथाओं को मारना ज़रूरी है, जैसे दहेजपथा, यौन हिंसा, भ्रूण हत्या, असमानता, महिलाओं के पति घरेलू हिंसा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, वैश्यावृत्ति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।
लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढकेलता है। भारत के संविधान में लिखे गये समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है। लैंगिक समानता को प्रथमिकता देने से पूरे भारत में नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है।
इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचलित व प्रसारित करना चाहिए। ये ज़रूरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से मज़बूत हों। इसमें परिवार की अहम भूमिका है। एक बेहतर शिक्षा की शुरूआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिए एक स्वस्थ परिवार की ज़रूरत है।
आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, गरीबी और रुढ़ियों की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है। महिलाओं को मज़बूत बनाने के लिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिए सरकार सारे कदम उठा रही है।
अनेक नये कानून महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को समाप्त करने के लिए बने हैं। गैर सरकारी संस्थान भी इस दिशा में पयासरत हैं। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिए लड़कियों के महत्त्व और उनकी शिक्षा को पचारित करने की ज़रूरत है। इसके साथ ही हमें महिलाओं के पति हमारी सोच को भी विकसित करना होगा।
नारी के सर्वांगीण विकास में आध्यात्मिकता की भी अहम भूमिका है अर्थात् शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक सभी रूपों में पूर्ण विकसित होकर वह स्वयं का, परिवार का भी उद्धार करती है तथा समाज उत्थान के कार्य में भी सहयोगी बनती है। शारीरिक दृष्टि से महलाओं को स्वयं के स्वास्थ्य पति भी सचेत रहना चाहिए।
स्वास्थ्य के नियमों का उन्हें ज्ञान हो, ताकि वह स्वयं के साथ-साथ बच्चों को, परिवार को संतुलित स्वास्थ्यवर्धक पोषण पदान करे। स्वच्छता के पति जागरुक हो। अपने घर के आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखें ताकि मच्छर-मक्खी रोग फैलाने वाले कीटाणु न फैलें। जब पत्येक महिला घर-परिवेश के पति अपनी ज़िम्मेवारी समझेगी तभी स्वच्छ, स्वस्थ समाज हो पायेगा।
आधुनिक महिलाएँ फैशन, सौन्दर्य पसाधनों के प्रयोग से अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाना चाहती हैं, कुछ हद तक सफल भी होती हैं परन्तु चेहरा मन का दर्पण है। पसन्न, आत्म-विश्वास से भरा मन, मुख पर कांति लाता है। गुणों का सौन्दर्य, सच्चा सौन्दर्य है। बाहर से सुन्दर पर मन से कुरूप अर्थात् घृणा, ईर्ष्या, द्वेष के भाव रखने वाला कुछ समय ही सुन्दर लगता है फिर यह भ्रम टूटते देर नहीं लगती।
चारित्रिक सुन्दरता ही स्थाई सुन्दरता है। आध्यात्मिकता द्वारा सादगी, सरलता, सहिष्णुता, आत्म-संयम, त्याग, परोपकार, संतोष, पवित्रता, उत्साह, हिम्मत जैसे आंतरिक सौन्दर्य बढ़ाने वाले गुण स्वत ही विकसित होने लगते हैं। आध्यात्मिकता अंर्तजगत से मनुष्य का साक्षात्कार कराती है। अपना आत्म-अवलोकन एवं आत्म-चिंतन उसे अपनी कमियों को दूर करने और अपनी शक्तियों के विकास का अवसर पदान करता है। ईश्वर का ध्यान उसे निर्भय और सबल बनाता है।
वह स्वयं को विकट परिस्थितियों में भी सुरक्षित महसूस करती है। आत्म-ज्ञान, दैहिक आकर्षण की जंजीरों से मुक्त होने में सहायक है और इस पकार जीवन स्वत ही श्रेष्ठ विकास की राह पर अग्रसर हो जाता है।
आज इस बात की आवश्यकता है कि नारी अपनी सच्ची स्वतंत्रता को पहचाने, अपने चरित्र को उज्जवल बनाये। सादा जीवन, उच्च सकारात्मक विचारों एवं आध्यात्मिकता के पालन से ही नारी का मानसिक विकास होता है।
परिणामस्वरूप उसके अशान्त और चंचल विचार शान्त होते हैं और इसके साथ उसकी भावनात्मक स्थिरता भी बढ़ती है और बौद्धिक विकास से वह भयमुक्त बनकर आत्म-विश्वास से अपने परिवार और देश के भविष्य पति सही निर्णय लेने में सक्षम होती है।
नारी को पुन सम्मानीय पद पर पतिष्ठित करने का कार्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा किया जा रहा है जिसे स्वयं निराकार शिव परमात्मा, पिताश्री ब्रह्मा के साकार तन में अवतरित होकर कर रहे हैं।
परमात्मा शिव द्वारा पदत्त ज्ञान और योग की शिक्षा से नारी में आध्यात्मिक शक्ति का संचार होने लगता है। अनादि गुणों जैसे कि पेम, सुख, शान्ति, आनन्द, शक्ति के अनुभव से उसका सोया स्वमान जागृत हो जाता है और इस पकार वह साधारण नारी शक्ति स्वरूपा शिव-शक्ति बन जाती है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।