आधुनिकता एवं आध्यात्मिकता का संतुलन

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आधुनिक होना अर्थात् समय की माँग के अनुसार नारी कदम मिला कर चले। आज वह उच्च शिक्षा पाप्त करके यदि समाज के सभी क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही है, आत्म निर्भर, आत्म विश्वासी है, अपने अधिकारों के प्रति सचत है, समाज की बुराईयों का सामना करने में सक्षम है, आवश्यकता पड़े तो स्वयं के निर्णय स्वयं ले सकती है तो अवश्य उसे आधुनिक कहेंगे,

परन्तु आधुनिक होने का अर्थ कई बार फैशनेबल होना, कम-से-कम वस्त्र पहन कर शरीर का अश्लील पदर्शन करना, मॉडल बनकर विज्ञापनों द्वारा धन एवं नाम कमाना, रैम्प पर चलना, बार में जाना, दोस्तों के साथ देर रात पार्टियों में मौज-मस्ती में डूबे रहना समझ लिया जाता है।

आज बड़े शहरों में लिव-इन-रिलेशनशिप की संस्कृति भी पनप रही है, जो आधुनिकता के नाम पर स्वछंदता और नाजायज सम्बन्धों को जन्म दे रही है, जिसके परिणाम नारी के लिये कभी अनुकूल नहीं हो सकते, आज नौकरी के लिए अपना शहर छोड़कर बाहर रहना पड़ता है, जहाँ अकेले रहने के बजाय ये सहज समझौता कर लिया जाता है। नाम और धन की खातिर अनेकों स्त्रियाँ अपनी सीमा रेखा को पार कर लेती हैं।

आधुनिकता नारी के विकास और पगति के संदर्भ में हो, कि पतन के संदर्भ में वर्तमान भौतिकवादी युग में आध्यात्मिकता के समावेश से यह संभव है। समय के साथ अवश्य चलें परन्तु जीवन समर्थ हो, श्रेष्ठ हो, पेरणादायक हो। आधुनिकता के नाम पर अपनी गरिमा धूमिल करके, उन्नति के शिखर पर चढ़ने की कोशिश करें।

आध्यात्मिकता अर्थात् आत्मा का अध्ययन करना, स्वयं के सत्य स्वरूप को पहचानें, जो इस भौतिक शरीर को जीवन देने वाली चेतन शक्ति आत्मा है, जो इस भौतिक देह से न्यारी एवं भिन्न है। आत्मा जिस पकार का शरीर रूप वस्त्र धारण करती है, वैसा ही स्त्री या पुरुष नाम उसे मिलता है।

भौतिक देह विनाशी है। इस सत्य को समझने से देह-अभिमान समाप्त होने लगता है। अपने निजी स्वरूप में आत्मा शान्त स्वरूप, पेम स्वरूप, शक्ति स्वरूप एवं पवित्र है। अपने स्व-धर्म में स्थित होने से आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान विकसित होने लगता है। नारी स्वयं को शक्ति महसूस करती है।

आध्यात्मिकता द्वारा हम सर्वशक्तिवान परमात्मा से समीप सम्बन्ध अनुभव करते हैं। समय-समय पर उसका साथ, शक्तियाँ अनुभव होने से जीवन में संतुलन बना रहता है। विपरीत परिस्थितियों का सहज सामना करने की शक्ति आती है। स्वयं की कमियों को दूर कर गुणों से जीवन का शृंगार होने लगता है।

केवल आधुनिकता मन को भ्रमित कर सकती है। चकाचौंध एक मृगतृष्णा का आकर्षण है, जो सत्य पतीत होते हुए भी भ्रम है, जिसके परिणाम सदा दुःख ही देने वाले हैं। आध्यात्मिकता को कई बार पिछड़ापन समझ लिया जाता है। ये पिछड़ापन नहीं, लेकिन सर्वश्रेष्ठ जीवन बनाने का साधन है।

आज जब समस्त समाज लगभग भ्रष्ट है, रोग ग्रस्त है, आध्यात्मिकता एक अचूक औषधि है। यदि महिलायें इसे अपनायेंगी तो स्वयं के जीवन में परिवर्तन ला सकेंगी, स्वयं में आधुनिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता से स्वयं को सुसंस्कारित बना कर अपने परिवार एवं समाज में भी सकारात्मक योगदान दे सकेंगी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ऐसा विश्व विद्यालय है जो समाज में यह संतुलन लाने का पयास कर रहा है।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।


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