मानव जीवन का शृंगार युवा जीवन है। युवा जीवन अति आनंदपूर्ण, उमंग-उत्साह से भरपूर, हर्षोल्लास भरा जीवन है। यह जीवन का एक उज्जवल पकाश है, पवित्र पवाह है, पखंड पतिभा है। युवा काल मानव जीवन का स्वण्म काल है।
क्या हो गया है आज के युवा और युवा जीवन को? कहाँ जा रहा है वह? वह भौतिकता की ओर दौडता जा रहा है। उसका लक्ष्य सांसारिक सुखों को पाने तक सीमित रह गया है। वह आस-पास के शोरगुल, जोड़-तोड़ की उधेड़बुन में इतना तो व्यस्त हो गया है कि जीवित होते हुये भी जीवन का अस्तित्व भूलता सा प्रतीत हो रहा है।
अनेक प्रकार की चिन्ताओं के काले घने बादल उसके सिर पर मंडरा रहे हैं जिससे वह भयभीत है। उसकी जीवन रूपी नाव सिनेमा, तोड़-फोड़, हड़तालें, फैशन, नशीले पदार्थो का सेवन आदि लहरों में मण्डरा रही है।
वह दुःखों के सागर में गोते खाकर, हिम्मत हारकर निराशावादी बनता जा रहा है और इस तरह वह अपनी मंजिल से दूर होता जा रहा है। इस प्रकार वह अपने आप को भौतिकता का पुजारी बनाकर जीवन की वास्तविकता से दूर करता जा रहा है।
जब भी मेरी दृष्टि युवक-युवतियों पर पड़ती है तो मन के तार झनझना उठते हैं और मन अपने आपसे पूछने लगता है क्या हो गया है इन देश के कर्णधारों को, राष्ट्र के निर्माताओं को, समाज की आधारशिलाओं को, क्या आने वाली पीढ़ी, जो आज के युवाओं पर आधारित है, वह आदर्श समाज या राष्ट्र का निर्माण कर सकेगी?
क्या आज का युवा समाज के सुनहरे स्वप्न को साकार कर सकेगा? किसने की है उनकी ऐसी दुर्दशा? कौन है इसका ज़िम्मेदार? वे स्वंय तो इसके ज़िम्मेदार हैं ही लेकिन काफी हद तक युवा को ऐसी स्थिति तक पहँचाने में बुजुर्गों का भी हाथ है। क्योंकि एक ओर तो वे लोग हैं जो उनकी उपेक्षा करते रहते हैं।
ऐसे लोगों को उनके पति अनेक शिकायतें हैं जैसे कि यह पढ़ते नहीं है, बड़ों का सत्कार नहीं करते, व्यस्नों में ग्रसित रहते हैं, घर तो इनके लिए धर्मशाला है, स्कूल, कालेज पढ़ने के लिए नही लेकिन विहार का केन्द्र बन गए हैं, मौज-मस्ती करने का स्थान बन गया है, ये किसी भी बात के लिए गम्भीर नही है, इनसे कुछ भी आशा रखना व्यर्थ है....और दूसरी ओर वे लोग है जो उनका नाजायज फ़ायदा उठाकर उनका दुरूपयोग करते हैं।
ऐसे लोग युवाओं को गुमराह करते हैं। धर्म, जाति, भाषा, के नाम पर उनका शोषण किया जाता हैं। युवाओं के लिये ये दोनों ही वर्ग खतरनाक हैं। एक उनकी उपेक्षा करता है, दूसरा उसका दुरुपयोग करता है। आज का युवा इन दो प्रकार के लोगों के बीच फंसा हुआ है। इसके लिये अभी आवश्यकता है युवा को अपनी शक्ति पहचानकर जागृत होने की तथा भौतिक विकास के साथ-साथ अपने अन्तर्मन में आध्यात्मिक चेतना जागृत करने की।
तो हे युवा जागो। यही समय है जागने और जगाने का, स्वयं को व स्वयं की शक्तियों को पहचानने का। यदि तुम्हें अपने अन्दर सोई हुई ज्ञान-रश्मियों को जागृत करना है तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाओ, जीवन जीने की शैली को अति सुन्दर बनाओ। आध्यात्मिकता का अर्थ उस धर्म से नहीं जिसे हम दैहिक धर्म कहते हैं। अध्यात्मिकता अर्थात् चेतना, परमसत्ता तथा सृष्टि के नियमों का ज्ञान। आध्यात्मिकता एक ऐसा प्रकाश है जो भीतरी अन्धकार मिटाकर नई रोशनी देता है।
यह एक ऐसा बल है जिससे हम अपनी बुराईयों का नाश कर सकते हैं। यह एक ऐसा अभ्यास है जिससे हमारी गुणों व शक्तियों का विकास होता है। राजयोग की शिक्षा में इन सभी बातों का समावेश है क्योंकि यह आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है। मनोबल तथा आत्म-विश्वास में वृद्वि के लिये यह सर्वोत्तम साधन है। आज के गुमराह युवक को फिर से सत्य, शान्ति, सुख के रास्ते पर लाने के लिए मदद कर सकता है।
राजयोग उन्हें समस्याओं व परिस्थितियों से जूझने की शक्ति पदान करता है। सबसे अच्छी व उत्तम बात तो यह है कि युवा शक्ति के सही उपयोग का रास्ता बताता है। मेरी युवकों के प्रति यह राय है कि वे नित्य प्रति राजयोग का अभ्यास करें। यह राजयोग की शिक्षा ब्रह्याकुमारी संस्था द्वारा विभिन्न स्थानों पर चलाये जा रहे राजयोग केन्द्र पर पाप्त हो सकती है।
साथ-ही-साथ, वे बड़ों का सम्मान करें, उनके अनुभवों से लाभ उठायें। इसके साथ ही आज के समस्त समाज से निवेदन हैं कि वे युवाओं को तिरस्कार और घृणा भाव से न देखें। उन पर पेम का शीतल जल बरसाये, करुणामय दृष्टि रखें। वे स्नेह और रहम के पात्र हैं न कि तिरस्कार या उपहास के।
युवाओं के पति यही संदेश है कि एक-दो के पति सद्भावना रखें और आत्म-विश्वास के साथ अपने कार्य में आगे बढ़ें। आपमें वह शक्ति है जो पत्थर को मोम, मरुभूमि को उपजाऊ, रेगिस्तान में फूल और रोते हुए को हँसा सकती है। आप विश्व भर के मार्ग-दर्शक बन सकते हैं तो आओ युवाओं, हम सब मिलकर –
ज्ञान के प्रकाश से, योग के अभ्यास से
जीवन
निखारते चलें, नवयुग का निर्माण करें
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।