आध्यात्मिकता द्वारा व्यसन-मुक्त श्रेष्ठ समाज की पुनस्थापना

0

 


वर्तमान समय चारों ओर व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में कष्ट बढ़ रहे हैं, भय और आशंका के बादल मंडरा रहे हैं, मानसिक तनाव से कोई भी वर्ग, कोई भी धर्म, बाल, युवा या वृद्ध अछूता नहीं है। भौतिकता का बोलबाला है। सम्बन्धों में स्वार्थ बढ़ता जा रहा है। पाश्विक आसुरी पवृत्ति उत्कर्ष पर है। व्यक्ति का जीवन खोखला होता जा रहा है।

आज समाज का हर व्यक्ति पाँच विकारों रूपी माया के अधीन है। विकारों के वशीभूत मनुष्य अनेकानेक दुष्कर्म कर रहा है इसलिए समाज में चारों ओर पाप और अत्याचार फैल रहा है। हर व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा है। आपसी मतभेद के कारण परिवार टूट रहे हैं। पारिवारिक समस्याएं दिन-पतिदिन बढ़ रही हैं, हर एक का दृष्टिकोण संकुचित होता जा रहा है।

समाज में कष्ट, कलह, शोक के अनेक कारण मौजूद हैं। दुनिया में वस्तुओं, साधनों की कोई कमी नहीं, कमी है निर्मल मन और बुद्धि की। सद्भावना का स्थान दुर्भावना ने, शुभ चिंतन का स्थान अशुभ चिंतन ने, आत्मचिंतन का स्थान परचिंतन ने ले लिया है।

समस्याएं सुलझने के बजाए उलझती जा रही हैं। समाज में बन्धुत्व और एकता के अभाव के कारण स्वार्थ और आपाधापी मची हुई है। एक-दूसरे के प्रति अविश्वास-सा छाया हुआ है। इन दुष्पवृत्तियें के निकास के बिना सामाजिक विकास कैसे हो सकता है?

संसार के राजनेता, धर्मनेता सब मनुष्य, समाज में बढ़ती जनसंख्या, महंगाई, बरोजगारी, लड़ाई-झगड़े, आतंकवाद आदि को लेकर परेशान हैं, चिन्तित हैं। राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इन्हीं विषयों को लेकर चर्चा होती है। सभी को यही परेशानी है कि समाज जिस गति से विनाश की ओर बढ़ रहा है, उसे कैसे रोका जाए, टाला जाए।

वास्तव में वर्तमान समाज रूपी वृक्ष की जड़ें इतनी खोखली हो चुकी हैं कि छोटे-मोटे आंधी-तूफान से भी यह वृक्ष गिर सकता है। अब तो हरेक यही चाहता है कि स्वस्थ समाज रूपी कलम लगे जिससे एक बेहतर समाज का निर्माण हो जहां आर्थिक सम्पन्नता, पेम, भाईचारा, खुशहाली, एकता चारित्रिक श्रेष्ठता हो।

लेकिन इससे पहले हमें इस बात पर अवश्य ध्यान देना चाहिए, चिंतन करना चाहिए कि समाज ऐसी दुर्दशा तक कैसे गया, इसका जिम्मेदार कौन है, क्योंकि वर्तमान समस्याओं के बीच घिरा हुआ मनुष्य मृगतृष्णा की भांति भटक रहा है। आज मानव चौराहे पर खड़ा है जहां उसे पता नहीं चल रहा कि उसे किधर जाना है।

अनेक समस्याओं तनाव से ग्रस्त मानव विकारों व्यसनों का सहारा ले रहा है, दिन-प्रतिदिन नशीले पदार्थों की समस्या गम्भीर होती जा रही है। व्यसनों का बोलबाला है। ज्यों-ज्यों व्यसनों का पचलन बढ़ रहा है, मानव सभ्यता खतरे की ओर अग्रसर है। व्यसन विनाशकारी हैं। आज ये व्यसन मानव के विचारों संस्कारों को दूषित कर रहे हैं, शरीर मस्तिषक पर बुरा असर डालते हैं।

इनका सेवन करने से मनुष्य में बुरी भावनाएं पनपती हैं, चरित्रहीनता की वारदातें बढ़ती हैं। अच्छे-अच्छे मनुष्य भी पथभ्रष्ट हो जाते हैं। जब व्यक्ति इन व्यसनों का गुलाम बन जाता है तो वह अपने परिवार पर भी नियंत्रण नहीं रख सकता।

केवल पौढ़ मनुष्य ही नहीं आज स्कूल, कालेज के विद्यार्थियों, युवा वर्ग का रुझान भी चरस, हेरोइन, ब्राउढन शुगर, स्मोकिंग, ड्रिंक जैसी खतरनाक नशीली वस्तुओं के सेवन की ओर बढ़ रहा है। ऐसा भी नहीं कि नशीले पदार्थों के सेवनकर्त्ता इनकी हानियों को नहीं जानते। सभी सेवनकर्त्ताओं को यह मालूम होता है कि किस नशीले पदार्थ में कितना विनाश छिपा हुआ है।

फिर भी विवेकहीन मनुष्य इन पदार्थों का उपयोग कर रहा है, वह इन पदार्थों को अधिक से अधिक मात्रा में लेने से नहीं चूकता। ये व्यसन मनुष्य को जीता-जागता असुर बना देते हैं और जीवन की सारी शक्तियां समाप्त कर देते हैं। मनुष्य यह नहीं समझता कि वह व्यसनों को नहीं पी रहा बल्कि व्यसन उसे पी रहे हैं।

महात्मा गांधी जी ने कहा था, अगर भारत देश की शासन सत्ता कभी मेरे हाथ में गई तो पहले ही आधे घण्टे में शराब की दुकानें बन्द करवा दूंगा क्योंकि वे चोरी वेश्यावृति से बढ़कर शराब के सेवन को बुरा मानते थे क्योंकि ये कुरीतियां भी शराब से जन्म लेती हैं। छ: फुट का जवान एक फुट की बोतल में बन्द होकर रह जाता है। स्मैक व्यसन के लिए भी कहा गया है।

एक बार राजा के बेटे राजकुमार को संग का रंग लगने से शराब सिगरेट पीने की बुरी आदत पड़ गई। इस बात को देखकर राजा बहुत परेशान था कि होवनहार राजा जिसके कंधों पर कल सारा कारोबार आने वाला है, इन बुरी आदतों के वशीभूत हुआ तो पजा की क्या देखभाल करेगा। इस बात से रानी भी चिंतित रहने लगी।

एक दिन राजा के यहां महल में महात्मा जी आये। राजा ने उनको सारी बात बताई और कहा कि महात्मा जी मैं और मेरी पत्नी राजकुमार की इन बुरी आदतों के अधीन होने के कारण बड़े ही चिंतित हैं, आप कुछ कृपा करें जो राजकुमार इन बुरी आदतों को छोड़ दे। तब महात्मा जी ने कहा कि क्या राजकुमार का इस समय यहां आना सम्भव है। राजा ने कहा, राजकुमार यहीं होंगे अभी उनको आपसे मिलने के लिए बुलाते हैं। तब राजकुमार को बुलाया गया।

राजकुमार ने महात्मा जी को पणाम किया तथा वहां बैठ गया। राजा ने महात्मा जी को राजकुमार का परिचय देते हुए कहा कि वैसे तो इनमें सारे गुण हैं परन्तु महात्मा जी इनको शराब सिगरेट पीने की लत लग गई है। आप इस पर आशीर्वाद करें जो शराब सिगरेट छोड़ दे।

महात्मा जी ने राजकुमार की ओर देखते हुए कहा कि आज से आप इन चीजों को दोगुणा पयोग करना। राजा ने यह बात सुनकर सोचा कि अवश्य ही महात्मा जी की बात में गहराई होगी, कुछ शिक्षा समाई होगी। महात्मा जी की इस बात को सुनकर पहले तो राजकुमार बहुत खुश हो गया कि जिस चीज के लिए मुझे मना किया जाता रहा है महात्मा जी ने मुझे दोगुणी लेने की छुटटी दे दी।

परन्तु बाद में उसका विचार चला कि आज तक मुझे सबने इन चीजों का सेवन करने से मना किया परन्तु महात्मा जी ने दोगुणी लेने की छुटटी क्यो दी। तो वह पुन महात्मा जी के पास आया और बोला, महात्मा जी, आपने मुझे ये चीजें दोगुणी लेने को कहा है, इससे मुझे क्या फायदा होगा। महात्मा ने उत्तर दिया– एक तो यह कि आपके द्वार चोर नहीं आयेंगे, दूसरा, हमेशा सवारी मिलेगी, तीसरा दिखने में पर्सनैलिटी आपकी अच्छी होगी। राजकुमार ने पूछा, वो कैसे?

महात्मा जी ने कहा कि इन व्यसनों को लेने पर जब खांसी हो जाती है तो सारी रात व्यक्ति जागता रहता है और चोर आयें भी तो खांसी की आवाज सुनकर भाग जायेंगे। दूसरा, शरीर इतना रोगी हो जायेगा कि अपने आप चलना मुश्किल होगा, बिना सवारी के चल नहीं सकेंगे तो हर समय सवारी मिलेगी। जब बीमारी से शरीर फूल जायेगा तो देखने वालों को पर्सनैलिटी अच्छी दिखाई देगी। तब वह समझा और महात्मा जी के सामने कभी इन चीजों को ना लेने का पण किया।

वास्तव में, इस पर गहराई से विचार करने पर हमारे सामने यही बात आती है कि समाज की ऐसी दुर्दशा का एक कारण आत्मविस्मृति है। आज का चिन्तनशील पाणी इस बात से चिंतित है कि नशीले पदार्थों की समस्या समाज में पांव पसारती जा रही है, आखिर इसका निदान क्या है? राज्य सरकारों के अनेक कानून बनाने के बाबजूद भी दिन पतिदिन ये समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। इनके बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं। मुख्य कारण आत्म विस्मृति है।

मनुष्य यह भूल गया है कि उसके अन्दर एक अभौतिक वस्तु और है जिसके कारण यह भौतिक वस्तु चलती है। इसी अभौतिक शक्ति अर्थात् आत्मा को भूल जाने के कारण वह व्यसनों का गुलाम होता जा रहा है। जब तक उसे आत्मबोध नहीं हो जाता तब तक वह व्यसनों से मुक्ति नहीं पा सकता। आत्मबोध होने के कारण नशीले पदार्थ मनुष्य की शक्ति को नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं।

आत्म विस्मृति होने पर मनुष्य देह अभिमान में आकर अनेक समस्याओं से स्वयं को घिरा हुआ अनुभव करता है। अशान्त तनावग्रस्त होने पर वह नशीले पदार्थों का सेवन करता है। यदि मनुष्य आत्म-स्मृति में रहे तो आत्मा का स्वधर्म ही पवित्रता और शान्ति है। आत्मा शान्तिधाम की रहने वाली है, शान्ति के सागर, आत्मा के पिता हैं। जब आत्मा ईश्वरीय नशे में रहेगी तो अन्य नशों की आवश्यकता ही नहीं।

कहा जाता है, सब नशों में है नुकसान सिवाए नारायणी नशे के। नशा करने वालों की बुरी दशा होती है। नशा के बराबर थोड़ा-सा भी नुकसानदायक है और ज्यादा लेते हैं उनके लिए निराशा का पैगाम है और शीघ्र बर्बादी का रास्ता है।

नशा शब्द के स्पैलिंग अदली बदली कर दे तो – नाश’’ बनता है और नशा शब्द को उल्ट कर दे तो शान बनता है। अब यही पश्न उठता है कि विकारों एवं व्यसनों से छुटकारा पाने मानव तथा समाज के उत्थान का क्या उपाय है।

इसका सबसे सहज और श्रेष्ठ उपाय है - आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग। ज्ञान मनुष्य को यह बोध कराता है कि वह स्वयं को देह समझे हुए है, वह वास्तव में देह नहीं बल्कि देह से भिन्न आत्मा है। स्वयं को देह समझने से आत्मा के वास्तविक गुण, सुख, शान्ति, आनन्द, पेम, शक्ति, पवित्रता आदि लोप हो जाते है और काम, कोध, लोभ, मोह आदि विकार प्रवेश कर लेते हैं।

आध्यात्मिक ज्ञान राजयोग मनुष्य की चेतना को जागृत करता है। आत्मा अपने पिता परमात्मा से सम्बन्ध जोड़कर उसके दिव्यगुणों की सुगन्ध से महक उठती है। इस आत्मानुभूति परमात्मानुभूति से आत्मा अपने स्वाभाविक गुणों से प्रकाशित होकर सारे समाज को पकाशित करती है। व्यसनमुक्त श्रेष्ठ समाज की स्थापना के लिए मनुष्य का विकारों से मुक्त होना और दिव्यगुणों से युक्त होना बेहद आवश्यक है।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top