धार्मिक उत्सवों (त्योहारों) का निर्माण क्यों हुआ? इस प्रश्न के उत्तर में यही कहा जाता है कि जैसे विचार वैसा व्यवहार। यदि हमारे विचार शुद्ध होंगे तो व्यवहार भी शुद्ध होगा किन्तु यदि विचार अशुद्ध हैं तो व्यवहार भी अनीतिमय और अशुद्ध होगा। व्यवहार की शुद्धि के लिए विचारों को नियत्रण में रखना आवश्यक है। इसकी महसूसता लोगों ने की, साथ-साथ लोगों का जीवन अमर्यादित तथा उच्छृंखल न बन जाये अतएव विचारों का नियत्रण एवं धर्म को बल देने के लिए त्योहारों का निर्माण हुआ।
अन्य कुछ लोगों का विचार है कि सामान्य प्रथा के अनुसार किसी उच्च सामाजिक कार्यकर्ता या महान् व्यक्ति या धार्मिक व्यक्ति की स्मृति को कायम रखने के लिए उसके जन्म-दिवस या निर्वाण-दिवस को उसकी अच्छे कृतियों तथा संस्मरणों के साथ मनाते हैं। उदाहरण के तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरु को बच्चे बड़े प्रिय लगते थे अतएव उनके जन्म-दिवस को बाल-दिवस के रूप में मनाते हैं। इसी तरह पूज्य, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण तथा श्रीराम के जन्म-दिन जन्माष्टमी तथा रामनवमी के रूप से आज भी मनाये जाते हैं ताकि उन पुरुषोत्तम देवी-देवताओं के कर्त्तव्यों को याद कर उनका भी जीवन वैसा ही बने। इसी प्रकार शिवरात्रि भी सर्व आत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण तथा अद्भुत कर्त्तव्य की याद दिलाती है।
शिवरात्रि सभी त्योहारों में ‘हीरे-तुल्य’ है। इस दिन भक्तगण मन्दिरों में शिवलिंग की प्रतिमा पर बेल-पत्र, दूध आदि चढ़ाते हैं तथा व्रत आदि करते हैं। परन्तु इस त्योहार के आध्यात्मिक रहस्य से बहुत कम लोग परिचित हैं। वैसे एक पौराणिक कथा भी है कि एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने गया और वह वहाँ हिरण की युगल जोड़ी पर बाण चलाने को उद्यत हुआ था कि वे दोनों बोले –
हे शिकारी! अभी तुम हमें मत मारो। हम दोनों अपने बच्चों से मिलकर कल प्रातः फिर इसी वृक्ष के नीचे मिलेंगे तब फिर आप हमारा शिकार कर लीजियेगा। यह कहकर वे दोनों हिरण अपने बच्चों से मिलने के लिए शिकारी से विदा हुए। उन दोनों ने वापस जाकर अपने परिवार वालों से विदाई लेनी चाही तो अन्य हिरणों ने कहा कि हम बूढ़े हो गये हैं अतएव हम जाते हैं क्योंकि हम पर कोई जवाबदारी नहीं है। सारे हिरण-समाज ने ही वहाँ जाने का आग्रह किया और उस पेड़ तक पहुंचने के लिए सभी ने कूच किया। इधर शिकारी ऊपर बेल पत्र के पेड़ पर चढ़कर पेड़ की पत्तियाँ नीचे गिराता रहा। संयोग से उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था। सारी रात उपवास कर बेल-पत्र चढ़ाने तथा एक युगल हिरण के पीछे सारा समाज उस पेड़ के नीचे मरने के लिए आये, इससे शिवजी बहुत ही प्रसन्न हुए। कहने का भाव यह है कि जैसे शिवजी हिरण युगल तथा शिकारी पर प्रसन्न हुए, वैसे ही हम सब पर भी प्रसन्न हों – इसीलिए उपवास आदि करते हैं।
अब विचार करने योग्य बात यह है कि क्या इतनी छोटी-सी कहानी इतने महान त्योहार का निमित्त कारण बन सकती है। शिवरात्रि का गुह्य रहस्य क्या होगा? यह एक गुह्य प्रश्न है। इस गुह्य प्रश्न को समझने से ही हम शिवरात्रि के वास्तविक आध्यात्मिक रहस्य से परिचित हो सकेंगे।
परमात्मा का नाम शिव है, ऐसा तो प्रायः सभी मानते हैं। शिवलिंग आकार की प्रतिमा प्रायः सभी धर्मों में पूज्य है। गोपेश्वर, रामेश्वर, अमरनाथ, नेपाल में पशुपतिनाथ, मक्का में संग-ए-असवद तथा जापान में इसी प्रतिमा रूप परमात्मा का ध्यान करते हैं। प्राचीनकाल में, रोम में प्रतिज्ञा करते समय शिवलिंग का प्रतीक हाथ में लेते थे। मारीशस में आज भी शिवरात्रि एक राष्ट्रीय त्योहार माना जाता है। ईसाई धर्म वाले भी कहते हैं
– परमात्मा ज्योतिस्वरूप है तथा गुरुनानक जी ने भी एक ओंकार कहकर शिव की महिमा की है। जैसे सर्व धर्मों में परमात्मा का रूप बताया है वैसे ही उनका सूक्ष्म रूप है भी। परमात्मा अर्थात् परम + आत्मा। उस परम आत्मा को हम स्थूल नेत्रों से नहीं देख सकते बल्कि उन्हें देखने के लिए साक्षात्कार अथवा ज्ञान के तीसरे नेत्र की आवश्यकता है। उनका स्वरूप अंगुष्ठाकार है। शिवरात्रि आत्मा और परमात्मा के सच्चे सम्बन्ध की याद दिलाने वाला त्योहार है।
‘शिव’ शब्द का अर्थ होता है – कल्याणकारी। यानी कल्याणकारी परमात्मा ने रात्रि के समय आकर आत्माओं का कल्याण किया। इसी यादगार में शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। किन्तु ‘रात्रि’ शब्द भी एक प्रतीक है। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात्रि – दोनों को मिलकर एक कल्प होता है। दिन में आत्माएं सतोप्रधान होती हैं और रात्रि में वे तमोप्रधान बनती हैं। अतएव तमोप्रधान आत्माओं को सतोप्रधान बनाने के जो उन्होंने दिव्य कर्त्तव्य किये उसी का स्मरणोत्सव शिवरात्रि है। किन्तु शिवरात्रि के दिन एक लोटी भांग पीने तथा व्रत रखने से हम इस त्योहार के वास्तविक रहस्य को नहीं समझ सकेंगे। इसका वास्तविक आध्यात्मिक रहस्य समझने तथा अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए शिवरात्रि के त्योहार का नव मूल्यांकन होना ज़रूरी है।
जैसे शिवरात्रि नये दिन का प्रारम्भ तथा पुरानी रात्रि के अन्त के साथ सम्बन्धित है वैसे ही हम भी अपने बीते हुए वर्ष के अन्त की नये वर्ष के प्रारम्भ से तुलना करें, मिलावें अर्थात् गत वर्ष में हमने क्या प्राप्ति की और किसका त्याग किया? इसकी आध्यात्मिक तुलना करें तथा हिसाब निकालें। इस प्रकार शिवरात्रि का त्योहार सिर्प एक दिन का नहीं बल्कि अपनी प्रगति और प्रवृत्ति को मापने का तराजू बन जायेगा। अतएव निम्नलिखित बातें विचार योग्य हैं –
हममें सर्व प्रकार की श्रेष्ठता कितनी आयी?
सम्पूर्णता के कितने समीप पहुंचे?
दूसरे के साथ सम्बन्ध में कितनी सन्तुष्टता आई?
हमसे कितने सन्तुष्ट हुए?
जैसे दीपावली के दिन व्यापारी सारे साल के नुकसान-फायदे का हिसाब निकालते हैं वैसे ही शिवरात्रि के दिन से हमें अपने आध्यात्मिक और व्यवहारिक जीवन पर दृष्टि रखकर उसे शुद्ध और श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
इस प्रकार सच्चे आध्यात्मिक रहस्य से परिचित होने के बाद हम केवल व्रत और जागढ़रण से ही इस त्योहार को नहीं मनायेंगे बल्कि हम अपनी आत्मा को जगाकर, पाँच विकारों का त्याग (व्रत) करेंगे तो निश्चय ही हमारा कल्याण होगा और जीवन महान् बनेगा। शिवरात्रि को सिर्प परमात्मा के कर्त्तव्य का स्मृति-दिन नहीं बल्कि उस परमात्मा से समर्थता प्राप्त करने के लिए मनायें तो हम विजय प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन के सच्चे लक्ष्य पर पहुंच सकते हैं। इसलिए आज के दिन, हीरे-तुल्य जीवन बनाने वाले परमपिता परमात्मा शिव की हीरे-तुल्य जयन्ती पर आप सबको हार्दिक ईश्वरीय शुभ बधाई है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।