हर व्यक्ति
जीवन में सुख-शान्ति एवं आनन्द का अनुढ़भव करना चाहता है।
अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के बाद भी अगर उसका स्वास्थ्य ठीक न हो तो वह सुख शान्ति
का अनुभव नहीं कर सकता। यदि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो तो भी वह सब-कुछ प्राप्त नहीं कर सकता, परन्तु यदि उसका स्वास्थ्य
अच्छा न हो तो वह शायद ही कुछ प्राप्त कर सकता है। स्वास्थ्य एक सम्पत्ति है,
जिसका ह्रास यथासम्भव रोकना चाहिए एवं जीवन में कुछ ऐसी बातों को अपनाना
चाहिए, जिसके फलस्वरूप स्वास्थ्य-रूपी सम्पत्ति
को बढ़ाया जा सके अथवा कम से कम इस सम्पत्ति का ह्रास रोकने के लिए ऐसी बातों को जीवन
में अवश्य अपनाना चाहिए। विश्व में अधिकांश लोगों को स्वस्थ जीवन के अति आवश्यक नियमों
की जानकारी नहीं है अथवा जानते हुए भी वे उन नियमों को मानते नहीं अथवा उन्हें अनावश्यक
मानकर अपनाते नहीं अथवा मानते हुए भी उनमें इतना मनोबल नहीं कि उन्हें जीवन में अपना
सके।
साथ-साथ अधिकांश लोगों में यह ग़लत मान्यता है कि
उनका स्वास्थ्य डॉक्टर के हाथों में है। डॉक्टर से दवाई-इन्जेक्शन
लेकर वे अपने स्वास्थ्य को अच्छा रख सकेंगे। यह एक भ्रममात्र है, क्योंकि, अधिकांश बीमारियां हमारी ग़लत जीवन- पद्धति के कारण होती है। स्वास्थ्यवर्धक नियमों को अपनाकर इस ग़लत जीवन- पद्धति से व्यक्ति मुक्त हो सकता है। वास्तव में आपका स्वास्थ्य आपके ही हाथों में है।
आमतौर पर आपकी बीमारी के लिए आप स्वयं ही ज़िम्मेदार हैं।
बहुत-से लोग यह मानते हैं कि उन्हें कोई बीमारी नहीं
तो उनका स्वास्थ्य अच्छा है। यह भी एक ग़लत मान्यता है, क्योंकि
शरीर में बीमारी क़ाफी हद तक फैल जाने के बाद में ही बीमारी के लक्षण
दिखाई देते है। एक रोग की पानी में तैरते बर्फ के पहाड़ के साथ तुलना कर सकते हैं।
जैसे बर्फ के पहाड़ का थोड़ा-सा हिस्सा ही पानी के ऊपर दिखाई
देता है वे ही रोग का थोड़ा-सा हिस्सा ही रोग के लक्षण के रूप
में अनुभव में आता है तथा डॉक्टरी जांच में पहचाना जाता है।
आमतौर पर हम सभी सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को ही महत्व देते है, परन्तु शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक एवं सामाजिक
स्वास्थ्य का भी इतना ही महत्व है, क्योंकि शारीरिक रूप से बीमार
व्यक्ति जो केवल स्वयं दुःखी एवं परेशान होता है, परन्तु मानसिक
रूप से बीमार व्यक्ति दूसरों को भी दुःखी एवं परेशान कर देता है। एक झगडालू व्यक्ति
जो कि सामाजिक रूप से बीमार है अनेक लोगों के लिए सिरदर्द का कारण बन जाता है।
इस लघु लेख में सर्वांगीण स्वास्थ्य के दस सुनहरे नियमों की चर्चा की गई है। इन
नियमों की आवश्यकता बताई गई है एवं उनको अपनाने के लिए सरल मार्ग-दर्शन भी दिया गया है। आशा है कि आप इन नियमों को जीवन में अपनाकर सुस्वास्थ्य
की पूंजी को पुनः प्राप्त करेंगे।
शरीर एवं पर्यावरण की स्वच्छता
स्वास्थ्य के लिए आवश्यक शुद्धी एवं वातावरण की स्वच्छता अत्यावश्यक
है। शरीर अगर स्वच्छ न हो तो चमड़ी की बीमारियाँ हो सकती हैं। तथा वातावरण की अस्वच्छता
अनेक कीटाणुजन्य संक्रामक रोगों को निमंत्रण देती है।
प्रतिदिन स्नान करना ज़रूरी है, जिससे शरीर में
मैल एवं कीटाणुओं की वृधि न हो। जिन भागों में अधिक पसीना
होता है, उन्हें ठीक से साफ करना अधिक ज़रूरी है। सौच के बाद हाथों को साबुन से अवश्य साफ करने चाहिए
नहीं तो कीटाणु नाखून या हाथों में रह जाते हैं जो कि वापस शरीर में प्रवेश कर बीमारी
फैलाने का कारण बन सकते हैं। भोजन से पहले भी हाथों को साबुन या राख से स़ाफ कर देना
चाहिए, ताकि कीटाणु शरीर में प्रवेश न कर सके।
पीने का पानी भी स्वच्छ होना चाहिए। अगर आपको रास्ते में स्वच्छ पानी उपलब्ध न
हो तो बेहतर है कि आप पानी न पीयें। अस्वच्छ पानी में बनाया गया भोजन या शर्बत भी नहीं
लेना चाहिए। मक्खियाँ भी बीमारी फैलाने का कारण है, इसलिए रास्ते
में बिकने वाली खाने की चीज़े जिन पर मक्खियाँ बैठती हो उन्हें नहीं खानी चाहिए। सप्ताह में एक बार नाखून काट लेना चाहिए।
घर में पर्याप्त मात्रा में हवा एवं सूर्य का प्रकाश आना ज़रूरी है। इससे वातावरण
में हानिकारक कीटाणुओं की वृधि नहीं होती है। घर एवं पर्यावरण
की सफाई भी ज़रूरी है।
दातों के स्वस्थ के लिए सवेरे व रात्रि को सोने से पहले दातों को ब्रश अथवा दातून
से अवश्य साफ करें। सवेरे दातों को साफ करना जितना आवश्ययक है, उससे अधिक रात्रि को दातों को साफ करना ज़रूरी है। क्योंकि अगर रात्रि को दाँत
साफ न किये तो रात भर कीटाणुओं को वृधि पाने का मौका मिल जाता है एवं दातों
के रोग बढ़ते है।
पश्चिम की दुनिया में नरम चीज़ें खाने की आदत पड़ने के कारण दाँतों को कसरत नहीं
मिलती, इसलिए दाँतों के रोग बहुत अधिक मात्रा में होते
हैं। प्रतिदिन कुछ कड़ी चीज़ें भी खानी चाहिए ताकि दातों को कसरत मिले तथा वे मज़बूत
बनें। अगर दातों में कहीं भी काला दाग़ दिखाई दे या दर्द हो तो फौरन दातों के डॉक्टर
की राय लेनी चाहिए। आम लोगों को दातों के डाक्टर के पास जाने से डर लगता है,
क्योंकि वे समझते है कि अगर डाक्टर के पास गये तो वह उन्हें दाँत गिरा
देने की राय देगा, परन्तु यह ग़लत मान्यता है। डाक्टर दाँत को
बचाने की ही कोशिश करता है। जब कोई पर्याय नहीं जाता तब ही डाक्टर उसे गिराने की राय
देता है। दातों की सड़न को शुरू में ही रोका न गया तो वह फैलती ही जाती है। सिर्फ दर्द
शामक दवाईयाँ लेने से उसका मूल कारण दूर नहीं होता।
आँखों के स्वास्थ्य के लिए उन्हें स्वच्छ पानी में दिन में दो बार स़ाफ करना चाहिए।
कम रोशनी में पढ़ना नहीं चाहिए। रोशनी सीधी आँखों पर नहीं आनी चाहिए। जिस चीज़ को पढ़ना
है उस पर रोशनी आनी चाहिए।
जैसे शरीर की बाह्य शुद्धि ज़रूरी है, वैसे ही अन्दरूनी भी ज़रूरी है। प्रतिदिन अर्न्तड़ियाँ भी स़ाफ रहनी चाहिए।
अगर उनमें मल जमा रहता है तो उससे अनेक बिमारियाँ हो सकती हे। हमारा आहार-विहार ऐसा हो कि प्रतिदिन पेट ठीक तरह से स़ाफ हो। कुछ लोग अगर दो-तीन दिन तक दस्त
न हो तो उसे बीमारी का चिह्न नहीं समझते, परन्तु यह ग़लत मान्यता
है। क्योंकि ऐसा होने से पाचनक्रिया ठीक से नहीं होगी एवं घीरे-धीरे अनेक बीमारियों की शुरूआत
हो सकती है।
सन्तुलित
एवं सात्विक आहार
व्यक्ति जो भोजन ग्रहण करता है उसका असर सभी अंगों पर होता है। अनेक लोगों की यह
ग़लत मान्यता है कि शक्ति प्रदान करने वाला आहार अधिक मात्रा में खाना चाहिए। वास्तव
में ऐसे भोजन से शरीर में चरबी का संग्रह होता है उसके कारण स्वास्थ्य को हानि पहुँचती
है। हरी सब्जियाँ भी स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
माँसाहार में अधिक शक्ति एवं अधिक प्रोटीन हैं, लेकिन इससे
खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है एवं हृदय रोग होने की सम्भावना रहती है। मांसाहार
से शरीर में यूरिया एवं यूरिक एसिड भी बढ़ता है जिससे गुर्दे की बीमारी हो सकती है।
जब एक प्राणी की हत्या कर दी जाती है, तब डर के कारण उसके खून
में एड्रीनालीन (Adrenaline), नोरएड्रीनालीन
(Noradrenaline) आदि द्रव्य
बढ़ते हैं। ये द्रव्य व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अतः पशुओं को मारने
से उनका मांस, जो इन द्रव्यों से प्रभावित होता है, हानिकर है।
कुछ लोगों की ग़लत मान्यता है कि शाकाहार में स्वास्थ्य के लिए आवश्यक प्रोटीन
नहीं हैं। यह मान्यता सत्य पर आधारित नहीं है, क्योंकि हमारे शरीर
में ऐसी सुविधा है कि जिससे कम आवढ़श्यक अमीनो एसिड (Amino Acid) में से आवढ़श्यक अमीनो एसिड निर्माण हो सकता
है।
साथ ही साथ मानव-शरीर की संरचना भी शाकाहारी अन्न के अनुरूप है।
मानव के दाँत एवं नाखून चीर-फाड़ करने के जैसे बड़े नहीं है।
मनुष्य की लार में मांसाहार प्राणियों की भाँति अधिक आम्लता नहीं है। उसकी छोटी
आंतें मांसाहारी प्राणियों की आंतों की तरह लम्बाई में छोटी नहीं हैं, लेकिन क़ाफी बड़ी हैं। मानव-शरीर की संरचना शाकाहारी
भोजन के सेवन के तथा पाचन के अनुरूप है।
इस प्रकार के अनेक ऐसे प्रमाण हैं, जिनके कारण ही अनेक
मांसाहारी शाकाहार के पक्षपाती बनते जाते हैं।