(भाग 1 का बाकि)
गहरी, सन्तुलित नींद
सारे दिन के कार्य के पश्चात् व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से थक जाता है। गहरी, सन्तुलित नींद व्यक्ति को ज़रूरी आराम प्रदान करती है और वह आगे का कार्य स्फूर्ति
से कर सकता है। अगर नींद न मिले तो व्यक्ति थकावट एवं वेचैनी का अनुभव करता हैं। जो
लोग अनिद्रा के शिकार हैं वे ही जानते हैं कि नींद न आने की पीड़ा कितनी भयानक है।
अपने जीवनकाल के दौरान 30 प्रतिशत से अधिक लोग कभी न कभी अनिद्रा का
अनुभव करते हैं। अनिद्रा का मुख्य कारण मानसिक तनाव है। चिन्ताओं के कारण व्यक्ति को
नींद आने में क़ाफी देरी लगती है। जो लोग निराशा एवं हताशा से ग्रस्त हैं, उन्हें एक बार नींद आ जाती है, परन्तु आधी रात बीतते
ही उनकी नींद खुल जाती हैं एवं बाद में लाख प्रयत्न करने के बावज़ूद भी उन्हें नींद
नहीं आती है।
नींद के लिए गोलियों का आधार, जहाँ तक हो सके, टालना चाहिए। मन को शान्त करने की विधि सीख लेने से मस्तिष्क में स्थित निद्रा-केन्द्र क्रियान्वित होते हैं एवं व्यक्ति को स्वाभाविक नींद आ जाती है। चिन्ताओं
को छोड़कर शान्ति से रहना सीखना चाहिए।
हमें प्रतिदिन कितनी नींद की आवश्यकता हैं? हर व्यक्ति की आवश्यकता
अलग-अलग है। कुछ लोग चार घण्टे नींद करके ताज़गी का अनुभव करते
हैं। कुछ लोगों को नौ घण्टे नींद करने के बाद भी आराम का अनुभव नहीं होता। शारीरिक
थकावट तो थोड़ा समय ही नींद करने से उतर जाता है, परन्तु जो लोग
मानसिक रूप से अधिक थक जाते हैं उन्हें ज्यादा नींद की आवश्यकता रहती है। मानसिक एवं
बोद्धिक कार्य इतनी थकाढ़वट नहीं उत्पन्न करता जितनी उससे सम्बन्धित
चिन्ता, निराशा, डर असुरक्षा आदि
थकावट उत्पन्न करते हैं। इसी कारण गहरी एवं सन्तुलित नींद के लिए मन में शान्ति,
सुरक्षा एवं संतोष के विचारों को प्राधान्य देना चाहिए।
सहज राजयोग के अभ्यास से मन एवं मस्तिष्क शान्ति का अनुभव करता है। जिन्हें अनिद्रा
की शिकायत है राजढ़योग का अभ्यास काफी मदद करता है। राजयोग एज्यूकेशन एवं रिसर्च फाउन्डेशन
की मेडिकल विंग द्वारा अनुसंघान किया गया, इसके अन्तर्गत
824 अनिद्रा के मरीजों का परीक्षण किया गया। एक मास तक राजयोग का अभ्यास
करने के पश्चात् 82% मरीजों को 50% से अधिक लाभ हुआ।
शारीरिक
व्यायाम
शारीरिक व्यायाम की कमी के कारण शरीर के विभिन्न भागों में एवं रक्तवाहिनियों में
चर्बी जम जाती है, जिससे रक्त प्रवाह भली-भाँति नहीं हो पाता है। हृदय के स्नायुओं में रक्त प्रवाह ठीक न होने के कारण अन्य रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। मस्तिष्क में भी खून का
प्रवाह ठीक न हो तो मानसिक क्षमता कम हो जाती है।
व्यायाम की कमी के कारण मोटा होने की सम्भावना बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह (Diabetes) जैसे रोग हो सकते हैं।
स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता है। जो लोग एक जगह पर बैठकर कार्य करते हैं एवं जिनका घूमना-फिरना कम हो तो उनके
लिए व्यायाम करना ज़रूरी है।
खुली जगह में तेजी से चलने से या मन्द गति से दौड़ने से सारे शरीर को व्यायाम मिलता
है। प्रतिदिन आधा घण्टा भी व्यायाम मिले या कम से कम तीन किलोमीटर सुबह की सैर मिले
तो शरीर एवं मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।
व्यसनों से मुक्ति :
तम्बाकू, शराब एवं अन्य नशीली दवाइयों का सेवन कुछ पल
के लिए व्यक्ति को आराम एवं आनन्द का अनुभव करता है। इन व्यसनों से मानव को शारीरिक,
मानसिक एवं सामाजिक रूप से हानि पहुँचाती है।
तम्बाकू के धुएं में 400 से अधिक ज़हरीले पदार्थ हैं। इनमें से
50 कैन्सर (Cancer) पैदा करने वाले अथवा कैन्सर को बढ़ावा देने वाले पदार्थ हैं। धूम्रपान करने
वालों में फेफड़ों का कैन्सर होने की सम्भावना न पीने वालों की तुलना में
20 गुना अधिक होती है। इसी प्रकार होठ का कैनसर, जीभ का कैन्सर, हृदय रोग
आदि ही सम्भावना भी बढ़ जाती है।
शराब के कारण भी एसिडिटी (Acidity) ज़ठर का अल्सर, यकृत की बीमारियाँ होने की सम्भावना क़ाफी बढ़
जाती है। कुछ वर्ष तक अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से मस्तिष्क में भी खराबी
उत्पन्न होती है एवं व्यक्ति वर्निक्स इनसिफेलोपेथी (Wernicke's Encephalopathy) से ग्रस्त होता है।
मस्तिष्क की इन भयंकर बीमारियों के कारण उसे आजीवन एक विकलांग की तरह जीना पड़ता है।
शराब पीने के कारण विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाएं होने की सम्भावना भी क़ाफी बढ़
जाती है। शराब पी हुई हालत में पारिवारिक झगड़े भी अधिक होते हैं। अन्य नशीली दवाइयाँ
जैसे कि गर्द (Brown Sugar) मोरिफन, मेन्ड्रेक्स, चरस, गांजा इत्यादि
भी ज़हरीले साँप की भाँति व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक रूप से खत्म कर देती हैं।
स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए इन व्यसनों से बचकर रहना चहिए। अगर आप उनका सेवन
करते हैं तो उनसे छुटकारा पाना अत्यंत आवश्यक है।
व्यसन-मुक्ति के लिए व्यसन से होने वाली सभी हानियों
का ज्ञान आवश्यक है। धूम्रपान से होने वाली हानियों की जानकारी अमेरिका में आम जनता को प्राप्त होने के पश्चात् वहाँ
पर 30 प्रतिशत लोगों ने धूम्रपान करना छोड़ दिया है।
बहुत-से लोग तनाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए धूम्रपान, शराब आदि का सहारा लेते हैं। अगर लोगों को तनाव से मुक्त होने की स्वाभाविक
पद्धति सिखाई जाए तो वे इन व्यसनों का सहारा नहीं लेंगे।
अधिकांश लोग इन व्यसनों से छुटकारा पाना चाहते हैं, परन्तु उनमें दृढ़ मनोबल का अभाव होने के कारण वे इन व्यसनों से दूर नहीं रह
पाते हैं। उनमें व्यसन छोड़ने की इच्छा है, परन्तु उन्हें छोड़ने
के लिए जो इच्छा-शक्ति की ज़रूरत होती है, उसकी कमी है। मनोढ़बल में वृधि करने के लिए राजयोग का अभ्यास क़ाफी
सहायता करता है। राजयोग के अभ्यास के दौरान व्यक्ति अपनी मन-बुद्धि को सर्व शक्तियों के सिन्धु परमपिता परमात्मा के साथ जोड़ता है। इससे
उसके मन में शुद्ध शक्तियों का संचार होता है एवं वह हानिकर आदतों से मुक्त हो जाता
है।
राजयोग के अभ्यास से व्यक्ति शुद्ध-स्वरूप आत्मा का
अनुभव करता है, इसलिए उसे स्वाभाविक रूप से व्यसनों के प्रति
अरुचि एवं घृणा का अनुभव होता है।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आने वाले अनेक लोगों ने, योगाभ्यास के फलस्वरूप व्यसनों के प्रति अरुचि आने के कारण, अल्प समय में उन व्यसनों से सम्पूर्ण मुक्ति पा ली ऐसा अनुभव वास्तविक रूप
से किया है, यह एक सत्य परक अनुभव है।
1985 में 183 धूम्रपान करने वालों पर अनुसंधान किया गया। एक
मास तक राजयोग का अभ्यास करने के बाद 74 प्रतिशत लोग पूर्ण रूप
से व्यसन से मुक्त हो गये थे। एक वर्ष के बाद 93 प्रतिशत लोगों
ने धूम्रपान को छोड़ दिया था। सिर्फ 7 प्रतिशत व्यसनी योगाभ्यास
के बावजूद व्यसन से मुक्त नहीं हो पाये थे। शराब एवं नशीले द्रव्यों का सेवन करने वालों
में भी अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।
मन की शान्ति
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य
भी आवश्यक है। मन अशान्त हो तो शरीर पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अनेक बीमारियों का
मूल कारण मानसिक तनाव है। डा. हेन्स सीले ने अनेक अनुसंधान करके
यह स्पष्ट किया है कि, सिर-दर्द,
एसिडिटी, अल्सर, ब्लडप्रेशर
का बढ़ना, मधुमेह, चर्म-रोग, आदि होने की सम्भावना तनाव के कारण बहुत बढ़ जाती
है।
डॉ. हरबर्ट बेन्सन ने अनुसंधान करके बताया कि शिथिलीकरण
(Relaxation Response) मानसिक तनाव के लिए औषधि का कार्य
करता है। जब मन शान्त होता है तब तनाव टिक नहीं सकता। राजयोग के अल्यास से मन को असीम
शान्ति प्राप्त होती है। मन शान्त होने से शरीर के विभिन्न स्नायु भी शिथिल हो जाते
है। मस्तिष्क की तरंगे भी शान्त एवं नियमित रहती हैं।
1988 में 121 लोगों पर अनुसंधान किये गये जिन्हें सिरदर्द
की शिकायत थी। उन्हें राजयोग सिखाया गया था। तीन मास के योगाभ्यास के बाद
53.9 प्रतिशत का सिरदर्द बिल्कुल गायब हो गया था। 31.2 प्रतिशत को बहुत आराम मिला था। सिर्फ 9.4 प्रतिशत को
सिरदर्द में थोड़ी ही राहत मिली थी।
एसिड़िटी के 66 मरीज़ों में से तीन मास के योगाभ्यास के बाद 56.1 प्रतिशत को सम्पूर्ण मुक्ति मिली थी। 34.8 प्रतिशत को क़ाफी फायदा हुआ था, सिर्फ 9.1 प्रतिशत को थोड़ी-सी राहत मिली थी।
तनाव-मुक्त जीवन
वर्तमान युग में सबसे अधिक बीमारी `मानसिक तनाव'
के कारण है। जो व्यक्ति तनाव से मुक्ति प्राप्त करता है, वही सच्चे अर्थ में सुख, शान्ति एवं स्वास्थ्य को प्राप्त
कर सकता है।
कुछ लोगों की ग़लत धारणा है कि जीवन में थोड़ा तनाव तो आवश्यक है। बिल्कुल तनाव
नहीं होगा तो जीवन निक्रिय हो जायेगा। यह एक ग़लत मान्यता है। क्योंकि जो व्यक्ति तनाव-मुक्त है वह वास्वत में अधिक कार्यशील होगा। डा. हेन्शनीले
ने अपने अन्तिम अनुसंधानों के द्वारा यह सिद्ध किया था कि थोडा-सा तनाव भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।