(भाग –– 7 का बाकी)
क्षमाशीलता से लाभ
यदि आनन्द की परिभाषा जानना चाहते हो तो किसी की गलती को दिल से क्षमा कर दें और भूल जाओ क्योंकि जिसके दिल में क्षमा का मंगलमय भाव है वहाँ सर्वदा उत्सव का वातावरण छाया रहता है और उसके मध्य सम्पन्नता का सुखद नर्तन होता रहता है। क्या उपरोक्त वस्तु-स्थिति बच्चे से मिलती-जुलती नहीं है। फिर ऐसे लोगों को अज्ञानी समझकर प्रतिशोध के बदले करुणावश क्षमा कर देने में हर्जा ही क्या है। अपकारियों पर भी उपकार क्षमा भाव का श्रेष्ठतम रूप है। इसलिए जो दूसरे की गलती को,
अपमान और दुर्व्यवहार को क्षमा कर क्रोध को निगल जाता है उससे परमात्मा तो प्रसन्न होते ही हैं, कदाचित समय आने पर उसके द्वारा भूल होने पर उसे भी दूसरों से क्षमा मिल ही जाती है। क्योंकि यह ब्रह्माण्ड कर्म की न्यायशीलता, निश्चितता और निष्पक्षता से पूर्णत समायोजित है।
महत्त्व
–– ऐसे सद्व्यवहारी, क्षमाशील मानव अनेक मानसिक पक्षाघात से बच जाता है क्योंकि क्षमा रूपी विशाल छतनार वृक्ष के नीचे बहुतों के साथ वह भी सुख,
शान्ति, आनन्द की शीतल छाया को अनुभव करता है।
–– प्रतिशोध की ज्वाला से धधकते हृदय में सुख-चैन का पंछी कहाँ बसेरा करता है। वहाँ से तो कटुता, युद्ध और मिटा देने के दुर्विचार पैदा होते हैं और पैदा होता है अंतहीन दुःख का स्याह अंधेरा।
–– क्षमाभाव मानसिक प्रकाश की वह भाव दशा है जहाँ से प्रारम्भ होता है दिव्य जीवन का साम्राज्य। जिसमें समस्त भव्यता पवित्रता और सौन्दर्य समाहित है।
–– क्षमाशील पुरुष वैसे ही अनेक प्रकार की वैमनस्यता के न होने के कारण अपने चारों ओर के शत्रुता के जाल से मुक्त हेने के कारण निर्भय, निश्चित और सुखमय जीवन जीते हैं। शत्रुता तो क्या वे अपने क्षमाभाव के कारण मित्रता के सहयोग और सहृदयपूर्ण वातावरण में आनन्द से आमदित जीवन जीते हैं।
–– प्राय लोग छोटी-छोटी बातों का बुरा मान जाते हैं और हृदय की कोमलता, उदारता और मानवीय प्रेम की भावना को खोकर असहिष्णु बन जाते हैं। जिसका भयंकर परिणाम होता है हृदय की कठोरता। जब भी कोई मनुष्य अन्य के प्रति कोमलता को खोकर बदले की उग्र भावना से ग्रसित हो जाता है तो वह अपने ही हाथों से अपने सुखमय जीवन में आग लगा लेता है और दिन-रात मानसिक यातना का दंड पाता रहता है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए इस घोर कष्टकारी, दुःख मूलक प्रवृत्ति से अपने को बचाये। सुख-चैन देने वाली क्षमा, दया, सरलता और सहृदयता को धारण करें। प्रतिशोध की प्रवृत्ति को ज्ञान, योग और आत्म-चिन्तन द्वारा परिमार्जित करें। तो निश्चय ही क्षमा का माधुर्य जीवन को सुखद प्रकम्पनों से भर देगा।
थोड़े सद्-प्रयास से जैसे ही कोई क्षमाभाव के मधुरस का स्वाद पाने लगता है, जीवन से वैर और कटुता नष्ट होने लगती है। अपमान और अभिमान से उत्पन्न होने वाली घृणा,
क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला शान्त होने लगती है। पापपूर्ण वृत्तियों के कारण भष्ट मार्ग से निकल,
श्रेष्ठ आचरण के निर्मल आलोक मार्ग पर यात्रा प्रारम्भ कर देता है। वह वैरभाव को क्षमाभाव से जीत लेने का राज पा जाता है। क्षमाभाव जीवन में शाश्वत और दिव्य प्रेम का शुभारम्भ है जो आगे चलकर सुख-शान्ति के चिर-नूतन विशाल साम्राज्य में बदल जाता है, जिसमें सभी क्षुद्र सीमाएँ (क्रोध, घृणा, प्रतिशोध) समाहित होकर अपना अस्तित्व खो देती हैं।
दिशा का निर्धारण मनुष्य की आन्तरिक शक्ति और अमूल्य समय को नष्ट कर देता है। फलत उसकी निर्धारित अभिलाषा पर पानी फिर जाता है। (समाप्त)