तनाव से मुक्ति की ओर (Part : 1)

0

 


तनाव से मुक्ति की ओर

प्रत्येक मनुष्य के अन्दर यह भाव बना ही रहता है कि उसका जीवन सुख-सुविधा और सफलता से सम्पन्न हो। परन्तु अक्सर यह देखा गया है कि बहुंख्यक लोग भौतिक साधनों से सम्पन्न होने के बाद भी सफल और सुखमय जीवन को स्पर्श नहीं कर पाते हैं। समाज में ऐसे अनेक प्रतिभा सम्पन्न और चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी लोग मिल जायेंगे, जो प्राय दूसरों की समस्या का सार्थक सुझाव दें उसका हल तो कर देते हैं, परन्तु वे अपने खुद के जीवन में सदा ही उन्हीं छोटी-छोटी परेशानियों का शिकार बने रहते हैं।

चाहे उनका कारण पारिवारिक हो या सामाजिक, शारीरिक हो या मानसिक, परन्तु ऐसी अनेक समस्याएँ उनके जीवन में सदैव बनी ही रहती हैं, जिनका समाधान उनके पास नहीं होता है। साधारण व्यावहारिक समझ और हल्के प्रयास से यह सम्भव नहीं है क्योंकि इन समस्याओं की गहरी जड़े तो मनुष्य के अचेतन में आदतों और संस्कारों के रूप में फैली है। आत्म जागरुकता और मूल्यनिष्ठ दृष्टिकोण वाली आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि के बिना इसका समाधान सम्भव ही नहीं है।

हम में से ऐसे कई लोग हैं जिनके जीवन का प्रारम्भिक काल उनका लालन-पालन ऐसे घातक परिवेश में होता है कि उनके आगे का जीवन प्राय अनेक दीन-हीन भावनाओं का शिकार हो जाता है। इन स्थितियों से बाहर आने का साधन है –– अपने विचार-शक्ति, इच्छा-शक्ति, क्रिया शक्ति, भावशक्ति और कल्पना-शक्ति के साथ अनेक अन्तर्निहित क्षमता के विकास का सचेतन प्रयास। विकास की समस्त दिशाओं में हमें चाहिए कि हमारा दृष्टिकोण, सदा सकारात्मक, निर्माणकारी और आशामय हो।

इसके लिए आवश्यक है, असफलता और कमियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण सदा स्वीकार भाव से भरा हो। सदा यह संकल्प हो कि इन असफलताओं के प्रति कहीं हम स्वयं ही ज़िम्मेवार हैं। इस सकारात्मक सोच का परिणाम होगा भविष्य में कार्यक्षमता और उसकी गुणवत्ता में वृद्धि तथा सफलता। वे लोग, जो अपनी कमी कमज़ोरियों की ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल देते हैं उनके जीवन में परिवर्तन सम्भव ही नहीं रह जाता है।

इसलिए अपने में निखार और जीवन को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है, अपनी भावनात्मक ऊर्जा और समय का सद उपयोग स्वयं के चरित्र निर्माण में लगाएं ताकि आपके आत्म-केन्द्रित जीवन में होने वाले सुधार और परिवर्तन का प्रभाव धीरे-धीरे आपके ब्राह्य परिवेशों पर भी पड़ें।

प्रत्येक मनुष्य आत्मा में अपार आन्तरिक सम्भावनाएं निहित हैं क्योंकि आत्म को ज्ञान स्वरूप कहा जाता है। उसमें वे सभी सूचनाएँ तथा दिशा निर्देश अन्तर निहित हैं जिसकी उसको आवश्यकता है। इसलिए आपके अपने `स्व' अर्थात् आत्मा के अद्भुत शक्तिशाली सामर्थ्य का बोध होते ही आप जितना दिव्य ओर उज्ज़वल भविष्य का कीर्तिमान स्थापित करना चाहे कर सकते हैं।

इसके लिए आवश्यक है आत्म-चिन्तन, मनन, विश्लेषण और धैर्य द्वारा अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक खंडों में लक्ष्य का निर्धारण। स्व-प्रबन्धन के लिए एक महत्त्वपूर्ण नियम है कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना। मनुष्य के जीवन में दो तरह के कार्य होते हैं। उसमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिसे अभी-अभी पूरा करना आवश्यक होता है।

प्राय लोग यह निर्णय नहीं ले पाते हैं कि किसे पहले करे और किसे बाद में और इसमें भटकने का खतरा सदा ही बना रहता है। इसके लिए आत्म-जागरुकता तथा जीवन उद्देश्य की पारदर्शिता के बीच एक संतुलन के साथ-साथ क्षण-प्रतिक्षण उस योजना के साथ दृढ़ता सम्पन्न निर्णय शक्ति के क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है।

पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन में आपकी आकर्षक, आदर्श, प्रेरणास्पद और शक्तिशाली छवि का निर्माण हो तथा व्यावहारिक अर्न्त-सम्बन्धों में सुखद सामंजस्य बना रहे उसके लिए इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि ––

1. दूसरों की ज़रूरत के प्रति क्या आप सहयोग और सहानुभूति का भाव रखते हैं।

2. अपने उन छोटे-छोटे व्यवहारों को ध्यान में रखते हैं कि अन्य को आपसे किसी भी प्रकार का दुःख नहीं मिले।

3. क्या आप की आत्म-जागरुकता इस बात के प्रति है कि अन्य आपसे किस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं?

4. क्या प्रतिबद्धता के प्रति आपकी गहरी प्रतिबद्धता जैसा प्रामाणिक चरित्र है?

5.  क्या आप अपनी भूल पर दूसरों से दिल से क्षमा मांगते हैं? इसके लिए निस्वार्थ प्रेम आवश्यक है। क्या दूसरों के साथ आपका अंतर सम्बन्ध और उसकी उन्नति के लिए आपके दिशा निर्देशक की भूमिका आपसी सहयोग और जीवन-मूल्यों वाले दृष्टिकोण पर आधारित है?

वास्तव में जीवन एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सभी को समान रूप से उन्नति का सुनहरा अवसर मिला हुआ है। अन्य क्षेत्रों में प्रतियोगिता हो भी सकती है, परन्तु यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं है। (शेष भाग. . . .2)

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें। आपका तहे दिल से इस ईश्वरीय परिवार में स्वागत है, स्वागत है, स्वागत है।


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top