- पर्वतारोहियों का एक दल उन्नत चोटी पर चढ़ा जा रहा था तो दल का एक सदस्य सामने इतनी ऊंचाई को देख कांप उसने कहा मुझमें तो इतनी शक्ति नहीं जो आगे बढ़ सकूँ, तो अन्य साथियों ने कहा, अच्छा नीचे भी तो झाँका, जब उसने नीचे झाँका तो भय से घिग्गी बंध गई। फिर तो उसने आगे ही बढ़ने का निश्चय कर लिया, बढ़ता रहा और स़फलता प्राप्त कर ली।
- आप समस्याओं के सागर में हों या तालाब में। सागर को देखकर निराश न हो जायें और तालाब को छोटा जान लापरवाह भी न हो जायें। उमंग-उत्साह की नाव सागर को भी पार करा देगी किन्तु लापरवाही तालाब में भी डुबो देने के लिए बहुत है।
- समस्याओं को देखकर उसके कारण का पता करें, वृत्त की परिधि को देख भयभीत न हों, हर वृत्त का केन्द्र होता है। आजाइये केन्द्र में, निवारण अवश्य मिलेगा। हाँ, आपको केन्द्र तक तो आना ही पड़ेगा, क्योंकि केन्द्र में ही सुरक्षा है, चलती चक्की के दो पाषाण पहियों की तरह।
- ध्यान से देखिये और आत्म-विश्वास से सुलझाने का प्रयास कीजिए। थोड़े ही प्रयास में मिली स़फलता आपके उत्साह को द्विगुणित कर देगी। हर छोटी स़फलता उत्साह को कई गुना बढ़ा देती है।
- राजयोग के राजमार्ग पर शान से चलें
- आप प्रकाशपुँज आत्मा हैं तो शक्तिपुँज भी। आत्मा को अपनी श्रेष्ठ शक्तियों की स्मृतियाँ ही शक्तिशाली बना देती हैं। यह निश्चय करना कि मैं आत्मा सर्वशक्तिवान ईश्वर की सन्तान शक्तिमय हूँ....मैं सद्गुणों एवं विशेषताओं तथा शक्तियों का स्वामी हूँ यह श्रेष्ठ संकल्प ऐसा जादुई पिटारा है जिससे बड़े-बड़े चमत्कार होते हैं।
- आशा और विश्वास के बेल-वृक्ष लगायें
- संसार के घटनाक्रम तो चलते रहे हैं, चलते रहेंगे। उन्हें परिवर्तन तो नहीं किया जा सकता है किन्तु हम स्वयं को और स्वयं के दृष्टिकोण को तो परिवर्तन कर ही सकते हैं। हम अपने विचारों के उपवन में सुन्दर भावनाओं की सुगन्ध बिखेरें, हृदय की निर्मल झील में आशा के सूर्य का प्रतिबिम्ब तो देखें, उन्मुक्त गगन में उमंग-उत्साह के पंख लगाकर उड़ने का प्रयास तो करें।
- घुमायें नज़र, आकाश में उड़ते पंछियों को देखें, श्यामल मेघ में क्षितिज पर बनते इन्द्रधनुषों के मनोहारी चित्र का अक्स तो उतारें, खिलते हुए फूलों पर नज़र दौड़ायें, देखें मन्दिरों में मुस्कराती हुई दिव्य मूर्तियों को....हैं कहीं पर प्रशन के चिह्न, उदास होकर बिलखती आँखें, फिर आप उदास क्यों? निराश किसलिए? हताश कैसे?
- पीछे मुड़कर मत देखें
- प्रशन आपके मन में है तो उत्तर भी है। अन्तर्मन में इनका समाधान मिलेगा। आप अतीत की घटनाओं को कुरेद-कुरेद कर गड़े मुर्दे की भाँति उखाड़ रहे हैं, जिसे आप लौटा नहीं सकते, बार-बार लौट-लौट कर वहीं जाते हैं जिन्हें आप नहीं लौटा पाते। हाँ, वे ही भूत-प्रेत बन आपको घेरकर आपकी श्रेष्ठ संकल्प शक्ति की सम्पत्ति को लूटते हैं, स्वास्थ्य और समय को नष्ट करते हैं।
- निरन्तर गतिमान रहने के लिए ऊर्जावान बनें
- पुरुषार्थ में गति और प्रगति के लिए निरन्तर उमंग-उत्साह की ज़रूरत रहती है। सांसारिक लक्ष्यों की पूर्ति में लोभ व लाभ स्वत उत्साहित रखते हैं किन्तु आध्यात्मिक साधना में स्वयं को प्रयत्नपूर्वक उमंग-उत्साह से परिपूर्ण रखना पड़ता है अन्यथा जिस प्रकार विमान बिना ईंधन के नहीं उड़ सकता और प्राण बिना जीवन नहीं रह सकता वैसे ही उत्साह बिना साधना भी नहीं हो सकती।
- क्योंकि समय, वातावरण, परिस्थितियाँ, संसार और संस्कार हमारे आध्यात्मिक लक्ष्यों को चुनौती देते रहते हैं तथा मार्ग में ही भटकाने का प्रयास करते हैं। उनके लिए जिन्होंने विश्व-परिवर्तन का संकल्प लिया हो, सांसारिक उपलब्धियों को नकार दिया हो, तमोगुणी वृत्ति, प्रवृत्ति और प्रकृति की परवाह नहीं की हो, मायावी सुनहरी वासनाओं-तृष्णाओं को त्याग कर सभी को इनसे मुक्त कराने का निश्चय कर लिया हो उनके लिए यह तो सचमुच `जल में रह मगर से वैर' वाली बात है, उन्हें तो अपने उमंग-उत्साह की लगाम ज़रा भी ढीली नहीं छोड़नी चाहिए।
- शुभ-चिन्तन का चश्मा पहन कर रखें
- आधा ग्लास भरा और आधा ग्लास खाली वाला उदाहरण हमें भूलना नहीं चाहिए। नकारात्मक दृष्टिकोण आध्यात्मिकता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है।
- हर बात में संदेह करना, किसी पर विश्वास न रखना और स्वयं में भी निश्चय न होना, सोचिए उसका जीवन कितना तनावपूर्ण, विक्षिप्त और कलह-क्लेशमय होगा। वास्तव में इसके लिए किसी को भी दोषी भले सिद्ध करें किन्तु यह हमारे विकृत मनोभावों की परिणति है। ऐसा देखने की नज़र का चश्मा बदल लें, नज़रिया बदलने से नज़ारा बदला हुआ मिलेगा।
- व्यर्थ विचारों के झाड़-झंखाड़ स़ाफ कर दें
- समस्यायें आपके मन की अपनी ही रचना हैं, यह व्यर्थ चिन्तन का जाल है। व्यर्थ विचारों को स्वयं पर हावी नहीं होने दीजिए। उन्हें नेक चिन्तन से बदलें। हर दृश्य को साक्षी भाव से देखिए और उस पर्दे के पीछे छिपे हुए कल्याण के मर्म को समझिये। निश्चय जानिये कि जो भी घट रहा है, अच्छा ही है क्योंकि यह विश्व नाटक अति सुन्दर है। हो भी क्यों न? जिसका रचयिता स्वयं सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् है।
- ईश्वर को अपना हमसफर बना लें
- जीवन के सफर में एक अदद साथी की ज़रूरत तो सभी को होती है तो क्यों न उसका साथ लें जो किसी भी हालत में साथ नहीं छोड़ता। जो सदैव ही हमें उत्साहित रखता है, जिसके संग उमंग ही उमंग है।
- इसमें से जिसने भी ईश्वर को अपना हमसफर बना लिया उसका सफर अति सुहावना हो जाता है। उस साथी पर विश्वास रखें, वह पूरा साथ निभायेगा परन्तु उससे ज़रा भी विश्वासघात न करें अन्यथा ऐसा साथी जन्म-जन्मान्तर तक फिर कभी न पा सकेंगे। यही नहीं ईश्वर साथी के साथ को छोड़कर कल्प-कल्पान्तर एक अच्छे साथी को तरस जायेंगे।
- सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
- सावधान! ऐसे मित्रों से, जो कदम-कदम पर आपके उत्साह को ठण्डा कर देते हैं, ऐसी नकारात्मक बातों का ज़हर घोलने वाले आपके सच्चे मित्र कभी नहीं हो सकते हैं। वे जो आपके उमंग के पंखों को व्यंग बाणों से छलनी कर देते हैं आपको हतोत्साहित करते हैं, निश्चय ही उनसे परहेज़ रखने की ज़रूरत है।
- आसमानों में उड़ने की आशा पर निराशा का वज्रपात करने वाले सच्चे मार्ग-प्रदर्शक नहीं बन सकते। स्वयं को निरन्तर उत्साहित रखने के लिए शुभ-चिन्तन एवं ज्ञान की अच्छी-अच्छी बातें ही सच्चे साथी हैं। उनका ही साथ श्रेयस्कर है।
- हर रोज़ सवेरे श्रेष्ठ स्वमान के उमंग-उत्साह भरे संकल्प से दिवस की यात्रा शुरू करें मैं इस देह और दुनिया में अवतरित महान आत्मा हूँ.....मैं महान भी हूँ तो मेहमान भी.....ईश्वर की तरह ही मेरा भी जन्म और कर्म दिव्य और अलौकिक है.....मेरा जन्म साधारण कार्यों के लिए नहीं.....मुझे परमपिता का परम प्रेम प्राप्त है.....मैं खुशनसीब हूँ.....मुझे सारे संसार की मनुष्यात्माओं को ईश्वरीय मिलन कराकर खुशनसीब बनाना है.....सबकी राहों में भरी निराशा, दुःख, अशान्ति एवं अभावों की निशा में ज्ञान और प्रभु प्रेम का प्रकाश भरना है.....जो थक कर गिर गये हैं उन्हें उठ।ना है, जो चल भी नहीं पा रहे हैं उन्हें अपने साथ उड़ाना है लेकिन सफलता मेरे साथ है, क्योंकि सर्वशक्तिवान मेरे साथ है.....।
- अन्ततः दिनोंदिन संसार की बिगड़ती हालत हमें ऐसे समय का संकेत देती है जब उमंग-उत्साह के बिना एक कदम भी उठ।ना दूभर हो जायेगा। उस समय स्वयं ही नहीं अनेकों को भी उत्साहित रखने से प्राण पुण्य अर्थात् दुआएँ रक्षा कवच का काम करेंगी।
- अतः हम अपने उमंग-उत्साह को किसी भी कीमत पर ठण्डा न होने दें। शक्तिशाली बनकर रहें और अन्य आपके सम्पर्क में जो भी आते हैं, उनको भी शक्तिशाली बनाते रहें यही आज की आवाज़ है। समय की पुकार है --
- उमंगों के पंख लगाते रहो, उड़ते रहो और उड़ाते रहो।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।