भूल

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ग्यारह यात्री थे। वे सभी एक नगर से दूसरे नगर जा रहे थे। जैसे ही आगे बढ़े तो रास्ते में एक नदी गई। सभी घबरा गए कि अब नदी कैसे पार करें। किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं थी परन्तु जाना बहुत ज़रूरी था। उनमें से एक चतुर था। उसने कहा - घबराओ नहीं। नदी को अवश्य पार करेंगे।

सभी ने एक-दो का हाथ पकड़ कर नदी को पार कर लिया। फिर उस चतुर व्यक्ति ने कहा गिनती तो कर लें कि हम सभी हैं या नहीं। उसके कहने से एक ने गिनती करना शुरू किया - एक-दो-तीन-चार-पाँच.....दस। स्वयं को उसने गिनती नहीं किया और फिर चौंक कर कहने लगा कि हम तो ग्यारह थे, एक कहाँ गया?

दूसरे ने कहा - मैं गिनता हूँ। उसने भी अपने को छोड़कर गिनती किया और कहा - दस। शेष सभी ने भी ऐसे ही अपने को छोड़कर गिनती किया और दस ही गिने। सभी रोने-चिल्लाने लगे। वहाँ से एक अन्य यात्री गुजर रहा था। उसने पूछा - अरे भाई! क्यों रो रहे हो? सभी ने उसे पूरी कहानी सुना दी। उसको तो पूरे ग्यारह ही दिखाई दे रहे थे।

उसने कहा - देखो। अगर ग्यारहवें यात्री को खोजा तो? वे सभी बोले हम आपको भगवान मानेंगे। यात्री ने कहा - बहुत अच्छा, बैठ जाओ। सभी बैठ गये। यात्री ने कहा जैसे ही मैं चमाट मारूँ तो एक-दो-तीन.......कहते जाओ। यात्री ने मारना शुरू किया। एक को मारी तो उसने कहा - एक, दूसरे को मारी तो उसने कहा - दो, तीसरे ने - तीन..... इस प्रकार अन्तिम व्यक्ति ने कहा - ग्यारह। सब प्रसन्न हो गये। सभी ने उस चमाट मारने वाले व्यक्ति को कहा - सचमुच तुम तो भगवान हो।

हमें तो उन यात्रियों की मूर्खता पर हँसी आती है। परन्तु सोचकर देखें, हम स्वयं क्या कर रहे हैं। हम ग्यारह यात्री चले थे इस जीवन यात्रा पर। पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवीं आत्मा। शरीर के अभिमान में आकर पाँचों कर्मेन्द्रियों और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों की गिनती प्रतिदिन कर लेते हैं परन्तु स्वयं को अर्थात् शरीर से न्यारी आत्मा को भूल जाते हैं और स्वयं को भूलने के कारण ही इस संसार रूपी विषय वैतरणी नदी की दलदल में फँस गए हैं।

अपने वचन के अनुसार परमपिता परमात्मा शिव पुरुषोत्तम संगमयुग पर सृष्टि पर अवतरित होते हैं और सत्य ज्ञान सुनाते हैं कि - हे मानव आत्मा! तुम इन कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न हो। तुम तो पवित्र चैतन्य सत्ता हो, शान्ति तुम्हारा स्वधर्म है। काम-क्रोध आदि पाँच विकारों ने तुम्हें दर-दर भटकाया है। अब स्वयं को और स्वयं के पिता परमात्मा शिव को पहचानो तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति मिलेगी।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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