खुशी जैसी खुराक नहीं

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कहा गया है - Life is journey and happiness is long with the path. जीवन एक यात्रा है, खुशी इस यात्रा के साथ है। खुशी जीवन की अनमोल निधि है। खुशी जीवन का वह रस है जिसके बिना जीवन सूखे गन्ने की तरह लगता है। सदा प्रसन्न रहना एक बहुत बड़ी कला है।

खुशी जीवन का वह प्रभात है, जिससे आप तो आनन्द पाते ही हैं, दूसरों को भी आनन्द प्रदान करते हैं। महान दार्शनिक Shakespear ने भी कहा है कि प्रसन्नचित्त व्यक्ति अधिक जीता है हँसना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अचूक टॉनिक है। प्रसन्नता ऐसी पोशाक है जो हर मौसम में पहनी जा सकती है, इससे व्यक्ति को सन्तुष्टता और शारीरिक स्वास्थ्य मिलता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी कहा गया है -
प्रसादे सर्व दुखानां हानिरस्यो पजायते।

प्रसधेतसो हाथ बुद्धि पर्याबितिष्ठे।।
अर्थात् चित्त प्रसन्न रहने से दुःख दूर हो जाते हैं। जिसे खुशी प्राप्त हो जाती है उसकी बुद्धि तुरन्त स्थिर हो जाती है। एक मनोचिकित्सक  Norman Cousins ने एक किताब लिखी ‘‘Anatomy of illness’’  and  ‘‘Biology of hope’’ जिसमें उन्होंने बताया कि क्रोध और चिड़चिड़ापन थके हुए मन में ज्यादा उत्पन्न होते हैं जबकि खुशी मन के सारे तनाव को दूर कर देती है।

यह एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व्यायाम है जो मन को ही नहीं बल्कि शरीर की मांसपेशियों को भी तनावमुक्त कर देता है। खुशी मन की स्थिति का नाम है। वास्तव में देखा जाये तो मानव मन में ही खुशियों का असीम खज़ाना समाया है।

आवश्यकता है उस छुपे हुए खज़ाने को बाहर निकालने की। पर आज मनुष्य सच्ची खुशी ढूँढ़ने के लिए बाहर भटकता है और जितना ही वह बाहरी साधनों में खुशी ढूँढ़ता है उतना ही अंदर से खोखला होता जा रहा है।
जीवन खुशनुमा बनाने के लिए कुछ उपाय
1. अनावश्यक कामनाओं का त्याग करें - वास्तव में देखा जाये तो एक निष्काम व्यक्ति ही सच्ची खुशी की अनुभूति कर सकता है। कामनाओं से भरा मन कभी खुश नहीं रह सकता। क्योंकि कामना का स्वभाव ही दुःख, अतृप्ति असन्तुष्टता है। हमारा जीवन कामनाओं से भरकर चलता है। हम कामनायें रखते हैं, कहीं सहयोग की, कहीं स्नेह की...

पर देखा जाये तो कोई भी मनुष्य दूसरों की सर्व कामनाओं को पूर्ण नहीं कर सकता। जब हम दूसरों की सर्व कामनाओं को सन्तुष्ट नहीं कर सकते तो हम यह क्यों कामना करते हैं कि दूसरे हमारी कामनाओं को पूर्ण करें। कामनायें खुशी को छीनती हैं इसलिए गीता का भी यही उपदेश है कर्मण्येवाधिकारस्ते....

2. नकारात्मक एवं ज्यादा सोच का त्याग करें - एक बार लालबहादुर शास्त्री जी से किसी ने पूछा कि ज़हर क्या है? तो उन्होंने कहा कि किसी भी चीज़ में अति करना ज़हर के समान है। अति सोचना भी दुःख का कारण है। वास्तव में देखा जाये तो हमारे अपने ही संकल्प हमें सुख या दुःख का अनुभव कराते हैं। प्रत्येक बात की चिन्ता करना, बहुत सोचना जीवन के सुख को छिन्न-भिन्न कर देता है।

नकारात्मक सोच आत्मा की सर्व शक्तियों को नष्ट कर देता है। इसलिए याद रहे - जीवन में खुश रहने के लिए कुछ बातों को भूलना तो पड़ेगा ही अर्थात् उन्हें महत्त्व नहीं देना होगा। अगर आप हर समस्या की गहराई में जायेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। मनुष्य के जैसे विचार होंगे, वैसा ही उसका सुख होगा। वास्तव में खुशी बाहरी घटनाओं पर नहीं बल्कि अपने चिन्तन पर आधारित होती है। इसलिए श्रेष्ठ चिन्तन करो।

3. अपनी तुलना किसी के साथ मत करो - जब हम अपनी तुलना किसी के साथ करते हैं तो खुशी नष्ट होती है। हरेक का व्यक्तित्व अलग-अलग है। आप जो हैं, जैसे हैं बहुत अच्छे हैं। जो कुछ आपको मिला है उसे ईश्वर पिता की देन मान कर सन्तुष्ट रहो। जो कुछ आपके पास है उसका आनन्द लेना सीखो, सन्तुष्ट रहो। आन्तरिक खुशी, मन की खुशी का आधार है, सन्तुष्टता।

हो सकता है एक आदमी सारे दिन में 50 रुपये कमाता है पर सन्तुष्ट है और दूसरा एक दिन में 5,000 रुपये कमाता हो फिर भी खुश नहीं। पैसा खुशी का आधार नहीं है; पैसा बहुत है पर खुशी नहीं। संतोषी सदा सुखी है, संतोष सबसे बड़ा धन है।

4. खुशियों के सागर के साथ सम्बन्ध जोड़ें - ज़रा सोचें तो सही आप वास्तविक रूप में किसके बच्चे हो। खुशियों के सागर ईश्वर पिता के। खुश रहने के लिए खुशियों के सागर ईश्वर पिता से अपना सम्बन्ध जोड़ें तो आपका जीवन सुखमय बन जायेगा। खुशी ईश्वर पिता के द्वारा दिया हुआ एक अनुपम उपहार है। खुशी आपका अपना खज़ाना है। खुशी आपकी अमूल्य निधि है, निजी सम्पत्ति है।

इस सम्पत्ति को परमात्मा से प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को खुशियों की खान बना सकते हैं। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का मुख्य उद्देश्य है - मानव मन को असफलताओं की पीड़ा से बचाना, उदासी, निर्बलता से मुक्त कर, मानव मन में छुपे हुए खुशियों के खजाने को बाहर लाना।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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