घातक है मदिरापान एवं माँसाहार

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नशा चाहे जैसा भी हो, वह वांछनीय नहीं है। शराब, धूम्रपान, अफीम, गाँजा और विभिन्न प्रकार के मादक द्रव्यों के सेवन से, नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। मदिरापन के क्या नुकसान हैं और इस प्रवृत्ति को कैसे रोका जा सकता है इसका विवेचन मैं प्रस्तुत लेख में करने जा रहा हूँ -
मदिरापान से नुकसान
मदिरापान तथा हर प्रकार का नशा स्वास्थ्य के लिए घातक है। विशेषकर मदिरापान की प्रवृत्ति और भी घातक है क्योंकि यह स्वभावत मांसाहार और विषय विकार के प्रति मनुष्य को आकृष्ट करती है। कुछ व्यक्ति यह प्रश्न करते हैं कि आखिर शराब के नशे को एक खराब आदत के रूप में क्यों गिना जाता है

इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों और धर्मग्रन्थों के उद्गार मनन करने योग्य हैं। महान चिन्तक ग्लेडस्टोन के अनुसार युद्ध, अकाल और महामारी ने मिल कर मानव-जाति का इतना अहित नहीं किया, जितना अकेली शराब ने किया है।

शराब पीने के कुछ ही देर बाद, उसमें मौजूद एल्कोहल रक्त में शामिल हो कर, रक्त-कोशिकाओं के माध्यम से सारे शरीर में  फैल जाता है। एल्कोहल से हमारा तात्पर्य ईथाइल एल्कोहल से है। परन्तु बहुधा मिलावटी शराब  में अत्यधिक विषाक्त मिथाइल एल्कोहल भी पाया जाता है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की शराब में, भिन्न-भिन्न मात्रा में एल्कोहल पाया जाता है। जैसे देशी शराब में 35 से 50 प्रतिशत, बियर में 4 से 8 प्रतिशत या 10 प्रतिशत, स्प्रिट में 40 से 50 प्रतिशत, वाइन में 8 से 15 प्रतिशत पाया जाता है। स्नायुतंत्र, शराब के प्रभाव से कुन्द (डिप्रेस्ड) हो जाता है। स्नायुतंत्र के उच्च केन्द्र पर रोक लगने से मनुष्य कुछ समय के लिए खुशहाली का अनुभव करता है।

वह आसानी से क्रोधित हो जाता है, बेवजह हंसता है तथा बातें करता है और उसका व्यवहार असामाजिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह कोई भी अपराध कर सकता है। विटामिन `बी' समूहों की कमी, आँखों पर दुष्प्रभाव, हृदय गति का तीव्र होना, गैस्ट्राइटिस और अल्सर आदि का बनना, यकृत की खराबी होकर असाध्य बीमारी होने की संभावना बढ़ना आदि  शराब के नशे के दुष्परिणाम हैं।
मदिरापान महान  पाप है
जो शराब पीते हैं, वे अनर्थ करते हैं। उनके स्पन्दन सारे वातावरण को प्रदूषित करते हैं। रूस के महान चिंतक टॉल्स्टाय ने अपने एक निबंध में इस विषय में ठीक ही लिखा था। एक स्थान पर कत्ल होता है। उससे कुछ ही गज की दूरी पर एक आदमी शराब पीता है। टॉल्स्टाय का कथन था कि उस कत्ल के लिए वह शराबी भी जिम्मेदार है, क्योंकि उसके स्पन्दन उस दुष्कृत्य को करने में सहायक हो रहे थे।

धर्मशास्त्रों में इसका निषेध किया गया है। `निरूक्त' के अनुसार सात महापापों में, शराब पीना भी सम्मिलित है। (निरूक्त 6/27) `छान्दोग्योपनिषद्' में यह स्पष्ट कहा गया है कि `शराब सभी पापों का कारण है।' चरक संहिता में लिखा है-`शराब सभी कुकर्म कराने वाली और देह को  नाश करने वाली है। शराब पीने वालों पर कोई भी औषधि असर नहीं करती है।'
मदिरापान मांसाहार है
शाकाहारी परिवारों में आपने कई  नवयुवकों को यह कहते सुना होगा कि  `आज मंगलवार है इसलिए मैं शराब नहीं पीउँगा।' इसी  प्रकार कई प्रौढ़ व्यक्ति भी नवरात्रि या अन्य पवित्र माने जाने वाले दिनों में यह कहते हुए सुने जाते हैं कि `नवरात्रि में शराब नहीं पीयेंगे। इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि  शराब कोई अच्छी चीज़ नहीं है और देवी-देवताओं के पूजन में, अपवित्र होने के कारण ही लोग इसका त्याग करते हैं।

इसके अलावा कई लोग भ्रमित हो कर यह भी कहते हुए सुने जाते हैं कि वैसे तो हम पूर्णत शाकाहारी है, लेकिन शराब पीना तो मांसाहार नहीं है। यह कथन बहुत ही ग़लत है।  कुछ समय पूर्व ही मैंने  इण्टरनेट पर डब्लू डब्लू डब्लू विगन सोसाइटी का एक पोर्टल देखा था। जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अधिकांश शराब में खून, हड्डी, चर्बी और कई प्रकार के जानवरों और क़ीड़ों के हिस्सों का मिश्रण होता है। इसी प्रकार कुछ किस्मों की शराब में मछली का तेल और जिलेटिन तथा इजिंगिलास मिलाये जाते हैं। 

इजिंगिलास एक प्रकार का वह जिलेटिन पदार्थ है जो स्वच्छ पानी की मछलियों से और विशेषकर स्टरजन मछलियों के ब्लेडर से निकाल कर प्राप्त किया जाता है। इसी प्रकार, जानवरों की कोशिकाओं, चमड़ी और उनके अन्य  शरीर के हिस्सों को उबाल कर एक जेली का निर्माण होता है जिसे `जिलेटिन' कहते हैं। 
जब ये पदार्थ अधिकांश शराब में मिलाये जाते हैं तो  शराब माँसाहार ही हो जाती है। इसलिए भी कम-से-कम शाकाहारियों के लिए तो शराब  पूर्णत वर्जित ही गिनी जानी चाहिए।
मदिरापान रोकना संभव है
हर व्यक्ति का यह पहला कर्त्तव्य है कि वह स्वयं भी शराब के नशे से बचे और सभी प्रकार के नशों से होने वाले बुरे परिणामों से, अपनी नई पीढ़ी को अवगत करवाए। नशे की आदत छोड़ने के लिए केवल एक चीज की विशेष आवश्यकता है और वह है `ढ़ृढ संकल्प' केवल एक बार दृढ़ संकल्प कर लिया तो यह नशा छूट सकता है।

ऐसी आदत या लत से ग्रसित जो व्यक्ति पाये जाते हैं उनकी सामाजिक भर्त्सना होनी चाहिए। समाज के किसी भी  पद पर ऐसे व्यक्तियों को  स्थान नहीं मिलना चाहिए।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में ध्यान (मेडिटेशन) की जो पद्धति सिखाई जाती है जिसे  यहाँ राजयोग के नाम से जाना जाता है, इसके अभ्यास से व्यक्ति में ढ़ृढ संकल्प करने का मनोबल जागृत होता है। राजयोग के अभ्यास से उसे ईश्वरीय प्रेम की, स्वमान की,  अपने जीवन के सम्मान की सच्ची अनुभूति होती है।

ईश्वरीय ज्ञान की खुमारी से वह सहज ही इस उल्टे नशे से मुक्त हो सकता है। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय के देश-विदेश  के 9500 से भी अधिक सेवाकेन्द्र, निस्वार्थ भाव से इस सेवा में लगे हुए हैं। यहाँ इच्छुक व्यक्ति को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। अभी तक हजारों भाई-बहनें राजयोग के बल से गन्दे नशों की दलदल से निकल कर, सुखी, स्वर्गिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। नशामुक्त समाज का निर्माण करने के लिए यह विद्यालय कृत संकल्प है।

ये विद्यालय ही नहीं अपितु एक ईश्वरीय परिवार भी है। इस ईश्वरीय परिवार में आपका तहे दिल से स्वागत है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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