महिला सशक्तिकरण के परिप्रेक्ष्य में...... नारी का सकारात्मक परिवर्तन

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वर्तमान समय अनेक, नारी जागरण, नारी कल्याण से जुड़ी संस्थाएँ, समानता और स्वतत्रता का अधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन कर रही हैं। सन् 1889 में सर्वप्रथम `इक्वलिटी' नामक पत्रिका की संपादिका तथा नारी नेत्री बहन क्जारा जेटकिन ने साम्यवादियों की एक साधारण सभा में, अपने ओजस्वी भाषण में, महिलाओं की कार्य नियुक्ति तथा उनकी नैतिक, सामाजिक, राजनैतिक क्षमता के पक्ष में तर्क किया था। उनके भाषण का सार यह था कि एक नारी भगिनी, पत्नी, जननी होने के साथ, एक व्यक्ति विशेष पहले है, इसलिए उसकी व्यक्तिगत स्वतत्रता बनाई रखनी चाहिए।

संसार परिवर्तनशील है। नारी ने अधिकारिणी बन कर भी जीवनयापन किया है तो पराधीन बन कर भी। वेदों में लिखा है - ``या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्मैः नमस्तस्मैः नमस्तस्मैः।।'' नारी शक्ति का प्रतीक है इसलिए दुर्गा, सरस्वती आदि देवियों की भक्ति मार्ग में पूजा होती रही है। 

रामायण में भी वर्णन है कि रानी कौशल्या ने धर्म रक्षा हेतु अपने प्रिय पुत्र राम के वनवास रूपी कठोर दण्ड को मौन रह कर सहन किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ0 राधाकृष्णन जी ने कहा है कि हर युग में नारी में कष्ट सहन करने की अभूतपूर्व क्षमता है।

वह है शक्ति, शान्ति, स्नेह और सहानुभूति की देवी। महात्मा गाँधी जी ने नारी की महानता को देखते हुए कहा है कि नारी को अबला कहना उसका अपमान करना है। वह पुरुष से किसी भी प्रकार के गुणों में कम नहीं है। नारी के लिए ही यह गाया जाता है - माता जग की शक्ति महान। चाहे तू इसे इंसान बनाए, चाहे शैतान।।

शारीरिक दृष्टि से पुरुषों से कमजोर होने पर भी नारी, मनोबल की दृष्टि से सदैव पुरुषों से श्रेष्ठ, महान, शक्तिशाली है। अपने त्याग, तप और बलिदान से नारियों ने राष्ट्र को अनेक बार संकट से उबारा है। वर्तमान चारित्रिक संकट के परिदृश्य में, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी जी, जोकि अभी वर्तमान समय 101 वर्ष की हैं, ने, बाल्यकाल से ही अपने जीवन को विश्व-कल्याण तथा सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक उन्नति के लिए समर्पित कर दिया। 

आज वर्तमान समय विदेश के 140 देशों में जो भी ब्रह्माकुमारीज़ आश्रम हैं, उन सभी आश्रमों को संचालित करने में वे और उनकी टीम बड़ी कुशलतापूर्वक अपनी भूमिका निभा रहे हैं। स्वयं दादी जानकी जी के प्रवचन लोग सुनते हैं तो उनको विश्वास ही नहीं होता है कि इतनी उम्र में भी इतनी विलपॉवर आती कहाँ से होगी! आज भी वे धाराप्रवाह और ऊर्जा भरी प्रेरणाएँ सभी को देती हैं।

यह सत्य है कि किसी भी राष्ट्र के चारित्रिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक निर्माण विकास का आधार नारी है। वह श्रद्धा, सेवा, सद्भावना की केन्द्रबिन्दु है। नारी जाति की उन्नति और अवनति पर, विश्व की उन्नति और अवनति निर्भर है। नारी और नर, दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन दोनों के अधिकार और कर्त्तव्य में अन्तर रखने से ही नारी जाति को बहुत हानि पहुँची है।

विज्ञान द्वारा भौतिक प्रगति को ही विश्व की उन्नति का आधार नहीं माना जा सकता है। एक सभ्य, शिक्षित, सुसंस्कृत विश्व के समग्र विकास के लिए, भौतिकता और आध्यात्मिकता, धर्म और कर्म, स्नेह और नियम का समन्वय आवश्यक है। हर मानव का संकल्प, वाणी और कर्म महान, श्रेष्ठ, पवित्र और दिव्य मर्यादायुक्त होना चाहिए।

परन्तु दुःख की बात है कि बहुत समय से चले रहे अंधविश्वासों, कुरीतियों, भेदभावों और निरक्षता के कारण नारी का अपमान और पतन होता आया है। वह स्वयं भी आधुनिकता की दुहाई देकर चरित्रहीन बनी है। विज्ञापनों के माध्यम से उसने अपनी छवि को काला कर दिया है। समाज के पतन के लिए जिम्मेवार इन प्रवृत्तियों के बारे में गम्भीरतापूर्वक विचार करके इन्हें बदलने, सुधारने का प्रयास ज़रूरी है। 

इसके लिए सदा ही संगठित रूप से प्रयास जारी रखने होंगे। नारी समाज का एक बहुत बड़ा भाग है। उसमें सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए और अधिक प्रयत्नशील बनना पड़ेगा। एक अंग्रेज़ दार्शनिक ने माताओं की महानता के विषय में लिखा है - `परमात्मा सभी जगह नहीं हो सकते, इसलिए परमात्मा पिता ने माताओं को बनाया' (God cannot be every where, so He made the mother)

परम सौभाग्य की बात है कि नारी की अन्तर्निहित शक्तियों को जागृत करने के लिए सर्व आत्माओं के पिता निराकार परमात्मा शिव ने, साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना करके उन्हें समाज का नैतिक परिवर्तन करने के लिए अग्रणी अधिकार दिये हैं। वर्तमान समय महिलाएँ भी जागृत होकर, आत्म-सम्मान के मार्ग को अपना रही हैं।

ईश्वरीय कार्य में अपना समय, श्वास, संकल्प सब कुछ सफल कर रही हैं। दृष्टि से सृष्टि परिवर्तन की शिक्षा दे रही हैं। स्वयं के साथ-साथ पुरुषों का भी दैहिक दृष्टिकोण समाप्त करवा रही हैं। हम आत्माएँ एक पिता की सन्तान भाई-भाई हैं, सृष्टि रंगमंच है, अब हमें अपने आदि-अनादि पवित्र-स्वरूप की स्मृति से, पवित्रता, समता, विश्वबंधुत्व की स्थापना करनी है - इस संदेश से, पावन विश्व की स्थापना कर रही हैं।

अब आवश्यक है कि महिलाएँ यह दृढ़ संकल्प धारण करें कि हम शक्ति स्वरूप बन कर, मनोबल, सेवाभाव, सकारात्मक चिन्तन को अपने जीवन में बढ़ायेंगी। इस दृढ़ता को धारण करने पर ही नारी जाति, विश्व में सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रतिपादित होगी और बन जायेगी पूज्या, नमस्या, चिरवंदिता।

आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व देश-विदेश में जन-जन तक अपनी महत्त्वूपर्ण भूमिका निभा रहा है। संस्था का खुद का चैनल - पीस ऑफ माइण्ड के नाम से है, जिस पर 24 घण्टे आध्यात्मिक जाग्रति कार्यक्रम चलते रहते हैं।

संस्था के भारत में ही 9500 से भी अधिक सेवाकेन्द्र हैं, जहाँ लाखों मनुष्य आकर मेडिटेशन की विधि सीखते हैं और अपने को विभिन्न प्रकार की बुराईयों, गन्दी आदतों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। सबसे बड़ी बात कि ब्रह्माकुमारी आश्रम के सेवाकेन्द्र देश-विदेश में जहाँ-जहाँ हैं, सर्व स्थानों पर महिलाओं को ही निमित्त बनाया गया है अर्थात् एक बुद्धिजीवी महिलाओं का ग्रुप ही उस सेवाकेन्द्र को चलाता है, जहाँ पुरुष लोग आध्यात्मिक सेवाओं में मददगार तो होते हैं, लेकिन संचालन का पूरा कार्य-भार महिलाओं के द्वारा ही होता है।

और आपको यह जानकर भी बड़ा आश्चर्य लगेगा कि ये सभी महिलाएँ बाल-ब्रह्मचारिणी हैं, आजीवन ब्रह्मचर्य के व्रत को पालन करने वाली हैं। जिन्होंने मानवता की सेवा के लिए अपने आपको विश्व की सेवा में स्वयं को अर्पित किया हुआ है।

ऐसी वन्दनीया, ऐसी पूज्यनीया, ऐसी तपस्विनी महिलाओं से आप मिलना नहीं चाहेंगे? मेरा अनुभव कहता है कि एक बार तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय आकर ज़रूर इनसे मिलना चाहिए और अपने जीवन की कोई भी प्रॉब्लम है, आप इनसे शेयर (साझा) करें, अवश्य ही आपको कोई--कोई अच्छा सुझाव, अच्छा रास्ता, अच्छा समाधान मिलेगा, ये मेरा बहुत बार का पर्सनली अनुभव है।

इसी अनुभव के कारण, इस अद्भुत क्रान्ति को देखकर ही मैं भी प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय से पिछले 30 वर्षों से जुड़ा हुआ हूँ, और पिछले 20 वर्षों से पूर्ण रूप से विश्व की सेवा में अपने को मैंने समर्पित किया हुआ है और संस्था के सेवा कार्यों में मैं अपनी छोटी सी भूमिका निभा रहा हूँ।

तो आओ, मेर प्यारे-प्यारे भाईयो, बहनो आपका इस ईश्वरीय परिवार में स्वागत है, स्वागत है, स्वागत है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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