राजयोग से व्यसन-मुक्ति

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लगभग तीन दशक का व्यवहारिक अनुभव प्राप्त करने के पश्चात्, जीवन में आए आश्चर्यजनक परिवर्तन को जन-जन तक इस संदेश के रूप में पहुँचाना चाहता हूँ कि `व्यसन' पतन की जड़ हैं। आज भारत में लगभग 76% लोग किसी--किसी रूप में शराब या मदिरा का सेवन कर लिया करते हैं। अधिकतर लोगों में यह अन्धविश्वास है कि थोड़ी-सी मात्रा में रोजाना उच्च स्तर की शराब पीने से स्वास्थ्य ठीक रहता है।

वास्तव में इस तरह की भ्रांत व्याख्याओं का उदय, भारत जैसे पवित्र-आध्यात्मिक देश में, पश्चिमी देशों के कारण हुआ। पश्चिमी देशों के वातावरण, रहन-सहन तथा जलवायु के आधार पर वहाँ के लगभग प्रत्येक भोजन से पहले या साथ शराब का सेवन किया जाता है।

इसी आधार पर कुछ लेखकों तथा शोधकर्त्ताओं के विचारों के अनुसार सूक्ष्म एवं निश्चित मात्रा में, लगभग 35 मि.लि. से 68 मि.ली. रैड-वाइन (Red-Wine) या अल्ट्रा डिस्टिल्ड सुपर फाइन वाइन पीने से, हृदय की कौरोनरी धमनी में चर्बी युक्त रसायन (कोलस्ट्राल) नहीं जमता जिस कारण हृदय रोग कम होते हैं। वास्तव में भारत वर्ष की जलवायु, भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा वातावरण, इस प्रदूषित धारणा की अनुमति नहीं देते हैं।

आज के समय में अधिकतर मानव, जटिल कठिनाइयों, तनावों एवं परेशानियों आदि से पीड़ित होने के कारण `नशे' का सहारा लेकर शान्ति को जीवन भर तलाशते हैं और दुविधा में शराब या नशे को अपनी समस्याओं एवं परेशानियों का अस्थायी हल अनुभव करने लगते हैं।

अब तनावरहित जीवन जीने की प्रबल इच्छा के कारण व्यसनी, शराब को निरन्तर प्रयोग करते रहने से उसको स्थायी उपचार ही समझ लेता है और सदा शराब या नशे को त्यागने में असमर्थता व्यक्त करता है। वास्तव में अधिक और निरन्तर शराब पीने का असर प्रारम्भ में शरीर के प्रमुख अंगों पर कम दिखता है। इसका कारण है - शारीरिक अंगों की विशिष्ट संरचना तथा उनमें भरपूर सहनशक्ति का होना।

परन्तु अधिक समय शराब का सेवन करने से इन अंगों का यह विशिष्ट गुण क्षीण हो जाता है और निम्न दोषपूर्ण घटनाओं को जन्म मिलता है -

1. जब मनुष्य किसी भी रूप में, अत्यधिक दुःख, तनाव, विशिष्ट दबाव, पारिवारिक समस्या, कलह, क्लेष, उपेक्षापूर्ण व्यवहार तथा प्यार एवं स्नेह की कमी आदि से पीड़ित होता है तो समाधान, शराब के सुनहरे रंगों में खोजता है और मदिरा (शराब) को सेवन करने की मात्रा की सीमा को सहज ही पार कर जाता है।

इस प्रकार वह विवेकहीनता के कारण, काल्पनिक आत्मविश्वास को जन्म देता है और फिर दुर्घटनाओं का प्रतिबिम्ब बनता है। आज 67% दुर्घटनायें विवेकहीनता, काल्पनिक आत्मविश्वास और मद्य से प्रभावित लोगों द्वारा ही होती हैं। 

2. शराब के निरन्तर प्रयोग से अग्नाशय में सूजन (Pancreatitis) आने के कारण तथा यकृत कोशिकाओं (Liver Cells) को हानि पहुँचने के कारण शर्करा, प्लीहा, लीवर-सिरोसिस आदि घातक बीमारियों को जन्म मिलता है।

इसके अतिरिक्त पाचक अंगों में जलन तथा पेट में अम्ल की अधिकता (Burning in digestive System & acidity in Stomach) होने लगती है। अमाशय तथा आँतों में सूजन तथा इनके कोषों में घाव (Wounds) हो जाते हैं (Wounds and Swelling in Stomach and intestinal cells) इस प्रकार शराब रूपी विष के सेवन से सभी प्रमुख अँगों की कार्यक्षमता क्षीण होने लगती है।

3. मानव मस्तिष्क में विशिष्ट प्रकार के सैल्स (न्यूरॉन्स) होते हैं जो बहुधा असामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और शराब के प्रयोग से यह न्यूरॉन्स अपना कार्य करने में अक्षम हो जाते हैं जिस कारण व्यसनी, नशे के बाद असामाजिक व्यवहार करना शुरू कर देता है।

समाज में मित्रों तथा पारिवारिक लोगों को गालियाँ देकर झगड़ा करने लगता है। अन्त में व्यसनी इस विष (शराब) के प्रयोग के कारण दुःख, पीड़ा एवं कठिनाइयो के जाल में जकड़ जाता है।
 
4. बहुधा व्यसनी के मुँह एवं शरीर से दुर्गन्ध आती है और इस कारण उसे समाज, परिवार तथा मित्र-मण्डली में उपेक्षापूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है तथा अन्त में वह समाज द्वारा तिरस्कृत कर दिया जाता है।

व्यसनी पूरे समाज को ही अपना शत्रु समझने लगता है तथा उपेक्षा एवं तिरस्कार के कारण गलत-से-गलत कार्य तक को करने के लिए तत्पर रहता है। समाज के बड़े-बड़े अपराधी प्रवृत्ति वाले लोग, ऐसे व्यसनी को रुपये तथा शराब आदि का लालच देकर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये उससे गलत कार्य करा डालते हैं और अन्त में अपराधी के रूप में व्यसनी को, अपने भोलेपन में किये अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है।

5. आजकल लोग अच्छी निद्रा (Sound-Sleep) लाने के भ्रम में शराब का अधिक-से-अधिक प्रयोग करते हैं और अन्त में शारीरिक दुर्बलता, बीमारी आदि के कारण उन्हें निद्रा भी नहीं आती। क्योंकि शरीर शराब का आदि (Immunised) हो जाता है। व्यसनी सफलता के लिये, भ्रम में शराब के साथ नींद की गोलियों का सेवन शुरू कर देता है और अंत में दुःखी एवं असहाय होकर मृत्यु के आईने में मुँह देखने को तैयार हो जाता है।

यदि व्यसनी अधिक समय तक व्यसनों को इसी प्रकार प्रयोग करता रहता है तो कोरसाकोफ साइकोसिस (Korsacoff-Psychosis) नामक बीमारी से पीड़ित हो जाता है और अपनी स्मृति तथा कार्यों पर नियंत्रण खो डालता है एवं पागलपन की स्थिति में पहुँच जाता है।

अत उपरोक्त तथ्यों से यह प्रमाणित हो जाता है कि जिस प्रकार नींबू के रस की दो बूँदें उबलते दूध को चिथड़े-चिथड़े कर देती हैं उसी प्रकार शराब रूपी विष की कुछ ही बूँदें मनुष्य के मन की शान्ति, बुद्धि की तीव्रता तथा शरीर के आकर्षण को क्षीण कर डालती हैं। अत विष रूपी शराब को सुखमय जीवन में कोई भी स्थान नहीं देना चाहिए।

शराब से मुक्ति - शराब के व्यसन में जकड़ा हुआ मानव ईश्वर पिता की याद में रहकर भोजन को ग्रहण करे तथा निरन्तर नित्य सकारात्मक एवं शुभचिन्तन करे तो निश्चय ही इस नर्क से छुटकारा मिल सकता है। मैं एक नहीं कई ऐसे सज्जनों से परिचित हूँ जो काफी लम्बे समय से अपने निजी कारणों से, प्रतिदिन शराब का बहुत अधिक सेवन करते थे और शराब के बिना जीना असम्भव मानते थे।

आज वह लोग प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की शाखा से जुड़ने के बाद, अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन का अनुभव कर रहे हैं। समस्त व्यसनों एवं तामसिक भोजन आदि का पूर्ण त्याग कर चुके हैं। यह लोग इस विशाल परिवर्तन का आधार, स्नेहमयी ब्रह्माकुमारी बहनों द्वारा दी गई सहज राजयोग की प्रेरणाओं एवं आध्यात्मिक शिक्षा के अतिरिक्त ईश्वर पिता की असीम कृपा को मानते हैं।

इस प्रकार एक ही नहीं अपितु हज़ारों की संख्या में लोग प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के द्वारा सिखाये जा रहे सहज राजयोग के अभ्यास से व्यसनों से मुक्त हो चुके हैं।

अत आप भी विष रूपी मदिरा से पूर्ण छुटकारा चाहते हैं तो शीघ्रातिशीघ्र प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की किसी भी शाखा में जो आपके अपने ही शहर में हो, निशुल्क प्रवेश लेकर, सरल एवं सुखमय जीवन जीने की कला को सीख कर, व्यवहार में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाते हुए लाभ अवश्य उठायें।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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