प्रकृति की तरफ से कम-से-कम 100 साल की तकलीफ रहित (Trouble free) शारीरिक आयु की निश्चिंतता होती है। परन्तु हम लोग अपने हाथों से, अपनी बुरी आदतों के कारण इस शरीर की अवधि को घटाते रहते हैं। हालाँकि आत्मा तो अमर है परन्तु यह जो मानव देह हमें मिली है उसे स्वस्थ रखना तो हमारा प्रथम कर्त्तव्य है।
``पहला सुख निरोगी काया'' और ‘‘A sound mind in a sound body’’ जैसे वाक्य तो हम सभी ने सुन रखे हैं। कुछ बुरी आदतें जो हम जाने-अनजाने में ले लेते हैं, उनमें से एक है धूम्रपान या तम्बाकू पान। यह मनुष्य शरीर के लिए बहुत ही घातक है। जैसे-जैसे हम बीड़ी, सिगरेट, चुरूट व अन्य माध्यमों से तम्बाकू का सेवन करते हैं वैसे-वैसे हमारी जिन्दगी का कुछ क्षण घटता जाता है।
जैसे-जैसे यह बीड़ी या सिगरेट जल-जल कर छोटी होती जाती है ठीक वैसे ही हमारी जिन्दगी का एक-एक क्षण छोटा होता जाता है। किसी ने ठीक की कहा है कि धूम्रपान का एक-एक कश, जिन्दगी के हर एक कश से जुड़ा हुआ है। अब हमें चुनना है कि कौन-सा कश हमें चाहिए?
हमारे बुजुर्ग हमको एक उदाहरण से धूम्रपान का शरीर पर कैसे प्रभाव पड़ता है यह समझाते थे। यह बड़ा ही साधारण प्रयोग है - अपनी आँखों से धूम्रपान के कुप्रभाव को अपने शरीर पर पड़ते हुए देखने का। सिगरेट या बीड़ी का एक कश खींच कर एक सफेद रूमाल पर छोड़िये और देखिये कि यह धुआँ किस तरह रूमाल को पूरा काला कर देता है।
ठीक इसी प्रकार सिगरेट या बीड़ी का प्रत्येक कश सीधे हमारे फेफड़े में जाकर उसको काला कर देता है और इस प्रकार एक के बाद एक कश प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रतिमाह, प्रतिवर्ष हमारे फेफड़े को छलनी बना देता है।
इससे कई प्रकार की बीमारियाँ हमारे शरीर पर आक्रमण करती हैं जिनमें टी. बी. व कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ भी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन बीमारियों को हम स्वयं ही बुलाते हैं। यह हमारे हाथ में है कि हम इनसे कितना दूर रह सकते हैं। पर जिन व्यक्तियों में संकल्प की कमी है वे इसे अपने व्यक्तित्व की एक कमज़ोरी मानते हैं।
पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव - हमारे उपर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव कई क्षेत्रों में पड़ा है और बहुत-सी अच्छी-बुरी आदतें हमें धरोहर के रूप में मिली भी हैं। संग का असर तो आये बिना नहीं रहता। कभी जब हम अपने आपको नहीं जीत पाते हैं तो हम फिर दूसरों को दोषी ठहराने लगते हैं।
पर जिन पाश्चात्य देशों में महिलायें तक धूम्रपान की आदी थीं, उन्हीं देशों ने अब इस बुरी आदत के विरुद्ध युद्ध छेड़ा है और अब सभी देश इसके खिलाफ कानून बनाने की ओर अग्रसर हैं।
सरकार का प्रयास - हमारी सरकार ने भी इस दिशा में काफी सराहनीय कदम उठाये हैं। सरकारी प्रतिष्ठानों, सरकारी वाहनों व यातायात के अन्य साधनों जैसे कि हवाई यात्रा, रेलवे इत्यादि में धूम्रपान मना कर दिया गया है। सिगरेट के हर पैकेट पर संवैधानिक चेतावनी तो छपी ही रहती है - ``सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है''।
परन्तु अब सरकार ने अन्य प्रकार से, विज्ञापन पर भी रोक लगा दी है जिसके फलस्वरूप हमारे देश की सिगरेट बनाने वाली सबसे बड़ी कम्पनी आई. टी. सी. ने क्रिकेट मैचों के लिए देश-विदेश में दी गई अपनी सभी Sponsorships वापस लेने की पेशकश की है। यह बड़ा ही साहसिक व सही दिशा में लिया गया कदम है।
धूम्रपान कैसे छोड़ें - विभिन्न व्यक्ति इसके बारे में विभिन्न सलाह देते हैं। परन्तु इसके लिए सबसे पहले ज़रूरी है अपना, खुद का मनोबल व दृढ़ संकल्प। संकल्प से सब-कुछ सम्भव है और संकल्प दृढ़ है तो फिर तो कहना ही क्या! अत धूम्रपान त्याग करने का एक ही उपाय है और वह है दृढ़ संकल्प।
राजयोग केन्द्र का योगदान - धूम्रपान व अन्य बुरी आदतों का त्याग कराने में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सभी केन्द्र का भारी योगदान है। इनकी शरण में आ जाने के बाद हर व्यक्ति अच्छी आदतें पाता है और बुरी आदतें छोड़ता है।
वास्तविक समझ आ जाने के बाद उस व्यक्ति में इतना मनोबल और दृढ़ संकल्प आ जाता है कि केवल वह अपना ही नहीं बल्कि अपने अन्य साथियों का भी धूप्रपान छुड़वा देता है। तो आइये, आज हम संकल्प लें कि हमको धूम्रपान छोड़ना है। और दूसरों को भी इससे मुक्ति दिलानी है। राजयोग केन्द्र की शिक्षाओं के सहयोग से अपना मनोबल बढ़ाने के लिए हमें कदम उठाना है।
जो लोग इस बुराई का शिकार नहीं हैं उन्हें भी राजयोग की मधुर शिक्षाओं द्वारा आत्म-शक्ति को बढ़ा लेना चाहिए। क्योंकि जीवन के नाजुक क्षणों में यह अलौकिक शक्ति ही सम्बल बनती है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।