नारी जब शिव-शक्ति बने

2


    
आज से कुछ दशक पहले महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी थी, हालांकि वर्तमान में भी कोई बहुत अच्छी और सन्तोषजनक तो नहीं है किन्तु नारी जागृति में आई थोड़ी-बहुत सुगबुकाहट इस दिशा में सकारात्मक कदम है। यह पूर्णतया सत्य है कि अगर विश्व की यह आधी आबादी सचमुच ही अपनी गरिमा, सम्मान तथा अधिकारों के प्रति सचेत हो जाये तो महिला सशक्तिकरण तो क्या, महिलाओं द्वारा पुरुषों एवं समाज का भी सशक्तिकरण हो सकता है।

और यह बात भी सत्य है कि महिलाओं की बेहतर स्थिति ने समय-समय पर पुरुष प्रधान समाज को दिशा दिखाई है, लेकिन कृतघ्न समाज ने उसका बदला जैसा दिया वह हमारे सामने स्पष्ट है। महान नारियों ने ही ऐसे-ऐसे महापुरुष गढ़े, जिन्होंने समाज की दशा और दिशा को मोड़ दिया। उनका स्मरण आते ही सम्मान श्रद्धा से हमारा शीश झुक जाता है।

    आज पुन विश्व एक परिवर्तन के मोड़ पर खड़ा है। दिग्भ्रान्त होकर सभी एक-दो से मार्ग पूछ रहे हैं या फिर वर्तमान के लिए परस्पर कटु दोषारोपण करते हुए दिख रहे हैं। ऐसे समय पर इन्हें ऐसे मसीहा की तलाश है जो इन्हें इनकी सच्चाइयों से मिला सके, उनका आत्मसम्मान बढ़ाये, राह दिखाये तथा हो सके तो चलकर मंज़िल तक भी लेकर जाये।

महिला सशक्तिकरण की बात उठते ही ज़ेहन में यह सवाल कौंध जाता है कि आखिर सशक्तिकरण के मायने क्या हैं। क्या महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शारीरिक रूप से ही शक्तिशाली होना चाहिए या नैतिक और आध्यात्मिक रूप से भी। क्या नैतिक आध्यात्मिक रूप से सशक्त होने के लिए महिलाओं में आज की भौतिकवादी चकाचौंध से अप्रभावित रहने की इच्छा शक्ति है?

भूमण्डलीकरण के युग में, गलाकाट प्रतिस्पर्धा में क्या वह पुरुषों की समानता करना चाहती है अथवा उनसे भी अधिक शक्तिशाली बनना चाहती है? क्या वह पूर्वाग्रहों, प्रचलित मान्यताओं, रूढ़ियों परम्पराओं के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करने को तैयार है?

क्या सदियों से पुरुषों द्वारा प्रताड़ित होने, निन्दनीय रहने तिरस्कृत किये जाने की परिपाटी के खिलाफ उठने और ``यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते'' वाली स्वर्णिम युग की नारी का आदर्श प्रस्तुत करने को वह तैयार है

    क्या वह अबला, भोग्या, पराश्रिता और भीरू जैसी तथाकथित छवि को छोड़ कर अपने शिव-शक्ति वाले दैवी स्वरूप को धारण करना चाहती है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर ``हाँ'' है तो दूसरा प्रश्न उठता है कि कौन किसका सशक्तिकरण करे? क्या महिलाओं को पुरुष सशक्त बनायें या महिलायें ही महिलाओं को? या दोनों ही मिल कर महिलाओं को यथार्थ पद, प्रतिष्ठा गौरव प्रदान करने में सहयोग करें?

आखिर पहल कौन करे और कैसे? कहीं नारी स्वतत्रता अथवा नारी मुक्ति का मतलब नारी स्वच्छन्दता तो नहीं है? परदे की कुप्रथा शनैःशनैः समाप्त हो रही है, घूंघट की नारी बाहर रही है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि तन ढँकने भर का भी परदा रह जाय। घूँघट की रस्म भी हो तो भी अपनी शालीनता की सीमा का तो उल्लंघन हो।

माना कि गत दिनों की सामन्ती परतत्रता खत्म हो रही है बेड़ियाँ टूट रही हैं किन्तु फैशनपरस्ती आधुनिका बनने की मानसिकता उन बेड़ियों से कम नहीं है। ये तो लोहे की ज़ंजीरों को तोड़ कर सोने की ज़ंजीरों में और फिर रेशमी रस्सियों में बंधने जैसी बात है।

    कहने का भाव यह है कि जब तक नारी जगत को उसके उच्च आदर्शों से नहीं जोड़ा जाता उसे पवित्रता, शील, मर्यादा और स्वतत्रता तथा मुक्ति का मतलब नहीं मालूम होता है, स्वावलम्बन, शिक्षा, समानता का सही स्वरूप उसके सामने स्पष्ट नहीं, उसे अधिकार और कर्त्तव्य की परिभाषा जानने के साथ आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनने-बनाने का अवसर प्राप्त नहीं होता तब तक महिला सशक्तिकरण के सारे नारे थोथे एवं छलावे ही समझे जायेंगे।

    बहरहाल, नारी समाज को सक्षम-समर्थ बनाने एवं उसे पुन देवीपद पर प्रतिष्ठित हुआ देखने वाली संस्थाओं अथवा व्यक्तियों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि क्या वे अपनी माता-बहन, पुत्री अथवा पत्नी के प्रति उदार हैं, इनके प्रति कितनी सम्मान की भावना है, क्या वे उनकी भावनाओं की कद्र करते हुए उनको उनके हक दिलाने के पक्षघर हैं, क्या गर्वित पुरुष-समाज नारी को अपने से श्रेष्ठ एवं सम्मानित देखने को सचमुच ही तैयार है या मंच पर नारी मुक्ति का भाषण देने वाला अपने घर में उन्हें भेड़-बकरियों की तरह पालता है?

    सच्चे अर्थों में यदि सभी महिलाओं की बेहतर स्थिति चाहते हैं तो महिलाओं सहित हम सभी को आध्यात्मिकता की सुखद, शीतल एवं सुरक्षित छाया में आना होगा। आध्यात्मिकता का अर्थ है स्वयं के अस्तित्व को समझना, अपने में समाहित अद्भुत शक्तियों को पहचानना, भौतिक देह और दुनिया के धरातल से ऊपर उठ अपनी महानताओं को स्वीकार करना एवं उसका ही स्वरूप बन जाना, साथ-ही-साथ परमसत्ता से सम्बन्ध जोड़, निरन्तर ऊर्जावान रहना।

आध्यात्मिकता के बिना नारी शक्तिशाली नहीं हो सकती। प्राचीन काल में भी उन्हीं नारियों ने आदर्श प्रस्तुत किये जिनमें धर्म, तप, त्याग, संयम, पवित्रता सतीत्व तथा नैतिकता की अजस्र धारा प्रवाहित हो रही थी।

    आध्यात्मिक बनने का अर्थ धर्म भीरू बनना, कर्त्तव्य पलायन करना, कर्मकांड करना रूढ़िवादी बनना या दकियानूसी विचारों का होना नहीं है। बल्कि स्वयं को नर-नारी के भान से मुक्त महान आत्मा निश्चय करना है। धर्म, जाति, लिंग, भाषा के भेद भाव से पूर्णतया स्वतत्र होना हमें आध्यात्मिकता ही सिखाती है। आध्यात्मिकता द्वारा नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को सम्बल मिलता है।

यह आध्यात्मिकता के अभाव का ही दुष्परिणाम है जो भोगवादी संस्कृति ने नर-नारी को नर्क के गर्त में ढ़केल दिया है। पाश्चात्य संस्कृति की आँधी ने एक तो पहले ही भारतीय समाज की गरिमा को धूमिल करके अन्धानुकरण को विवश कर दिया है, बाकी रही-सही कसर सिनेमा उद्योग ने पूरी कर दी है। पत्रकार हो या चित्रकार, गीतकार हो अथवा साहित्यकार, हर वर्ग नारी को सजी-धजी गुड़िया बना कर, विकृत लोकमानस को और भी विकृत कर रहा है।

पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाली आकर्षक शरीर-मुद्राओं एवं भाव-भंगिमाओं के बिना जैसे प्रकाशन व्यवसाय ही खतरे में हो। चित्रकारों को भी चित्रित करने के लिए इसके सिवा कुछ शेष नहीं रहा है। सिनेमा उद्योग तो मनोरंजन के नाम पर कामाचार एवं भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है। फूहड़, द्विअर्थी, अश्लील गीत, नृत्य एवं संगीत ने तो नर्क का बाजार ही गर्म कर रखा है। आधुनिक नारी पुरुष प्रधान समाज के छलावे में आकर इसी छवि को अपना वास्तविक रूप समझने लगी है।

    सिनेमा - संस्कृति के चलते चरित्रवान् बनने की बात बेमानी तो होगी किन्तु सच्चरित्र की गरिमा, महत्ता और उपयोगिता कभी कम हुई थी होगी। आवश्यकता है जनमानस में चरित्रवान चित्र चित्रित करने की। कहते हैं - जैसा चित्र, वैसा चरित्र। बहुत नहीं तो कम-से-कम हम सभी अपने घरों में सिनेमा के नायक-नायिकाओं के चित्रों को तवज्जो नहीं दें, धार्मिक-ऐतिहासिक अथवा प्राकृतिक सौन्दर्य वाले चित्रों को ही अधिक प्रश्रय दें। इससे हमारी मनोवृत्तियों में अच्छे विचारों प्रेरणाओं का प्रवाह होगा। इस संदर्भ में वीर माता जीजाबाई और शिवाजी का प्रसंग हमें नहीं भूलना चाहिए।
 
    शिव-शक्ति बनने का अभिप्राय - शिव परमकल्याणकारी से सम्बन्ध जुड़ना एवं सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् का अभीष्ट पथ चुनना तथा आत्मा पर छाये कषाय-कल्मष को समाप्त करने का शिव संकल्प लेना। साथ-ही-साथ कमज़ोरियों, बुराईयों एवं क्षुद्रताओं पर असुर संहारिणी शक्ति बन जाना।

इस भागीरथ योजना को मूर्त रूप देने के लिए एक नई दृष्टि, नई सोच एवं दूरदर्शिता चाहिए। जीवन-जगत पर, व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर तथा समय एवं प्रकृति पर एक सहज सुलझा हुआ आध्यात्मिक एवं नैतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

हो सकता है कि शुरू में इसके लिए कई उत्सर्ग करने पड़ें, कितनी ही आलोचना, व्यंग्य एवं कटाक्ष सुनने पड़ें, कितने ही विरोधों-प्रतिरोधों का सामना करते सहिष्णु भी बनना पड़े तो भी सफलता में संदेह लाये बिना निर्भय होकर आगे बढ़ना होगा तभी नारी शिव-शक्ति बन सकेगी।

शिव-शक्ति के मायने ही हैं - शिव की शक्ति से ओतप्रोत सच्चरित्र, सुलक्षणा एवं दिव्यगुणधारी बनना, कि स्वयं को साधारण स्त्राr, अबला नारी, पुरुष के हाथों की कठपुतली, वासनाओं की गुड़िया अथवा ``पतिपरमेश्वर'' कह आसुरी प्रवृत्तियों की पूजा करने वाली निरीह महिला मानना।

    वास्तव में इसके लिए स्वयं की दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ एक क्रान्तिकारी कार्यक्रम, संगठित योजना एवं आध्यात्मिकता को प्रश्रय देने वाले संगठन के सहयोग की आवश्यकता है जो नारी हितों की रक्षा सम्मान का पोषक हो। इस सम्बन्ध में यह अत्यन्त सुखद आश्चर्य का विषय है कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ही एक मात्र ऐसी संस्था है जो माताओं, बहनों द्वारा संचालित है।

लाखों-लाखों की तादाद में भारत एवं विदेशों में भी नर-नारी में ब्रह्मचर्य एवं पवित्रता का उद्घोष गुंजित है। यह कार्य स्वयं निराकार शिव परमात्मा, प्रजापिता ब्रह्मा के मानवीय तन में अवतरित होकर करा रहे हैं। अनेक ब्रह्माकुमारियाँ एवं ब्रह्माकुमारों ने महिला सशक्तिकरण का बीड़ा उठाया है लेकिन यह महान् कर्त्तव्य सरकारी खानापूर्ति दिवास्वप्न नहीं बल्कि यथार्थ के धरातल पर सम्पन्न हो रहा है।

पिछले 85 वर्ष से यह महती पुण्यमयी प्रभु योजना चल रही है। अब नारी शिव-शक्ति बन कर संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन को निकल पड़ी है। एतदर्थ, इसमें सर्व नारी जगत को आगे बढ़ कर सहयोग-सहकार से स्व-कल्याण विश्व-कल्याण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top