अल्लाह के अवतरण पर ईमान करना हर एक मुसलमान का फर्ज है। ईमान करना पड़ता है कि कयामत के दिन अल्लाह आकर सभी के सामने हाजिर होंगे। वे आकर सब बन्दों को कब्र से उठाकर उनका सारा हिसाब-किताब चुक्ता करेंगे।
जिस स्थान पर सभी को इकट्ठा किया जायेगा उस स्थान को हश्रे मैदान कहा जाता है और इस सिद्धान्त पर पूरा ईमान किसी को नहीं आता तो इस्लामिक दर्शनानुसार उसको मुसलमान नहीं कहा जाता है। कुरान में इस सिद्धान्त को ही नफसे लव्वामा कहा जाता है। (सुरकियाम) परन्तु एक बात कहीं भी स्पष्ट नहीं की गई कि कयामत के दिन हाजिर होने वाले अशरीरी नूर किस रूप में अवतरित होंगे?
और दूसरी बात यह है कि आदम और बीबी हव्वा के ज़माने से लेकर कयामत तक कई करोड़ लोग जन्म-मरण के चक्कर से गुजरते हैं। उन सभी को, चाहे वे आज जिन्दा न भी हों, एक स्थान पर इकट्ठा किया जाना, कैसे सम्भव होगा?
पहली बात इस्लाम धर्म में वर्णित कयामत के दिन हर एक मुर्दा फिर जिन्दा होगा के सिद्धान्त से पुनर्जन्म पर ईमान करने की प्रेरणा मिलती है। हाँ, पुनर्जन्म तो होता है, लेकिन मरे हुए शरीर का नहीं। शरीर के अन्दर बसी आत्मा का जन्म होता है।
सृष्टि के प्रारम्भ में जनसंख्या कम थी, जो आत्मा उस समय जन्म लेती है वह फिर-फिर जन्म लेती रहती है। उस समय में जिन आत्माओं का जन्म नहीं होता वे बाद में इस सृष्टि पर आती रहती हैं और दिन-प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ती जाती है। इसलिए सृष्टि के आदिकाल अर्थात् सतयुग में 9 लाख मात्र, त्रेतायुग के अन्त में 33 करोड़ और द्वापर-कलियुग में बढ़ती हुई जनसंख्या इतनी हो गई कि आज 600 करोड़ से भी ज़्यादा हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि हर जन्म में शरीर बदलने वाली आत्मा वही रहती है।
एक बार जन्म ले चुकी आत्मा का इस धरती पर बार-बार जन्म होने के कारण वही आत्मा कयामत के दिन तक सृष्टि पर बच जाती है। कोई भी आत्मा कब्रदाखिल होकर सृष्टि-चक्र से छिप नहीं सकती। इसलिए कयामत के दिन हर एक इंसान के मैदान में इकट्ठा होने का भावार्थ यही है कि सृष्टि के प्रारम्भ से अंत तक के सभी पार्टधारी उस समय धरा पर उपस्थित होते हैं।
इसी कारण कयामत के समय सारे जहान को एक विशाल मैदान के रूप में दर्शाया गया है, जिसको कुरान में हश्रे मैदान कहते हैं। वह कोई विशेष मैदान नहीं है। अल्लाह पाक आज यही सिद्धान्त अपने बन्दों को स्पष्ट रूप से समझा रहे हैं। ज्योति काया वाले अशरीरी खुदा को बन्दों के सामने हिसाब लेने या बात करने के लिए शरीर धारण करना पड़ता है।
नहीं तो अव्यक्त ज्योति से बात करेंगे कैसे? इसलिए कयामत से थोड़ा समय पहले वे एक बुजुर्ग, सब मजहब के प्रति अनुरागी, धार्मिक व्यक्ति को चुनते हैं और उनके तन में इस धरा पर अवतरित होते हैं। यही व्यक्ति बहिश्त या स्वर्ग में भी श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेता है। उस भागीरथ के मुख-कमल से खुदा का रूहानी ज्ञानामृत उसके बन्दों के प्रति निर्गत होता है।
इस भागीरथ को ही आदि पिता ब्रह्मा कहा जाता है। कुरान में उल्लेखित आदम और बाइबिल में उल्लेखित एडम वही है। स्थूल दृष्टि में तो इस धरा पर खुदा की जगह भागीरथ अर्थात् आदम (ब्रह्मा) ही दिखाई देते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता
शास्त्र में वर्णित महाभारी महाभारत युद्ध के वक्त श्रीकृष्ण का गीता ज्ञान देना या कुरान में वर्णित कयामत के दिन खुदा का प्रकट होना हमें अपनी आँखों से वर्तमान में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आज के तमाम इंसानों में इंसानियत खत्म हो चुकी है। ब्रह्मास्त्र आदि लेकर वे लड़ाई कर रहे हैं। मनुष्य आज इतना बदतर बन चुका है कि उसकी तुलना मुर्दे से ही कर सकते हैं।
इसलिए आज संसार में जो कयामत देखने को मिल रही है, उस वातावरण में खुदा खुद आकर ब्रह्मा के श्रीमुख कमल से पवित्र ज्ञान दे रहे हैं। साथ-ही-साथ इस ज्ञान के आधार पर बन्दों के कर्मों का हिसाब-किताब करके सतयुग या बहिश्त में भेज रहे हैं।
इसलिए परमपिता परमात्मा अल्लाह तआला ने सभी धर्मों की समस्त रूहों को, ईश्वरीय ज्ञान व आध्यात्मिक शिक्षा को ग्रहण करने और सहज राजयाग के अभ्यास के लिए एक रूहानी दावत दे रखी है। तो आइए, खुदा की इस रूहानी दावत को सहृदय स्वीकार करें और बहिश्त को अपने जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त करें।
आप सभी का प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।