परमपिता परमात्मा शिव ने, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के माध्यम द्वारा सत्य उद्घाटित किया है कि एक कल्प के 5,000
साल के सृष्टि-चक्र (World-Drama) में पहले 2500 साल तक समस्त विश्व में धर्मसत्ता और राज्यसत्ता एक के हाथ में ही थीं, उस समय के युग को सतयुग अथवा वैकुण्ठ अथवा स्वर्ग कहा जाता था। वर्तमान समय काल्पनिक लगने वाली उस स्वर्गिक दुनिया में धर्म का अर्थ था - शान्ति, सत्य, अहिंसा और आपसी स्नेह।
सर्वधर्मों की मनुष्यात्माओं के परमपिता निराकार परमात्मा शिव ने स्वयं उस `आदि सनातन देवी-देवता' धर्म की स्थापना की थी। इसलिए उस युग में सभी मनुष्यों के पास सुख-शान्ति, पवित्रता और स्नेह था। उसके 2500 वर्ष के बाद इतिहास ने करवट बदली। एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया।
हिन्दू धर्मशास्त्रा में जिसे स्वर्ग (सतयुग), मुसलमानों के यहाँ जन्नत (बहिश्त) और ईसाई धर्मशास्त्रों में जिसे पैराडाइज़ (paradise) कहा गया है वह दुनिया जैसे गुम हो गई। धर्म और संप्रदायों की स्थापना के लिए अब अलग-अलग धर्मस्थापक आते गये।
उनका उद्देश्य बहुत अच्छा था। परन्तु धीरे-धीरे उनके धर्म के अनुयाइयों में आपसी मनमुटाव बढ़ने से सत्य, अहिंसा, प्रेम, पवित्रता, शान्ति का स्थान हिंसा, ऩफरत, अपवित्रता, अशान्ति, लालच और कट्टरता ने ले लिया।
आज विश्व विभिन्न सम्प्रदायों की कट्टरता की वजह से विनाश के कगार पर आकर खड़ा है। सम्प्रदायवाद से ग्रसत लोग अपने विचारों को `येन-केन-प्रकारेण' दुनिया पर थोप देना चाहते हैं। ऐसी परिस्थिति में अब ज़रूरत है सभी सम्प्रदायों में जो मूल समान तथ्य हैं, उनको फिर से उजागर करने की, तब ही पूरे विश्व में एक सच्चा धर्म तथा एक राष्ट्र स्थापित हो सकेगा। आइये, संसार में प्रचलित मुख्य धर्मों की मुख्य-मुख्य बातों पर एक नज़र डालें।
हिन्दू धर्म
सबसे प्राचीन और प्रथम धर्म, आदि सनातन देवी-देवता धर्म के बदले हुए रूप हिन्दू धर्म के आज इतने विभिन्न सम्प्रदाय हैं, जो गिनती करना भी मुश्किल है। भारत, धर्म निरपेक्षता के नाम पर सभी सद्गुणों से निरपेक्ष होता जा रहा है। धर्मशास्त्रा में नीति, चरित्र, त्याग और वैराग्य की जो बातें कही गईं हैं, उनको एक किनारे में रख दिया गया है।
सत्य, अहिंसा, पवित्रता, शान्ति, स्नेह की चैतन्य मूर्ति गाँधी बापू के राष्ट्र में कथनी-करनी अलग हो गई हैं। वहम-अन्धश्रद्धाओं का बाज़ार गर्म है। आस्तिक-नास्तिक की व्याख्यायें बदल गईं हैं। धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर छुरियाँ चल रही हैं। साधु-सन्तों की साधना, गद्दी और विलासिता में डूब गई है। लोगों के विकार और व्यसन दूर करने का दिखावा करने वाले खुद विकारों की दलदल में फँसे हुए हैं।
धर्म के स्थान, अधर्म के अड्डे बनते जा रहे हैं। धर्म के नाम पर भ्रष्टाचार, व्यभिचार, दुराचार-अनाचार हो रहा है। आज समस्त विश्व में ईसाई और इस्लाम के बाद बड़ी संख्या वाला यह धर्म देवत्व गवांकर अपनी आन-बान-शान से दूर जा चुका है। ``यत्र पूज्यन्ते नार्यस्तु रमन्ते तत्र देवता'' के सूत्र को मानने वाले इस धर्म के देश में नारी का भी दहन किया जाता है।
`नारी को नर्क का द्वार कह कर' उसे पतन की ओर ले गये हैं। `वन्दे मातरम्' के राष्ट्र में बहनें-मातायें अपमानित और शोषित हैं। यही नहीं वर्तमान समय तो जहाँ-तहाँ देखो, सुनो, पढ़ो बस यही कि माताओं-बहनों के साथ खुले आम, रास्ते चलते दुष्कर्मों को अंजाम दिया जा रहा है और यह बात दुष्कर्मियों की यहीं तक सीमित बन कर नहीं रह गई अपितु दुष्कर्म करने वाले उम्र, नातेदारी, रिश्तेदारी आदि तक को भी अपने दिलोदिमाग से भुला चुके हैं, जैसे कि वे नर रूप में पिशाच बन चुके हों और इन्हीं पिशाचों के द्वारा आये दिन मानवता शर्मसार हो रही है,
रिश्ते-नाते तार-तार हो रहे हैं, यह आज की दुनिया का बहुत ही दुःख भरा और निराशा भरा समाचार है, जिस दुनिया में हम, आप सभी रहते हैं। परन्तु इस धर्म की एक विशेषता यही रही है कि इसने कभी किसी का धर्म परिवर्तन, हठ के द्वारा नहीं किया है।
मुस्लिम धर्म
एशिया खण्ड के अरबस्तान मुल्क में मुस्लिम धर्म का उद्भव हुआ। ``परमात्मा एक है और मनुष्य मात्र समान हैं'' ऐसा सरल और महान सत्य बताने वाले पैगम्बर, मुस्लिम धर्म के स्थापक थे। इस्लाम (मुस्लिम) माना शान्ति, सलामती और जगत के बादशाह परमात्मा की शरण में जाना। इसकी धर्म पुस्तक `कुरान शरीफ' में लिखा है, ``मुस्लिम माना जिसने खुदा और व्यक्तियों के साथ शान्ति बनाई है।''
ऐसे इस्लाम ने शान्ति, सलामती और विश्वबंधुत्व की भावना विश्व को दी। अरबस्तान में उस समय अन्धश्रद्धा, शुकन-अपशुकन, भूत-प्रेत, कुप्रथा जैसी बुराइयाँ फैली हुई थीं। पशुओं और मनुष्यों की बलि चढ़ाकर हिंसात्मक यज्ञ, शराब, गुलाम प्रथा और नारियों के साथ अमानुषी व्यवहार होता था। ``सच्चा जमाई कब्र है'' ऐसा मानकर पुत्री को मार डाला जाता था।
एक व्यक्ति कई पत्नियाँ रख सकता था। ऐसी परिस्थिति में मुहम्मद साहब ने आध्यात्मिक क्रान्ति की मशाल जगाई। `एक ईश्वर, एक जाति, एक धर्म पुस्तक', के सूत्रों से बुराइयाँ दूर करने का प्रयास किया। उसमें सफल भी रहे। मुस्लिम भाई कुरान के साथ हदीस का भी पठन करते हैं। एक ईश्वर में श्रद्धा, पवित्र जीवन नीति के सिद्धान्त, बच्चों और नारियों के प्रति अच्छा व्यवहार, यही इस धर्म की मूल बातें हैं।
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने लिखा है, ``कुरान में किसी भी धर्म वाले से ऐसी इच्छा नहीं रखी गई है कि वह अपने धर्म को त्याग कर इस्लाम धर्म को अपना ले, क्योंकि सभी धर्मों की असली शिक्षा तो एक ही है।'' कुरान के अनुसार देखें तो सुख-शान्ति-पवित्रता की इच्छा रखने वाला हर व्यक्ति मुस्लिम है।
सिर्फ कपड़े बदलने से, मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने से ही मुस्लिम नहीं बन सकता। मुहम्मद साहब ने जिस परिस्थिति को बदलने के लिए आध्यात्मिक क्रान्ति की थी उससे बदतर स्थिति फिर से आज निर्मित है। हिंसा से धर्म परिवर्तन, नारियों का अपमान, पशु-मनुष्य की हिंसा, ये बातें निकल जाएँ तो यह धर्म पुन अपनी महानता को प्राप्त कर सकता है। कुरान में लिखा है ``न पशु और न मनुष्य का खून अल्लाह तक पहुँच सकता है।''
सिक्ख धर्म
भारत में, विशेष करके पंजाब में जब पापाचार-अनाचार पनपने लगा था तब गुरु नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना कर, हिन्दू-मुस्लिम दोनों को सन्मार्ग दिखाया था। निर्भयता और भ्रातृभाव का उपदेश देकर कहा था कि परमात्मा की नजर में सभी समान हैं। उस समय गुरू नानक देवजी का इतना प्रभाव हिन्दू-मुस्लिम पर था कि एक कहावत उनके नाम से प्रसिद्ध हो गई - ``गुरू नानक शाह फकीर, हिन्दू का गुरु, मुस्लिम का पीर''।
क्रिश्चिन धर्म
`मानव सेवा ही प्रभु सेवा' और `जो मानव दूसरे मानव को प्यार करता है वो ही ईश्वर को प्यार कर सकता है' इस सूत्र से ईसा मसीह ने ईसाई धर्म की स्थापना की। वर्तमान में इस धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में भी अनाचार-पापाचार पनप रहा है।
ईसा ने तो सत्य, प्रेम, श्रद्धा का पाठ पढ़ाया था पर आज उनका उल्लंघन हो रहा है। तलवार की ताकत पर या लोभ-लालच देकर कार्य किए जा रहे हैं। खून नहीं, व्यभिचार नहीं, दुश्मन के उढपर भी प्यार-ये बातें सिर्फ बाइबल के पन्नों पर ही रह गई हैं।
जैन धर्म
जैन धर्म की स्थापना के समय भारत में जो दो धर्मप्रवाह थे उनमें श्रमण परम्परा ने अपने आराध्य देवों को `जिन' नाम दिया है और उनके अनुयायी `जैन' कहलाते हैं। `जिन' माना कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला। जैन सम्प्रदाय में ऐसे चौबीस जिन हुए, उनमें से 24वें महावीर स्वामी थे। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - ये 5 महाव्रत इस धर्म में माने जाते हैं।
जैन धर्म दूसरों के साथ युद्ध करने के लिए नहीं कहता बल्कि अपनी बुराई, विकार, कमी-कमज़ोरियों के साथ युद्ध करके उनको समाप्त करने के लिए कहता है। इस धर्म ने अपनी गरिमा अभी तक बनाए रखी है। हालांकि इनके जो महाव्रत हैं वे सिर्फ घर-संसार का त्याग करने वालों के द्वारा ही पालन किए जाते हैं बाकी सांसारिक जीवन वालों का जीवन इन 5 महाव्रतों से अलग है।
बौद्ध धर्म
`कर्म से ही मनुष्य श्रेष्ठ है। तपस्या, संयम, ब्रह्मचर्य से ही मनुष्य ब्राह्मण है' - ऐसा बोध गौतम बुद्ध ने दिया। बुद्ध को साम्प्रदायिक संकुचितता पसन्द नहीं थी। उन्होंने कहा है कि सम्प्रदायों के नाम पर लड़ना-झगड़ना, ये ज्ञानी के लक्षण नहीं हैं।
गौतम बुद्ध ने शान्ति, अहिंसा का पाठ पढ़ाया था जोकि उसके अनुयाइयों द्वारा वर्तमान में बिल्कुल भुला दिया गया है। इस प्रकार विभिन्न धर्म स्थापकों ने जिस उद्देश्य से धर्मों की स्थापना की थी, वह उद्देश्य पूर्ण हुआ नहीं। ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाय?
विश्व में भारत को आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। विश्व के लोग मानते जा रहे हैं कि सर्व को सुख-शान्ति का रास्ता बताने वाला भारत ही है। भारत में आबू पर्वत (माउण्ट आबू) पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का मुख्यालय है जिसकी शाखायें 140 देशों में हैं। इस आध्यात्मिक विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित `धर्म सम्मेलनों' में विश्व के हरेक धर्म के गुरु आते रहते हैं।
विभिन्न धर्मों की स्थापना, विकास, विस्तार और पतन के सम्बन्ध में पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा जोकि संस्था के संस्थापक हैं, के श्री-मुख से सर्व धर्म पिताओं के भी परमपिता परमात्मा शिव ने जो राज़ उद्घाटित किए हैं वे हम सभी के जानने योग्य हैं। भगवान शिव कहते हैं कि सभी धर्मों को अपनी-अपनी चार अवस्थाओं में से गुजरना होता है।
ये अवस्थाएँ हैं - सतोप्रधान, सतो सामान्य, रजोप्रधान और तमोप्रधान। स्थापना के समय धर्म स्थापक की उच्चतम साधना के संरक्षण में धर्म की प्रथम अवस्था होती है तो बाद में उतरती कला प्रारम्भ हो जाती है। कलियुग के अन्त में सभी धर्म, शक्तियों और कलाओं की दृष्टि से खाली हो जाते हैं, इसे ही धर्मग्लानि का समय कहा जाता है।
भगवान का वायदा भी श्रेष्ठ धारणाविहीन सृष्टि में आकर, एक सत्य धर्म की स्थापना करने का है। वही समय अब चल रहा है। वर्तमान समय आबू पर्वत (माउण्ट आबू) जोकि राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है, यहाँ भगवान शिव, प्रजापिता ब्रह्मा के साकारी माध्यम से (प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) एक धर्म वाली सतयुगी सृष्टि की स्थापना के लिए अवतरित हो चुके हैं।
पवित्रता अर्थात् ब्रह्मचर्य का बल, श्रेष्ठ जीवन मूल्य, सात्विक जीवन पद्धति और आत्मा, परमात्मा तथा विश्व नाटक का यथार्थ ज्ञान ही सतयुग के इस धर्म के मूल सूत्र हैं।
इन मूल सूत्रों को जीवन में धारण करके कोई भी मानव, देवपद का अधिकारी बन सकता है। वर्तमान समय चाहे वह किसी भी धर्म या सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ क्यों न हो। इस प्रकार सर्व धर्म की आत्माओं के लिए देवत्व प्राप्ति का श्रेष्ठतम द्वार खोलकर, श्रेष्ठ धारणाओं को कसौटी के रूप में रखकर परमात्मा शिव ने विभिन्नता भरे संसार में धार्मिक एकता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग श्रेष्ठ धारणाओं के रूहानी नशे में रहते हुए, एक पिता के बच्चे भाई-भाई का भाव धारण कर प्रेम और सद्भावना से इकट्ठे रहते हैं। इस कार्य को आप में से कोई भी आकर देख और जान सकता है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।