नारी समाज का दर्पण है। किसी भी युग के किसी भी समाज की वास्तविकता को जानना हो तो बस एक नज़र नारी की जीवन दशा पर डालिये, सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा। वर्तमान समय समाज की स्थिति पर ज़्यादा मनन-चिन्तन की ज़रूरत इसलिए नहीं है क्योंकि नारी की गिरी हुई जीवन गाथा, समाज की दुर्दशा को स्वयं बयान कर रही है।
नारी की इस दशा को लेकर, नारी जगत के अलावा राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में बेचैनी बढ़ रही है और नारी कल्याण के लिये विशाल योजनायें बन रही हैं, किन्तु ये योजनायें नारी के मात्र भौतिक पक्ष को संवारने में ही कामयाब हो सकती हैं।
राजनैतिक, प्रशासनिक क्षेत्र में आरक्षण, शिक्षा की व्यापक प्रोत्साहनात्मक सुविधाओं, छेड़छाड़, बलात्कार व दहेज विरोधी कठोर कानूनों, महिला उत्पीड़न उन्मूलन थानों व आयोगों की स्थापना आदि होने से बेशक नारी, समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हो सकेगी व पुरुष वर्ग की दासता व शोषण की मनोवृत्ति से दिखावे के रूप में बहुत हद तक मुक्ति भी पा सकेगी किन्तु यह भौतिक सम्पन्नता नारी उत्थान की वास्तविक तस्वीर नहीं है।
मनचाही शिक्षा व रोजगार पाकर, समाज के अलावा वैवाहिक जीवन में समानता का अधिकार पाने से नारी समझे कि मुझे समाज में मेरा वास्तविक स्थान मिल गया तो यह उसकी भूल है। यह भौतिक सम्पन्नता का प्रवाह नारी में अहंकार के बीज का परिपोषण करेगा जिसके वशीभूत होकर नारी, पुरुष से बदले की भावना रखेगी या उसे अपने अधीन करना पसन्द करेगी।
पुरुष तो वैसे ही अपने अहंकार के कारण विक्षिप्त हो चुका है, क्योंकि उसने धर्म की देवी नारी के पवित्र जीवन को शोषण व अत्याचार के बलबूते पर कलंकित किया है। आज पाश्चात्य देशों में नारी व पुरुष के अहंकार के टकराव के दुष्परिणामों को हम देख रहे हैं।
पारिवारिक-सामाजिक जीवन-व्यवस्था वहाँ छिन्न-भिन्न हो चुकी है। आधुनिकता की होड़ में स्त्री-पुरुष दोनों ने नैतिकता के मापदण्डों को तिलांजलि दे दी है। शादी व तलाक एक खेल बन गया है। इन देशों में वह बच्चा खुशनसीब माना जाता है जो माँ-बाप का प्यार पाकर युवा होता है।
अत हमें वर्तमान में नारी उत्थान के भौतिक विकास के माडल से हट कर कुछ सकारात्मक आत्मिक चिन्तन करने की भी ज़रूरत है। हमें यह ध्यान में रहे कि नारी शब्द धर्म का पर्यायवाची है। धर्म के परिपालन हेतु सभी आवश्यक गुणों जैसे नम्रता, प्रेम, दया, सहिष्णुता आदि को प्रकृति ने नारी में उदात्त रूप में प्रवाहित किया है।
भूतकाल गवाह है कि जब तक सतयुगी व त्रेतायुगी दैवी सृष्टि में नारी ने अपने आत्मिक स्वरूप रूपी धर्म को बनाये रखा तब तक उसका अपना जीवन ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देव समाज व प्रकृति, सुखों के झूले में झूलते हुए आनन्द मगन थे। उसकी दिव्यता की रोशनी में पुरुष ने सत्य दिशाओं में पुरुषार्थ किया। नारी की इस दिव्य महिमा के कारण ही दैवी सृष्टि में उसका मान ऊँचा था।
इसी कारण वह आज भी देवताओं से पहले याद की जाती है। किन्तु जैसे ही द्वापर युग से कलियुग तक नारी का आत्मिक स्वरूप क्रमश कमज़ोर होता गया वैसे-वैसे यह सृष्टि, समाज, प्रकृति आदि सब कुछ दिशा विहीन हो गये, जिसके दुष्परिणाम आज हम भोग रहे हैं। नारी के आत्म-ज्ञान रूपी रोशनी के अभाव में, पुरुष ने अंधकार में चल कर इस संसार की जो दुर्गति कर दी है उससे कौन वाकिफ नहीं है?
इस दुर्गति रूपी कचड़े की आँधी से नारी का स्वयं का जीवन भी तो डांवाडोल और असुरक्षित हो गया है। हमें यह याद रखना चाहिए कि नारी के बिना पुरुष अंधा है व बिना पुरुष के नारी लंगड़ी है। अत वर्तमान समय में महिलाओं को चाहिए कि वे अपने आत्मिक विकास के सन्दर्भ में गम्भीरता से सोचें। यह आत्मिक विकास मात्र आन्दोलनों या नारेबाज़ी से नहीं होगा, इसके लिये उन्हें ईश्वरीय शरण में जाना होगा।
यह हमारा परम सौभाग्य है कि वर्तमान कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग में ``परमात्मा शिव'' ने `` प्रजापिता ब्रह्मा'' के तन में अवतरित होकर सतयुगी सृष्टि की स्थापना के लिए जो ``गीता ज्ञान व राजयोग की शिक्षा'' दी है, विश्व में उसके प्रसार व प्रबंधन-संचालन के लिये देवी जैसी नारियों को निमित्त बनाया गया है।
सन् 1937 में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना हुई, जिसकी गतिविधियाँ समय बीतने के साथ विश्वव्यापी हो गईं।
अत आज भारत में ही नहीं अपितु समस्त विश्व के नारी जगत को चाहिए कि वे इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय से जुड़ कर ``ईश्वरीय ज्ञान व राजयोग के अभ्यास'' के द्वारा अपने आत्मिक स्वरूप को सबल बना कर अपने धर्म-सम्पन्न स्वरूप को निखारें, जिससे वे स्वयं के साथ-साथ गुमराह हुए पुरुष वर्ग को भी सही दिशा में पुरुषार्थ करने की प्रेरणा व मार्ग-निर्देशन दे सकें।
इसी से यह सम्पूर्ण सृष्टि पवित्रता, शान्ति व आनन्द के शिखरों को छू लेगी और उनकी छाँव में नारी इस विश्व की भाग्यविधात्री बन जायेगी।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।