वाण का घाव भर जाता है परन्तु वाणी का नहीं। तभी कहा गया, ``मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर''। कबीर साहब कहते हैं -
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।
वाणी से ही मनुष्य मित्र बनता है और वाणी से ही दुश्मन। वाणी की कठोरता के कारण कितने ही घरों में अलगाव होता है। महात्मा गाँधी जी कहते थे - `मूर्ख वे हैं जो बोलते पहले हैं तथा सोचते बाद में है।' एक संत की वाणी में आया है कि जो भी तुम्हें बोलना हो पहले उसे मन ही मन बोलो और यह देखो कि मेरे बोलने से किसी का अहित तो न होगा, फिर बोलो।
बोली तो अनमोल है, जो कोई बोलो बोल।
हिय तराजू तोल के तब मुख बाहर खोल।।
श्रीमद्भगवद्गीता
कहती है, ऐसे वाक्य जो किसी को कष्ट न पहुँचायें, सत्य भाषण, हितकारी तथा प्रिय लगने वाले बोल, यह सब वाणी का तप है। सत्य बोलें, प्रिय बोलें, सत्य भी अप्रिय न बोलें, यह शास्त्र का निर्देश है। अक्सर लोग कहा करते हैं कि सच तो कडुवा होता है, ऐसा नहीं है। अगर सामने वाले मनुष्य से प्रेम है तो उसी सच्चाई को हम मधुर शब्दों में कह सकते हैं।
अगर दिल में सच्चा प्रेम है तो अभिव्यक्ति कठोर नहीं हो सकती। ह्य्दय का रूखापन ही हमारी वाणी को कर्कश और कठोर बनाता है। चापलूसी और मधुरता में अन्तर है। चापलूस बाहर से तो मधुर होता है पर भीतर से उसमें स्वार्थ भाव भरा होता है। सच्चा प्रेमी बाहर से भी मधुर होता है और उसके भीतर भी प्रेमरस भरा रहता है।
तो आईये, आज से हम ईश्वर पिता को हाजिर-नाजिर जानकर दृढ़तापूर्वक प्रतिज्ञा करते हैं कि किसी के दिल को दुःखाने वाली, दिल को ठेस लगाने वाली, किसी से झगड़ा कराने वाली, किसी को झगड़ा करने के लिए उकसाने वाली, विद्रोह पैदा करने वाली, लोगों को एक-दूसरे से अलग करने वाली -
ऐसी, कटु वाणी नहीं बोलेंगे और कुछ ऐसा होता भी है तो हम अपने मुख की आवाज को चुप करके रहेंगे, लेकिन अगर जब भी बोलेंगे बहुत प्यार से बोलेंगे, मीठा बोलेंगे, धैर्यवत होकर बोलेंगे, सभ्यतापूर्वक बोलेंगे, सबसे हमारा भाईचारा उत्पन्न हो, ऐसी वाणी बोलेंगे।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।