- विद्यार्थियो, विद्यार्थी जीवन में मन लगा कर विद्या अध्ययन करने के अतिरिक्त जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक है ब्रह्मचर्य, पवित्र भोजन, स्वास्थ्य और चरित्र। जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता अर्थात् अपने में कलुषित विचार लता है, वह शरीर और मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक रासायनिक तत्वों का तथा मूल्यवान शक्ति का क्षय करता है।
- जो सात्त्विक एवं शाकाहारी भोजन न लेकर तामसिक भोजन लेता है, अधिक मिर्च-मसाले, ज़्यादा खट्टी बासी या अधिक वायु तथा ताप पैदा करने वाली एवं उत्तेजक खाद्य पदार्थों का सेवन करता है, वह संसार में सफलता और सुख के साधन रूप शरीर को बिगाड़ बैठता है तथा मस्तिष्क का संतुष्टन भी खो बैठता है और अपने मन में पाशविक एवं राक्षसी वृत्तियों को जन्म देता है।
- जो बुरे दोस्तों के संग में, बुरे नॉवल आदि पढ़कर या पतनकारी चलचित्रों को देखकर अपने चरित्र को गँवा बैठता है, वह तो गोया स्वयं ही अपने भविष्य को अंधकारमय बनाता है क्योंकि लोग उसे दुष्नाम देते हैं, समाज उसे अपराधी तत्वों में गिनता है, उसके कुल के लोग उसके कारण लज्जा अनुभव करते हैं और वह अपनी सम्पत्ति या आय को भी एक दिन लुटा बैठता है।
- वह या तो जेल की हवा खाता है या पुलिस की सूची में उसका नाम आ जाता है और वह स्वयं भी सब कुछ गँवा कर होश में आता है, परन्तु तब तक देर हो चुकी होती है। अत विद्यार्थियो, जीवन में इन दोनों कुसंगों से अपने चरित्र की रक्षा के लिए तुम स्वयं ही रखवाले बना। ऐसे सहपाठियों या पड़ोसियों की कभी दोस्ती न करना जो तुम्हारे इस मानवी जीवन को ही निम्न मूल्य का बनाने रूप शत्रुता करे या तुम्हारे चरित्र को ही मिटा दे। ऐसा मीठा ज़हर पीने से बचने के लिए सावधानी बरतना।
- अन्न दोष और संग दोष से सदा बचना और उन पुस्तकों को न पढ़ना जो मन में वैसा ही कचड़ा भर दें जैसे कि कूड़े के डिब्बे में कोई कूड़ा डाल देता है। इस प्रकार, विद्यार्थियो, अपने चरित्र के प्रहरी बन कर उसकी रक्षा स्वयं करना, तुम्हारी बाकी रक्षा तुम्हारा चरित्र स्वयं ही करेगा।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।