विद्यार्थियो, इन्हें अपनाओ और सदा सुख पाओ! (Part – 6)

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  • विद्यार्थियो, जिस चेतन और जड़ की हम पहले बात कर आये हैं, उन दो प्रकार के व्य्वहारों को देखते हुए क्या आपके मन में यह प्रश्न नहीं उठता कि शरीर तो प्रकृतिकृत है और रासायनिक तथा भौतिक विज्ञान के नियमों के अनुसार ही कार्य करता है, तब भला इसमें चेतनता का स्त्रोत कौन-सा है?

  • जब आप यह जानते हैं कि संकल्प अथवा विचार का कोई वजन है वह जगह घेरता है, उसकी गति ही मापी जा सकती है और उसका कोई माप है, तब क्या आपके मन में यह विचार नहीं आता कि विचार अभौतिक है और वह कोई रासायनिक तत्व भी नहीं है क्योंकि वह तो देश और काल अथवा स्पेस और टाईम से अतीत है, वह गुरुत्वाकर्षण और प्राकशदि प्राकृतिक ऊर्जा या शक्तियों से भी भिन्न है और अभौतिक है।

  • वह भौतिक मस्तिष्क की उपज भी नहीं है क्योंकि विचार तो अपने बारे में भी निर्ण्याय करता, अपनी आलोचना करता, अपना मूल्याकंन करता, स्वयं से स्वयं प्रभावित होता और उसके फलस्वरूप स्वयं ही खुश होता हुआ या पश्चाताप करता हुआ सुख या दुःख का अनुभव भी करता है।

  • पुनश्च, आज तो मस्तिष्क विज्ञान तथा स्नायुमण्डल विज्ञान के वेत्ता भी इस बात को मानने लगे हैं कि मस्तिष्क के विभिन्न भाग तो विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा विभिन्न संदेश प्राप्त करते हैं और उन सभी में सामंजस बिठाने वाला, उनको समझने वाला, उनको जानकर निर्णय करने वाला और शरीर के विभिन्न भागों से कार्य करने या रोकने वाला तो इससे भिन्न ही कोई है।

  • उन्होंने यह भी महसूस किया है कि मस्तिष्क के दायें गोलार्द्ध तथा बायें गोलार्द्ध में तालमेल पैदा करते हुए उनसे कार्य लेने वाला चेतन एवं विचारवान कािs अन्य अभौतिक सत्ता ही है जो संवेगवान भी है क्योंकि उन्होंने शोध कार्य से यह भी मालूम किया है कि यद्यपि मस्तिष्क में संवेगों की अभिव्यक्ति का स्थान है तो भी आवेगों-संवेगों का अनुभव किसी अन्य सत्ता ही को होता है जो अपने लिये मैं शब्द का प्रयोग करती है।

  • अत विद्यार्थियो, आप भी मैं शब्द का प्रयोग तो करते ही हो परन्तु मैं-मैं कहने वाली उस सत्ता को जानो, उसी अनुसार व्यवहार करो और सदा सुख पाओ!
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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