ऐसे तो क्रोध आने के कई कारण हैं, परन्तु सामान्यतः क्रोध का जन्म कामना की पूर्ति में बाधा पड़ने से होता है। जब लोग हमारी इन्छा अनुसार कार्य नहीं करते हैं, जैसा हम चाहते हैं वैसा हमसे व्यवहार नहीं करते हैं, तो क्रोध उत्पन्न होता है।
सेठ जी ने नौकर से पानी माँगा, नौकर काम में व्यस्त था, पानी लाने में थोड़ी देर हो गई, बस सेठ जी बिना कुछ सोचे समझे नौकर पर बरसने लगे। ऐसी घटनाएँ प्रतिदिन के जीवन में होती रहती हैं। कई लोग समझते हैं क्रोध किये बिना हमारा काम नहीं चल सकता। अधिकारी सोचते हैं क्रोध नहीं करेंगे, रोब नहीं रखेंगे तो कर्मचारी काम नहीं करेंगे।
मात-पिता बच्चों को कण्ट्रोल करने के लिए कोध करते हैं, परन्तु यह गलत मान्यता है वास्तव में क्रोध डर का निर्माण करता है। जब आप क्रोध करते हैं तो अधीनस्थ कर्मचारी या बच्चे डरने के कारण आप जैसा चाहते हैं वैसा कार्य करेंगे, वैसा व्यवहार करेंगे। परन्तु डर सदाकाल के लिए नहीं रह सकता है, थोड़ा समय डर रहेगा।
फिर वह डर समाप्त हो जायेगा और डरा हुआ व्यक्ति ठीक प्रकार से नहीं सोच पाता है, वह अपने कार्य को नये ढंग से रचनात्मक रूप से नहीं कर पायेगा, साथ ही कई बार क्रोध करने से लोगों के मन में निरादर, प्रतिशोध एवं घृणा की भावनाएँ जन्म लेती हैं, जिससे वे अपने अपमान का बदला लेने के लिए अवसर की प्रतिक्षा में रहते हैं, अनेक हिंसात्मक घटनाओं का कारण यही होता है।
परन्तु जब लोग हमारी इच्छानुसार कार्य नहीं करते हैं या जैसा हम चाहते हैं वैसा व्यवहार नहीं करते हैं तो हमें समझना चाहिए भिन्नता इस सृष्टि का नियम है। इस सृष्टि में कोई भी दो मनुष्य एक जैसे नहीं हैं हर एक का चेहरा अलग है, स्वभाव अलग है और वास्तव में वैरायटी में ही आनंद है। कल्पना कीजिए किसी ड्रामा के सभी पात्र एक जैसे हों तो कैसा लगेगा। अत हमें इस सृष्टि ड्रामा की भिन्नता समझकर साक्षी भाव धारण कर शांत रहना चाहिए।
बच्चों को भी क्रोध करके नियंत्रण करने की बजाय उन्हें समझायें उनके लिए कुछ नियम बनायें और यदि आप चाहते हैं बच्चे अच्छी तरह पढ़ें तो उनके लिए अच्छे मित्र चुनिये जो पढ़ने में होशियार हैं, अच्छे संस्कारवान हैं ऐसे मित्रों को घर बुलाइये ताकि आपके बच्चे अच्छे संग में रहें तो स्वत ही वह अच्छी बातें सीखेंगे क्योंकि बच्चे अपने दोस्तों से जितना सीखते हैं उतना अपने माँ-बाप से नहीं।
व्यक्ति जब अपने जीवन में असंतुष्ट होता है, तब भी उसे क्रोध जल्दी आता है। कोई भी अपाप्ति, असंन्तुष्टता उत्पन्न करती है। असंन्तुष्ट व्यक्ति अपनी तुलना सदैव दूसरों से करते हैं। कहावत है — दूसरों की थाली में घी ज़्यादा दिखाई देता है।
लेकिन यदि तुलना करते हैं और कोई व्यक्ति आपसे श्रेष्ठ है, अधिक पाप्ति सम्पन्न है, तो हीन भावना आने लगती है। कहा गया है — बीइंग इन्फेरियर इज डिफरेन्ट देन फीलिंग इन्फेरियर’’। हम किसी बात में किसी से कम हैं तो ज़रूरी नहीं कि हम उसे महसूस करें क्योंकि हर मनुष्य में कोई-न-कोई विशेषता अवश्य होती है और कोई-न-कोई कमी भी हरेक में होती है।
जैसे सोने में सुगंध नहीं है, चन्दन में पुष्प नहीं हैं, विद्वान के पास धन, धनवान के पास सरस्वती ज़्यादातर नहीं होती, परन्तु कमी होते भी हरेक विशेष है। संतुष्टता स्वयं अपने आप में बड़ा धन है। कबीरदास के अनुसार —
गोधन, गजधन, बाजीधन और रतनधन खानि।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान।।
असंतुष्ट होने पर ईर्ष्या की भावनायें भी जन्म लेती हैं। लेकिन यदि किसी की उन्नति एवं सम़ृद्धि को देखकर ईर्ष्या होती है तो सोचना चाहिए कि उन्नति का कारण अवश्य व्यक्ति का कोई-न-कोई गुण एवं योग्यता है। अत मैं भी अपनी योग्यता का विकास करूँ तो मेरी भी उन्नति होगी, और शक्ति, गुणों के विकास में खर्च होगी, न कि दूसरों के पति नकारात्मक भावनाओं में।
जीवन में संतुष्टता का गुण, जीवन के पति आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने पर उत्पन्न होता है। यह ज्ञान कि शरीर सहित सब कुछ विनाशी है और यह कुछ भी साथ नहीं जायेगा तो भोगवादी दृष्टिकोण कमज़ोर पड़ने लगता है। एक अध्यात्म प्रमी आत्मा की उन्नति को महत्त्व देता है। अपने जीवन में मूल्यों एवं गुणों के विकास में तत्पर रहता है। शक्ति उसके स्वभाव का शृंगार होती है और क्रोध समाप्त होने लगता है।
क्रोध आने का एक अन्य कारण है – आलोचना या निंदा होना। कोई हमारी कमियों की निंदा या वर्णन दूसरों को करता है और वह बात किसी अन्य के माध्यम से हम तक पहुँचती है या कोई सीधे हमारे ऊपर आक्षेप लगाकर आलोचना करता है कि तुम ऐसे हो, तुमने ये गलत किया, तुम हमेशा ही ऐसे करते हो, तुम कभी नहीं सुधरोगे आदि-आदि, तो क्रोध ऐसा आता है कि हम उससे दुगने आक्षेप उस पर लगाने लगते हैं। मन उस व्यक्ति के प्रति नकारात्मक भावनाओं जैसे घृणा, रोष एवं द्वेष से भर जाता है।
लेकिन अपनी कमी को धैर्य से स्वीकार करने की हिम्मत और फिर उसे परिवर्तन कर लेना यह गुण यदि हममें है तो क्रोध नहीं आयेगा। वैसे भी स्वभावत हम स्वयं की कमियों को नहीं देख पाते हैं। हमें हमारी कमियों का अहसास दूसरे ही कराते हैं, पर जब लोग हमारी ग्लानि करते हैं तो हो सकता है वह बढ़ा-चढ़ा कर करें।
मानों आप आफिस में रोज नियमित समय पर पहुँचते हैं, परन्तु किसी कारणवश दो-तीन दिन से आप विलम्ब से पहुँच रहे हैं तो आलोचक कहेंगे, ये तो इसकी आदत है, ये ऱोज़ ही देर से आता है लेकिन फिर भी जो हमारी एक प्रतिशत भी कमी हो रही है उसे हम सुधार लें तो जीवन में हमारी उन्नति होने लगेगी, व्यक्तित्व का विकास होगा।
ऐसे भी आजकल लोग मनोवैज्ञानिकों के पास जाकर अपनी कमियों की जानकारी लेते हैं ताकि अपनी कमियों को दूर कर व्यक्तित्व विकास कर जीवन में सफल हों।
कई बार सचमुच हमारी कोई कमी नहीं है परन्तु ईर्ष्यावश नीचा दिखाने के लिए यदि कोई आलोचना करते हैं तो उसे स्वीकार नहीं करें। महात्मा गाँधी ने एक बहुत अच्छी बात कही है – नो वन कैन हर्ट यू, विदाउट यूअर परमिशन’’, यानि जब तक हम स्वीकार न करें, कोई हमें क्रोध नहीं दिला सकता, दुःख नहीं पहुँचा सकता।
लेकिन ये तभी संभव है जब हमारा स्वमान ऊँचा हो। हम स्वयं के बारे में अच्छी राय एवं भावनाएँ रखते हों अत अपनी खूबियों को पहचानकर आत्मसम्मान बढ़ायें। आत्मविश्लेषण करते रहें ताकि किसी अन्य द्वारा की गई गलत निंदा से हम पभावित न हों। महात्मा बुद्ध के जीवन चरित्र में इस संबंध के लिए एक वृत्तांत आता है –
धर्म प्रचार हेतु जब वे एक नगर में प्रवचन कर रहे थे तो एक नगरसेठ जो उन्हें पसंद नहीं करता था, को जब यह ज्ञात हुआ कि महात्मा बुद्ध उनके नगर में पधारे हैं, तो वह क्रोध में आकर सीधा उस स्थल पर पहुँचा जहाँ वे अपनी साधना में मगन थे और उसने आव देखा न ताव उन पर तब तक गालियों की बौछार की जब तक कि वह थक नहीं गया और फिर उनके उत्तर की प्रतिक्षा करने लगा परन्तु उसने देखा कि महात्मा बुद्ध तो तटस्थ भाव से मुस्कुरा रहे हैं तो आश्चर्यचकित होकर उसने कहा कि मैंने आपको इतनी गालियाँ दी आप फिर भी शांत बैठे हैं और मुस्कुरा रहे हैं तो महात्मा बुद्ध का उत्तर था यदि आपको कोई कुछ दे और आप स्वीकार नहीं करते तो वो कहाँ रहेगा।
उसने कहा निश्चित उसके पास ही रहेगा, तो ऐसे ही आपने जो मुझे अपशब्द कहे वह मैंने स्वीकार नहीं किये तो वो कहाँ रहे? यह सुनकर वह नगर सेठ बहुत शर्मिन्दा हुआ और उनसे माफी माँगने लगा उसके बाद वह उनका शिष्य बन गया।
जीवन में अनायास होने वाली घटनाओं के प्रति हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए, अन्यथा हम क्रोध से होने वाली हानियों से बच नहीं सकते।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।