नर और नारी दोनों से ही इस संसार की शोभा और सुव्यवस्था है। दोनों शब्दों को अगर देखा जाये तो ‘नारी’ शब्द में दो मात्रायें अधिक हैं – आ और ई। ‘आ’ जहाँ उसकी कोमलता को ध्वनित करता है वहीं ‘ई’ उसकी शक्ति को पदर्शित करता है। इन दोनों विरोधाभासी गुणों से युक्त नारी पकृति की एक अनमोल रचना है।
एक तरफ वह कोमलांगी है तो दूसरी तरफ शक्ति-स्वरूपा। शारीरिक दृष्टि से नर अधिक बलशाली होता है इसलिए नारी को अबला, कोमल, कमज़ोर कहा गया। फिर भी कभी कहने में नहीं आता ‘नर-शक्ति’, हमेशा ‘नारी-शक्ति’ ही कहा जाता।
‘शक्ति’ पर्याय हमेशा नारी के साथ ही लगाया जाता है, शक्तियों की पूजा देवी रूप में ही होती है। क्योंकि शक्ति का जैसा उदाहरण, जैसी झलक नारी के जीवन में है, वो पुरुष के जीवन में नहीं। वास्तव में नारी शक्ति का ही दूसरा नाम है। नारी सिर्प पाँच तत्वों से बना शरीर नहीं है, लेकिन उसमें पाँच तत्वों की विशेषताएँ शक्तियों के रूप में समाई हैं।
समायोजन शक्ति
इस शक्ति के लिए जल का उदाहरण दिया जाता है कि जल को जिस साँचे में डाला जाये, वह उसी सांचे में ढल जाता है। नारी जल की तरह ही सरल है। नारी अपने बाल्यकाल से ही जीवन में आने वाले विभिन्न परिदृश्यों में स्वयं को ढालती जाती है।
विवाह के पश्चात् एक नारी न केवल दूसरे परिवार को अपनाती है बल्कि उस परिवार के नियम-मर्यादाओं, रीति-रिवाज़ों व परिवार के सदस्यों के स्वभाव के अनुरूप अपने को सहज ही समायोजित भी कर लेती है। इसी विशेषता के आधार से एक नारी घर-परिवार बनाती है, बसाती है और इसीलिए उसे गृह-लक्ष्मी, गृह-स्वामिनी, गृहिणी इत्यादि उपनाम दिये जाते हैं।
सृजन शक्ति
यह वो अद्भुत शक्ति है जो केवल नारी को ही पाप्त है। नारी माँ है, जननी है, निर्मात्री है, रचयिता है और इस दृष्टि से वह ईश्वर के समकक्ष है। वह न केवल भावी पीढ़ी का सृजन करती है, बल्कि संस्कार-सिंचन भी करती है। वह धरती माँ की तरह पैदा करती और पालना करती है। वह धरती जैसी धैर्यवान और सहनशील है।
भक्ति की शक्ति
धर्मग्रन्थों में नारी को ‘शिव-शक्ति’ और ‘शिव-भक्ति’ कहा गया है। उसका ईश्वर में जो अटूट विश्वास है, जो आस्था, जो भावना है, जो पेम है, जो लगन है, वो अग्नि के समान पज्वलित रह उसका पथ-पदर्शन करती है।
भक्ति से नारी अपने कठिन पथ को सरल बनाती है और जीवन-संग्राम में आने वाली परिस्थितियों से जूझने का संबल और साहस पाप्त करती है। इसी से वह अपने मनोरथ को सिद्ध करती है और असंभव को संभव कर दिखाती है।
स्नेह की शक्ति
स्नेह वह महान गुण और शक्ति है जो पाण-वायु के समान जीवन को गति और सुकून देता है। जब बालक इस संसार में आता है तो माँ के स्नेह की अनमोल शीतल छत्रछाया में उसका सही पालन और विकास होता है। माँ के रूप में नारी ममता की सुन्दर मूरत है जिसके रोम-रोम में अथाह, अनुपम स्नेह समाया है। माँ, बेटी, बहन, पत्नी, दोस्त हर रूप से वो स्नेह-वर्षा बरसाती है। इस स्नेह-पेम की अद्भुत शक्ति से वह परिवार के सभी सदस्यों को अपना बना लेती है और सबके दिलों पर राज करती है।
पवित्रता की शक्ति
यह वह शक्ति है जो नारी को आकाश की ऊँचाई पदान करती है। इस कलिकाल के समय में नर और नारी दोनों का ही पतन हुआ है फिर भी निर्विवाद रूप से नारी की दृष्टि-वृत्ति नर की तुलना में बहुत पवित्र है। पवित्रता ही महान और पूज्य बनने का आधार है। भारत में देवों की भेंट में देवियों की जो इतनी पूजा होती है, नारी की पवित्रता की शक्ति को दर्शाती है।
इस शक्ति के द्वारा ही नारी ने सदियों से अपने अस्तित्व को भी सुरक्षित रखा है और इस संसार को भी पतन के गर्त में गिरने से बचाया है। उपरोक्त शक्तियो के अलावा नारी में अनेक महान शक्तियाँ समाहित हैं यथा त्याग की शक्ति, सहनशक्ति, परिवर्तन शक्ति आदि-आदि। इन शक्तियों के सम्मिलित स्वरूप का नाम ही नारी है, वही अष्ट-भुजाधारी देवी दुर्गा है जिसके आगे पुरुष भी शक्तियों का याचक बन नतमस्तक होता है।
नहीं बड़ी तन की शक्ति, बल और धन की शक्ति।
सबसे बड़ी मन की शक्ति, सृजन और पालन शक्ति।
इसलिए नारी का पक्ष भारी, शक्ति का नाम है नारी।।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।