सम्बन्धों को समझना, सहेजना

0

सम्बधों की इमारत पेम, त्याग, सामंजस्य, विश्वास, सम्मान, समझदारी, मिठासपूर्ण व्यावहार के स्तंभों पर टिकी रहती है। इनमें से एक भी स्तंभ के हिलते ही इमारत ढहने की नौबत जाती है। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर बढ़ाना नहीं चाहिए।

रिश्तों की सार्थकता उन्हें निभाने में है। कुछ रिश्ते नाजुक होते हैं जैसे सास-बहू, नन्द-भाभी, देवरानी-जेठानी, देवर-भाभी, ससुर-बहू आदि इन रिश्तों में व्यवहार में आते समय विशेष समझदारी रखनी चाहिये।

सास-बहू नीला की शादी हुए कुछ ही महीने हुए और वह बुझी-बुझी-सी रहने लगी। पति के आफिस चले जाने के बाद घर में जो भी काम करती, सास उसमें कमी निकालने की कोशिश करती और फिर बात-बात में उसके माता- पिता को भला बुरा कहती। पति ने उदासी का कारण पूछा तो आखिर एक दिन नीला ने सारी बात पति को बता दी तो माँ-बेटे में मतभेद होने लगा।

बेटे से दूरियाँ पनपने लगी। सास-बहू में ज़्यादातर झगड़े काम को लेकर होते हैं। सास अपने ढंग से काम करना चाहती है तो बहू अपने तरीके से। दोनों अपने को अपनी-अपनी जगह सही समझती हैं। आप बहू हैं तो आपको समझना होगा कि इस परिवार में सभी सास के तरीकों में ढले होते हैं ऐसे में उनसे तौर-तरीकों को बदलने की कोशिश करें।

कुछ बहुएँ ऐसी होती हैं जो सास की बताई बातों को अपनाना तो दूर, सुनना तक पसंद नहीं करती, सास उन्हें परंपराओं के बारे में बताती हैं तो वे रुचि नहीं लेती। बहुओं को ध्यान रखना चाहिये कि नये परिवार में परंपरायें अपनी होंगी और यदि वे उन पर ध्यान नहीं देंगी तो नई पीढ़ी को क्या संस्कार देंगी। यह रिश्ता पूरी तरह आपसी समझदारी, विश्वास पर टिका होता है।

यदि आप आधुनिक हैं और रुढ़िवादी परंपरायें पसंद नहीं हैं तो अपने विचार सास के सामने नम्रता से रखें, उसका औचित्य बतायें, फिर सास को भी चाहिये यदि वह सही है तो उसे स्वीकार करे या परिवर्तन करे।

लाडली बहू बनने के लिये सास के अनुसार काम करने की आदत शुरू में थोड़ी मुश्किल होगी लेकिन फिर सास आपकी तारीफ करते नहीं थकेगी। कोशिश की जाये उन्हे अपना बनाने की। दूसरी तरफ सास को भी आगे बढ़कर बेटे-बहू की खुशी में साथ देना चाहिए।

यदि वो घूमने जाना चाहते हैं तो जाने दें। बहू यदि कुछ अच्छा बनाती है तो उसकी तारीफ करें, बहू की कमियाँ निकालने की बजाय खूबियाँ देखें।

देवरानी-जेठानी दोनों अलग-अलग परिवारों से आती हैं, उनकी सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक स्थिति भी एक-दूसरे से भिन्न होती हैं, इसलिये विचारों का अलग होना स्वाभाविक है और ऐसे में उनके बीच नोंक-झोंक चलती रहती है।

बहुओं को ससुराल में रहना होता है, अत उन्हें मायके की बातों को छोड़कर ससुराल में रचना-बसना चाहिये। यदि दोनों में कोई बात है तो सास को समझाना चाहिये। इस रिश्ते में शालीनता, मधुरता बेहद ज़रूरी है।

जेठानी को बड़ी बहू के रूप में सहनशीलता का परिचय देना चाहिये और थोड़ी बहुत ऊँच-नीच को नज़रअंदाज कर देना चाहिये। छोटी बहू को भी जेठानी का सम्मान करना चाहिये। जेठ भी अपनी सीमायें भूलें। अपने छोटे भाई से अनबन होने पर वो बहू को भी सुनाने से नहीं चूकते और एक हद के बाद बहू भी सामने बोलने लगती है और स्थिति बिगड़ती जाती है।

अत छोटे भाई से अनबन होने के बावजूद उसकी पत्नी के मान-सम्मान में कोई कटौती करें। यदि घर में कुछ सामान रहा है तो दोनों के लिये समान हो, साथ बैठे कर खायें, कभी-कभी साथ घूमने भी जाएँ।

नन्द-भाभी  दोनों का सम्बन्ध भी संवेदनशील होता है, छोटी-छोटी बातों पर नोंक-झोंक होती रहती है। यदि नन्द- भाभी से बहुत अपेक्षायें रखती है, भाभी के हर काम में नुक्स निकालती है तो भाभी भी अपना पद ऊँचा समझ कर नन्द को ऑर्डर देने लगती है। हम उम्र नन्द को समझना चाहिये कि भाई की तरह भाभी भी उसकी अपनी है। यह सोचें कि भाभी ने आकर उसके अधिकार छीन लिये हैं।

नन्द-भाभी अच्छी दोस्त बन सकती हैं, बस ज़रूरत है एक-दो का सम्मान करनें की एवं आपसी तालमेल बनायें रखने की। कुछ ज़िम्मेदारी मात-पिता की भी होती है। वह शुरू से ही बेटी-बहू को समझा दें कि दोनों में कोई पतिस्पर्धा नहीं है, तो दोनों के मन में मनमुटाव नहीं आयेगा।

देवर-भाभी के रिश्ते में जब तक देवर की शादी नहीं होती वह भाभी का सम्मान करता है और भाभी भी देवर को लाड करती है। यदि भाभी घर में सबका ख्याल रखती है तो देवर अपनी पत्नी में भी वही गुण देखना चाहता है, लेकिन इसका मतलब नहीं कि घर में पत्नी के आते ही उसके सामने भाभी के गुणगान करने लगे।

देवर को समय देकर अपनी पत्नी को भाभी के गुणों के बारे में बताना चाहिये और भाभी को भी देवरानी के, देवर के ज़्यादा-से-ज़्यादा काम करने देना चाहिये। इस तरह रिश्तों के सहज बनाये रखा जा सकता है। नाजूक रिश्तों में आपसी समझदारी, सांमजस्य, सम्मान, विश्वास, पेम, त्याग का होना आवश्यक है, तभी सम्बन्धों की इमारत जीवनभर मज़बूती से टिकी रहती है।

ये गुण जीवन-व्यवहार में रहे, इसके लिये आत्म-अवलोकन, आत्म-निरीक्षण आवश्यक है। स्वयं को परिवर्तन करने की, झुकने की, गलती स्वीकार कर बदलने की भावना हो।  स्वयं के लिये थोड़ा समय निकालें, कुछ समय परमात्मा का स्मरण कर मन को शांत करें तो स्वत ही परिवर्तन की शक्ति आने लगेगी और हर संबंध में शुभभावना-शुभकामना, सुख देने की भावना, सेवा की भावना रखना आसान हो जायेगा।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top