नारी उत्थान द्वारा विश्व - कल्याण

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किसी भी राष्ट्र की महिमा वा महानता, उस राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र पर निर्भर होती है क्योंकि जीवन में सुख - शान्ति की प्रप्ति का मूल आधार चरित्र ही है। मनुष्य भले ही शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, आर्थिक रूप से धनवान हो, उसे सर्व अधिकार भी प्रप्त हों परन्तु यदि उसके पास चरित्र रूपी शक्ति न हो तो उसका जीवन व्यर्थ है। चरित्रवान व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों का भी सहज सामना कर सदैव सफलता के पथ पर अग्रसर होता है।

ऐसे महत्त्वपूर्ण चारित्रिक विकास की सम्भावना किस प्रकार है? राष्ट्र के चारित्रिक विकास का उत्तरदायित्व नारियों पर है क्योंकि नारी माता के रूप में जन्म-दाता होने के कारण अपने चरित्र-चित्रण का पभाव गर्भावस्था से ही अपनी सन्तान पर डालती है एवं बाल्यकाल में भी माता ही उसकी बाल सखा होती है।

प्रत्येक व्यक्ति पर, चाहे वह श्रेष्ठ हो, साधारण हो अथवा विकृत, माता के चरित्र का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। इसलिये, माता को ही पहला गुरू’’ माना जाता है। जिस देश की नारियाँ चरित्रवान एवं गुणवान होंगी वह देश निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर होता रहेगा।

ममता, क्षमता और समता की त्रिवेणी नारी, जब-जब दुष्पवृत्ति उन्मूलन और सत्पवृत्ति संर्वधन में अग्रसर बनी है तब-तब समय भी नारी की समर्थता में अपना अनुकूल समर्थन प्रस्तुत करता रहा है। नारी की अपनी एक विभिन्न विलक्षणता और वरिष्ठता है। नारी सृष्टि की परम सौन्दर्यमयी रचना है।

सृष्टि के आदिकाल से अन्त तक समग्र विश्व नारी की गोद में कीड़ा करता आया है। नारी सत्य, सेवा तथा त्याग की मूर्ति है। नारी घर की शोभा है, अन्धकार में प्रकाश की किरण है, समाज का श्रृंगार है, करूणा रूपा है, तथा विश्व-शान्ति की निर्मात्री है।

नारी शीतलता में हिम से ठण्डी, धारणाओं में गगन से ऊँची, गम्भीरता में सागर से गहरी व तेज में दिनकर से भी दिव्य होने के कारण सदियों से मानवीय उत्थान के लिए समर सजाती रही है। वीणा सम मधुरता, पुष्पों सम कोमलता, आकाश सम विशालता एवं गंगा सम पवित्रता, ऐसे गुणों से विभूषित नारी ही नैतिक एवं चारित्रिक उत्थान द्वारा विश्व-कल्याण करने में समर्थ है।

अनेक महापुरुषों, विद्वानों, नेताओं एवं भक्तों की जीवन-कहानी द्वारा सिद्ध है कि नारियों की पेरणा वा पथ-पदर्शन द्वारा ही उन्होंने महानता पाप्त की। नैतिक वा चारित्रिक दृष्टिकोण से नारी महान शक्तिशाली होने के कारण महिला’ शब्द से भी सम्बोधित की जाती है। चरित्रवान महिलाएँ ही चरित्र निर्माण एवं विश्व-कल्याण का श्रेष्ठ एवं साहस-पूर्ण कार्य कर सकती हैं।

श्री लक्ष्मी एवं श्री सीता आज भी भारतीय नारी संस्कृति का आदर्श रूप हैं। सर्व गुणों से सम्पन्न बन नारी जब पूजनीय पद पाप्त करती है तब अपनी कोख से देवताओं को जनम देती है इसीलिए मनुस्मृति में भी कहा गया है – यत्र नार्यस्तु पूजन्ते, रमन्ते तत्र देवताः अर्थात् जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवतायें वास करते हैं।

लक्ष्मी रूप में अर्थ की स्वामिनी, सरस्वती रूप में विद्या की धनी एवं दुर्गा रूप में सर्व शक्तियों से सुसज्जित नारी के सम्मान में धीरे-धीरे मध्यकाल अर्थात् द्वापर युग से कमी आने लगी तथा नारी का महत्त्व कम होने लगा। सन्यास धर्म की स्थापना होने पर सन्यासियों ने नारियों से सर्व अधिकार छीन लिये तथा नारी को नरक का द्वार कह समाज को यह पाठ पढ़ाना पारम्भ किया कि स्त्री का पति ही परमेश्वर है एवं स्त्री को अपने पति के संरक्षण में ही रहना है।

इस पकार महिला को समाज की जंजीरों में बाधँ दिया गया एवं केवल विलासिता का साधन  मात्र समझा जाने लगा। इस कारण नारी के पतन से चारित्रिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय पतन होने लगा एवं परिणामस्वरूप सारे विश्व का पतन होने लगा।

आज महिलायें पाश्चात्य सभ्यता के मृगजाल में फँस कर अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है। नारी वर्ग की इस असावधानी का परिणाम आज युवा वर्ग में दृष्टिगोचर हो रहा है। दिन पतिदिन बढ़ती हुई अश्लीलता, शारीरिक श्रृंगार, नशीले पदार्थों का सेवन आदि समाज वा राष्ट्र के लिए महान समस्या के रूप में उत्पन्न हो गया है। इस विश्वव्यापी समस्या को नारी वर्ग पुन विवेकशील बन सुलझा सकता है।

संस्कृति रहित कोई देश वा समाज अधिक काल जीवित नहीं रह सकता। संस्कृति समाज वा देश की महानतम पूंजी है जो मानव के उच्छृंखल मन को चरित्र-निर्माण की डोरी में बाँधे रखती है। नैतिकता की सुकोमल भावनाएँ हमें चरित्रवान बनाये रखती हैं। चरित्रवान महिलाएँ ही चरित्र निर्माण का श्रेष्ठ एवं साहस-पूर्ण कार्य कर सकती हैं।

वर्तमान समय कलियुग के अन्तिम चरण में विश्व व्यापी आसुरीयता का संहार कर सतयुगी दैवी सृष्टि की पुनर्स्थापना का दिव्य कर्तव्य स्वयं विश्वपरिवर्तक परमपिता परमात्मा, नारी वर्ग द्वारा ही करा रहे हैं। यह दिव्य कर्तव्य करने हेतु परमात्मा शिव विदेही एवं जन्म-मरण रहित होने के कारण प्रजापिता ब्रह्मा के तन में अवतरित होते हैं।

इस कल्याणकारी संगमयुग में परमात्मा शिव, पुन नारियों को ईश्वरीय शक्तियों एवं दिव्यगुणों से सुसज्जित कर समस्त विश्व की आत्माओं का नैतिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक विकास कर विश्व-कल्याण का दिव्य कर्तव्य करा रहे हैं।

अत परमात्मा द्वारा पाप्त इस परम सौभाग्य को प्रप्त कर हम सभी पुन गुणमूर्त्त, ज्ञानमूर्त एवं शक्तिमूर्त बन स्वयं की विकृतियों पर विजयी बन विश्व की सर्व आत्माओं को भी विकारों के बन्धनों से मुक्त कर उन्हें भी मुक्ति जीवनमुक्ति पाप्त करने के अधिकारी बनायें एवं इस दिव्य ईश्वरीय कर्तव्य में सहयोगी बन स्वयं का एवं विश्व का कल्याण करें।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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