व्यक्ति निर्माण से लेकर विश्व-निर्माण तक महिलाओं के महत्त्व और भूमिका को हम सभी अच्छी तरह जानते हैं। परिवार, जोकि समाज की सबसे बड़ी इकाई है, उसकी जीवन पद्धति और सामाजिक व्यवहार उस परिवार की पमुख महिला के संस्कारों से पतिबिम्बित होते हैं। परिवार के सभी सदस्यों के संस्कारों को तराशने की ज़िम्मेवारी उसी पर होती है।
इस बात का सबूत देते हैं कि विश्व के महान से महान चरित्र जैसेकि – महाराजा शिवाजी, महात्मा गाँधी जी, लाला लाजपतराय। इन सभी के महान चरित्रों का निर्माण करने में महिलाओं (माताओं) का ही सबसे बड़ा हाथ रहा है। महिला ममता, त्याग, कल्याण, सेवा और उच्च मूल्यों की सजीव पतिमा है।
वर्तमान दौर में यदि उसके जीवन को अध्यात्म, ध्यान और शिक्षा का सम्बल लेकर विकसित किया जाये तो उसके स्नेह संग में विनयशील, निस्वार्थी, कर्त्तव्यनिष्ठ और विशाल दृष्टिकोण वाले व्यक्ति निमित्त हो सकते हैं।
आज के आधुनिक युग में कल्याण की इस वेला पर जैसे प्रकृति और वातावरण दूषित हो गया है, वैसे ही मनुष्यात्माएँ भी बेहद मैली और गंदगी से भरपूर हो गई हैं। सर्वपथम हम अपनी खुद की पहचान भूल गये हैं। सभी चमार अर्थात् चमड़ी को जानने, पहचानने वाले बन गए हैं।
एक-दूसरे के साथ देह के सम्बन्ध में आने के कारण देह को ही महत्त्वपूर्ण समझते हैं। तो फिर इस नारकीय वेला में महिला कैसे छूट सकती है? सृष्टि के आदि में देवी तथा देवता का दर्जा एक बराबर होता है। दोनों ही 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी थे। आत्मा का शृंगार स्वयं परमात्मा ने अपने खुद के गुणों व शक्तियों से किया, जिसकी पालब्ध है – दैवी जीवन।
दैहिक शृंगार का लक्ष्य है हद के पेम की पाप्ति और नैतिक मूल्यों से आत्मा के शृंगार का लक्ष्य है बेहद के सारे विश्व और परमात्म-प्यार की पाप्ति। परन्तु आज की इस दूषित वेला में न तो आत्मा की सुध है और न ही आत्मिक-शृंगार की। मन-बुद्धि की दृष्टि इतनी क्षीण हो चुकी है कि देह के अन्दर छिपे हीरे को न पहचान कर, सिर्प देह को ही सब कुछ मान लिया है।
परमात्मा ने जो आत्मा का शृंगार नैतिक गुणों से किया था, उसका रंग-रूप आज बिगड़ कर नष्ट हो चुका है। आज हम शृंगार के नैतिक रूप को भूल कर दैहिक रूप में आ गए हैं। बुद्धि में शृंगार शब्द तो है, परन्तु किसका शृंगार करना चाहिए, यह ज्ञान नहीं है। आज देह का शृंगार समाज में ऊँच दर्जा, साथी का पेम, सुन्दर दिखने की होड़ की भावना आदि का आधार बन गया है।
यह देह का शृंगार नैतिकता की ऊँची सीढ़ी नहीं परन्तु पतन की गहरी खाई की तरफ ले जा रहा है। इस दलदल से निकलने का साधन है अपनी आत्मा का, परमात्म-गुणों व शक्तियों से अर्थात् नैतिक मूल्यों से शृंगार करना। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ नैतिक मूल्यों के ज़्यादा समीप हैं।
ये मूल्य उसके जीवन के अभिन्न अंग हैं परन्तु अज्ञानता के कारण यह स्मृति धुंधली हो गई है। महिला के जीवन में कुछ ऐसी विशेषता होती है, जिनके कारण वह नैतिकता और अध्यात्म में पुरुष से भी आगे निकल सकती है और समाज का चारित्रिक नवनिर्माण करने में भी विशेष रूप से कुशल सिद्ध हो सकती है।
सर्वपथम कन्या का रूप है। वह बालकों की अपेक्षा कम उच्छृंखल, कम झगड़ालू होती है। सहज ही अनुशासन में बंध जाती है। उसमें अन्तर्मुखता का गुण अधिक होता है। कन्या में बालकों की अपेक्षा एकाग्रता और स्मृति अधिक पाई जाती है। इन सभी गुणों को अगर आध्यात्मिक रंगों में रंगा जाए तो अन्तर्मुखता का गुण मन के अनेक संकल्पों-विकल्पों को शान्त करने में, एकान्तपिय व एकाग्रचित्त का गुण पभु के समीप ले जाकर शक्तिशाली स्थिति को पाप्त करा सकता है। इसी पकार से लज्जा व संकोच से दिव्य गुणों की धारणा में तथा अमर्यादित कर्म त्यागने में सफलता दिला सकते हैं।
बचपन के जो संस्कार उसे मिलते हैं, उसके कारण उसकी बुद्धि माँ-बाप के घर से पहले ही उपराम होती है और समर्पण की भावना महिला में भरपूर रहती है। इस गुण के साथ अगर वह प्रभु के बताए मार्ग पर चले तो विशेष शक्तियाँ हासिल कर सकती है। माँ के रूप में महिला सहानुभूति, ममता, करुणा, सेवा, निस्वार्थ पेम आदि गुणों से भरपूर है।
वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को ताक पर रख कर बच्चों तथा घर के दूसरे सदस्यों की सुख-सुविधा पर अधिक ध्यान देती है। वह अपनी नींद का, अपने आराम का भी ख्याल न कर, दूसरों की सेवा में लगी रहती है। महिला का घर में ऐसा स्थान है, जहाँ बच्चे उसकी गोद में आकर चैन लेते हैं, पति भी अपने मन का गुब्बार उसी पर आकर निकालता है, यहाँ तक कि जीवन में बहुत बार पति से भी मातृवत व्यवहार करना पड़ता है।
एक माता अपनी कठिनाईयों का सामना भी करती है और साथ-साथ दूसरों की बातें भी सुन कर उन्हें मन में समा लेती है। यह एक ऐसा कुदरती गुण है जो उसे मनुष्य मात्र में सबसे महान बना देता है। माता का यही स्वरूप परमात्म-प्यार और ज्ञान द्वारा निखार पाकर, शुद्ध होकर, अलौकिकता पाकर विश्व की आत्माओं को प्यार, मुहब्बत और दुलार कर, उनके बुरे संस्कार मिटा कर उनके जीवन को प्रभु पेम और ज्ञान से संजोने का महान् कार्य कर सकती है।
नारी का बच्चों में तथा पति में अपार पेम होता है, तभी तो वह उन पर अपना जीवन भी न्योछावर करने को तैयार होती है। यही पेम का गुण वह प्रभु में स्थिर करके अत्यन्त महान बन सकती है और सारे जगत को पलट सकती है।
ये सभी गुण हरेक महिला में मौजूद हैं, उन्हें हासिल करने के लिए कहीं बाहर भटकना नहीं है। बस, अपने को पहचानना है तथा अपने इन गुणों में से स्वार्थ, अज्ञानता की धूल-मिट्टी को उतार कर इन्हें और निखारना व चमकाना है।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।