युवा वर्ग में आध्यात्मिकता की आवश्यकता

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कितने भाग्यशाली हैं युवा। कोई गृहस्थी का बोझ नहीं। निश्चिन्त जीवन है। खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई का मस्त जीवन है। कोई उल्टी सीढ़ी नहीं चढ़ी, विशेष कोई पाप कर्म नहीं किया इसलिए भी निश्चिन्त जीवन है।

अपनी पढ़ाई के लक्ष्य द्वारा भविष्य जीवन का चित्र निर्माण करना, इतना ख्याल युवा पीढ़ी को रखना आवश्यक है। युवा वर्ग ही आने वाली पीढ़ी का आधार स्तम्भ है। सभी की नजर युवा वर्ग पर ही है। युवक को देखकर भविष्य कैसा होगा यह बता सकते हैं। बहुत जिम्मेदारी है युवा वर्ग पर।

परन्तु आज देखने में तो यह आता है कि युवा वर्ग भी इस कलियुग के तमोपधान वातावरण में दुःखी, अशान्त और चिन्ताग्रस्त है। जबकि उसमें सदा उमंग-उत्साह रहना आवश्यक है। युवा निराश-उदास दिखाई पड़ता है तो इसका कारण यही है कि वह स्वयं के महत्त्व को, स्वयं के कर्त्तव्य को, स्वयं की जिम्मेवारी को भुला हुआ है।

संगदोष में आकर वातावरण के वशीभूत होकर निराश, उदास, दुःखी, अशान्त हुआ है। 5 विकारों के वश युवा, भविष्य के जितने भी अच्छे चित्र बनाता है, वे केवल स्वप्न ही रह जाते हैं। उसका जीवन उदासीन, दुःखी तथा निराशा भरा बन जाता है। ये विकार ही सर्व दुःखों का कारण हैं।

वास्तव में पवित्र बुद्धि ही हमें आगे बढ़ाती है। अगर युवा अवस्था में पवित्रता है तो एकाग्रता द्वारा स्वयं की जितनी चाहें उतनी तरक्की कर सकते हैं। युवा के मन में अधिकांशत एकाग्रता, एकता और शक्ति होती है लेकिन जब वह संगदोष में आकर विकारों के वश होकर स्वयं को अपवित्र बनाता है तब वह हर कार्य विनाशकारी करता है।

क्योंकि पवित्र युवा इनोसेंट बुद्धि का होता है। वह रचनात्मक कार्य करता है। युवा को इस कलियुग के विकारी तमोपधान वातावरण से बचने के लिए और स्वयं को श्रेष्ठ चरित्रवान, गुणवान, पेरणादायक बनाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ आध्यात्मिकता की ओर भी ज़रूर बढ़ना चाहिए। तभी युवा वर्ग सभी की आशा को पूरा कर सकेगा, अपने लक्ष्य को साकार कर सकेगा।

विश्व-परिवर्तन का कार्य कर सकेगा। अगर जीवन में आध्यात्मिकता का संतुलन नहीं होगा तो चाहते हुए भी वह अच्छा नहीं बन सकेगा। चाहते हुए भी बुराइयाँ उसे अपनी तरफ खींचेंगी। आज दुनिया में संगदोष आदि के कारण युवा चाहते हुए भी अश्लील साहित्य, अश्लील सिनेमा, फैशन, टी.वी., रेडियो, अश्लील गीत आदि की तरफ खिंचा चला जा रहा है।

उसे लगता है कि इनमें शान्ति है। अगर एक बार ऐसी बातों का अनुभव किया तो वही आदत पड़ जाती है, उससे छूटना मुश्किल हो जाता है।

इन सभी मायावी बातों से बचने के लिए स्वयं को श्रेष्ठ ज्ञान द्वारा, श्रेष्ठ विचारों द्वारा, श्रेष्ठ कर्म करने में व्यस्त रखना है। जितना स्वयं में आध्यात्मिक ज्ञान होगा, शान्ति ढूँढ़ने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इन सभी मायावी साधनों से बच जायेंगे। युवा वर्ग को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि

1. युवा विश्व के आधार स्तम्भ हैं युवा वर्ग बच्चों और बुजुर्गों का सहारा है। जो कर्म हम करेंगे हमें देख और भी वैसा ही कर्म करेंगे। युवा वर्ग खिलते हुए फूल के समान है। मुरझाये हुए को सरजीत करने वाला है। सभी को इस कलियुग के अंधकार में आशा देने वाला है। विश्व का आधार है।

2. युवा वर्ग ही विश्व की आशा है सभी की नजर अब युवा वर्ग पर है। अगर युवा वर्ग व्यसन वश होकर, बुरा कर्म करेगा तो भविष्य में आने वाली पीढ़ी और ज़्यादा बिगड़ती जायेगी। क्योंकि उनको देख और बच्चे भी ऐसा ही कर्म करेंगे।

जैसे सैनिक देश की रक्षा करता है उसी पकार युवा वर्ग को बुराइयों से (पाँच विकार, व्यसन आदि से) स्वयं की और अन्य सभी की रक्षा करनी है। उन्हें सभी डूबते हुए मनुष्यों का सहारा बनना है। विश्व नव-निर्माण के कार्य में स्वयं को मददगार समझ श्रेष्ठ कर्म करना है।

3. युवा वर्ग ही कुल का उद्धार करने वाला है इस कलियुग के घोर अज्ञान अंधकार में सभी की आशा का दीपक बुझा हुआ है। चारों तरफ अंधकार अर्थात् दुःख, अशान्ति नजर रही है।

ऐसे अंधकार में हर युवक अपना दृढ़ विचार लेकर आध्यात्मिक ज्ञान, योग द्वारा फिर से कुल का उद्धार कर सकता है तथा इस अज्ञान अंधकार को खत्म कर सकता है। क्योंकि युवा में शारीरिक बल, उमंग-उत्साह, दृढ़ विचार, मेहनत की क्षमता, निर्बन्धन आदि गुण होते हैं।

आइये युवा वर्ग हम सब मिल कर आध्यात्मिक ज्ञान-योग द्वारा इस विश्व को फिर से देवलोक समान स्वर्ग बनायें। प्रत्येक मनुष्य यदि स्वयं परिवर्तन करे तब ही विश्व परिवर्तन होगा। अपने विचारों को श्रेष्ठ बनायें तो ऐसे श्रेष्ठ विचार विनाशकारी नहीं बनेंगे बल्कि रचनात्मक कार्य करेंगे। इसलिए आध्यात्मिक ज्ञान-योग द्वारा स्वयं के विचारों को मोड़ दें ताकि मनुष्य रचनात्मक कार्य कर सके।

बुद्धि में सदा याद रहे कि मैं एक आत्मा हूँ, मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान हूँ। हम सभी आत्मायें इस धरती पर सूर्य, चाँद, तारागण से भी पार ब्रह्मलोक से पार्ट बजाने के लिए आये हैं। हम सभी आत्मायें भाई-भाई हैं। इस धरती पर 84 जन्म लिये अब फिर वापिस अपने घर जाना है।

इस तरह स्वयं को निर्विकारी, निर्व्यसनी बनाना है जिससे आने वाली पीढ़ी भी ऐसी श्रेष्ठ बनेगी। रोज आध्यात्मिक ज्ञान-योग का संतुलन जीवन में रख कर चलना है।

ऐसे आध्यात्मिक ज्ञान-योग द्वारा अनेक युवाओं को श्रेष्ठ, निर्विकारी, निर्व्यसनी, पेरणादायक बनाने के लिए स्वयं परमात्मा द्वारा रचित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में निशुल्क शिक्षा दी जाती है। यदि आपके शहर में नजदीक कहीं यह शाखा हो तो आप ज़रूर जाकर अपना जीवन श्रेष्ठ बना सकते हैं।

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