कुदरत का कोप और युवाओं का योगदान

0

प्रकृति और पुरुष का आदिकाल से ही चोली-दामन का साथ रहा है, दोनों ही एक दूसरे के जैसे पूरक रहे हैं तथा दोनों की ही अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पुरुष चूंकि प्रकृति का स्वामी रहा है अत स्वाभाविक रूप से पुरुष (आत्मा) की महती भूमिका प्रकृति को सजाने-संवारने तथा उसके नैसर्गिक सौंदर्य में अभिवृद्धि करने में रही है।

पहले-पहल तो मनुष्य की आवश्यकताएँ अत्यधिक सीमित थीं, साधनों के उपभोग के बजाय साधना की ओर व्यक्तियों की रुचि रहती थी तथा इस प्रकार से प्रकृति पुरुष के मध्य सन्तुलन बना रहता था, जिसे कि वैज्ञानिक शब्दावली में पाकृतिक सन्तुलन की संज्ञा दी जाती है। लेकिन समय के बदलते हुए परिवेश में मनुष्य की लालसा भौतिकता की ओर आकृष्ट होता गई तथा साधना का स्थान साधनों ने ग्रहण कर लिया।

आज स्थिति यहॉं तक पहुँची है कि मानव को स्वहित के अलावा और कुछ नज़र ही नहीं आता है। साधन उत्तरोत्तर बढ़ते जा रहे हैं तथा शनैः-शनैः साधना का क्षेत्र सुंकचित होता चला जा रहा है।

आज हालात यहॉं तक पहुँच गये हैं कि व्यक्ति पूर्णरूपेण साधनों का दास बन कर रह गया है। भोग-विलासता के साधनों के अधिकाधिक प्रयोग को आधुनिकता एवं सभ्यता से जोड़ दिया गया है जिसकी परिणति पकृति के अनैतिक दोहन के रूप में हम सबके समक्ष पकट हो रही है तथा आज यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि प्रकृति का अनैतिक दोहन ही मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो रहा है जिसकी अभी हाल ही में हम सभी ने गुजरात देश के अन्य भागों में झलक देखी है।

विश्व के कई पतिष्ठित वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि तापकम (ग्लोबल वार्मिंग), प्रकृति के अनैतिक दोहन की ही परिणति है तथा इन सांइसदानों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते ठोस उपाय नहीं किये गये तो आने वाले समय में गुजरात जैसी अनेकानेक पाकृतिक आपदाएँ सकती हैं।

विगत में ही वाशिंगटन स्थित वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट ने अपनी एक रिर्पोट में बताया था कि दोनों ध्रुवों और पर्वतमालाओं पर बिछी हिम चादर असामान्य गति से पिघलने लगी है जो पृथ्वी के, ग्रीन हाऊस प्रभाव के चपेट में आने का प्रथम प्रमाण है। बर्प पिघलने का अभिपाय है महासागर के जलस्तर का कई मीटर ऊपर उठ जाना तथा संसार के बहुत बड़े भूभाग का जलमग्न हो जाना।

यदि हम उपरोक्त परिदृश्यों पर दृष्टिपात करें तो एक बात जो स्पष्ट रूप से उभरती है वह यह है कि सभी प्रकार की प्रकृतिक आपदाओं के पीछे मनुष्य की अपनी लोभ-लालच की वृत्ति ही काम कर रही है। उदाहणस्वरूप गुजरात में धन-जन की अपार हानि के पीछे एक बहुत बड़ा कारण मकानों का भूकम्परोधी बना होना भी था जिसका सीधा सम्बन्ध स्वार्थलोलुपता से है। घरों का निर्माण करने वाली संस्थाओं में यदि तनिक भी मानवीयता होती तो वे लालच के वश घटिया भवन सामग्री पयोग में नहीं लातीं तथा मजबूत मकान होते तो पूर्णरूपेण नहीं तो आंशिक रूप से धन-जन की हानि को कम किया जा सकता था।

अब प्रश्न उठता है कि पकृति से मानव का जो सम्पर्पक दिनों-दिन कम होता जा रहा है, उसे कैसे पुनस्थापित किया जाय, साथ ही युवाओं का क्या योगदान इस कार्य में हो सकता है? जैसा कि हमने गुजरात त्रासदी के समय देखा कि युवाओं ने धर्म-भेद, जाति-भेद, रंग-भेद तथा भाषा-भेद से ऊपर उठकर सभी के पाणों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ठीक उसी तरह मूल्यों की धारणा में भी युवक सभी के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण प्र स्तुत कर सकते हैं। जैसे कि हमने इस लेख के पूर्व में विस्तार से चर्चा की है कि प्रकृति की इस आपदा के पीछे मनुष्य की विकृत भावनाएं काम कर रही हैं, इसलिए इससे बचने का उपाय भी विकृत भावनाओं का मूल्यनिष्ठा एवं कर्त्तव्यनिष्ठा से ज़ोड़ने में निहित है।

चूंकि युवाओं के अन्दर अपार शक्ति होती है अत वे यदि दृढता दिखायें तो स्वजीवन में मूल्यों, गुणों एवं शक्तियों को धारण कर सकते हैं तथा अपने आदर्शमय जीवन से अनेकों के लिए प्ररणास्त्रोत बन सकते हैं। लेखक का स्वयं का यह अनुभव है कि जीवन को मूल्ययुक्त बनाने, पारदर्शी बनाने एवं कर्मठ बनाने में राजयोग का अभ्यास बहुत ही सहायक सिद होता है।

तो मैं अपने युवा भाई-बहनों से विशेष एवं अन्य सभी से आम अनुरोध करूँगा कि वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विश्व विद्यालय द्वारा पायोजित राजयोग शिविरों में अवश्य ही भाग लें। योगी बनने से हम स्वजीवन ही नहीं अपितु अन्य साथियों एवं परिजनों को भी श्रेष्ठ बनने की प्ररेणा दे सकते हैं तथा प्रकृति को भी शत्रु के बजाय मित्र बना सकते हैं।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top