आध्यात्मिक कान्ति ही लायेगी सांस्कृतिक सुख-शान्ति

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आज सुखमय संसार के नव निर्माण हेतु आध्यात्मिक महाकान्ति की पुरजोर ज़रूरत है। यद्यपि कलियुगी गाड़ी की मरम्मत हेतु अनेकों पयत्न किये गये। परन्तु अब यह और आगे बढ़ने लायक नहीं रह गई।

संसार में जितनी भी कान्तियाँ हुई हैं, सभी में पखर-पबुद्ध आत्माओं का ही विशेष योगदान रहा है। परन्तु घोर पतन के गर्त में गिरी आज की विश्व संस्कृति को जितने योग-सहयोग और बलिदान की ज़रूरत है उतनी कभी नहीं थी। विज्ञान-कानून आदि साधन सामग्रियों के अम्बार में तो नेक इंसान जैसे दबता जा रहा है।

सभी की मूल्यवान धारणायें उच्च संस्कार जैसे कि सूखते जा रहे हैं। अब हर दिल में दबी आध्यात्मिक शक्तियों को जगा कर, माँ भारती त्याग-तपस्या और दिव्यता हेतु पुकार रही हैं। गिरते हुए विश्व बन्धुत्व को बचाने के लिए शिव के साथ पजापिता ब्रह्मा भी भुजायें फैला कर सभी का आह्वान कर रहे हैं।

समर्पण का विश्व-गगन पर पभाव जो साहस के साथ सत्यता-सहनशीलता और भाईचारे को बढ़ाते, वे ही नैतिकता और पवित्रता की डूबती नय्या के सच्चे खिवैया बन सकते हैं। जबकि रुकने का नाम ही बुढ़ापा है। युवापन शारीरिक आयु पर नहीं, विकसित होने की दक्षता और आगे बढ़ने की योग्यता पर निर्भर करता है।

युगान्तकारी परिवर्तनों में, पबुद्ध और पखर लोगों ने ही स्वार्थपरता और विलासिता को ठोकरें मार कर आगे-ही–आगे बढ़ाने की मशाल उठाई थी। पीछे से तो लाखों-लाख हाथ उनका साथ देने के लिये तन गये। बौद्ध और सिक्ख धर्म को ही देखिए, मात्र पाँच-पाँच लोगों ने ही पथम पयाण किया।

पर बौद्ध धर्मानुयायियों की समर्पणमयता ने उनकी धर्मा पताका को विश्व में द्वितीय स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया। ईसामसीह के दीक्षित थोड़े से पबुद्ध नौजवान आगे बढ़े तो उनका विश्व के अधिकतम भू भाग पर आज वर्चस्व छाया हुआ है। कालमार्क्स के देहावसान पर दस शिष्य ही उन्हें दफनाने गये पर उन्हीं के द्वारा विश्व के बहुत बड़े भूखण्ड पर साम्यवाद का बोलवाला हो गया।

अमेरिका की 1910 की समग्र कान्ति की नींव मात्र 9 प्रबुद्ध कान्तिकारियों ने वाशिंगटन में रखी थी। उनके ही पदचिह्नों पर चल कर आज वह विश्व अधिपति के रूप में देखा जा रहा है। अपने निष्ठावान नौजवानों के बल पर सोवियत यूनियन कुछ ही वर्षों में वैज्ञानिक जगत का सरताज कहलाने लगा था। जापान-क्यूबा-कम्बोडिया जैसे छोटे-मोटे देश निर्धनों में गिने जाते थे पर कुछ ही प्रतिभाओं के आगे बढ़ते ही वे समुन्नत राष्ट्रों में गिने जा रहे हैं।

भारत माताओं की पुकार किसी भी देश समाज का विकास कुछ त्यागी-बलिदानी-उन्नत पतिभाओं के आगे बढ़ कर विजय का नगाड़ा बजाने से ही होता है। उच्च उद्देश्यों से भरपूर लोगों को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। मौज से खा-पीकर परिवार बढ़ाते हुए कूच कर जाने वाले तो करोड़ों-अरबों भरे पड़े हैं। सम्पूर्ण सांस्कृतिक उत्थान के लिए सर हथेली पर रख कर चलने वाले, तैयार खड़े हैं।

पभु परवानों! शुभ मन दो तुम्हें स्वर्णिम संसार दूँगा अलौकिक आत्माओ! विश्व का दिव्य शृंगार करने के लिए ही आपका यह नया जन्म हुआ है। आध्यात्मिक कमर कस लो तो सहज ही धरा पर स्वर्ग उतार लाओगे। बढ़ते चलो, सफलता कदम चूमेगी। दुनिया जानती है कि जिन अंग्रेज़ों के राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, मुट्ठी भर भारतीय लोगों के बुलन्द हौंसलों ने उनके सारे अरमान बिखेर कर रख दिये। भारतीय वसुन्धरा उनके बलिदान की आज भी ऋणी है।

पर वे भीख माँगने वाले भारत की बलिवेदी पर आहुत नहीं हुए थे। वे तो मन में, विश्व गगन में इसकी आध्यात्मिक और भौतिक यश पताका फहराने का सपना स्ंजोये थे। हे जगत के भाल पर चमकने वाली अविनाशी आत्माओ! क्या तुम्हारे संकल्पों में ऐसे उच्च अरमान, रगों में ऐसा खून और बाजुओं में इतनी ताकत और हुनर नहीं जो सभी के रहे अरमानों को पूरा कर दिखाओ?

संगमयुग बीत रहा है, संस्कार बदल डालो आज तो स्वमान की बजाय अभिमान, आत्मानन्द की जगह अपराधी बनना लोगों को पसन्द आता है। शुद्ध स्नेह के बदले विकृत काम विकार, व्यवहारिक पवित्रता के बदले मोह माया का जंजाल, सारे जहाँ में खुशियाँ बिखेरने वाले लोगों के जीवन को पापों का पिटारा बना रहा है।

जब राष्ट्रपिता गाँधी के सिद्धांतों पर चल कर देश को स्वतत्र करा लिया गया तो जगत के बापू शिव बाबा द्वारा प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के पदचिह्नों पर चल कर विकारों की बेड़ियों में जकड़ी मानवता को सम्पूर्ण पवित्रता-सुख-शान्ति नहीं दिला सकते? जैसे प्रकाश की किरणें पिज्म पर डालने से सुन्दर सात रंग दिखाई देते हैं, वैसे ही कोणदार आत्माओं पर परमात्म-ज्ञान की किरणें पड़ते ही उनकी दिव्य शक्तियाँ और नैतिक मूल्य जागृत होने लगेंगे।

ऐसी आत्मायें सुभाषचन्द्रबोष, महारानी लक्ष्मी बाई, आइंस्टाइन, न्यूटान जैसे बेमिसाल लोगों से से भी महान ईश्वरीय कार्य करके भारत का भाल ऊँचा उठा देंगे। हमारे श्वांसों की रफ्तार एक नये संसार का निर्माण करने को कह रही है। ज्ञानवान बन सभ्यता के चरम सोपान पर चढ़ने वाले दूसरे कौन होंगे?

उठो भाई जागो बहनो, सस्कार नया डालो, यह संगम बीत रहा है संसार बदल डालो।

सत्य की संभाल ढ़ाल, पीति की लेकर मशाल, धरती माँ के कर्जदार, नव सृजन कर डालो।।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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