इस भौतिक संसार के कमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कहते हैं और इस दुनिया से भिन्न अभौतिक ज्ञान को अध्यात्म कहते हैं। विज्ञान में हम भौतिक वस्तुओं के निर्माण का अध्ययन करते हैं और आध्यात्मिक में आत्मा के पुनुर्त्थान का। विज्ञान भी समस्त विश्व के लिए एक है और अध्यात्म भी। दोनों का लक्ष्य भी उन्नति के शिखर पर ही पहूंचने का है, दोनों का वास्तव में गहरा सम्बन्ध है। यहाँ हम दोनों की साथ-साथ चर्चा करेंगे।
विज्ञान एक खोज है, उसमें खोज हो रही है – वह सम्पूर्ण नहीं, उसमें परिवर्तन होता रहता है। आध्यात्मिकता स्वयं में सम्पूर्ण है, उसमें खोज नहीं है। इसलिए हम विज्ञान के आधार पर अध्यात्म को परखने का साहस नहीं कर सकते। पहले अध्यात्म है, पीछे विज्ञान। क्योंकि विज्ञान की खोज करने वाली भी स्वयं आत्मा ही है।
प्रश्न उठता है कि इन दोनों में महान कौन है? वास्तव में अपने-अपने क्षेत्र में दोनों ही महान हैं। विज्ञान ने भी भौतिक क्षेत्र में असम्भव को सम्भव बना दिया है और अध्यात्म की भी वही देन है, परन्तु विज्ञान प्रत्यक्ष है, अध्यात्म गुप्त शक्ति। इसलिए मनुष्य के मन पर विज्ञान राज्य करता है, अध्यात्म अदृश्य है। पहले अध्यात्म का जन्म हुआ, फिर विज्ञान का।
जननी आध्यात्मिकता ही है। गहराई में जाने से यह बात ज्ञात होती है कि विज्ञान का कार्य भी अध्यात्म की पेरणा से ही चलता है। आपको ज्ञात हो कि जबसे शिव परमात्मा का अवतरण इस सृष्टि पर हुआ, तब से विज्ञान ने दिन दूनी-रात चौगुनी उननति की है। आध्यात्मवादी जितना सूक्ष्म स्थिति धारण करते जाते हैं उतना ही सूक्ष्म स्वरूप विज्ञान का होता जा रहा है। वैज्ञानिक स्वयं भी यह महसूस करते हैं कि किसी सूक्ष्म शक्ति की पेरणा से वे कार्य कर रहे हैं और वह प्रेरणा है आध्यात्मिकता की।
संसार में जिधर भी कदम बढ़ाओ, विज्ञान के चमत्कार दिखाई देते हैं। विज्ञान के प्रत्यक्ष सुखों को देखकर, मनुष्य स्वयं को उस पर बलिहार कर चुका है अथवा यूँ कहें उसका गुलाम बन चुका है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि विज्ञान ने मनुष्य को बहुत सुख दिया है। रोग से तड़पते पाणी को एक इंजेक्शन लगा कर विज्ञान शान्ति प्रदान कर देता है।
उसने मनुष्य के समय को बचा दिया, जीवन को सरल कर दिया। वह हवाई जहाज द्वारा अल्पकाल में विश्व भ्रमण भी कर सकता है, परन्तु विज्ञान ने मनुष्य को भौतिक सुख दिये, मशीन युग के प्रसार ने वास्तव में मानव को रोगी बना दिया। जहाँ एक ओर विज्ञान अनेक उपचार शोध रहा है, वहीं दूसरी ओर शिथिल भी बना रहा है।
पिक्चर के द्वारा अल्पकाल का सुख तो देता है परन्तु सदाकाल का आराम नहीं। उसने साधन तो दिये परन्तु सदुपयोग नहीं सिखाया, जिस कारण मनुष्य में विकारों का बढ़ावा होता गया, जिसने उसकी सच्ची सुख-शान्ति छीन ली, चरित्र को भ्रष्ट बना दिया। विज्ञान के इतने सुखों के साधन होते हुए भी मनुष्य का तनाव बढ़ता जाता है, अशान्ति और दुःख बढ़ता जाता है।
आध्यात्मिकता के द्वारा मनुष्य स्वयं को जान लेता है और आत्म-ज्ञान से मनोविकारों पर विजय पाप्त करके सच्चे सुख-शान्ति के सागर में लहराने लगता है।
विज्ञान का सुख बाह्य रसों पर आधारित है। उसे कान का रस, मुख का रस, नयनों का रस, कर्मन्द्रियों के रसों द्वारा क्षणिक आनन्द होता है, जबकि अध्यात्म की ओर अग्रसर आत्मा को इन सभी रसों को त्याग कर इन्द्रियों से परे अलौकिक रस का आभास होता है।
दोनों की शक्ति भी अति विशाल है। विज्ञान ने भी बहुत रचनात्मक कार्य किये हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं, परन्तु उसकी शक्ति मनुष्य के संहार का कारण बनती है, इतिहास इसका साक्षी है। विज्ञान द्वारा पुराने विश्व की समाप्ति का कार्य सम्पन्न होगा। वास्तव में दोनों की ही आवश्यकता है, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की सफलता नहीं।
अगर विज्ञान केवल विनाश ही करे तो विश्व निर्जन बन जाए, रेगिस्तान बन जाए परन्तु अध्यात्म उस पर नवयुग का सृजन कर देता है। जिस नवयुग में पुन विज्ञान की शेष शक्तियों का सदुपयोग किया जा सकेगा।
एक वैज्ञानिक का लक्ष्य तत्वों पर विजय पाप्त करना होता है। पकृति को अपने अधीन करना होता है। उसकी पहुँच प्रकृति तक है। उसने तत्वों को अधीन किया, परन्तु मनोविकारों पर विजय पाप्त कराने की शक्ति उसमें नहीं है। जबकि अध्यात्म के द्वारा एक योगी 5 तत्वों पर भी विजय पाप्त करता है और 5 विकारों पर भी।
विज्ञान तत्वों के आकर्षण से पार जा सकता है, अन्तरिक्ष में घूम सकता है, परन्तु मानव को विकार मुक्त न बनाने के कारण वह सही अर्थ में नवनिर्माण का कार्य नहीं कर पाता। विज्ञान की दौड़ अंतरिक्ष तक है, अध्यात्म की दौड़ अन्तरिक्ष के भी पार, परे का आभास वैज्ञानिक को नहीं, एक योगी को है।
विज्ञान की उन्नति बाह्य उन्नति है, परन्तु बेहद की दृष्टि से देखें तो जैसे-जैसे विज्ञान की उन्नति हुई मानवता का ह्रास हुआ। क्यों? विज्ञान मनुष्य को मनुष्य न बना सका। मनुष्य एक भोगी और विलासी पशु सम बनकर रह गया। विज्ञान ने मनुष्य को चाँद तक पहुँचा दिया, परन्तु उसके मन को चाँद जैसा शीतल नहीं बनाया। विज्ञान ने मनुष्य की बुद्धि को सूक्ष्म और तीक्ष्ण तो अवश्य ही बना दिया, परन्तु दिव्य नहीं बनाया।
इसलिए मन में भड़कती आग और बुद्धि के बढ़ते अहंकार के कारण संसार पतन के गर्त में चला गया। इसके विपरीत अध्यात्म द्वारा मनुष्य में शीतलता, मधुरता, स्नेह का सृजन होता है जिससे व्यक्ति, समाज व विश्व का उत्थान होता जाता है।
अध्यात्म द्वारा मनुष्य देवत्व की ओर अग्रसर होता है जोकि वास्तव में मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि विज्ञान ने मनुष्य को बहुत विद्वान बनाया, परन्तु महान नहीं बनाया। महानता के लिए मानव को अध्यात्म की शरण लेनी पड़ेगी।
विज्ञान का आधार – क्या, क्यों और कैसे है, परन्तु एक आध्यात्मवादी को सर्व साधनों से परे होकर अपने साध्य में ही एकाग्र करनी होगी है और सभी प्रश्नों को समाप्त करना होता है। दोनों में ही एकाग्रता का महत्त्व है, परन्तु विज्ञान की एकाग्रता भौतिकता पर और अध्यात्म की एकाग्रता भौतिकता से परे की है। एक योगी भी जब बहुत गहराई में जाता है तो वह भी अनेक सूक्ष्म साधनों के द्वारा मनुष्य की सच्ची सेवा कर पाता है।
विज्ञान के आधुनिक आविष्कारों ने और दिन-प्रतिदिन होने वाले विस्फोटों के परिणामस्वरूप वातावरण प्रदूषण बढ़ता जाता है जिससे अनेक पकार की हानि मनुष्य को उठानी पड़ती है। अध्यात्म शक्ति द्वारा दूषित वायुमण्डल को स्वच्छ किया जाता है। एक योगी एक स्थान पर बैठकर वातावरण को शान्तमय और आनन्दमय बनाने की शक्ति रखता है।
विज्ञान ने मनुष्य को ऐसे-ऐसे श्रेष्ठ साधन दे दिये हैं जिनसे मनुष्य एक स्थान पर बैठकर दूर के दृश्य देख सकता है। इन्हीं उपकरणों को देख मनुष्य का विज्ञान में विश्वास हो गया और वह उसकी ओर आकर्षित हो गया, परन्तु अध्यात्म के बल से तो योगी यहाँ बैठे सूर्य-चाँद-तारों के भी पार के दृश्य देख सकता है। विज्ञान शक्ति द्वारा तो मनुष्य, मनुष्यों से बात कर सकता है परन्तु अध्यात्म शक्ति द्वारा तो मनुष्य भगवान से बातें कर सकता है।
वर्तमान समय बढ़ती सांसारिक तपत और अशान्ति का हल विज्ञान के पास नहीं है। अगर मनुष्य का मन अशान्त हो तो सभी साधन फीके लगते हैं परन्तु अध्यात्म बल के द्वारा योगी दूर बैठे भी किसी तड़फती हुई आत्मा को सुख-शान्ति का दान दे सकता है, अपने शुद्ध संकल्पों के द्वारा किसी को भी आनन्दित कर सकता है।
विज्ञान ने अनेक आविष्यकार तो किये परन्तु अनेक उपकरणों के आविष्कारों ने मनुष्य को दम्भी बना दिया और फलस्वरूप समस्त विश्व में एक शत्रुता का वातावरण पैदा हो गया। इस शत्रुता के कारण आज मानवता खतरे से खाली नहीं है, खतरा बढ़ता ही जाता है परन्तु अध्यात्म के बल से परस्पर स्नेह बढ़ता है, देशों की उन्नति होती है।
गुप्त शक्ति अधिक शक्तिशाली होती है। विज्ञान की शक्ति तो आज मनुष्य के सामने पत्यक्ष है इसलिए मनुष्य का उधर झुकाव है परन्तु अध्यात्म शक्ति गुप्त है जो उससे भी पभावशाली है परन्तु गुप्त होने के कारण मनुष्य उसका अहसास नहीं कर पाता है परन्तु जैसे एक वैज्ञानिक ही विज्ञान की शक्ति को यथार्थ रूप से जानता है, वैसे ही एक योगी अध्यात्म की शक्ति का भी पारखी होता है।
अन्त में विज्ञान, अध्यात्म में समा कर एक हो जायेगा। वैज्ञानिक को भी अन्त में अध्यात्म का ही सहारा लेना होगा। दोनों के समन्वय से एक आदर्श विश्व का संचालन होगा।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।