युवा तू बन सर्व महान

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युवाओं में भविष्य के प्रति दिवा स्वप्न होते हैं, युवा कियाशील होते हैं। युवाओं के दिल में देश और दुनिया के प्रति एक नया दृष्टिकोण होता है। कितने ही ऐसे वृत्तांत देखने को मिलने हैं कि जब किसी भी आंदोलन को तार्पिक परिणिति तक पहुँचाने में युवकों ने महती भूमिका निभाई। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था मुझे युवाओं के साथ काम करने में बहुत आनंद पाप्त होता है क्योंकि युवकों में ही देश का भविष्य बसता है।

वस्तुत आज का युवा, कल का नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, अभियंता, चिकित्सक आदि बनता है। अत आवश्यकता युवाओं के कोमल मन को नई दिशा देने की है। उनकी भावनाओं को सही मार्ग-दर्शना देने की है। युवकों को यदि आरम्भ में ही सही पालना मिले तो ये समाज और देश की दिशा को नया मोड़ दे सकते हैं।

सफलता के लिए छोटा रास्ता नहीं है

आज का युवा ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ उसे रातोंरात विश्व विख्यात बनने और श्रेष्ठ भविष्य बनाने के सपने दिखाये जाते हैं एवं उसे उच्च शिक्षा ग्रहण करके विदेश में बस जाने की योजनायें भी बताई जाती हैं। कई युवा, मोहजाल के इस घटाटोप में ऐसे फँसते हैं कि वे तो अपना भविष्य इस देश में बना पाते हैं और ही विदेश जाकर कोई स्थाई कार्य कर पाते हैं।

यहाँ हमारा विचार युवाओं को विदेश जाने से रोकने अथवा ऊँची शिक्षा ग्रहण करने से हतोत्साहित करना नहीं अपितु उनके अंदर देश के प्रति आदर की भावना भरने का है। हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि सफलता के लिए कोई भी छोटा रास्ता नहीं है। युवा जब सीढ़ी-दर-सीढ़ी भविष्य की ओर बढ़ते हैं तो पाप्तियाँ, भले ही दूरगामी लगें पर अधिक स्थाई होती हैं।

मेहनत और कसरत से मिली कामयाबी से मन को सुकून मिलता है एवं आत्मविश्वास भी बढ़ता है। शॉर्ट कट के चक्कर को छोड़ कर मेहनत करना, सभी के साथ मुहब्बत करना तथा सभी के साथ आत्मीयता का व्यवहार करना ही हमें कामयाबी की ऊँचाइयों तक ले जाता है।

महान बनने के कुछेक गुर

1. सकारात्मक बनें सकारात्मकता आज की महती आवश्यकता है। सकारात्मक सोच मनुष्य को सफलता के सर्वोच्च शिखर तक ले जा सकती है। सकारात्मक चिंतन शरीर के साथ-साथ आत्मा को भी ऊर्जा प्रदान करता है। चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ जायें युवाओं को सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ ही कार्य करना चाहिए। सकारात्मक सोच उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनने में मददगार सिद्ध होती है।

सकारात्मक सोच एवं कुछ नया करने का उत्साह युवकों को जीवन की नई दिशा प्रदान कर सकता है। इतिहास में कितने ही ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब नये सोच के आधार से अकेले व्यक्ति ने सारे समाज को नई दिशा पदान की। किकेट में खेलने वाले ग्यारह युवा खिलाड़ी सारे देश को उमंग और उत्साह से भर देते हैं।

सकारात्मक खेल खेलने की पवृत्ति उनके अंदर देश के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा भर देती है। युवा, खेल में आगे बढ़ें साथ ही चारित्रिक विकास भी करें तो उन्हें देश तो क्या सारा विश्व ही अपना हीरो मानेगा। आज सर्वाधिक आवश्यकता इसी बात की है कि हमारे युवा संतुलित विकास पर ध्यान दें। भौतिक पगति करें और इसके साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति पर भी ध्यान दें। ऐसे युवकों की आज सर्वाधिक आवश्यकता है।

सहयोगी बनें आधुनिक युवा दूसरों से तो सहयोग की अपेक्षा करता है लेकिन किसी को सहयोग देना नहीं चाहता है। जबकि कहने में आता है कि सहयोग दो और सहयोग लो। यदि हम दूसरों के दुःखों को बाँटेंगे, ज़रूरतमंदों की मदद करेंगे और विपत्ति के समय उनका साथ निभायेंगे तो अवश्य ही हमें सबका सहयोग पाप्त होगा। सहयोगी व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता, वह सबको साथ लेकर चलता है और सभी उसके साथ होते हैं।

विवेकशील बनें विवेक, मनुष्य को ईश्वर द्वारा दिया गया सबसे सुन्दर तोह़फा है। यदि युवा अपने विवेक का सही प्रयोग करना सीख लें तो देश का और अपना कल्याण कर सकते हैं। गीता में एक स्थान पर कहा गया है कि आत्मा स्वयं का शत्रु भी है और मित्र भी है।

यदि हम विवेक सहित कार्य करते हैं तो आत्मा अपना मित्र है और यदि इसके विपरीत कार्य करते हैं तो आत्मा स्वयं की शत्रु बन जाती है। आज के युवाओं को कोई भी निर्णय लेने से पूर्व अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिए। आगा-पीछा देखकर ही कोई फैसला करना चाहिए।

राजयोगी बनें योग से योग्यताएँ आती हैं। सवेरे-सवेरे उठकर पभु के ध्यान में मग्न हो जाना ही योग कहलाता है। भगवान को सच्चे मन से याद करना, निस्वार्थ भावना से याद करना ही सच्चा योग है। 

पातकाल उठकर नकारात्मक और निकृष्ट बातों को छोड़कर स्व-चिंतन में लीन हो जाने से आत्मा की बैटरी चार्ज हो जाती है और सारे दिन एकरस अवस्था बनी रहती है। योगीजन ठीक निर्णय और पभावी निर्णय लेने में समर्थ होते हैं, उनके समक्ष कभी भी अनिर्णय की स्थिति नहीं सकती है।

उत्तरदायी बनें वर्तमान समय में युवाओं में अपनी ज़िम्मेवारियों को समझने का नितांत अभाव है। फलस्वरूप वे अधिक उन्नति नहीं कर पाते हैं। हमें कोई दूसरा समझाए इससे पहले ही अपने कर्त्तव्यों का आभास हो जाना हमारे स्वर्णिम भविष्य का परिचायक है। कई बार युवाओं के मन में यह भाव भर जाता है कि क्या करें, कोई हमें जिम्मेवारी देना ही नहीं चाहता?

यहाँ यह बताना समुचित होगा कि जिम्मेवारी कभी भी किसी को दी नहीं जाती है लेकिन लेनी पड़ती है। हमें यह सिद्ध करना होगा कि कोई भी कार्य करने की क्षमता हमारे में है। हम, कार्य कैसा भी क्यों हो, करने से झिझकें नहीं, सदा ही बुद्धि का सदुपयोग करते हुए पगति के पथ पर आगे बढ़ते चलें।

सर्वांगीण विकासवान बनें अच्छी पढ़ाई-लिखाई करके ऊँच पद पाप्त कर लेना मात्र ही जीवन की सच्ची सार्थकता नहीं है। वास्तविक जीवन की सम्पूर्णता तो सर्वांगीण विकास में समाई हुई है। हमारा चहुँमुखी विकास हो।

हम सामाजिक बनें और समाज के पति अपने उत्तरदायित्वों का आभास करें। मन में विचार करें कि जिस समाज ने हमें आत्म-उन्नति के इतने अवसर पदान किये हैं, क्या मैंने उसके लिए कुछ किया है। महान बनना अर्थात् कृतज्ञ होकर, नम्र होकर एक का कई गुणा पत्युपकार करना।

राष्ट्र निर्माण में सहयोगी बनें राष्ट्र के पति हम सभी युवाओं का विशेष रूझान होना चाहिए। कोई भी युवा स्व-राष्ट्र को दरकिनार करके सुंदर भविष्य का स्वप्न नहीं देख सकता है। युवाओं को देश पेम, देश सेवा, देश भक्ति देश निष्ठा जैसे शब्दों को अपने शब्द-कोष में सर्वोपरि रखना चाहिए।

स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और उन्हीं युवाओं के अपितम योगदान की बदौलत भारत माता को विदेशियों के कब्जे से मुक्त कराया जा सका। लेकिन आज जो देश के अंदर स्वार्थी शक्तियाँ और देशद्रोही तत्व जन्म ले रहे हैं उनको समाप्त करने के लिए देश के पति समर्पित युवा दल की आवश्यकता है।

उच्च आदर्शवादी बनें आदर्शवादिता भारत देश की शान रही है। आज का युवा अपने आदर्शों को भूल रहा है, अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। हम बताना चाहेंगे कि आदर्शवादी बनना कोई हमारे सुनहरी भविष्य में बाधा नहीं है। अपने मूल्य और आदर्शों को लेकर पगति करने से स्वयं तो गौरवान्वित महसूस करते ही हैं साथ-साथ समाज और देश को भी ऐसे युवकों पर नाज़ होता है।

आज सर्वाधिक ज़रूरत युवाओं के महानता की ओर अग्रसर होने की है। युवा यदि आत्म-नियंत्रण के द्वारा स्वयं को मूल्यों और सिद्धांतों की कसौटी पर खरा उतारें तो उसे महान बनने से कोई भी रोक नहीं सकता है। युवा किसी का पिछलग्गू बनने के बजाय यदि स्वयं ही अपना मार्ग निर्धारित करे और अपने साथियों के लिए पेरणास्त्रोत बने तो अवश्य ही वह दूसरों के समक्ष आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।

हे युवको जागो, अपने भाग्य और इस देश के भाग्य की रेखाओं को बदल डालो। दुनिया को नया रास्ता दिखाने के निमित्त बन जाओ। आज समूची मानवता युवकों की ओर अधीरता से देख रही है। धरती माता भी पापों के बोझ से अब कांप रही है। तो आओ, हम सभी मिलकर भारत देश को महान बनाने के पुनीत कार्य में जुट जायें। लेकिन याद रखें, देश को महान बनाने से पूर्व स्वयं को महान बनाना अति आवश्यक है।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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