युगों-युगों से कला और कलाकार सम्मानित रहे हैं क्योंकि वे किसी देश, काल, जाति, भाषा की परिधि में नहीं आते क्योंकि कला तो हमें व्यापक दृष्टि पदान करती है। वह पक्षमुक्त है, मंगलकारी है एवं विशाल है। इसलिए सर्वोच्च कलाकार परमात्मा शिव को सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् भी कहते हैं। सम्पूर्ण सृष्टि तो क्या तीनों लोकों में उसकी कला का ही पकाश है।
विश्व रंगमंच है। सभी ईश्वर की कलाकारी को नतमस्तक होते हैं क्योंकि वही तो सर्व गुणों, सर्व कलाओं से अलंकृत करने वाला है। उसी की महिमा में गाते हैं – जिन मानुष ते देवता किये करत न लागी वार.....।
एक ऐतिहासिक भूल
वास्तव में मनुष्य को वानरों का वंशज मान लेने अथवा देवों की अलग ही जाति मान लेने के कारण आज मनुष्यों से दैवी गुण की अपेक्षा तो दूर रही, मनुष्यता के भी दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। जबकि वास्तविकता तो यही है कि मानव ही दैवी गुणों की धारणा से देवता बनता है अन्यथा वह चार हाथ, पाँव, मुख वाला नहीं है।
यह तो पतीकात्मक चिह्न हैं, उनकी विशेषता, शक्ति एवं विलक्षणताओं को पकट करने के लिए। कला ने समय-समय पर समाज एवं राष्ट्र को दिशा-निर्देश दिया है। दूर की बात नहीं, स्वतत्रता-संग्राम में कवियों की ओजस्वी कविताओं ने, वक्ताओं की पेरणादायी वाणी ने कान्तिकारियों के ठण्डे खून में गर्मी का तूफान भर दिया। इतिहास कवि चन्दवरदायी की सूझबूझ वाली कविता ही साक्षी है, जिसने 17 बार पराजित मुहम्मद गौरी का पृथ्वीराज के हाथों पाणान्त करा दिया। पद्मिनियों ने जौहर किया।
बिगुल बजे, डंके व नगाड़ों के साथ युद्ध में शंखनाद की रणभेरी से दिशायें कांप उठती थी और मुट्ठीभर सैनिक हज़ारों शत्रु शवों से रणभूमि को पाट देते थे। तो इतिहास बदलने में कला की महती भूमिका रही है। धार्मिक व आध्यात्मिक काव्य कृतियों ने तो युगधारा ही मोड़ दी।
लेकिन कौन-सी कला?
कला की महिमा अनन्त है – कलाहीन मनुष्य को पशुओं की श्रेणी में समझा जाता है। तभी तो कहते हैं – साहित्य, संगीत, कला विहीन। साक्षात् पशुःपुच्छ विषाण हीन।। परन्तु वह कौन-सी कला है? क्या आधुनिक कला?
जिसकी बाज़ारों में खरीद-फरोख्त होती है, जो प्रदर्शन को मोहताज रहती है, जो मानव-मन में विकृतियाँ भरती है, जो आस्थाओं और रहे-सहे नैतिक मूल्यों से खिलवाड़ करती है, जो दैहिक आकर्षणों के मकड़जाल में फँसाकर समाज को पतन के गर्त में धकेलती है?
अथवा क्या वही कला और संस्कृति है जिसके चलते राष्ट्रों के राष्ट्र तबाह हो गये, देवी-देवता भी वाममार्गी बन मानव बन गये, पूरी कि पूरी देव संस्कृति ही लुप्त हो गयी।
कला वही जो मानव मात्र के लिए मंगलकारी हो। जिस कला से विचारों में श्रेष्ठता, वाणी में पियता-मधुरता और कर्मों में दिव्यता आये। कला वही जो यथार्थ का दर्शन कराते परमार्थ के लिए पेरित करे। अध्यात्म से व आदर्श से जोड़कर जगत का कल्याण करे। आश्चर्य होता है उसे कला का नाम देते जो भला करने के बजाए चारित्रिक पतन का कारण बनती है।
समय की पुकार – जागृत हों कलाकार
वास्तव में समय की विभीषिका को देखते हुए आधुनिक कला के क्लेवर को बदलना होगा और कलाकारों को अपने उत्तरदायित्व को बखूबी निभाना होगा। यदि समय रहते आधुनिक कला को अध्यात्म से न जोड़ा गया, कला में नैतिक-चारित्रिक मूल्यों को समाहित न किया गया तो सम्पूर्ण मानव जगत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
देवता बनाम् लेवता?
प्रश्न उठता है कि इस भगीरथ कार्य की शुरूआत कहाँ से और कैसे की जाय? निश्चित ही स्वयं के आचार-विचार परिवर्तन में विश्व परिवर्तन है। अपनी वैचारिक श्रेष्ठता से यह उपलब्धि अर्जित की जा सकती है। स्वयं जगत-नियन्ता परम कलाकार ने मानव में देवत्व जागरण करने का संकल्प रचा है। राजयोग के राज मार्ग पर चलकर मानव देवत्व की ओर बढ़ चला है। वैचारिक कान्ति से देव संस्कृति का सूत्रपात हो रहा है।
ईश्वरीय महावाक्य हैं – समय की पुकार है, दाता बनो। देवता वही जो स्वार्थ छोड़ परमार्थ करें, दिव्यता का दान देता रहे। देना सीखें, लेना नहीं। देवता बनें, लेवता नहीं। देना ही लेना है। सम्मान दो तो सम्मान मिलेगा। कुटिलता से मन को खाली करो तो ही दिव्यता का पवेश सम्भव होगा। यह शाश्वत् सिद्धान्त है – सुख देने वाले को सुख और दुःख देने वाले को दुःख मिलता है।
पेम करो सभी को, पेम पाओगे। आज इच्छाओं की अनन्त दौड़ में व्यक्ति अभावों से ग्रस्त है। उसे संतोष के सुख का सूत्र विस्मृत हो गया है। वह भौतिक उपलब्धियों और तथाकथित विकसित देशों की चकाचौंध को सम्पूर्ण सुख-शान्ति व पगति का पैमाना मानने लगा है।
विनाश के कगार पर खड़ी सभ्यताओं का हश्र क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा। आइये कला को मानव में देवत्व जगाने वाली बनायें। तभी तो ‘रंग’ कला को इस पकार से परिभाषित करते हैं –
कला मनुजता में देवत्व जगाती है,
पशुता को मानवता तक पहुँचाती है।
कण-कण में भरती संवेदनशीलता,
जीवन को जीने के योग्य बनाती है।।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।