त्योहारों में श्रेष्ठ – शिवरात्रि

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वर्तमान युग समाचार, प्रसार और प्रचार युग है। आज इतनी अधिक संख्या में समाचार पत्र और पत्रिकाएं हैं कि विश्व के कोने-कोने का ही नहीं बल्कि आकाश मण्डल में होने वाले वृत्तान्तों का भी झट-से समाचार मिल जाता है। यह युग प्रसार युग भी है।

रेडियो, टेलीविज़न, सेटेलाइट, टेलेक्स, टेलीप्रिन्टर आदि के द्वारा झट से सन्देश अथवा समाचार प्रसारित किया जा सकता है। इसी प्रकार यह प्रचार युग भी है। हरेक वस्तु का व्यापारी और हरेक संस्था, अनेक साधनों से अपनी वस्तु अथवा अपने विचार का प्रचार करते हैं।

सब समाचार परन्तु परमात्मा का समाचार नहीं

परन्तु यह कैसी विडम्बना है कि इतने प्रचुर, विविध एवं सशक्त साधन उपलब्ध होने पर भी मनुष्य को अन्य सभी बातों का समाचार तो मिलता है किन्तु कहीं भी परमपिता परमात्मा का सुबोध परिचय नहीं मिलता। आज कौन क्या है?

इस विषय पर डायरेक्टरियाँ छपी हुई हैं जिनमें सभी विशेष, महान् अथवा प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम और उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। परन्तु कहीं भी सबसे विशेष, सबसे महान्, सबसे अधिक प्रभावशाली अथवा अत्यन्त विशिष्ट परमपिता परमात्मा के बारे में तो कुछ भी उल्लेख नहीं है। टेलीफोन डायरेक्टरियों में हर नगर के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का नाम और पता दिया हुआ है परन्तु परमात्मा का नाम और पता तो किसी भी शहर की डायरेक्टरी में नहीं है।

आग, पुलिस इत्यादि आवश्यक सेवाओं के टेलीफोन नम्बर सर्वप्रथम दिये हुए हैं। परन्तु काम, क्रोध की आग बुझाने वाले, दुःख तथा अशान्ति से रक्षा करने वाले परमपिता परमात्मा से कहाँ और कैसे सम्पर्प किया जाये इसका तो कहीं भी उल्लेख नहीं है! स्पष्ट है कि आज जो सूचना, समाचार या शोध-सामग्री है, उसमें परमात्मा का कुछ भी बोध नहीं है।

आज ज्ञानकोष छापे हुए हैं जिनमें विश्व-भर के सभी विषयों पर सार रूप में विशेषज्ञों ने कुछ लिखा हुआ है और हर भाषा के शब्दकोश भी असंख्य मात्रा में छपी हुई हैं परन्तु फिर भी मनुष्य परमात्मा के बारे में अनभिज्ञ है। पशु-पक्षियों, जीव-प्राणियों, वस्तुओं-विषयों पर पुस्तकों के भण्डार भरे पड़े हैं, यहाँ तक कि समुद्र तल पर मिलने वाले पौधों और पत्थरों से लेकर चाँद, मंगल, बृहस्पति तक के बारे में और उससे भी पार तारामण्डल के विषय में भी जानकारी मिलती है किन्तु परमात्मा के बारे में वैसे ही स्पष्ट, विरोध-रहित जानकारी नहीं मिलती।

आज कितने ही विषयों पर हज़ारों-लाखों लोग खोज कर रहे हैं परन्तु किसी के पास भी उस प्रभु का, परमप्रिय परमपिता का तो रहस्य उपलब्ध है नहीं। रहस्य-उपलब्ध की बात तो छोड़िये, आज तो विश्व के अनेक देशों में जन-समूह परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास भी नहीं रखता। इस सबका कारण क्या है? इतना ज्ञान-भण्डार होते हुए, प्रचार साधन होते हुए भी परमात्मा का ज्ञान अथवा परिचय क्यों नहीं?

भारत के बाहर के मतों पर विचार

यदि आप भारत से बाहर के देशों और मतों पर विचार करें, वहाँ तो चर्चा ही कुछ और है। ईसाई लोग कहते हैं कि क्राईस्ट भगवान् का पुत्र था। अच्छा, यदि वह भगवान् का पुत्र था तो भगवान् कौन है और हमारा उससे क्या सम्बन्ध है?

मुसलमान लोग कहते हैं कि मुहम्मद खुदा का रसूल अथवा पैगम्बर है। परन्तु वह खुदा कौन है, कैसा है, कहाँ है, उससे हम कैसे सम्पर्प करें, इसकी जानकारी तो कहीं भी नहीं मिलती। भारत तथा विदेशों में बुद्ध धर्म को देखें तो कहते हैं कि बुद्ध से जब भगवान् के बारे में पूछा गया तो उसने उत्तर नहीं दिया; इस विषय पर वह चुप रहा। दूसरी ओर वे कहते हैं कि बुद्ध स्वयं ही भगवान् है।

अविनाशी खण्ड भारत में सनातन धर्म पर विचार

जब हम इस प्रकार विचार करते हैं तो केवल भारत, जो विश्व का सर्व से प्रचीन खण्ड है, में आदि सनातन धर्म, जो सर्वप्राचीन धर्म है, की ओर हमारा ध्यान जाता है। इस धर्म के जो पूजा स्थान हैं, वे अतिप्राचीन हैं। उनमें मुख्य रूप से हमें दस-बारह पूजनीय अथवा महिमा-योग्य मूर्तियाँ मिलती हैं। आइये, हम उन पर विचार करें और यह जानने की कोशिश करें कि उनमें कोई परमपिता परमात्मा की प्रतिमा है या नहीं।

इससे पूर्व हम अपने मन में यह समझ लें कि परमात्मा के बारे में प्रायः  लोग चार बातों के बारे में एकमत हैं

(1) परमात्मा ज्योतिस्वरूप है

(2) वह जन्म-मरण से न्यारा, अनादि और अविनाशी, कालातीत है। इसका भाव यह हुआ कि उस प्रकाशस्वरूप परमात्मा का कोई शरीर नहीं है क्योंकि शरीर वाले का आदि और अन्त, जन्म और मरण होता है

(3) वह सभी का माता-पिता है, उसका अपना कोई माता-पिता नहीं है। इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि उसका माता (स्त्री) रूप है, पिता (पुरुष) रूप और उसकी काया है ही नहीं। जब ऐसा है तो उसकी कोई पत्नी या लौकिक नाते से पुत्र आदि होने का भी प्रशन नहीं ता।

(4) वह परम पवित्र है अर्थात् निर्विकार है और ज्ञान, शान्ति, आनन्द, प्रेम आदि का सागर तथा दाता है और विश्व का रचयिता, पालक और संहार कराने वाला तथा एक कल्याणकारी है। वही सदा मुक्त और मुक्ति तथा जीवनमुक्ति का दाता, त्रिलोकीनाथ देवों का भी देव है।

इन चारों बातों को ध्यान में रखते हुए हम जब ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर इन तीनों पर विचार करते हैं तो हम देखते हैं कि इन्हें ज्योतिस्वरूप या निराकार अर्थात् अशरीरी नहीं कहा जा सकता। दूसरी बात यह है कि पुरुष शरीर वाले होने से इनको माता भी नहीं कहा जा सकता। तीसरे, इनके तो क्रमशः स्थापना, विनाश और पालना अलग-अलग कर्तव्य हैं, इनमें से किसी के भी तीनों ही कर्त्तव्य नहीं हैं। चौथे ये तो देव हैं, ‘देवों के देव’ नहीं हैं।

इसी प्रकार, जब हम चौथी प्रकार की मूर्तियों – देवी, अम्बा, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी आदि की मूर्तियों पर ध्यान डालते हैं तो उन्हें आप माता कहें तो भी पिता नहीं कहा जा सकता और ‘देवों के देव’ तथा प्रकाशस्वरूप भी नहीं कहा जा सकता। पुनश्च, श्रीलक्ष्मी का सम्बन्ध तो श्री नारायण से, पार्वती का सम्बन्ध शंकर से जोड़ा जाता है और सरस्वती को भी ब्रह्मा की पुत्री माना जाता है, अतः इन्हें जगत का रचयिता नहीं कहा जा सकता और परमात्मा तो एक है जबकि ये एक नहीं हैं।

इसके पश्चात् यदि हम श्रीकृष्ण और श्रीराम की प्रतिमाओं पर दृष्टि डालें तो वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम तथा दिव्यगुणों से युक्त तो थे परन्तु उनका तो अपना पारिवारिक जीवन था, उनके अपने-अपने पिता तथा शिक्षक आदि भी थे और उन्होंने शारीरिक जन्म लिया तथा देह-त्याग भी किया।

उन्हें भी ज्योतिस्वरूप या विश्व का परमपिता या माता नहीं कहा जा सकता। यदि हनुमान की मूर्ति पर विचार करें तो वे तो श्रीराम के सेवक माने जाते हैं, अतः उन्हें भगवान् नहीं कहा जा सकता। यदि गणेश पर विचार करें तो वे भी शिव-सुत ही माने जाते हैं।

इस प्रकार विचार करते-करते आप देखेंगे कि केवल एक ही प्रतिमा ऐसी है जिसे आप अशरीरी (शरीर-रहित) मान सकते हैं और उसे ‘ज्योतिर्लिंगम्’ भी कहा जाता है अर्थात् वह पुरुष रूप है, स्त्री रूप है बल्कि ज्योतिस्वरूप की प्रतिमा है।

विश्व को मुक्ति देने वाले परमात्मा की प्रतिमा होने के कारण उसे ‘मुक्तेश्वर’ भी कहा जाता है, तीनों लोकों का नाथ होने के कारण ‘त्रिभुवनेश्वर’ भी और कालातीत होने के कारण ‘महाकालेश्वर’ भी,‘बिन्दुरूप’ होने के कारण उसे ही निराकार भी कहा जा सकता है और उसे ही ‘माता-पिता’ भी कहा जा सकता है क्योंकि उस का दिव्य ज्योतिरूप है।

उसके दिव्य नाम ‘शिव’ से ही स्पष्ट है कि वह ‘कल्याणकारी’ है। वही ब्रह्मा, विष्णु और शंकर त्रिदेव के रचयिता अर्थात् देवों के देव भी हैं क्योंकि अमर देवों के भी नाथ होने के कारण वे ‘अमरनाथ’ हैं। पुराणवादी लोग मानते हैं कि वे श्रीराम के भी पूज्य ‘रामेश्वर’ और श्रीकृष्ण के भी पूज्य ‘गोपेश्वर’ हैं।

शोधकर्ताओं ने देखा है कि इस रूप की प्रतिमाएं विश्व-भर के लगभग सभी देशों में आज भी मिलती हैं। यही एक सार्वभौम रूप है जो हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, सभी को मान्य हो सकता है क्योंकि आत्मा ज्योतिस्वरूप, बिन्दु रूप है तो अवश्य ही आत्माओं के परमपिता का भी ऐसा ही दिव्य रूप होगा।

परन्तु, खेद की बात है कि आज इस शिव-पिण्डी का परिचय होने के कारण कुछ लोग शिव और शंकर को एक मानने की भूल करते हैं और दूसरे, यह देखते हुए भी कि शिव तो परमपूज्य हैं, शिवोहम अर्थात् स्वयं को शिव मानने का पाप अपने सिर पर लेते हैं।

शिव परमधाम-निवासी और गीता-ज्ञान दाता

अतः आज इस सत्यता के समाचार के प्रसार और प्रचार की आवश्यकता है कि सभी आत्माओं के सुख और शान्ति के दाता, काम, क्रोधादि अग्नि को बुझाने वाले अथवा इन रोगों को हरने वाले, मुक्ति और जीवनमुक्ति के दाता परमपिता परमात्मा शिव ही हैं जो ज्योतिबिन्दु हैं। गीता में उन्हीं के महावाक्य हैं कि ‘मैं सूर्य, चांद और तारागण के भी पार परमधाम का वासी हूं।’

आप सोचते होंगे कि गीता-ज्ञान तो श्रीकृष्ण ने दिया था। परन्तु सोचने की बात है कि श्री कृष्ण तो श्रीनारायण ही के बाल्यकाल अथवा किशोरकाल का नाम है परन्तु गीता-ज्ञान देकर नर को नारायण बनाने वाले, ‘ज्ञान के सागर’, ‘देवों के देव’ तो एक परमपिता परमात्मा ही हैं।

यह विषय विस्तार से समझने के योग्य है कि वही ज्ञान के सागर परमपिता परमात्मा कलियुग के अन्त में धर्म की अति ग्लानि के समय प्रजापिता ब्रह्मा के साधारण मानवी तन में दिव्य प्रवेश करके गीता-ज्ञान द्वारा सतयुगी श्रीकृष्ण अथवा श्रीनारायण का सुखमय स्वराज्य स्थापन कराते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के साधारण तन में अवतरित हुए होने के कारण ही गीता में उनके महावाक्य हैं कि ‘लोग मुझे पहचान नहीं सकते और मुझ अविनाशी को मनुष्य-तन में देख साधारण मानते हैं।’

शिवरात्रि वास्तव में उसी परमपिता परमात्मा ही के दिव्य अवतरण की स्मृति दिलाने वाला शुभ महोत्सव है। त्रिदेव के भी रचयिता, विश्व के परमपिता के दिव्य अवतरण का उत्सव होने के कारण यह सर्वश्रेष्ठ है। ‘रात्रि’ शब्द धर्मग्लानि और अज्ञानान्धकार का सूचक है। अब वही समय फिर से चल रहा है।

सारे विश्व में परमात्मा के बारे में अज्ञानता है। किसी भी डायरेक्टरी, डिक्शनरी या पुस्तक में परमात्मा का यथा-सत्यबोध नहीं मिलता। आज काम, क्रोधादि विकार तथा आसुरी सम्पदा ही सारे विश्व में फैले हुए हैं।

विश्व के महाविनाश के लिए एटम और हाइड्रोजन बम तथा मूसल भी बन चुके हैं। अधर्म के विनाश के साधन एकत्रित होने के साथ, दूसरी ओर, परमपिता शिव प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा फिर से वास्तविक गीता-ज्ञान और सहज राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं और उस द्वारा सतयुगी श्रीकृष्ण अथवा श्रीनारायण का दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं। यह कार्य पिछले 85 वर्षों से चल रहा है और निकट भविष्य में सम्पूर्ण होने वाला है।

आपको हम परमपिता परमात्मा के दिव्य अवतरण की तथा साथ-साथ श्रीकृष्ण के आगामी स्वराज्य की (पेशगी) कोटि-कोटि बधाइयाँ देते हुए ईश्वरीय निमत्रण देते हैं कि आप भी परमपिता परमात्मा के उस अनमोल ज्ञान-खजाने तथा सहज राजयोग का लाभ लें तथा सम्पूर्ण पवित्रता, सुख, शान्ति का ईश्वरीय जन्मसिद्ध अधिकार पाप्त करें। परन्तु याद रहे कि आने वाले महाविनाश से पूर्व ‘अब नहीं तो कभी नहीं’।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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