युवाओं का आह्वान

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जहाँ शेर-गाय एक जगह पानी पीते थे, आज वहाँ पर मानव कैसे जीते हैं? भारत का इतिहास पढ़ने के बाद, उसकी भेंट में आज की तस्वीर देखकर आपके मन में कुछ भी नहीं होता क्या? कहाँ गई आपकी भावनायें? क्यों टूटे घरों, उजड़े बसेरों को देखकर आपको चैन की नींद जाती है? रोते-बिलखते बच्चों को हाथ में टूटा कटोरा पकड़े देखते हुए मुँह फेर कर निकल जाने के बाद आपके मन की कोई करुण आवाज नहीं गूँजती क्या?

गुब्बारे खेलने की उम्र में गुब्बारे बेचते बच्चे, स्कूल बैग पकड़ने की जगह टाट की बोरी पकड़े, स्कूल जाने की उम्र में, दिसम्बर-जनवरी की ठण्ड में, एक कमीज पहन कर नंगे पैर घूमते हुए, प्लास्टिक बीनते बच्चे, जब लोग रजाई में मुँह छिपाकर लेटे हुए होते हैं, तब उस ठिठुरती ठंड में कूड़ों के ढेरों पर बैठे बच्चे, अपने देश के नौनिहालों की ऐसी हालत देख कर भी आप अपना फर्ज क्यों नहीं समझते?

क्या कभी सोचा आपने कि ऐसी हालत क्यों हुई? कभी आपने सड़क पर चलते बीमार पशुओं को देखा है? हमने देखा है, कहो तो एक-दो दर्दनाक दृश्यों से अवगत करायें? कई पशुओं का मुँह ही सड़ गया है जिससे उन्हें भूख-प्यास लगते हुए भी कुछ खा-पी नहीं सकते, कइयों का पिछला अंग सड़ा हुआ है जिसका वे स्वयं कोई ईलाज नहीं कर सकते। यह सब देखकर कभी आपने सोचा कि आखिर इनको इतनी सजा क्यों?

क्या इन्हें देखकर आपके मन में कोई रहम की भावना उत्पन्न नहीं होती? कितने निरपराध लोगों को रोज सजा मिलती है, कितने मौत के घाट उतार दिये जाते हैं, क्या अपराध करने वालों के पति आपके मन में करुणा नहीं आती कि आखिर वे इतना पाप बढ़ायेंगे तो उनकी सजा कितनी होगी? क्या बहनों-माताओं के उढपर होने वाले अत्याचारों की कहानी आपको कभी नहीं सुनाई पड़ती? क्या गरीबों की बेबसी का आप पर कुछ असर नहीं होता?

क्या भूख से बिलखते लोगों की हालत पर आपको कभी तरस नहीं आता? भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रकोप की लहर कभी आपको सोचने पर मजबूर नहीं करती? प्रकृति के तांडव नृत्य से होने वाले विनाश को कभी आपने नहीं देखा? सुरसा जैसे बढ़ते महंगाई के रूप के बारे में आपने कभी नहीं सोचा? बदलती सरकारों, बदलते नियम-कानूनों, बढ़ते धार्मिक उन्मादों से आपके दिल में कुछ भी हलचल नहीं आती? 

विज्ञान के विनाशकारी रूप से आप बिल्कुल परिचित नहीं हैं क्या? क्या पगडंडी पर पड़े अनाथों की लम्बी लाइन देखकर आपका दिल कभी नहीं पिघलता? अरे! आपके गर्म खून में उबाल कब आयेगा, क्या तब जब समय हाथ से निकल जायेगा? इसलिए उठो, छोड़ो झूठी आजादी के महिमा गान को, बढ़ती आबादी और बेरोजगारी के बारे में कुछ तो सोचो?

आखिर कब तक इनसे मुँह फेरते रहोगे, कब तक सोते रहोगे, कब तक अपने फर्ज से हटते रहोगे? आपको अपनी जिम्मेवारियों की समझ कब आयेगी? कब तक आँख बन्द कर बैठे रहोगे। अरे! उठो, और कुछ कर दिखाने के लिए बीमार मानसिकता को दूर भगाओ, मजबूरियों का लबादा उतार फेंको और टूट पड़ो दुश्मन पर, आखिर कब तक चुपचाप हथियार डाल यूँ ही हाथ पर हाथ रख बैठे रहोगे।

मरना भी है तो कुछ करके मरो, मरने के पहले दुश्मन को अवश्य मारो, निकलो बाहर। देखो आसमान की ओर, वह जो सबसे छोटा तारा चमक रहा है, उसका पकाश भले ही अन्धेरा दूर कर पाये परन्तु अन्धेरे से भयभीत होकर अपने कर्त्तव्य को वह नहीं छोड़ रहा है। देखो उस चींटी की ओर, जो अपने से 50 गुना अधिक भार उठा कर चल रही है और अथक होकर निरन्तर अपने कर्म में पयासरत है।

देखो एडीसन को जिसने बल्ब के आविष्कार में सैंकड़ों बार असफलता पाप्त करने के बाद भी कर्म को नहीं छोड़ा और एक दिन सफल रहे। और देखो छोटी-सी चिन्गारी को जिसने अपने ही बल से चेतन जंगल को जलाकर खाक कर दिया। अरे! तुम क्या नहीं कर सकते? एक छोटा-सा भी पत्थर, कितने भी बड़े तालाब में फेंक कर देख लो, उससे उठी लहरें  किनारे वाले पानी को प्रभावित किये बिना नहीं रहती

तो तुम क्या नहीं कर सकते! तुम तो चैतन्य तारे हो, तुम अज्ञान के अंधकार में भटक रहे जग को रोशन क्यों नहीं कर सकते? तुम्हारे में अदम्य शक्ति है, तुम तो पहाड़ को भी अपनी संकल्प शक्ति से हटा सकते हो और तुम चिंगारी नहीं ज्वाला हो और तुम्हारे साथ हज़ारों सूर्यों से भी पचण्ड सर्वशक्तिवान परमात्मा है। इसलिए तुम्हारी कभी असफलता हो ही नहीं सकती क्योंकि तुम्हें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है।

अंग्रजों की गुलामी से भारत माँ को आजाद कराने के लिए जब बापू गांधी ने आह्वान किया तो लोग अपना सबकुछ छोड़ कूद पड़े आजादी के क्षेत्र में, बिना आगे-पीछे सोचे। कितने अरबपति उनकी एक आवाज पर पद-पोजिशन छोड़कर मलिन बस्ती में उनके साथ सेवा करने को तैयार हो गये, विदेशी शानो-शौकत का जीवन जीने वाले, विदेशी सामान की होली जलाकर अपने हाथ से निर्मित स्वदेशी चीजें पहनने लगे। कितनी बहनों ने भी अपने शरीर से सारे गहने उतार कर गांधी जी के हाथों में लाकर रख दिए।

भगवान तो तुम्हें ऐसा कुछ भी करने को नहीं कहता, और ही सफेद फ़रिश्तों जैसी पोशाक पहनाता है, क्या विश्वकल्याण हेतु विश्वपिता का आह्वान स्वीकार नहीं? आखिर कब परिवर्तन शुरू करोगे? याद करो, एक कांतिकारी के कहने पर कितने ही युवाओं ने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया और कितनी यातनायें सहीं, पर संगठन देश के साथ गद्दारी नहीं की।

भगतसिंह को रात-रात भर नींद नहीं आती थी, वे रोते थे कि कब भारत माँ को गुलामों की बेड़ियों से मुक्त करा पायेंगे, क्या आप अपने पाप खत्म करने के लिए ऐसे सोचते हैं? भारत को रावण (बुराइयों) की जंजीरों से छुड़ाने के लिए आपकी नींद फिटती है या नहीं? उस 200 वर्ष की गुलामी से मुक्त होने में 90 वर्ष लग गये जबकि इतने जोश के साथ अनेकानेक जन लगे।

वो दुश्मन तो बाहर के थे, ये दुश्मन तो हमारे मन के भीतर तक आधिपत्य जमा चुके हैं और 2500 वर्षों से डेरा जमाये हुए हैं, इतनी धीमी गति से कैसे मुक्त करा पाओगे? एक महात्मा के आह्वान पर विवेकानन्द ने अपना सबकुछ छोड़ दर-दर की ठोकरें खाईं पर वेदों का डंका सारे विश्व में बजाकर रामकृष्ण परमहंस का नाम संसार में अमर कर दिया।

तुम्हारा आह्वान तो भगवान कर रहे हैं, अरे! तुम्हें तो सर्वशक्तिमान का साथ है तो तुम क्या नहीं कर सकते? एक विकलांग बच्चा, खारी चैनल पार कर सकता है, एक साधारण बहन माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ सकती है और तुम महावीर, विघ्न-विनाशक, अचल, अडोल अंगद का टाइटिल लेकर भी चुप बैठे हो? 

एक शिवाजी के कहने पर, भारत को आजाद कराने के लिए बन्दा वैरागी, आग की सलाखों से हंसते-हंसते शरीर छलनी करवा देता है, उसके बच्चे का दिल निकाल कर उसके मुँह में जबरदस्ती ठूंसा जाता है, फिर उसकी आँखें निकलवा दी जाती हैं लेकिन वह दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेकता, तुम्हें तो कोई सजा नहीं मिलने वाली, भगवान रक्षक सदा साथ है फिर तुम माया के आगे बार-बार क्यों घुटने टेक देते हो? क्यों मरी हुई माया, वह भी कागज़ी शेर, आपको इतना भयभीत कर रही है?

आईसीएस की परीक्षा उत्तीण् करने के बाद, सुभाषचन्द्र बोस के समक्ष लंदन के एक अधिकारी का नौकरी के लिए निमंत्रण आया। बोस जी ने कहा, हम तो अपने देश की सेवा करेंगे। अधिकारी ने पूछा, तुम खाओगे क्या? उन्होंने उत्तर दिया कि मेरा पेट तो दो आनां से भर जायेगा जिन्हें हम सहज ही कमा लेंगे, तो भला तुम अपना पेट भरने के पीछे इतनी लालसा क्यों पालकर चल रहे हो?

क्या तुम्हें भगवान उसकी बातों पर विश्वास नहीं है, जो अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में ही सोच-सोच कर अपनी शक्तियाँ व्यर्थ गँवा रहे हो? जबकि वह तुम्हारी जिम्मेवारी ले रहा है। एक सिद्धार्थ, बीमार, वृद्ध मुर्दे को देख कर महात्मा बुद्ध बन जाता है, आपके दिल को परिवर्तन करने के लिए और कितने अस्पताल, भूकम्प, सुनामी आदि के कहर चाहिएँ।

आखिर किस दिन के और किस व्यक्ति के इन्तज़ार में हैं आप कि वो आकर परिवर्तन कर देगा।

भगवान का आह्वान, दुनिया की बेबसी, समय की पुकार, प्रकृति की चेतावनी, माया की चुनौती आप को ललकार रही है और आप फिर भी सोच में हो? छोड़ो मान, अभिमान, अपमान, अनुमान के धन्धे.... अरे! उठो, और याद करो अपने स्वमान को जो भगवान ने तुम्हें दिया है। भगवान तुम्हें क्या बनाने आया है और तुम कहाँ लगे हो?

निकाल फेंको अपने अन्दर से बुजदिली को, दिलशिकस्ती की बीमारी को। उठो और हाथ उठाकर संसार से कह दो कि अब दुःख के दिन बीत चुके, अब स्वर्णिम सुखों की दुनिया हमसे ज्यादा दूर नहीं। कह दो रावण को कि बांध ला अपना बिस्तर, अब तुम हमसे बच नहीं सकते।

मेरे पिय युवा भाइयो, एक छोटी-सी कुल्हाडी से एक युवक बड़े से बड़े पेड़ को धराशायी कर देता है, यह ताकत  कुल्हाड़ी की नहीं बल्कि उस युवक की होती है। एक हथौड़ी से, बड़ी से बड़ी दीवार को मटियामेट किया जा सकता है, यह ताकत हथौड़ी की नहीं बल्कि उसकी होती है जिसने बिना रुके उसे चलाने की हिम्मत रखी।

तुम्हारे में भी रावण को ध्वस्त करने की, विकारों के विकराल पेड़ को काटकर गिराने की अथाह शक्ति है। आज सारे संसार की नज़रें तुम पर टिकी हैं, छोटे और बड़ों का विश्वास तुम पर ही है।

इसलिए उठो! जागो और जगाओ सुषुप्त शक्तियों को। मेरे भाइयो, तुम शक्ति के अवतार हो, प्यारे बाबा के वरदान हो, ब्राह्मण परिवार का अरमान हो, हिम्मत और मेहनत की आवाज़ हो, उमंग-उत्साह के भण्डार हो, दृढ़ता का पहाड़ हो....इसलिए उठो और कूद पड़ो  इस महासमर में, निश्चित है, विजय तुम्हारी हुई पड़ी है। माया बस, अब मरी पड़ी है, कल्प-कल्प का अनुभव है यह।

भगवान तुम्हारा साथ दे रहा है, अब माया से डरना नहीं है, कोध के आगे झुकना नहीं है, कभी विघ्नों के कारण रुकना नहीं, लोगों के कहने से बहकना नहीं, दिलशिकस्ती से बदलना नहीं, मर्यादा के पथ से भटकना नहीं, तुम्हें बस आगे, आगे बढ़ना ही है, मंजिल को पकड़ना ही है, जग परिवर्तन करना ही है, सबको सन्देश पहुँचाना ही है, सबको सुखी बनाना ही है। पभु पिता का सन्देश, आदेश, उपदेश यही है।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है। 

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