जीवन का स्वर्ण काल – युवा काल

0

विकारों की कालिमा से दूर, दुनियादारी के झंझटों से परे, मतलबी, फरेबी, भ्रष्टाचारियों के चंगुल से मुक्त, हताशा, निराशा, उदासी की छाया से परे, हिंसा, कठोरता, कुटिलता जड़ता से कोसों दूर, आनन्द से भरपूर, सच्चा मासूम जीवन बचपन को कहा जा सकता है। बाल्य अवस्था की इन्हीं विशेषताओं के कारण कई लोग जब दुखी होते हैं तो कहते हैं, मेरा सब कुछ कोई ले ले पर मेरा बचपन मुझे वापस ला दे या फिर कहते हैं, बचपन के दिन भी क्या दिन थे!

पर बचपन सिर्प अपने लिए होता है। इस उम्र में हम कोई पाप नहीं करते, हमें कोई दुख भी फील नहीं होता, हम किसी से नफरत घृणा, ईर्ष्या भी नहीं करते, यह अति उत्तम बात है परंतु बचपन दूसरों पर आश्रित होता है। हम समाज का, माँ-बाप का कर्ज अदा करें, फर्ज निभायें, किसी को सुख दें, मदद कर सकें, ऐसा बचपन में नहीं होता।

जितना चाहें, जमा कर सकते हैं

बचपन में बुराइयों का भी ज्ञान नहीं होता परंतु अच्छाइयों का भी तो ज्ञान नहीं होता। दूसरों से पालना लेने के कारण पुण्य का खाता कम होता जाता है। इस तरह, बचपन सिर्प खर्च करने का समय होता है, पुण्य जमा करने का नहीं। लेकिन, युवाकाल वह स्वर्णिम काल है जिसमें हम जितना चाहें उतना जमा कर सकते हैं। भले ही भूत और भविष्य हमारे हाथों में नहीं होते हैं परंतु वर्तमान के आधार से भूत और भविष्य दोनों को सुधारा जा सकता है। युवाकाल को श्रेष्ठ बनायें तो बचपन वृद्धावस्था दोनों ही ठीक हो जाते हैं।

हर कान्ति के सूत्रधार हैं युवा

अगर हम इतिहास का अवलोकन करें तो कुछ अपवादों को छोड़कर जितनी भी कांतियाँ हुई, लीक से हटकर कुछ हुआ, विश्वविख्यात परिवर्तन हुए, वे युवाओं ने ही कर दिखाये। अगर किसी ने जीवन के चौथे दौर में भी कुछ किया तो भी उसका संकल्प युवाकाल में ही लिया गया था, कार्य विराट होने के कारण संपूर्ण होते-होते युवाकाल बीत गया। कांतिकारियों का एवं खेल जगत का तो सारा का सारा क्षेत्र ही युवा जीवन पर निर्भर होता है।

विवेकानंद, शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, ईसामसीह, राजा राममोहन राय, झांसी की रानी, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, जेम्सवाट, ध्यानचन्द आदि सभी अपने जमाने के शीर्ष रहे। ऐसे कहाँ तक नाम गिनायें जिन्होंने अपनी सफलता का परचम नीले आसमान तक फैलाया, कारण?

विराट इरादे, अदम्य साहस, पबल पुरुषार्थ की ललक, दृष्टि में लक्ष्य की चमक, बुलंद हौसले, सितारों को छूने की तमन्ना, तूफानों का रूख मोड़ देने की क्षमता, खतरों से खेलने की हिम्मत, सागर को थाह लेने की अटूट ललक, मंजिल को पाप्त करने का जज़्बा, कुछ कर दिखाने का अविरल पयास, कठोर परिश्रम, मर मिटने का जुनून, परीक्षाओं का आह्वान आदि अनेकों विशेषताएँ। इन विशेषताओं के कारण युवावर्ग  चोटी को फतह कर लेता है।

चाहिए जड़ों की मजबूती

संसार में हर कार्य के लिए युवा ही ढूँढ़ा जाता है। युवाकाल जीवन का वह स्वर्णिम काल है जिसमें हर पकार की सफलता सहज पाप्त की जा सकती है इसलिए ही हर जगह युवाओं की मांग सौ पतिशत रहती है। मज़दूर से लेकर नेता तक, फैक्ट्री से लेकर कृषि तक, नौकरी, बिजनेस, राजनीति से लेकर धर्मनीति तक, गवर्मेन्ट से लेकर भगवान तक, हरेक को तलाश युवा की ही है।

सेना में तो युवाकाल के बाद छुट्टी ही कर दी जाती है। युवा जीवन सफलता की चोटी पर पहुँच सकता है पर चोटी पर कायम रहने के लिए एक पेड़ की तरह अपनी जड़ों को मजबूत रखना होता है, नहीं तो थोड़ा-सा भी ध्यान इधर-उधर हुआ, डगमग हुए तो सीधे नीचे।

स्वयं को बचाना है आकर्षणों से

युवाकाल एक ऐसे चौराहे के समान भी होता है जिसको समझकर पार कर ले तो निष्कंटक, निर्विरोध रूप से वह लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है। जिस प्रकार दीपक को जाग्रत रखने के लिए उसे तूफान से बचाकर रखना होता है, इसी पकार युवाकाल में मुख्यत सात अवरोध आकर्षण के रूप में आते हैं। ये माया के रूप फँसाने के लिए आते हैं। युवाओ, इन्हें पहचान कर इनसे बचना ही होगा, नहीं तो ये अवरोध ऐसे खड़े हो जाते हैं कि मन रास्ता बदलने के लिए सोचने लगता है।

पहले तो कोई भी आकर्षण सुखदायी लगता है लेकिन यह सब मृगतृष्णा समान दुख जनित बीज होता है, जो सीधे दुखों के सागर में डुबोता है या फिर समस्याओं के पहाड़ के नीचे दबाता है। मानो मुश्किलों एवं उलझनों की खाई में धकेलता है या दिलशिकस्ती या हीन भावना के दलदल में धंसाता है। या तो आवेश या आवेग की ज्वाला भड़काता है या पश्चाताप चिन्ता की अग्नि में जलाता है। जिन सात बातों से आप अपने को बचायें, वे इस पकार हैं

1. कुसंग युवाओ, इस मायावी रूप को पहचानने में सबसे अधिक धोखा होता है क्योंकि इसकी शुरूआत संग से होती है। संग कब कुसंग बन गया, पता ही नहीं पड़ता। इसलिए पहले से ही सावधान रहो तो सबसे अच्छा। इस उम्र में देह का आकर्षण, पुरुष या स्त्रा की चर्म का आकर्षण एक ऐसी मीठी तलवार है जो सारे पुण्य काटकर रख देती है जिसके लिए कहावत है कि संग तारे, कुसंग बोरे। बुराइयों की जड़ कुसंग से ही होती है। इसलिए युवाओ सावधान!

जिस पभु का साथ पाने के लिए लोगों ने अपनी राजाई छोड़ी, सुख-सुविधाओं का त्याग कर वन गमन किया, हठ-तप-जप किये पर फिर भी प्रभु का साथ मिला, अब जबकि आपको उसका साथ मिला है तो सिर्प और सिर्प उसका ही साथ कीजिए। मनुष्यों का साथ भले करें पर सच्चा साथी बनायें, बनें। संबंध निभायें पर बंधन पालें। देह का आकर्षण ही अन्य आकर्षणों का जन्मदाता है।

2. व्यसन व्यसन कोई भी हो, सभी दुखदायी हैं। यह बुराई एक ऐसी कैंची है जो सिर्प संबंधों की गरिमा को काट कर रख देती है बल्कि हमारी बुद्धि की शक्ति को भी काट कर रख देती है, खासकर निर्णय परख शक्ति को। व्यसन की शुरूआत खुशी की तलाश में होती है पर जीवन पर्यन्त व्यसनी खुशी की ही तलाश में भटकता रहता है।

खुशी की परछाई भी उससे कोसों दूर रहती है, फिर सच्ची खुशी का तो कहना ही क्या? इसलिए युवाओ, व्यसनों के धोखे को समझो और ब्रह्मा बाप के जीवन को खोलकर कहीं से भी देख लो। पता पड़ जायेगा कि हमें जीवन में क्या करना है और क्या नहीं करना है।

3. आधुनिकता आधुनिकता को अगर हम फैशन का नाम दें तो ज्यादा ठीक लगेगा। आधुनिक ज़माने का हवाला देकर, बनावटीपन को ओढ़कर, स्मार्ट दिखने की चाहना भले ही अल्पकाल की संतुष्टि पदान करती हो पर केवल तब तक, जब तक आप अपनी वाणी पर विराम लगाये हुए हैं। बाह्य पर्सनैलिटी तभी तक पभावशाली है जब तक आप चुप हैं।

गांधी जी की सुन्दरता जग ज़ाहिर है। मदर टेरेसा जैसी सुंदरता तो सारी दुनिया में अभी तक किसी को नहीं मिली और इन दोनों की सुन्दरता ने अनेक लोगों को भी सुन्दर बनाया। इनकी सुन्दरता जीवन के अंतिम पड़ाव तक निखरती गई, चाहे मुँह में दांत नहीं थे, सिर के बाल सफेद थे, चेहरे पर झुर्रियाँ थीं। भले ही उन्हें विश्व सुन्दरी का खिताब मिला हो पर उनकी सुन्दरता आज भी लोगों के मानस पटल पर अंकित है।

युवाओ, फैशन एक ऐसा कुआं है जिसमें खुद तो गिरते ही हैं, दूसरों को भी गिराने के निमित्त बनते हैं। किसी भी उलटी चाल का अनुसरण करना, बुद्धिहीनता का ही प्रतीक है। धारा से अलग चलने की हिम्मत जिनमें नहीं होती, वे फैशन के अनुयायी बनते हैं। देखिए, नहर के लिए रास्ता बनाया जाता है, तालाब खोदे जाते हैं परंतु नदी अपना रास्ता खुद बनाती है और सागर भी स्वत बने होते हैं इसलिए जो महिमा नदी सागर की है, वह नहर तालाब की कभी भी नहीं होती।

फैशन एक शारीरिक आकर्षण है जो सिर्प विकार ही पैदा करता है। अगर इसमें फँसे तो फैशन का फंदा, श्रेष्ठ जीवन के लिए फाँसी का फंदा बन जायेगा। यह विलासितापूर्ण जीवन, भोगी जीवन कहलाता है। इसलिए इससे सदा खबरदार रहो।

4. खयाली ख्वाब – खयाली ख्वाब को हम कोरी कल्पना भी कह सकते हैं। यथार्थ के धरातल पर वही सफल है जिसने प्लान पैक्टिकल में लाना सीखा है। ख्वाबों की उड़ानें क्षणभर में ही धराशायी हो जाती हैं। वर्तमान में जीना सीखें, भविष्य का भविष्य में देखें। जो सामने है, उसे अच्छे से अच्छा करना है। वर्तमान ही भविष्य की दिशा तय करता है।

सिर्प सोचने से कुछ नहीं होता। तैयार मूर्तियाँ तो फुटपाथ पर या मूर्तिकार के घर में भी रखी होती हैं पर जब तक वे मंदिर में पस्थापित नहीं हो जातीं तब तक उनकी कीमत पत्थर के समान ही रहती है। मंदिर में प्रस्थापित होने पर ही उनकी पूजा होती है, देव-देवी की उपाधि से उन्हें विभूषित किया जाता है। 

ठीक इसी पकार जब तक योजना को दृढ़ता के साथ पैक्टिकल में लाने का पुरुषार्थ नहीं करते तब तक वह खयाली योजना सिर्प खयाली सुख दे पायेगी। इसी में समय भी हाथ से निकल जायेगा।

5. नकारात्मकता – इसमें हम व्यर्थ को भी जोड़ देते हैं। यदि व्यर्थ विचार उलझा हुआ रास्ता है तो नकारात्मक विचार उलटा रास्ता है। जाना पूर्व में है, चल रहे हैं पश्चिम में, फिर लक्ष्य कब मिलेगा, भगवान ही मालिक। व्यर्थ विचार अवरोध पैदा करता है, नकारात्मक विचार भटकने लुढ़कने का पथ है जिस पर चलकर, की हुई पाप्तियाँ भी खत्म हो जाती हैं।

व्यर्थ विचार स्पीड ब्रेकर हैं तो नेगेटिव विचार पथ को ही ब्रेक करने वाले हैं। जैसे शुद्ध दूध में एक चुटकी नमक डाल दें तो क्या होगा? नेगेटिविटी भी सफलता के मार्ग में दुश्मन की तरह है इसलिए हे सफलता के सितारो, तुम्हें इसके चंगुल से बचना होगा।

6. ईर्ष्या – ईर्ष्या एक ऐसी आग है जो शरीर और मन को एक साथ जलाती है। मन की शक्तियों को खाक कर, अहं का धुआँ भर देती है जो सामने वाले को सिर्प मुँझाता है बल्कि जलाता भी है। ईर्ष्यालु अपना फायदा नहीं देखता, सामने वाले का घाटा कितना हुआ, इसमें उसको दिली सुकून मिलता है। 

उसकी भावना रहती है, हम चाहे कैसे भी हों, सामने वाला हमसे अच्छा हो जैसे कि बंदर, वह अपना घर तो बनाता ही नहीं पर अहंकारवश चिड़ियों का घर भी तोड़ डालता है। गाय जब घास खाती है तो कुत्ते उसके आगे-आगे भौंकते हैं, उसे खाने नहीं देते जबकि घास कुत्तों के खाने की चीज़ नहीं है। 

ईर्ष्यालु का मकसद ईर्ष्या से शुरू होकर ईर्ष्या में ही खत्म हो जाता है। वह कभी भी सुख और शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता। वह अपने साथ-साथ अनेकों का जीवन बर्बाद कर देता है।

7. मद – रोब, जोश, ज़िद्द ये सब इसी (मद) की निशानी हैं। यादगार शास्त्र रामायण में, रावण के पास ज्ञान, बुद्धि, शक्ति, भक्ति सब कुछ पर्याप्त मात्रा में माना गया है पर अहम् के कारण ही असुर कहलाया। सबकी घृणा का पात्र बना और विनाश को पाप्त हुआ। इसी पकार सारी शक्तियाँ, विशेषतायें पाप्तियाँ नष्ट करने का कारण यह मद ही बनता है।

यह पहाड़ की चोटी से गिरने के समान है, जिसके बाद कहीं से भी सलामत नहीं बचते। मद का आधार लेकर व्यक्ति सफलता की बुलन्दियों को छूने की बजाय बदनामियों बद्दुआओं की बुलंदियाँ अवश्य छू लेता है। छू क्या लेता है, काबिज ही हो जाता है। शराब का नशा तो थोड़े समय के बाद फिर भी उतर जाता है पर मद का नशा तो सदा चढ़ा ही रहता है निरंतर बढ़ता ही जाता है।

इस नशे से मन मलीन, बुद्धि पतित, स्वभाव चिड़चिड़ा, संस्कार कट्टर, वृत्ति दूषित, दृष्टि कलुषित, स्मृति कमज़ोर, भावना अशुभ, भाव कटु, बोल ज़हरीले और कर्म विकर्म बनते चले जाते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति दूर-दूर रहने लगता है जिस कारण ऋषि भले बने हों पर दुर्वासा ऋषि के समान ही रहते हैं।

युवाओ, कुसंग से आत्मा की पवित्रता का ह्रास होता है। व्यसन से शक्ति का पतन, आधुनिकता से आनन्द नष्ट होता है। मद से ज्ञान खत्म होता है। ईर्ष्या से पेम, नकारात्मकता से शान्ति और खयाली ख्वाब हमारा सुख लूट ले जाते हैं। अब इन सातों को नष्ट करने के लिए परमात्मा द्वारा दिए सात तीरों का उपयोग करो तो विजय तुमसे दूर कभी नहीं जा सकती। सात तीर हैं

1. कड़ी मेहनत इसका कोई विकल्प नहीं है। मेहनत वाला कभी भी दास नहीं, उदास नहीं, भूखा नहीं, किसी के उपहास से नहीं डरता, कभी सिर झुकाकर नहीं चलता। हर मंज़िल का अधिकारी बनता है। इसलिए युवाओ, कभी भी कामचोर बनो। कुछ बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी ही होगी। चींटी कभी थकती नहीं। क्या इतने छोटे जीव जितनी भी अक्ल हमारे पास नहीं है?

2. सतत प्रयास ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निशान’ क्या तुमने नहीं सुना? कच्ची मिट्टी का घड़ा भी पक्के फर्श को घिस देता है बार-बार रखने से। इसलिए युवाओ, जब तक जीना है, अभ्यास जारी रखना है, हार हर बार कुछ नया सिखाती है। हार, हार नहीं बल्कि एक नया रास्ता ढूँढ़ने का अवसर है इसलिए कभी रुको नहीं, पीछे लौटने के रास्ते सारे बंद कर दो, तुम्हें सिर्प आगे बढ़ना है।

3. अटूट हिम्मत यह भगवान का वादा है, तुम एक भी कदम हिम्मत का बढ़ाओगे, वह सौ कदम आपको आगे बढ़ायेगा। इसलिए हिम्मत की डोर कभी भी टूटने पाये। अगर हिम्मत नहीं तो मरने के पहले जाने कितनी बार रोज़ मरते रहेंगे, ऐसा जीवन भी क्या जीवन है। क्या नचिकेता, पह्लाद की हिम्मत तुमने नहीं सुनी? कांतिकारियों की हिम्मत क्या तुमने कहीं नहीं पढ़ी? विवेकानन्द की हिम्मत की गाथा क्या तुमको नहीं पता? फिर तुम्हारे साथ तो सर्वशक्तिवान है, तुम्हें हिम्मत के साथ सदा सफलता को पाप्त करना ही है।

4. आत्मचिन्तन परचिन्तन पतन की जड़ है, यह भगवान ने कहा है। आत्मावलोकन उतना ही जरूरी है जितना ज़रूरी एक्सीडेन्ट हेने पर एक्सरे। दूसरों के चिन्तन में समय बर्बाद कर उनकी कमियों को अपने मन में शरण देने के बजाय आत्मचिन्तन कर अपनी कमियों को दूर भगाना ही बुद्धिमानों की पहचान है। तुम्हें मक्खी नहीं, मधुमक्खी बनना है।

5. अनवरत साधना संस्कार परिवर्तन करना पहाड़ हटाने से भी मुश्किल कार्य है। इसके लिए चाहिए अनवरत कठिन साधना। आधा कल्प के (2500 वर्षों के) विकारों के बंधनों को काटना विकारी संस्कारों को मोड़ना आसान कार्य नहीं है पर प्रज्वलित अग्नि बड़े कड़े लोहे को भी पिघलाकर पानी जैसा तरल बना देती है।

ऋषि-मुनियों ने विकारों को जीतने के लिए अनेक उपाय किये पर सफल नहीं हुए क्योंकि विधि सही नहीं थी इसलिए सिद्धि की पाप्ति नहीं हुई साधना में अनवरत लगना ही होगा। हर मुश्किल को पार करने का उपाय है अनवरत साधना।

6. सच्चा दिल सच्चे दिल पर साहेब राजी। युवाओ, जिन्दगी में कुछ सीखो या सीखो पर सच्चाई जरूर सीख लेना। सच्चे दिल वाला ही भगवान के दिल पर राज कर सकता है। जो दिल पर है वही अधिकारी बनता है। सच्चाई सदा शुद्ध बनाती है, सच्चाई सदा पवित्रता के नजदीक लाती है। सुख के सागर को अपना बनाने के लिए सच्चाई को साथी बनाना ही होगा।

सच्चाई का आदि-मध्य-अंत खुशियाँ बरसाने वाला ही होगा निश्चिन्तता पदान करने वाला ही होगा। इसलिए युवा भाइयो, सच तो बिठो नच, सच्चे बनो, अच्छे बनो, पक्के बनो।

7. उद्देश्यपूर्ण जीवन युवाओ, बिना उद्देश्य के कोई नहीं जीता। लेकिन पैसा कमा लेना, पद पाप्त कर लेना, कुछ डिग्रियाँ ले लेना, मकान बना लेना, सुख के साधन इकट्ठे कर लेना, प्याऊ खोल देना, थोड़ा-सा अनाज बँटवा देना, कुछ कंबल बँटवा देना मात्र ये जीवन के उद्देश्य नहीं हैं।

युवाओ, पैसे के साथ संतुष्टता रूपी धन कमाना भी उद्देश्य हो, पद के साथ स्वमान का भी नशा हो, डिग्रियों के साथ गुणों की गहराई भी हो, मकान-दुकान साधन के साथ मन का ठिकाना, स्थायी घर, दान करने के लिए प्रर्याप्त ज्ञान का भण्डार, साधनों के साथ साधना, सोशल सर्विस के साथ शुभ भावनाओं का दान खुशी का दान करने का वा सबको भगवान का बच्चा बनाकर उसके वर्से का अधिकारी बना देने का लक्ष्य भी हो।

युवाओ, ये सब कार्य आप इसी युवाकाल में ही कर सकते हो। क्या आपको यह जागृति है, अगर नहीं तो अब सचेत हो जाइये, कहीं माया आकर अपना वर्चस्व कायम कर ले। स्वर्णिम संसार जब तक नहीं जाता तब तक उपरोक्त पुरुषार्थ में लगे रहिए।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है। 

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top