सुदृढ़ समाज की नींव है – सद्भावना

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महान विचारों के शिखर पर पहुँचे हुए मनुष्य को, कोई भी पराया नजर नहीं आता है। यह सम्पूर्ण विश्व, एक विश्व पिता की धरोहर है और हम सभी मनुष्य एक विशाल विश्व-परिवार के पाणी हैं ... यह भावना, सद्भावना के बीज अंकुरित करती है। परन्तु काल के अन्तराल में मनुष्य के विचार विकृत हुए, उसका विशाल दृष्टिकोण हद की दीवारों में बन्ध कर रह गया, वसुधैव कुटुम्बकम् शास्त्रों-ग्रन्थों की मत्रणा बन कर रह गई और स्वार्थ घृणा ने सम्पूर्ण विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।

कहाँ भारत को भारत माता माना, ऐसी माता जिसने अपने सभी सपूतों को अपने आँचल में समा लिया और कहाँ आज वही भारत माता अपने वक्षस्थल पर घृणा और वैमनस्य, कोध, हिंसा बदले की भावना के काले बादलों को मंडराते देख रही है। मनुष्य जीवन कितना सुन्दर है, कितना विकसित है, मनुष्य के पास कितनी श्रेष्ठ बुद्धि है,परन्तु कदाचित् बुद्धिमान प्रणी अपनी बुद्धि का पयोग सही दिशा में नहीं कर पा रहा।

उसकी ही बुद्धि उसमें तनाव पैदा कर रही है, उसके ही विचार उसको अशान्त कर रहे हैं, उसकी भावना उसे वाम मार्ग पर ले जा रही हैं। कितना कीमती है यह सुन्दर मानव जीवन ...परन्तु उससे भी कहीं कीमती है उसकी दूसरों के पति श्रेष्ठ भावनाएँ।

वह मनुष्य जिसका मन सद्भावनाओं का लहराता सागर बन गया हो, वह मनुष्य जिसने अपने मन में सभी के लिए विशुद्ध पेम भर लिया हो, वह मनुष्य जिसके जीवन में घृणा ईर्ष्या की परछाई भी पड़ती हो, अमूल्य हीरे समान है। हमें जान लेना चाहिए कि मनुष्य की भावनायें ही उसे सुख देती हैं और भावनाएँ ही दुःख। भावनाएँ बदल दो और सुखी हो जाओ।

परन्तु अपने मन को श्रेष्ठ भावनाओं से भरने के लिए श्रेष्ठ गहन चिन्तन की अति आवश्यकता है। जब तक सर्व में आत्मिक भाव धारण नहीं किया, जब तक सर्व को अपना नहीं माना, श्रेष्ठ चिंतन बढ़ेगा और सद्भावनाएँ। जरा ठहर कर हम ये भी चिन्तन कर लें कि कौन सी बातें हमारी भावनाओं को दूषित करती हैं।

जब स्वार्थ पूर्ति नहीं होती, जब कामनाएँ तृप्त नहीं होती, जब किसी को बहुत सताया जाता है, जब अत्याचार थमने का नाम नहीं लेता, जब दूसरा व्यक्ति बार-बार दुर्व्यवहार करता है, तो दुर्भावनाआं का जन्म होता है और जिसका प्रत्यक्ष रूप होता है बदले की भावना। यह बदले की भावना मनुष्य को बहुत जलाती है।

वातानुकूल कक्ष में बैठा व्यक्ति बदले की भावना से गर्म हो उठता है, शीतल पवन इस भावना पर कोई असर नहीं डालती परन्तु क्या बदला ले लेने के बाद मनुष्य के चित की अग्नि शान्त हो जाती है? अनुभव क्या है? बदला ले लेना अग्नि पर शीतल जल का काम करता है या तेल का। सभी अनुभवी एक साथ उत्तर देंगे की तेल का। बुराई से बुराई के समाप्त नहीं किया जा सकता।

आज देश में विभिन्न धर्मावलम्बियों के मध्य वैमनस्य का गर्म माहौल है। एक ही धुन है...अमुक समय में, इतने सौ वर्ष पूर्व इन्होंने हमसे ये-ये किया था, अब हम बदला लेंगे। परन्तु जिन्होंने आप पर अत्याचार किया था, वे अब कहाँ हैं? क्या आप उन्हें पहचानते हैं?...स्पष्ट है कि नहीं। पिसे जाते हैं निर्दोष। अनाथ हो जाते हैं मासूम बच्च़े। हॉं, यदि आप उन्हें  पहचान लें तो बदले की बात सोची भी जाए।

परन्तु एक व्यक्ति  के अत्याचार के बदले सम्पूर्ण समाज से बदला लेने की सोचना मानवता का अनादर है, भारतीय परम्पराओं की अवेहलना है। हमारी महान सभ्यता दया, पेम क्षमा पर आधारित रही। परन्तु हम ये नहीं कह रहे कि हम इतिहास से सबक सींखें। हम ये भी नहीं कह रहे कि हम कायर बन जाएँ और यह भी सत्य है कि दया, पेम क्षमा मनुष्य को निर्बल नहीं बनाते बल्कि अलौकिक शाक्तियों का संचार करते हैं।

उन्होंने हम से बुरा किया हम भी बुरा करें, उन्होंने हमें सताया हम भी उन्हें सताये... इससे भला होगा भी क्या? अब संसार बदल चुका, अब विश्व का राजनैतिक मंच बदल चुका अब विश्व अधिक समीप है, अब यहाँ एक दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता है, अब हमें सोच समझ कर कदम उठाना है। ऐसा हो कि हम एक व्यक्ति से बदला लें और उसके बदले हमारे अनेक अपनों को बहुत कुछ सहन करना पड़े।

यह बुद्धिमानी होगी? हम क्षमा के द्वारा शान्ति स्थापन करना सीखें। अंग्रेज़ी में किसी महान व्यक्ति ने कहा है ‘‘Forgiveness is the noblest revenge” अर्थात क्षमाकर देना ही बदला लेने का सुन्दर तरीका है। इतिहास साक्षी है जिन्होंने क्षमा किया वे महान हुए और जिन्होंने बदला लिया वे कूर कहलाये, बदनाम हुए।

हमारा महान देवी-देवता धर्म परस्पर स्नेह सिखाता है, इसका सन्देश अति महान है। हम पाठकों के बीच एक रहस्य स्पष्ट कर रहें हें जिसके द्वारा सभी धर्म वालों से अपनेपन का भाव बढ़ाने में मदद मिलेगी। महान देश भारत के आदि सनातन धर्म के लोग, जो कि आज स्वयं को हिन्दू मान रहे हैं, यह भूल गये कि सभी धर्मों का मूल तना वे स्वयं ही हैं।

इस सत्य रहस्य को भूलने से धार्मिक भेद-भाव प्ररम्भ हुआ। यदि आप सम्पूर्ण विश्व में धार्मिक रीति-रिवाजों का गहराईख से अध्ययन करें तो आप पायेंगे कि अब से 2500वर्ष पूर्व सभी जगह देवी-देवताओं की ही भिन्न-भिन्न नाम रूप से पूजा अर्चना होती थी। तो सभी धर्म हमसे ही प्रकट हुए हैं, इस रहस्य को जान कर, स्वयं को धर्म की कट्टरता से बाँधने वालों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि बड़े भाई द्वारा छोटे भाइयों से किया जाता है।

तो हमारे छोटे भाईयों ने यदि कुछ गलती की तो हमारा फर्ज है कि हम उन्हें क्षमा कर सत्य राह पर लायें। हम सभी को यह भी सन्देश देना चाहते हैं कि सभी धर्मों का जो मूल बल है अध्यात्म, उसे भुलायें नहीं। अध्यात्म ही किसी भी धर्म की शक्ति है। आध्यात्म-स्तर पर किसी भी धर्म में कोई भेद-भाव नहीं परन्तु आज मनुष्य ने धर्म के बाह्य स्वरूप को तो अपना लिया और मूल स्वरूप को भुला दिया इसलिए धर्म निर्बल हो गये।

इस अध्यात्म की शक्ति को बढ़ाने के लिए सभी ये जान लें की हम इस देह को  चलाने वाली चेतन शक्ति आत्मा हैं..सभी शरीरों में एक-एक आत्मा हैं ...सभी आत्माओं का मूल धर्म पवित्रता और शान्ति है। सभी एक ही परमपिता के बच्चे हैं....बस इन थोड़ी सी बातों को जानने से धर्म का सत्य स्वरूप प्रकट हो जायेगा और ये धर्मों के झगड़े मिट जायेंगे।

तो आओ हम सभी सर्वपथम अपने घर पड़ोस से सद्भावना का पारभ्भ करें। सभी को आत्मा देखें, अपना भाई समझें। सभी मनुष्य आत्माएँ ये देह रूपी चोला धारण करके अपना-अपना पार्ट बजा रही हैं अर्थात सभी इस विश्व मंच पर पार्टधारी हैं - यह जान कर सभी से स्नेह और शुभ-भावनाएँ बढ़ायें। सभी आगे बढ़ें, सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो।

यही हमारे मन की श्रेष्ठ भावना बन जाये। इस भावना से मनुष्य की घृणा नष्ट होती है, ईर्ष्या, द्वेष की अग्नि शान्त होती है, बदले का भाव समाप्त होता है। इसी भावना से मन में दूसरों को सहयोग देने की सुख देने की भावना जागृत होती है और घर-परिवार के झगड़े समाप्त होते हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यदि हम दूसरों के प्रति अच्छा सोचेंगे तो दूसरे भी हमारे प्रति अच्छा सोचेंगे। बुराई-बुराई को जन्म देगी और अच्छाई - अच्छाई को।

अपनी श्रेष्ठ भावनाओं के द्वारा शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है और इस संसार में वह व्यक्ति सबसे  सुखी है जिसके मन में किसी के प्रति भी धृणा भाव हो। तो आओ आज से अपने मन में छुपी हुई बुरी भावनाओं को घृणा-भाव को निकाल दें।

एक-एक व्यक्ति ऐसा करेगा तो विश्व बदल जायेगा। हमें याद रखना चाहिए कि सम्पूर्ण विश्व को हमारी शुभ भावना की ज़रूरत है। यदि हम ऐसा कर सके तो दुर्भावनाओं की अग्नि में यह सम्पूर्ण विश्व जल कर राख हो जायेगा। हम यह मत्र पक्का कर लें....बदला नहीं लेंगे बदल कर दिखायेंगे।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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