मनुष्य के जीवन का लक्ष्य हमेशा सुख प्रप्ति का ही रहा है। अपना पूरा जीवन वह सुख के साधन जुटाने, किसी न किसी ढंग से सुख की कामना पूर्ण करने के लिए लगा देता है। हमेशा वह सुख की पाप्ति के लिए ही ईश्वर से प्रर्थना करता रहा है। सुख न केवल वह अपने लिए मांगता है बल्कि सर्व के लिए माँगता रहा है, जैसे- सर्वे भवन्तु सुखिन...... मा कश्चित दुःखं आप्नुयात्।
समाज में मानव जीवन सुखी तब बन सकता है जब कि उसे सम्पति, स्वास्थ्य और अच्छे सम्बन्ध नसीब हुए हों। क्योंकि मनुष्य एक संघजीवी पाणी होने के कारण सभी से उसके सम्बन्ध अच्छे होना आवश्यक है। नहीं तो वह भी दुःख का कारण बनता है।
सबसे पहले सुख के लिए स्वस्थ होना आवश्यक है। अब स्वास्थ्य चाहे मानसिक हो वा शारीरिक, क्योंकि स्वास्थ्य केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि उसमें अन्य तथ्य भी होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संघ की स्वास्थ्य परिभाषा के अनुसार स्वास्थ्य अर्थात् शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य का होना भी आवश्यक माना गया है।
शारीरिक स्वास्थ्य पर तो मनुष्य ध्यान देता ही है क्योंकि उस का प्रभाव हमारी कार्यक्षमता पर पड़ता है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत सूक्ष्म और अधिक प्रभावशाली है क्योंकि मन ही तो सभी का आधार है। मानसिक स्वास्थ्य माना मन का स्वस्थ होना अर्थात् मन का शक्तिशाली होना। मन का प्रभाव न केवल शरीर पर बल्कि सम्बन्धों पर पड़ता है और कार्यक्षमता पर भी।
मनोविज्ञानिकों व वैद्यों का तो यह कहना है कि 80% रोग मानसिक अस्वस्थता के कारण ही होते हें। जिसे मनोकायिक (साइकोसोमैटिक) रोग कहा जाता है विशेष कर उनका मूल कारण मानसिक अस्वस्थता है। रोगों का बढ़ना वा कम होना इन पर मन का गहरा प्रभाव रहता है।
इस प्रकार मानव-स्वास्थ्य का केन्द्र मन हे है। यदि हम चाहते हैं कि हम शारीरिक, सामाजिक वा किसी भी प्रकार से स्वस्थ रहें तो मन को स्वस्थ रखना होगा। यह कैसे ज्ञात हो कि मनुष्य का मन स्वस्थ नहीं है? यह भी जानना जरूरी है। अस्वस्थ मन वाले के लक्षण कुछ इस पकार होते हैं
–
1. चिड़चिड़ापन
2. एकाग्रता
की कमी
3. निर्णय शक्ति की कमी
4. नाजुक स्वभाव
5. चिन्तित रहना
6. निराशा
7. इच्छाशक्ति
की कमी
8. असुरक्षा की भावना
9. संग्रह प्रवृत्ति की अधिकता
10. बीती घटनाओं से अधिक चिन्तित होना
11. भविष्य की चिन्ता करना आदि-आदि.....
धीरे-धीरे ये चिन्ह तनाव का रूप धारण करने लगते हैं। तनाव यानि मन पर दबाव-सा बढ़ने लगता है, जितना मन का सामर्थ्य है उससे कहीं अधिक। दबाव बढ़ने का कारण यह नकारात्मक चिन्तन ही है। नकारात्मक चिन्तन से मन पर दबाव बढ़ता है, मन पर दबाव बढने से वह उसके व्यवहार में व्यक्त होगा।
यदि वह व्यक्त न हो पाया और अन्दर दबाये रखा तो फिर बीमारी का रूप धारण कर लेता है। जैसे डायबिटीज्
बी.पी., हिस्टिरिया
आदि का मूल कारण मानसिक तनाव ही पाया जाता है। इस मानसिक तनाव के परिणाम हानिकारक हैं।
1.
अधिक इच्छाओं के प्रभाव में आना
2. अधिक भौतिकवादी (सुख को स्थूल साधनों में ढूंढना)
3.जीवन शैली का अधिक यात्रिक होना
4. भावना शून्य जीवन
5.
स्थूल सम्पत्ति ही सुख का मूल, ऐसा समझ उसके पीछे अन्धी दौड़
6.
जीवन मूल्यों को भूलना आदि के कारण ही आज नकारात्मक चिंतन बढ़ता जा रहा है।
इसके कारण ही सुख आज मानव से कोसों दूर दिखाई दे रहा है। इन्हीं कारणां से ही आज मनोवैज्ञानिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। मानव जीवन आज तनावमय जीवन है। यही कारण है कि आज पारिवारिक जीवन में गहरी दरारें दिखाई दे रही हैं। जीवन के दो पहिए पति-पत्नी एक साथ रहने के बजाए आज तलाक की संख्या बढ़ते दिखाई दे रही है।
इन हालात का असर निश्चित ही समाज की व्यवस्था पर पड़ता है और फिर समाज जो मानवों का समूह है, न केवल एक समूह बल्कि किसी एक ध्येय को लेकर साथ चलने वालों का समूह है वह टूटता-सा नजर आता है और सामाजिक अस्वस्थता घर कर जाती है इसलिए सामाजिक स्वास्थ्य के लिए व एक स्वस्थ समाज के निमार्ण के लिए आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति की मानसिक स्थिति को ठीक किया जाये।
उसके लिए यह ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग आवश्यक है। भगवानुवाच है कि हे मानव तू अपने मन को मेरे में लगा अर्थात मन को सकारात्मक चिंतन में लाना होगा उसके द्वारा गरीबी, जनसंख्या वृद्धि, पाकृतिक विपत्ति, ईर्ष्या, द्वेष आदि से रहित समाज का निमार्ण किया जा सकता है। सन्तुष्ट और पसन्न, सदा निरोगी और हर्षितचित्त वाले देवी-देवताआं का जो समाज इस भारतवर्ष में था।
जिसका यहाँ गायन किया जाता है वह पुन स्थापित होगा। वही कार्य आज यह
Prajapita Brahma Kumaris Ishwariya Vishwa Vidyalaya ईश्वरीय विश्व-विद्यालय और समाज सेवा प्रभाग कर रहा है। आपका हम सहर्ष स्वागत करते हैं।
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