विश्व में सुसम्वादिता, सामंजस्य एवं सद्भावना बनाये रखने के लिये....

0

हमने परिवार रूपी इकाई में मानव को आगे चलकर समाज में जीवन जीने के लिये तैयार करने की चर्चा करते हुए महिला के रोल का जो महत्त्व बताया है, आज पाय महिलाएं उसके पति जागरुक नहीं हैं। वे उस पर कम ही ध्यान देती हैं। शायद वे यह सोचती हैं कि ये बातें तो बच्चा स्कूल, कालेज, रेडियो, टी.वी. इत्यादि से सीख जायेगा।

माँ ही बच्चे का पहला गुरु है - इस सत्यता को आज गहराई से समझा नहीं जाता है। सोचने की बात तो यह है कि अगर घर में ही बच्चे को प्यार नहीं मिलेगा या वह पेमपूर्वक दूसरों के साथ रहना नहीं सीखेगा तो वह कालेज में जाकर ही या तो तोड़-फोड़ करेगा या सिगरेट और स्मैक का सेवन करेगा और एड्स तक की बीमारियों का शिकार होगा।

इसी पकार अगर घर में ही इंसाफ और सम्मान का वातावरण नहीं होगा तो वह कालेज में जाकर अनुशासन भंग करेगा और भीतर दबा सारा गुस्सा निकालेगा।

अफसोस की बात तो यह है कि आज घर में बचपन में ही ऐसा माहौल देने और ऐसी शिक्षा देने की बजाय सास-बहू के झगड़े की बातें सुनने को मिलती हैं। घर में बहू के आने पर यह सोचने की बजाय कि घर में लक्ष्मी आयी है, आज कुछेक घरों में सास, बहू से अधिक दहेज-धन लाने का आग्रह करती है और दुल्हन-दहन तक की घटनाएं होती हैं।

स्पष्ट है कि आज प्यार का स्थान पैसे ने ले लिया है और न्याय का स्थान उंढचे और नीचे परिवार के अन्तर या भेद-भाव की नीति ने ले लिया है। इससे तो संसार में झगड़ा बढ़ा है और तालमेल स्थापित होने की बजाय जेल स्थापित हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि यदि परिवार में ही महिलाओं को पारम्भिक महत्त्वपूर्ण योग मिले तो इस समाज में बहुत-सी समस्याएं और संघर्ष पैदा होंगे ही नहीं।

समाज में तालमेल पैदा करने में महिलाओं का योगदान

छोटे परिवार के बारे में चर्चा करने के बाद, आइये हम यह देख लें कि समाज रूपी बड़े परिवार में तालमेल बनाये रखने में महिलाओं का क्या योगदान हो सकता है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि हर छोटी बच्ची में भी माता छिपी हुई है और माता तो माता है ही। वह माता इस भावार्थ में है कि उसमें मातृव का गुण है। माता बच्चों की पीड़ा सहन नहीं कर सकती, वह उनके रुदन को सुनकर सो नहीं सकती। वह अपना सुख छोड़कर भी उनको सुखी  देखना चाहती है, स्वयं गम खाकर भी उनके आंसू पेंछना चाहती है।

माताओं के स्वभाव में यह कोमलता है जो घर की अखण्डता और एकता को बनाये रखती हैं। यह गुण हार्मनी लाता है, उसकी यह चेतना कि मै माँ हूँ उससे यह कर्त्तव्य कराता है।

ठीक इसी पकार, अब यदि उसमें यह चेतना जाये कि मैं जगत की माँ हूँ तो वह संसार अथवा समाज में हार्मनी लाने में भी निमित बन सकती है। संसार में लगभग 50 पतिशत संख्या माताओं और कन्याओं की है जैसे घर में माँ, बच्चों को लड़ने से रोकती है वैसे यदि वे माताएँ-कन्याएँ एकजुट होकर ठान लें कि हम हथियार नहीं उठाने देंगी तो बताइये कि क्या मजहबी दंगे हो सकेंगे?

क्या तोपों और टैंको से नगरी का विध्वंस होगा? यह रोल माताएँ कर सकती हैं परन्तु अफसोस की बात तो यह है कि  पहले तो सेना में केवल पुरुष ही लड़ते थे परन्तु अब महिलाएँ भी भर्ती होने और लड़ने लगी हैं।

अहिंसा का पाठ पढ़ाने में सफल

महिला का मन मृदुल है, करुणाशील है, वात्सल्यपूर्ण है। तब भला वह हत्यारे का साथ कैसे दे सकती है जब भाई-भाई का खून करने पर तुला हो तब क्या माता रक्तपात करने दे सकती है? बिल्कुल ही नहीं। क्योंकि वह तो माता है उसे सभी बच्चे प्यारे हैं वह ममतामयी है।

तो स्वभावनुसार महिलाएँ संसार में अंहिसा का पाठ पढ़ाने में जोरदार सहयोग दे सकती हैं। परन्तु वह इस कार्य को तभी कर सकती हैं जब उन्हें यह याद रहे कि मैं जगत की माँ हूँ, पेम ही मेरा स्वाभाविक गुण है।

इस प्रकार की चेतना से महिलाएँ संसार में वह कार्य कर सकती हैं जो आज तक संसार के सभी धर्म स्थापक नहीं कर सके, कारण यह कि उन धर्म स्थापकों ने माताओं को इसके निमित्त बनाया ही नहीं। महिलाएँ भी इस पुरुष प्रधान जगत में पुरुष ही की कठपुतली बनी रही हैं और उसकी डुगडुगी पर ही डाँस करती रहीं हैं।

परन्तु अब यदि वे एकजुट होकर दृढ़तापूर्वक इस कार्य को करें अर्थात हिंसा को समाप्त करने पर कटिबद्ध हो जायें तो आप ही बताइये कि हार्मनी होगी या नहीं!

अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार पर आधारित संघर्ष का अन्त

आज भ्रष्टाचार और अन्याय के कारण अपराध बढ़ रहा है और साथ-साथ शराब तथा नशीले पदार्थ रूपी व्यसनों में मनुष्य उलझ रहा है। अगर मातायें ही इस बात पर कटिबद्ध हो जायें कि हमने भ्रष्टाचार का पैसा घर में आने ही नहीं देना और कि हम कम पैसे से गुजारा करने को तैयार हैं परन्तु बेईमानी की कमाई रूपी ज़हर को हम हाथ भी नहीं लगायेंगी तो जो कार्य सरकार, पुलिस, अदालत नहीं कर सकती वो मातायें कर सकती हैं।

आज इस ग़लत कमाई के पैसों से ही तो उपद्रव हो रहे हैं। ये हथियार क्या सच्ची कमाई से खरीदे जा रहे हैं? क्या यह सारी राजनीति ईमानदारी के पैसे से चल रही है?

अत यदि माताएँ ठान लें कि केवल घर में सफाई रखना ही माताओं का काम नहीं बल्कि हमें समाज को भी स्वच्छ बनाना है, ज्ञान-गंगा बनकर सबके मन को भी धो देना है, तपस्वी बनकर तपस्या की अग्नि में बुराइयों को भस्म कर देना है तो फिर क्या इस देश में मार-काट और दंगों का या सुसम्वादिता के भंग होने का नामनिशान भी रह सकता है।

तो क्यों हम नारा लगायें - ज्ञान की बोतल पिलाओ, शराब की बोतल हटाओ, नारायणी नशा चढ़ाओ, बाकी नशों से बचाओ। सब हथियार जलाओ, हाथ-से-हाथ मिलाओ तो यहाँ आपको सब जगह पेम के ही गीत सुनने को मिलेंगे।

प्रकृति और पर्यावरण से तालमेल

आज पर्यावरण पदूषित हो रहा है। सभी कह रहे हैं कि पर्यावरण से तालमेल हमारा समाप्त हो गया है। अगर ये आणविक शस्त्र बनें और जीवन में सादगी हो जिससे कि इतने कल-कारखाने, डीजल, पैट्रोल आदि की खपत में कुछ बचत कर सकें तो हम बेखटके से शुद्ध हवा का श्वास तो ले सकेंगे वर्ना अगर मनुष्य इतने बढ़ते जायें और ये साधन भी इतने बढ़ते जायें और इनकी खपत भी इतनी बढ़ जाये तब हम या तो सब दम घुटने से ही मर जायेंगे या फिर खाँव-खाँव करते पाए जायेंगे।

हरेक व्यक्ति डाक्टर को कहेगा - डॉ साहब! गैस की बीमारी है। डाक्टर चाहे बतायेगा नहीं, परन्तु सोचेगा गैस की बीमारी तो मुझ भी है। तो क्या यह हार्मनी है। अगर हम समय को पहचानें तो हार्म (हानि) होगा। मनी (धन) तो जायेगा ही, हार्म ही रह जायेगा।

इसलिये अगर मातायें यह प्रतिज्ञा कर लें कि हम कोई बच्चा पैदा करने वाली मशीनें नहीं हैं, इंसान हैं हमारे जीवन का भी कोई उँचा लक्ष्य है जिसको हमें पाप्त करना है और हम बच्चे पैदा करके उन्हें घुटन से मरता हुआ नहीं देख सकतीं, तो फिर देखिये पकृति अथवा नेचर से हार्मनी होती है या नहीं। प्रकृति चाहती है कि बाग-बगीचे हों, फल-फूल हों, वृक्ष-लतायें हों और थोड़े-से मनुष्य हों जो सुख-शान्ति और पेम से जीयें।

तो कहने का भाव यह है कि हम अपने रोल को समझें और कुएँ का मेंढ़क बनकर इस विशाल कार्य को करने का प्लैन बनायें और प्लैन यही है कि जन-जन को पेम, अंहिसा, सह-अस्तित्व और सादगी का पाठ पढ़ायें तो निश्चय ही यूनिवर्सल हार्मनी होगी।

जब लोग पहले हमारे अपने जीवन में हार्मनी देखेंगे, हमारे अपने मन से उन्हें शान्ति के वायब्रेशन्स मिलेंगे, हमारे अपने जीवन से सादगी और स्वच्छता पायेंगे तो वे स्वत ही हमारे साथ मिल जायेंगे और इस पकिया से आगे बढ़ते हुए विश्व में सामंजस्य, सद्भावना और सुसंवादिता स्थापित होंगी। दूसरे शब्दों में, कलियुग समाप्त होगा, सतयुग आयेगा। हम मातृ शक्तियों की जागृति से ही ईश्वर का यह कार्य होगा। ये ईश्वर की इच्छा पूर्ण होकर रहेगी।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top