मानसिक प्रदूषण

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विश्व की सभी सरकारें वायुमण्डलीय प्रदूषण के बारे में सचेत हैं और उसके शुद्धिकरण के यथा-सम्भव प्रयास भी कर रही हैं। यह सराहनीय कार्य है, क्योंकि दिन-प्रतिदिन ऑक्सीजन की कमी से मानवता के लिए खतरा पैदा हो रहा है, परन्तु जहाँ मानव को जीवित रखने के लिए सभी बुद्धिवान लोग विचार करते हैं, वहीं मानवता को जीवित रखने के लिए भी विचार करना आवश्यक है। मानवता का सबसे बड़ा संहारक है – वातावरण की प्रदूषणता।

यहाँ दो शब्दों का प्रयोग होता है एक वायुमण्ड दूसरा वातावरण। वायुमण्डल, भिन्न-भिन्न प्रकार की गैसें मिलकर बनता है और वातावरण मनुष्य के विचारों से निर्मित होता है। यदि आप किसी अच्छे आश्रम में प्रवेश करें तो वहाँ आपको ‘शान्ति’ अनुभव होती है, इसका कारण वहाँ का वातावरण शान्ति के प्रकम्पन्नों से परिपूर्ण है। वहाँ शान्तिपिय लोग रहते हैं और यदि आप किसी फैक्ट्ररी के पाँगण में कदम रखते हैं तो आपका दम घुटने लगता है, आप ज़्यादा देर वहाँ रहना नहीं चाहते, क्योंकि वहाँ के वायुमण्डल में अशुद्ध गैसों का मिश्रण है।

तो धरती के धरातल के ऊपर अर्थात् हमारे ऊपर आज अशुद्ध वायुमण्डल की घनी परतें भी छाई हैं और तामसिक वातावरण का जाल भी बिछा हुआ है। दोनों के अन्दर हम जी रहे हैं। विचारणीय है यदि मानव जीवित भी रहे, परन्तु उससे मानवता नष्ट हो जाए तो उसके जीवित रहने का पयोजन ही क्या!

कहने का तात्पर्य यह है कि जितने प्रयास मानव को जीवित रखने के लिए किये जाते हैं, उतने ही उसमें मानवता भरने के भी हों तब ही धरती पर मनुष्य सच्चे सुख का श्वास ले सकेगा। परन्तु यदि श्वास लेने के लिए वायुमण्डल में शुद्ध वायु तो पर्याप्त मात्रा में हो, परन्तु मन उग्रता, अशान्ति तनाव से भरपूर हो तो इसका क्या लाभ.....?

आज वातावरण पूर्णत दूषित है कौन है इसके ज़िम्मेदार, किसने इसे दूषित किया.....? प्रत्येक मनुष्य ने। कैसे? मनुष्य जो कुछ सोचता है, उसके संकल्पों की तरंगें भी अविनाशी रूप से वातावरण में विद्यमान रहती है। हज़ारों वर्षों से प्रत्येक मनुष्य लगातार विचार कर रहा है। आज हम अच्छी तरह जानते हैं पाय 90 प्रतिशत मनुष्यों के मन में 60 प्रतिशत से अधिक बुरे विचार ही उठते हैं.....।

कोई-से हैं वे बुरे विचार? ईर्ष्या-द्वेष के विचार, बदले लेने के विचार, क्रो आवेग के विचार, काम कुदृष्टि के विचार, परचिंतन परनिंदा के विचार, दुःख देने के विचार, दूसरे का बुरा करने के, धोखा देने के अविश्वास के विचार आदि-आदि।

आप विचार करें पत्येक मनुष्य के मन से गंदे विचारों की सरिता सतत् बह रही है और वातावरण को दूषित कर रही है। यदि मनोवैज्ञानिकों ने संकल्पों के इन प्रकम्पनों को देखने की भी कोई दुरबीन बनाई होती तो मनुष्य जान पाता कि उसके ऊपर चारों ओर काली-काली अनेक तरंगें जाल के रूप में छाई हुई हैं।

और यही मुख्य कारण है आज के मनुष्य की बेचैनी का, उसके मन के तनाव का या यूँ कहें कि नई पीढ़ी के बिगड़ने का। कई पुराने लोग कहते रहते हैं कि भई, कैसा जमाना गया, बच्चे शैतान हो गए, बिगड़ गये हैं, परन्तु उनको बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई इस दूषित वातावरण ने और उसे दूषित किया हम सबने मिलकर।

अब प्रश्न है कि इससे मुक्ति कैसे हो? पाचीनकाल में ऋषियों ने यज्ञों का आयोजन इसी लक्ष्य से पारम्भ किया होगा, परन्तु आज यज्ञों की धुनी बहुत कम नज़र आती है और अब वायुमण्डल वातावरण दोनों ही इतने दूषित हो चुके हैं कि केवल उन्हें यज्ञ से शुद्ध करना माना घने अंधकार को छोटा-सा दीपक दिखाना है।

तो इसका निवारण होगा हमारे श्रेष्ठ विचारों से, सभ्य शब्दों से। मनुष्य जो कि सारा दिन असभ्य भाषा बोलता है, उसे यह अहसास कराना होगा कि यह कितनी भयावह है और सारा दिन व्यर्थ, अश्लील, बुरा सोचने वाले व्यक्ति को इसके परिणाम पर विचार करना होगा।

तो विवेकशील चिंतनशील पाणियों को ऐसी गोष्ठियों का आयोजन करना चाहिए हमारे प्रचार माध्यमों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए कि वे मनुष्य को अच्छे विचार रखने की कला कैसे सिखायें। प्रतिदिन उन्हें भी और अधिक अच्छे विचारों का प्रसारण करना चाहिए। गंदी फिल्में, गंदे चित्र दिखाकर तो मानों वे भी वातावरण को ही ज़हरीला बना रहे हैं।

तो आँख खुलते ही मनुष्य को ज़रा अपनी चिंतन धारा पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जीवन में आँख खुलते ही उसके पथम संकल्प का बहुत महत्त्व है। यदि उसका पहला संकल्प ही ज़हरीला है तो मनुष्य का पत्येक अगला विचार पहले विचार में जुड़ा होता है, फलस्वरूप उसका सारा ही दिन ज़हरीले विचारों में बीतेगा, वह मुख से भी ज़हर उगलेगा, परिणामत वातावरण दूषित होगा।

इसलिए प्रथम विचार को शुद्ध कर लें। कैसी हो हमारे प्रथम विचार की नींव, जिस पर सारे दिन की इमारत खड़ी हो। ऐसे बहुत-से विचार बताये जा सकते हैं। उदाहरणार्थ हम कुछ विचार यहाँ पस्तुत कर रहे हैं

1. धैर्यता शान्ति से बिगड़े काम भी सुधर जाते हैं।

2. क्रोध, काम बिगाड़ता है, विवेक शक्ति को नष्ट करता है। अत मनुष्य को क्रो की अग्नि में नहीं जलना चाहिए।

3. मनुष्य को सदा ही स्नेहयुक्त नम्रचित होकर व्यवहार करना चाहिए।

4. हम दूसरों से पेम चाहते हैं सत्कार चाहते हैं, पहले हम दें तो हमें स्वत ही पाप्त होगा।

5. बुरे व्यसन मनुष्य के जीवन को पशु समान बना देते हैं।

6. कभी भी दूसरे के दिल को दुःखाना नहीं चाहिए। दूसरे को दुःखी करने वाले कभी सुखी नहीं हो सकते।

7. मनुष्य को ईमानदारी श्रेष्ठ व्यवहार से अपना कार्य चलाना चाहिए।

8. मनुष्य होकर भी यदि चैन की श्वास ली तो मनुष्य होकर क्या किया!

इस प्रकार प्रतिदिन अच्छे विचार पैदा करने से, वर्णन करने से हम वातावरण को बदल सकेंगे। अपने घर के वातावरण को अच्छा बनाने के लिए अच्छी-अच्छी उक्तियाँ लिखकर टाँग देनी चाहिए। स्कूल कॉलेजों में भी अच्छे-अच्छे नीति सम्बन्धी महावाक्य जहाँ-तहाँ लिखे हों, जिन्हें पढ़कर मनुष्य की चिंतनधारा बदले।

हम सभी जानते हैं कि यदि आज मानव की चिंतन धारा बदली गई तो नई पीढ़ी में दानवता की ही अधिकता होगी। वातावरण खाने वाला होगा। अत जो समाज-सुधारक हैं, जो देश के नेता हैं, जो ज़िम्मेदार लोग हैं उन्हें इस वातावरण के पदूषण को रोकने के लिए भी विश्वव्यापी कान्ति का आह्वान करना होगा। यदि हम ऐसा नहीं करते है तो हम सदा के लिए नष्ट हो जायेंगे।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है। 

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