पारिवारिक समायोजन

0

मान लीजिए आपके पारिवारिक वातावरण में सहनशीलता नहीं है क्योंकि परिवारों को तोड़ने वाली असहनशीलता है। जैसे किसी चीज़ को जोड़ना है तो गेंद लगा देते हैं तो ये भी एक गोंद है जहाँ गोंद हटी तो देखिए ये तोड़-फोड़ कितनी जल्दी होती है। टूटने में केवल एक सेकण्ड लगता है और जोड़ने में कितना समय लग जाता है।

जहाँ सहनशीलता नहीं होती, वहाँ जल्दी आग भड़कती है और सुलगेगी तो जोश और अधिक बढ़ेगा। दो का चार कहेंगे। ठीक इसी पकार जब घर में इस पकार का वातावरण होता है तो सब विभाजित हो जाता है। मान लीजिए किसी बात को आपने अनुचित समझा और अपनी सहनशक्ति को समाप्त करके आपको गुस्सा गया।

आपके परिवार में केवल पाँच ही सदस्य हैं आप देखिए कई बार ऐसा होता है कि दो सदस्य एक तरफ होते हैं और दो दूसरी तरफ होते हैं और घर में पार्टी बाजी बन जाती है। सहनशक्ति होने के कारण बच्चों की भी पार्टियाँ बन जाती हैं और हर एक न्यायाधीश बनना चाहता है। बेटा कहता है मम्मी आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए, बेटी कहती है कि पापा आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, पापा कहते हैं कि बेटा ऐसा करना ठीक नहीं है।

ये सब क्या है? क्योंकि सहनशक्ति होने के कारण ऐसा वातावरण बनता है और घर में ही एक-दूसरे को धमकियाँ देते रहते हैं कि अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो देख लेना। इसलिए इस गुण को थोड़ा-सा अपनाने की आवश्यकता है। दो में से एक व्यक्ति भी अगर सहनशील है तो वह फायरब्रिगेड की तरह काम करेगा। क्योंकि आग अगर बुझी नहीं है तो कम-से-कम बढ़ेगी तो नहीं।

वास्तव में सहनशक्ति हमारी तब टूटती है जब कोई हमारी निन्दा करता है। बात कोई होती नहीं और हमारी निन्दा कर दी या चुगली लगाता है, इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करता है या किसी कार्य में रुकावट डालता है तो कहते हैं कि अब कहाँ तक सहन करें। उस समय हम सोचते हैं कि हमारे सहयोग से आज ये कुछ बना है और आज हमें ही काटने लग गया।

तो जब ऐसे हालात होंगे मनुष्य की सहनशक्ति तो टूटेगी ही, लेकिन अगर हम अपने आपसे पूछें कि सहनशील होना किस समय काम आयेगा? परिस्थितियों में ही तो परीक्षा होती है। मेरी कोई महिमा करे उस समय मैं सहनशील हूँ तो इसके कोई मायने नहीं लेकिन जब सामने परिस्थिति आयी अगर मैंने उस समय सहन किया तो उसे कहेंगे कि सहनशक्ति है।

आप कहेंगे कि सुनने में ये बातें  सहज लगती हैं लेकिन वास्तव में जब किसी के साथ होता है तो पता चलता है। हमनें देखा कि पेक्टिकल में करने से ये हो सकता है। आज ये विश्व विद्यालय इतना आगे ऐसे ही नहीं पहुँचा, इसके लिए लोगों ने जाने क्या-क्या कहा और यहाँ के भाई-बहनों ने क्या-क्या सहन नहीं किया। लोग कहते थे कि ब्रह्माकुमारीज़ के पाखण्ड से बचो।

लेकिन हमने सोचा कि अगर कोई सुन्दर बीज बोया जाता है तो खाद की आवश्यकता होती है। अगर मैं कहूँ कि इस खाद में बहुत बदबू है इसे परे ले जाओ तो फिर अच्छा फल कभी निकल नहीं सकता। इस पर हमारे पिताश्री ब्रह्मा बाबा कहते थे कि बच्चे कोई बात नहीं, कहने दो लोगों को लेकिन तुम सच्चाई पर चलते चलो, सच की नाव डोलेगी ज़रूर लेकिन डूबेगी नहीं।

हमने अपने अनुभवों से देखा कि जब हम घर छोड़कर इस ईश्वरीय सेवा में आये तो आप क्या समझते हैं कि विघ्न नहीं आये होंगे। बहुत विघ्न आये। लेकिन विश्वास था कि हम अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने जा रहे हैं। अगर हम सत्य की राह पर चलेंगे विघ्न तो आयेंगे ही। आज गुरुनानक देव जी आए, काइस्ट आए जितने भी बड़े-बड़े धर्मपिता आए आप उनकी हिस्ट्री खोलकर देख लीजिए कि उन्होंने कितना सहन किया। क्योंकि उनके अन्दर विश्वास था कि हम सत्य की राह पर चल रहे हैं।

आज हमारी दादियाँ विदेशों में जाती हैं तो उनके सम्बन्धी बड़े नाज़ से कहते हैं कि ये हमारे सम्बन्धी हैं जिनका भाषण हुआ। कहने का भाव यह है कि शुरू-शुरू में सत्य की राह पर कठिनाईयाँ ज़रूर आयेंगी लेकिन अन्त में सफलता सत्य की ही होती है। आप सत्य की राह पर चलते जाइए और देखिये कि विजय होती है कि नहीं।

मेहनत ज़रूर है क्येंकि हमारे जन्म-जन्म के संस्कार हैं जो हमारे रास्ते में बाधा हैं। जब भी कोई हमारी सफलता में बाधा बनता है तो हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि ये हमारे ही पिछले जन्मों का कोई खाता है जो चुक्तू हो रहा है किसी का कोई कसूर नहीं है। दूसरा, ये हमारी किन्हीं भूलों का फल है हमें इस समाप्त करना ही है।

तीसरा ये है कि जो मैं चाहूँ ये ज़रूरी नहीं कि दूसरा वही करे। ऐसे समय पर अपनी सुरक्षा मुझे आप ही करनी है और ये सुरक्षा होती है इन ज्ञान के प्वाइंट से। हमें अपने कर्मों का हिसाब-किताब तो चुवतू करना ही है चाहे योग से करें चाहे भोग से, लेकिन करना तो हमें ही है। ये एक कड़वी सच्चाई है। अब कई सोचते हैं कि यह शरीर छूट जाये तो छुटकारा हो जायेगा। लेकिन जो कर्म किये हुए हैं उन्हें कौन भुगतेगा। हमें ही भुगतने पड़ेंगे।

सहनशक्ति आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाती है। देखना हमें है कि हमें सहन कहाँ करना है, सामना कहाँ करना है और समाना कहाँ है। सहन करने का मतलब ये नहीं है कि हम हर समय किसी की बुराई को ही सहन करते रहें। अगर हमें कोई एक गाल पर चाटा मारता है तो सहन करने का मतलब ये नहीं कि हमें दूसरा गाल भी आगे करना चाहिए।

एक के बाद उसको दूसरा विकर्म नहीं करने देना है। मतलब कहने का है कि अपने अन्दर कल्याण की भावना हो। किसी के पति नफरत हो, ईर्ष्या हो, बदले की भावना हो। अगर कोई बोलता ही जा रहा है और चुप नहीं हो रहा मुझे पता है कि वह मेरे आँख दिखाने पर ही चुप होगा तो मुझे उसके विकर्मों को रोकने के लिए आँख दिखानी पड़ेगी।

ये मेरा रोल है मेरा रूप नहीं है। रोल और रूप दोनों अलग चीज़ें हैं। हम कई बार ये समझ नहीं पाते। हमें ये चेक करना है कि किस समय कैसा रोल अदा करना है।

    मधुरता भी एक बहुत बड़ा गुण है जो कोध के पारे को नीचे उतारता है। मधुरता शिकायत का कोई चाँस नहीं देती है। मान लीजिए किसी ने आपसे  कोई ग़लत बात की और आपने उससे माधुर्य से कोई बात कह दी आप मीठे बने रहे तो कम से कम आपकी किसी बात की शिकायत तो जमा नहीं हुई। हमने किसी को कोई चाँस तो नहीं दिया। कई बार मधुरता नहीं होती है तो बनती बात भी बिगड़ जाती है।

हमे मन, वचन और कर्म में मधुरता लानी चाहिए। अब एक दिन भी इस गुण को धारण करके देख लीजिए तो धीरे-धीरे आपका ये संस्कार बनता जायेगा। मीठी वाणी से हमारे बिगड़ते काम बनने लगते हैं। इस पर एक रूप-बसन्त की कहानी है कहते हैं कि रूप जब हँसता था तो मोती झड़ते थे और बसन्त जब हँसता तो फूल झड़ते थे और किसी के  लिए कहते हैं कि जब वो बोलते हैं तो पत्थर ही निकलते हैं। 

इसलिए माधुर्य मोती के समान है। मधुरता से पराये भी अपने बन जाते हैं। किसी को भी अगर अपना बनाना है तो आप प्यार से, मिठास से उसे अपना बना सकते हो। अगर मधुरता नहीं है तो अपने भी पराये बन जाते हैं। अगर पाणी ये मधुरता का गुण अपना ले तो ये घर-परिवार को संजोकर रखने में बहुत ही सहयोगी है।

इसलिए कहते हैं कि मुख कमान है और बोल आपका बाण है। कहा गया है कि बोल के जो ज़ख्म हैं जीवन भर नहीं भरते हैं और बाण के जो ज़ख्म हैं वो भर सकते हैं। तभी कहते हैं कि बोलो लेकिन पहले तोलो। जहाँ बोलने की आवश्यकता है वहाँ बोलो अनावश्यक नहीं बोलना चाहिए। कम बोल हमेशा शक्तिशाली होते हैं। बोल हमारा माधुर्य से भरा हुआ हो, सार युक्त हो।

इसलिए ये स्लोगन सदा याद रखो कि - कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो। माधुर्य से हमारी मनोस्थिति शान्त होगी। घर के वातावरण को बनाये रखने के लिए कुछ बातों को थोड़ा ध्यान रखना पड़ता है। मतलब यह है कि झुकना केवल झुकना नहीं लेकिन झुकाना है, सहन करना सहन करना नहीं यह बहुत बड़ी शक्ति की बात है।

ये कमज़ोर आदमी नहीं कर सकता, यह बहादुर व्यक्ति ही कर सकता है, ये आध्यात्मिकता से परिपूर्ण व्यक्ति ही कर सकता है। इसलिए सहनशीलता का गुण और मधुरता का गुण जीवन में अपनाना बहुत ही ज़रूरी है अगर हम पारिवारिक समायोजन चाहते हैं।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top